दुनिया के सबसे मशहूर और बेशकीमती 'कोहिनूर' हीरे (Kohinoor Diamond) को ब्रिटेन 'जीत की निशानी' के तौर पर दिखाने जा रहा है. इसे 26 मई से टावर ऑफ लंदन (Tower of London) में प्रदर्शित कर आम लोगों के देखने के लिए खोल दिया जाएगा. ब्रिटेन में पैलेस को मैनेज करने वाली चैरेटी 'हिस्टॉरिक रॉयल पैलेसेज' ने कहा है कि कोहिनूर को प्रदर्शित करने के साथ ही प्रेजेंटेशन्स के जरिए इसका इतिहास भी बताया जाएगा. बता दें कि ब्रिटेन की नई रानी यानी किंग चार्ल्स-III (king charles iii) की पत्नी कैमिला (Camilla, Queen Consort) ने ताजपोशी के दौरान क्वीन एलिजाबेथ का कोहिनूर जड़ा ताज नहीं पहनने की घोषणा की थी.
कोहिनूर हीरे का इतिहास
अगर कोहिनूर हीरे के इतिहास की बात करें तो माना जाता है कि 14वीं सदी में आंध्र प्रदेश के गोलकोंडा की एक खदान में ये हीरा मिला था. तब इसका वजन 793 कैरेट था. लेकिन इसे कई बार काटा गया. एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1526 में पानीपत युद्ध के दौरान कोहिनूर बाबर के पास चला गया था. उसके बाद ये हीरा नादिर शाह, फिर उसके पोते शाहरूख मिर्जा, अहमद शाह अब्दाली, शुजा शाह से होते हुए पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह के पास पहुंचा.
भारत से लंदन कैसे पहुंचा कोहिनूर ?
महाराजा रणजीत सिंह कोहिनूर हीरे को अपने ताज में पहनते थे. उनके निधन के बाद उनके बेटे दलीप सिंह के पास कोहिनूर चला गया. 1849 में ब्रिटेन ने महाराजा को हरा दिया. 29 मार्च 1849 को लाहौर के किले में हुई एक संधि के तहत कोहिनूर हारी इंग्लैंड की महारानी को सौंप दिया गया. 1850 में उस समय के गवर्नर लॉर्ड डलहौजी कोहिनूर को लंदन लेकर गए और इसे ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के ताज का हिस्सा बनाया गया. अभी इसका वजन 105.6 कैरेट है.
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