1969 में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA ने अपोलो-11 मिशन (Apollo-11 Program) के तहत पहली बार चांद पर किसी मानव को भेजा था. इस मिशन के साथ ही नील आर्मस्ट्रांग (Neil Armstrong) चांद पर पहुंचने वाले पहले शख्स बन गए थे. 20 जुलाई 1969 को अपोलो लूनर मॉड्यूल ईगल (Apollo Lunar Module Eagle) को चांद की धरती पर उतरा था. आइए जानते हैं किस तरह से नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने अपोलो-11 मिशन को अंजाम दिया था? कैसे एडविन आल्ड्रिन और नील आर्मस्ट्रॉन्ग (Edwin Aldrin and Neil Armstrong) वापस धरती पर लौटकर आए थे? ऐसी ही तमाम जानकारियां इस लेख में...
ये बात आधी सदी पहले की है...1969 की 16 जुलाई की सुबह 9.32 मिनट के वक्त अमेरिका के आसमान पर बादलों का डेरा था. उसी वक्त अमेरिकी अंतरिक्ष यान अपोलो-11 (Apollo-11) ने सीधे चंद्रमा के लिए उड़ान भरी...102 घंटे और 45 मिनट की उड़ान के बाद अपोलो 11 का लूनर मॉड्यूल ईगल चंद्रमा की सतह पर उतरा... उधर धरती पर करीब 4 लाख लोगों की टीम उस पहले इंसान को चांद पर कदम रखते हुए देखने को बेताब थी जिसके लिए वे महीनों से मेहनत कर रहे थे और वे पहले इंसान थे...नील ऑर्मस्टॉन्ग.
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उधर चांद पर नील अब तक बेहद शांत थे...लेकिन जैसे ही उन्होंने अपने लूनर मॉड्यूल से बाहर निकलने के लिए पहला कदम बढ़ाया उनके हृदय की गति 120 से 130 बीट्स प्रति मिनट पर पहुंच गई. जबकि आम तौर पर किसी व्यस्क की हृदय गति 60 से 100 बीट्स प्रति मिनट होती है...
उधर, धरती पर मिशन की निगहबानी कर रही कोर टीम घबरा गई लेकिन इससे बेपरवाह नील ने चांद की सतह पर पहला कदम रख दिया था. इसी के साथ चांद की सतह पर किसी मानव के कदम पड़ने का इतिहास रच दिया गया और वो तारीख थी 20 जुलाई 1969. इसी दौरान एक और दिलचस्प घटना हुई..जिसमें एक बॉल टिप वाली कलम ने इन अंतरिक्ष यात्रियों की जान बचा ली...आगे आपको इसकी की जानकारी देंगे...
आज की तारीख का संबंध उसी ऐतिहासिक घटना से है जब नील ऑर्मस्टांग और उनके साथी एडविन आल्ड्रिन ने चांद की सतह पर कदम रखा. तब से लेकर अब तक 12 इंसान चांद पर अपने कदम के निशान छोड़ चुके हैं लेकिन पहला मिशन तो फिर भी पहला ही होता है.
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बात 60 के दशक की शुरुआत की थी. अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी (US President John F Kennedy) ने किसी अमेरिकी को चांद पर उतारने का सुनहरा सपना देखा. अमेरिका हर कीमत पर इस मिशन में सोवियत संघ से आगे निकलना चाहता था. कैनेडी ने 1961 में कांग्रेस के सामने अपने संबोधन में कहा था कि मेरा मानना है कि अमेरिका को इस दशक के अंत से पहले मानव को चांद पर उतारने और फिर धरती पर सुरक्षित वापस लाने के लक्ष्य को हासिल कर लेना चाहिए.
इसी के बाद नासा ने दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में टीमें बनाई और तैयारी शुरू कर दी. अमेरिका के इस मून मिशन को यूरोप और ऑस्ट्रेलिया के तकनीशियन और इंजीनियर, यूके की कंपनियां, स्थानीय तकनीशियनों वाले ट्रैकिंग स्टेशनों का सहयोग मिला. कुल मिलाकर ये ग्लोबल प्रोजेक्ट बन गया था. कांगो, नाइजीरिया, बरमूडा, एंटीगुआ और एसेंशन द्वीप में बने स्टेशन तथा टेक्सास के ह्यूस्टन से एक साथ पृथ्वी पर चंद्रमा के सतह के आसपास की 24 घंटे कवरेज दी जा रही थी. खुद अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन इसका लाइव प्रसारण अपने ओवल ऑफिस में देख रहे थे.
