पूरे देश में दुर्गा पूजा (Durga Puja) की रौनक की झलक देखने को मिल रही है. दुर्गा मां (Durga Maa) की प्रतिमा कलाकार अभी से बनाने लगे हैं. अगल-अगल थीम पर मां दुर्गा के पूजा-पंडाल (Puja Pandal) का निर्माण किया जा रहा है. लेकिन आज हम आपको उस जगह के बारे में बताने जा रहे है, जहां के मंदिर में सालों भर चारों ओर सन्नाटा पसरा रहता है, हालंकि साल के पांच दिन इस जीर्ण-शीर्ण मंदिर फिर से जीवंत हो उठता है. मंदिर परिसर घंटियों, ढोलक की थाप, धूप की महक और लोगों के शोरगुल से जगमगा उठता है. हम बात कर रहे है मुक्सिमपारा की हलदर बारी दुर्गा मंदिर की जहां की पूजा काफी आकर्षक है. 500 साल पुरानी पूर्वस्थली दुर्गा पूजा की परम्परा और रीति-रिवाज अभी भी बनी हुई है.
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इस पूजा की स्थापना तत्कालीन जमींदार रामकुमार बनर्जी ने की थी, वहीं, नील कमल हलदर की जमींदारी में हलदर बारी दुर्गा पूजा की भव्यता बढ़ीं. वर्तमान में जमींदार वंश के पूर्वज प्रमोद हलदार की पुत्री रुद्राणी देवी के वंशज दुर्गा पूजा को भव्य तरीके से संपन्न करते हैं. बता दें, हल्दा की घरेलू पूजा की कुछ खास विशेषताएं होती हैं. मां को भोग छठी दिन से नवमी तक लगाया जाता है. अरबी के पत्ते के साग के साथ केले के फूल का प्रसाद देवी को अर्पित किए जाते हैं. इन भोग के बिना देवी की पूजा अधूरी मानी जाती है.
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दुर्गा पूजा में संधि पूजा का काफी महत्त्व है. सन्धिपूजा की शुरुआत गोलियों की आवाज से होती है. इस दौरान 108 दीपक जलाए जाते हैं. दसवें दिन माता को विसर्जित करने का विधान है. पूरा गांव सबसे पहले दुर्गा मां को कंधों पर बिठाते है, फिर देवी की प्रतिमा को तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है. दुर्गा पूजा के दिन घर में सभी लोग इकट्ठे होते हैं. हल्दा के घर की पूजा में स्थानीय निवासी भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं.