Chaiti Chhath 2022: सूर्य की उपासना का महापर्व है छठ. एक ऐसा महापर्व जिसे लगातार चार दिनों तक पूरी आस्था और विश्वास के साथ मनाया जाता है. ये सूर्य षष्ठी भी कहलाता है. बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाना वाला छठ पूजा (Chhath puja) का व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक हैं. इसीलिए तो इसे महापर्व कहा जाता है. बहुत कम लोग जानते हैं कि साल में दो बार छठ पर्व होता है, एक कार्तिक (Kartik) यानी अक्टूबर-नवंबर में और दूसरा चैत्र (Chaitra) यानी मार्च-अप्रैल में. चैत्र में मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ (Chaiti Chhath) भी कहते हैं.
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इस साल चैती छठ (Chaiti Chhath) की शुरुआत 5 अप्रैल को नहाय-खाय (Nahay-khay) के साथ शुरू हो गई है और 8 अप्रैल को उगते सूरज को अर्घ्य देने के साथ इस महापर्व का समापन हो रहा है. नहाय खाय के दिन छठ पूजा/व्रत करने वाले परिवार लोग घर को साफ, पवित्र करके पूजा सामग्री एक स्थान पर रखते हैं. इस दिन सभी लोग सात्विक डायट लेते हैं. छठ पूजा का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण दिन खरना (kharna) होता है. खरना वाले दिन पूरे दिन व्रत रखा जाता है और रात में पूरी पवित्रता के साथ बनी गुड़ की खीर का प्रसाद खाया जाता है और इसके बाद से ही 36 घंटों का कठिन व्रत शुरु हो जाता. चैत्र महीने की छठ पूजा के दौरान अधिक गर्मी होने के चलते व्रतियों को काफी मुश्किल हो जाता है. इसीलिए ये व्रत कार्तिक छठ की तुलना में कम लोग ही करते हैं.
धार्मिक दृष्टिकोण से ये व्रत संतान प्राप्ति और सुखी जीवन की कामना के लिए किया जाता है. वहीं आध्यात्म के लिहाज से मन को तामसिक प्रवृत्ति से बचाने के लिए इस पर्व को मनाने की परंपरा है.
हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, चैती छठ पूजा को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं, पुराणों के अनुसार, छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी. इसे सबसे पहले सूर्य के पुत्र कर्ण ने शुरू किया था. कहा जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोड घंटों तक पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे. सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने
वहीं एक कथा और भी है दो द्रौपदी से जुड़ी है. मान्यताओं के मुताबिक, जब पांडव सारा राजपाठ जुए में हार गए, तब द्रोपदी ने छठ व्रत रखा था. इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई थी और पांडवों को सब कुछ वापस मिल गया. तो वहीं लोक परंपरा के अनुसार, सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है. इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई है
चैती छठ पूजा पर अस्ताचलगामी सूर्य यानि डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का वक्त 7 अप्रैल को शाम को 5:30 बजे और उदीयमान सूर्य यानि उगते सूरज को अर्घ्य अर्पण करने का समय 8 अप्रैल को सुबह 6:40 बजे है