जैन धर्म में रोहिणी व्रत का खास महत्व है और हर महीने यह व्रत रखा जाता है. हर महीने रोहिणी नक्षण आता है. रोहिणी नक्षत्र जब चंद्रमा वृषभ राशि में होता है, उस दिन इस व्रत का किया जाता है. चलिए जानते हैं कब है रोहिणी व्रत और इसका महत्व.
हिंदू पंचांग के अनुसार रोहिणी व्रत 3 जुलाई को रखा जाएगा. रोहिणी व्रत को लगातार 3, 5 या फिर 7 साल तक रखने का नियम है. इसके बाद व्रत का उद्यापन किया जाता है. यह व्रत खासतौर पर महिलाएं परिवार की सुख और समृद्धि के लिए रखती हैं. रोहिणी व्रत भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित होता है.
रोहिणी व्रत के दिन सूर्योदय से पहले उठकर नहाना चाहिए. इसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है. पूजा में भगवान को धूप, दीप, फूल, फल, और प्रसाद अर्पित चढ़ाएं. वहीं, इस दिन निराहार या फलाहार रहकर व्रत रखा जाता है. इसके बाद शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पूरा किया जाता है.
रोहिणी व्रत की कथा सुनने या पढ़ने का महत्व होता है. इसमें एक समय राजा हरिश्चंद्र और उनकी पत्नी तपस्विनी की कहानी बताई जाती है, जिन्होंने इस व्रत के प्रभाव से अपनी सारी परेशानियों का अंत किया था और खुशहाल जीवन बिताया.
जैन धर्म में पंच महाव्रत सबसे अहम व्रत होते हैं. इनमें अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह शामिल हैं. माना जाता है कि रोहिणी व्रत को करने से इन महाव्रतों का पालन करने में आसानी होती है.
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