इसके अलावा नासा ने करीब 6 साल तक कड़ी मेहनत करके लूनर मॉड्यूल तैयार किया. इसे नाम दिया गया ईगल. यह लूनर मॉड्यूल चांद की कक्षा में रॉकेट के जरिए पहुंचने के बाद चांद की सतह पर लैंड होना था. पूरी तैयारी में करीब 9 साल लग गए और फिर वो दिन आया जिसका इंतजार करीब-करीब पूरी दुनिया कर रही थी. वो तारीख थी 16 जुलाई 1969. तब फ्लोरिडा से नासा के अंतरिक्ष यान अपोलो-11 ने चंद्रमा के लिए उड़ान भरी.
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इसमें तीन लोग कमांडर नील आर्मस्ट्रांग, कमांडर माड्यूल पायलट माइकल कोलिन्स और लूनर माड्यूल पायलट एडविन ई आल्ड्रिन जूनियर सवार थे. इनमें से आर्मस्ट्रांग और एल्ड्रिन चांद की सतह पर उतर गए. वहीं कोलिन्स अपोलो-11 में बैठकर चंद्रमा की कक्षा में चक्कर लगाते रहे. उधर लूनर मॉड्यूल जब नील और आल्ड्रिन को लेकर चंद्रमा की सतह पर पहुंचा तो वो जगह निर्धारित स्थान से कुछ दूर था. जिससे नील और उनके साथी थोड़े से घबरा गए लेकिन घरती पर उन्हें मॉनिटर कर रही टीम ने कहा- आप सुरक्षित हैं. आप बाहर आ सकते हैं.
जब एडविन आल्ड्रिन और नील आर्मस्ट्रॉन्ग बाहर निकले, तो उन्होंने चंद्रमा पर बहुत सी तस्वीरें खींचीं. इन में वो ऐतिहासिक तस्वीर भी शामिल है, जो चांद पर उनके बूटों के निशान की है. नील अपने साथ अमेरिका का झंडा भी ले गए थे जिसे दोनों ने मिलकर चंद्रमा की सतह पर गाड़ा.
हालांकि इस दौरान गलती ये हो गई कि झंडा पूरा खुल नहीं पाया. जिसकी वजह से तस्वीरों में ऐसा लगता है कि झंडा चंद्रमा पर लहरा रहा है. चंद्रमा पर कदम रखने के तुरंत बाद नील ने कहा था कि-ये इंसान का एक छोटा सा कदम है और मानवता की लंबी छलांग है. जबकि उनके साथी बज़ आल्ड्रिन ने तब कहा था- शानदार वीरानगी.
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इसके बाद दोनों ने चांद की सतह और मिट्टी के नमूने लिए. वे अपने साथ चांद की 21.55 किलोग्राम मिट्टी भी धरती पर लेकर आए थे. नील और एल्ड्रिन चांद की सतह पर 21 घंटे और 31 मिनट बिताए.
उनके साथ चंद्रमा से लौटने के दौरान एक खौफनाक घटना भी घटी. नील आर्मस्ट्रॉन्ग और एडविन आल्ड्रिन की गलती से लूनर मॉड्यूल में लगे एक स्विच को टूट गया था जो उन्हें चंद्रमा से वापस धरती पर सफलतापूर्वक लाने के लिए बेहद जरूरी था.
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अगर ये स्विच काम नहीं करता तो दोनों यात्री हमेशा के लिए अंतरिक्ष में ही रह जाते. ऐसी स्थिति में आल्ड्रिन ने चतुराई दिखाते हुए एक बॉल टिप वाली कलम को उस छेद की जगह टिका दिया जहां स्विच था. दोनों ने उसी से स्विच का काम लिया और इससे अंतरिक्ष यान दोबारा चंद्रमा की सतह से उड़ान भरने में कामयाब हो पाया.
यहां अपोलो-11 मिशन की कहानी खत्म होती है लेकिन हम आपको इससे संबंधित और जानकारी भी दे देते हैं. चांद पर अब तक सिर्फ 12 लोगों ने अपने कदम रखे हैं. आखिरी बार 1972 में जीन करनन और हैरिसन श्मिट (Eugene Cernan, Harrison Schmitt, and Ron Evans) अपोलो-17 से चंद्रमा पर गए थे, इसके बाद कोई भी इंसान चांद पर नहीं गया. हालांकि इसके बाद कई रोबोट्स चंद्रमा पर भेजे जा चुके हैं.
चलते-चलते 20 जुलाई को हुई दूसरी अहम ऐतिहासिक घटनाओं पर भी नजर डाल लेते हैं
1296- अलाउद्दीन खिलजी (Alauddin Khalji) ने स्वयं को दिल्ली का सुल्तान घोषित किया
1903- फोर्ड मोटर कंपनी (Ford Motor Company) ने अपनी पहली कार बाजार में उतारी
1997- तीस्ता नदी जल बंटवारे (Teesta Water Sharing Agreement) पर भारत-बांग्लादेश (India-Bangladesh) में हुआ समझौता
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