भारत में कई तरह की परंपराएं देखने को मिलती है. वैसे तो चैत्र मास यानी मार्च का महीना लोगों को होली का त्योहार याद दिलाता है, लेकिन भारत के उत्तराखंड समेत कई पहाड़ी शहरों के लिए ये महीना फूलदेई उत्सव की खुलहाली लेकर आता है.
पहाड़ी शहरों में हर साल चैत्र मास की संक्राति से फूलदेई उत्सव का आयोजन होता है. इस बार यह आयोजन 14 मार्च से शुरू हो रहा है. 8 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव में बच्चे हर दिन सुबह सवेरे घरों की चौखट पर फूल डालते हैं.
बता दें कि बसंत ऋतु की खुशी में चैत्र में शुरु से ये उत्सव मनाने की परंपरा चली आ रही है. इस त्योहार को मनाने का मकसद बसंत ऋतु के आने और हर जगह हरियाली से खुशहाली छाए रहने के लिए ये त्योहार मनाया जाता है.
रुद्रप्रयाग के ग्रामीण क्षेत्रों में सुबह सवेरे बच्चे बसंत और घोघा माता के गीत गाकर मठ-मंदिर एवं घरों की चौखट रक 8 दिनों कर रोज फूल डालते हुए नजर आते हैं. इस काम से बच्चे, ग्रामीणों को जगाने का काम करते है.
घरों की चौखट पर फूल डालने के बदले में ग्रामीण फुलवारी बच्चों को परम्परा को निभाते हुए चौलाई से बने खील व गुड़ देते हैं.
कई जगहों पर बच्चे ग्रुप में घोघा देवता (फूलदेई) की डोली को भी सजाकर बसंत गीतों के साथ झूमकर नचाते हैं.
आठवें दिन बच्चे सभी घरों से खाने की चीजे और पूजा सामग्री को इकट्ठा कर कई लोगों के लिए भोजन तैयार किया जाता है. फिर बच्चे घोघा देवता की पूजा-अर्चना एवं भोग लगाने के बाद ही भोजन करते हैं.
कई स्थानों पर केवल घोघा देवता की डोलियां न ले जाकर, पत्थरों पर बने मूर्ति की पूजा की जाती है. यह पहाड़ी बच्चों का प्रिय त्यौहार माना गया है.
वहीं ग्लोबल वार्मिंग के चलते गांवों में फूलों का समय से पहले ही खिल जाने से फूलदेई उत्सव को मनाने में कुछ हद तक कमी आई है.
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