पश्चिम बंगाल (West bengal) के नदिया जिले (Nadia) में स्थित 'रॉय बारी दुर्गा पूजा' ( Roy Bari's Durga) अपनी परंपरा के लिए जाना जाता है. इसका ऐतिहासिक महत्व है साथ ही कहानी भी जुड़ी हुई है. दरअसल, बनर्जी राजवंश (Banerjee Dynasty) जिसे ब्रिटिश काल में 'रॉय' की उपाधि से नवाजा गया था. तभी से इस घर को 'रॉय बाड़ी' के नाम से जाना जाता है. तत्कालीन जमींदार गौरचंद रॉय ने इस पूजा की शुरुआत की थी. रॉय बारी की दुर्गा प्रतिमा अन्य दुर्गा माँ (रॉय बारी दुर्गा पूजा) की प्रतिमाओं से बिल्कुल अलग होती है. इस मूर्ति में माँ दुर्गा के साथ लक्ष्मी, गणेश, कार्तिक, सरस्वती की मूर्तियां नहीं होती हैं.
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रॉय बारी की पूजा वास्तव में एक चमत्कारिक कथा है. कुल देवता को 'गौर हरि टैगोर' के रूप में पूजा जाता है. इतिहास के पन्नों को पलटते हुए रॉय परिवार के सदस्य का कहना है कि उनके हाउस में कभी किसी सदस्य को कोई सदस्य गंभीर रूप से बीमार नहीं पड़ा. कई सदस्य दो-तीन मंजिल की छत से नीचे गिरे. लेकिन, उनमें से किसी को भी नुकसान नहीं हुआ,यहां तक कि शरीर में किसी तरह की चोटें भी नहीं आई.
बता दें, कि पूजा की रस्मों के अनुसार अन्य घरों की ही तरह पूजा में गन्ने और कद्दू की बलि दी जाती थी. पांचवें दिन परिवार की महिलाएं खास तरह की मिठाई 'आनंद नाडु' बनाती थीं जो आज भी कायम है. प्रतिदिन शाम को 'आनंद नाडु' को पुरी के साथ मां को परोसने का रिवाज रहा है,
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हालांकि बाद में आर्थिक तंगी के चलते पूजा करना थोड़ा मुश्किल हो गया. रॉय परिवार के एक सदस्य के अनुसार, उनके पास जो कुछ भी था, वह सरकार ने ले लिया. बल्कि इसकी अनदेखी की गई. हाल ही में उन्होंने शांतिपुर के विधायक से संपर्क कर मंदिर के विकास के लिए आर्थिक मदद मांगी. हालांकि कि उन्हें अभी तक कोई मदद नहीं मिली है.