Jagannath Rath Yatra 2022: ओडिशा के पुरी शहर में स्थित विशाल जगन्नाथ मंदिर... वो मंदिर जहां आज भी भगवान श्रीकृष्ण का दिल धड़कता है. साल में एक बार निकाली जाती है भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा. इस रथयात्रा का इंतज़ार हर कृष्ण भक्त को बेसब्री से रहता है. इसीलिए तो हर साल इस रथयात्रा में शामिल होने के लिए सिर्फ देश ही बल्कि दुनिया के कोने-कोने से लोग यहां आते है. इस साल ये रथयात्रा 1 जुलाई से 12 जुलाई तक चल रही है. समंदर किनारे बसे पुरी शहर में जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव के लिए श्रद्धालुओं और आस्था का ऐसा भव्य नज़ारा कहीं और देखना दुर्लभ है.
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रथयात्रा निकाले जाने का ज़िक्र पद्म पुराण, नारद पुराण और ब्रहम पुराण तीनों में मिलता है. पद्म पुराण के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की बहन ने एक बार नगर देखने की इच्छा जाहिर की थी. बहन की इच्छा थी तो भगवान भला उसे कैसे टाल सकते थे. तब जगन्नाथ जी और बलभद्र अपनी बहन सुभद्रा को रथ पर बैठाकर नगर दिखाने निकल पड़े. इस दौरान वे मौसी के घर गुंडिचा भी गए और सात दिन ठहरे. तभी से यहां पर रथयात्रा निकालने की परंपरा है. और सिर्फ पुरी ही नहीं बल्कि कोलकाता से लेकर अहमदाबाद तक हर जगह भक्त भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकालते हैं.
रथयात्रा के लिए जगन्नाथ मंदिर से भगवान जगन्नाथ, भाई बलराम और बहन सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ निकाले जाते हैं. इनमें सबसे आगे बलराम जी का रथ, बीच में बहन सुभद्रा और सबसे पीछे प्रभु जगन्नाथ का रथ होता है. तीनों के रथ को नीम की लकड़ी से तैयार किया जाता है जिसमें किसी भी तरह की कील, कांटे या दूसरी धातु का इस्तेमाल नहीं होता है. जिस पेड़ की लकड़ी का इस्तेमाल होता है उसका चुनाव पुजारियों की एक समिति करती है. रथयात्रा की शुरुआत पुरी के राजा के द्वारा सोने के झाड़ू से सफाई करने के बाद होता है.
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भगवान श्रीकृष्ण के अवतार जगन्नाथजी की रथयात्रा में शामिल होने का पुण्य सौ यज्ञों के बराबर माना जाता है. मान्यता है कि रथ खींचने से जाने या अनजाने में हुए पाप नष्ट हो जाते है. इस दौरान भक्तों को सीधे प्रतिमाओं तक पहुंचने का सुनहरा अवसर प्राप्त होता है.
इस विश्वप्रसिद्ध मंदिर पर हर दिन झंडा बदला जाता है और वो हमेशा हवा की दिशा के विपरीत ही फहराता है. मंदिर के ऊपर लगे चक्र बेहतरीन इंजीनियरिंग का नमूना है. इसे आप जिस भी तरफ से देखेंगे तो ये आपकी तरह ही घुमा हुआ दिखाई देगा. इसके अलावा मंदिर की रसोई से जुड़ा ऐसा एक रहस्य है जिसे आजतक कोई भी नहीं समझ पाया है. यहां महाप्रसाद को मिट्टी के बर्तनों में एक के उपर एक रखकर पकाया जाता है लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि सबसे उपर बर्तन में रखा खाना सबसे पहले पक जाता है इसके अलावा मंदिर में कितने भी भक्त आ जाएं प्रसाद ना तो कभी कम पड़ता है ना ज़्यादा, महाप्रसाद का एक भी दाना व्यर्थ नहीं जाता है.
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