No Confidence Motion: 'खारिज नहीं किया जा सकता अविश्वास प्रस्ताव...' जानें क्या हुआ Pak Supreme Court में

Updated : Apr 05, 2022 23:37
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Editorji News Desk

पाकिस्तान की संसद में मचे संग्राम के बाद सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court Hearing on No Confidence Motion ) में सुनवाई जारी है... सोमवार के बाद मंगलवार को एक बार फिर सुनवाई हुई. मंगलवार को चीफ जस्टिस ऑफ पाकिस्तान ने माना कि आर्टिकल 5 का हवाला देकर भी डिप्टी स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव को खारिज नहीं कर सकते हैं (speaker can’t reject no-trust motion even if he refers to Article 5.)... मंगलवार को सुनवाई के दौरान क्या क्या हुआ? आइए एक नजर डालते हैं...

पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नेशनल असेंबली के डिप्टी स्पीकर कासिम सूरी के "असंवैधानिक फैसले" के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई 6 अप्रैल, बुधवार तक के लिए टाल दी.

सूरी ने रविवार को प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया था. उनके इस कदम को विपक्ष ने संविधान का उल्लंघन बताया है.

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में क्या क्या हुआ आइए जानते हैं

न्यायमूर्ति बंदियाल की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय पीठ ने इसपर सुनवाई शुरू की. इस पीठ में न्यायमूर्ति मुनीब अख्तर, न्यायमूर्ति एजाजुल अहसान, न्यायमूर्ति मजहर आलम और न्यायमूर्ति जमाल खान मंडोखेल भी हैं.

सुनवाई के दौरान, चीफ जस्टिस बंदियाल ने नेशनल असेंबली स्पीकर के वकील नईम बुखारी को प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के लिए 31 मार्च को नेशनल असेंबली के अहम सेशन की जानकारी पेश करने को कहा.

सुनवाई की शुरुआत में, पीपीपी के सीनेटर रजा रब्बानी अपनी दलीलें पेश करने के लिए मंच पर आए...

सीनेटर ने कहा कि यह एक नागरिक तख्तापलट है.

उन्होंने कहा कि सूरी ने रविवार को संसद के समक्ष दस्तावेज रखे बिना फैसला सुनाया...

उन्होंने तर्क दिया कि नियम 28 कहता है कि डिप्टी स्पीकर अधिकार होने पर भी कोई फैसला नहीं दे सकता है.

रब्बानी ने कहा, "डिप्टी स्पीकर का फैसला अवैध है [...] अविश्वास प्रस्ताव को वोटिंग के बिना खारिज नहीं किया जा सकता है."

उन्होंने आगे कहा कि डिप्टी स्पीकर के फैसले को, अनुच्छेद 69 के तहत संवैधानिक सुरक्षा नहीं मिली है...

"संविधान के तहत दी गई गई अवधि में मतदान जरूरी है"

पीपीपी के वकील ने कहा कि संविधान के तहत अविश्वास प्रस्ताव को खारिज नहीं किया जा सकता है

"इसे तभी खारिज किया जा सकता है जब इसे पेश करने वाले इसे वापस ले लें...स्पीकर इसे वोटिंग के बाद ही अस्वीकार कर सकते हैं।"

रब्बानी ने आगे कहा कि राष्ट्रपति आरिफ अल्वी को अनुच्छेद 63ए पर व्याख्या मांगने के लिए संदर्भ दाखिल करने की आवश्यकता नहीं है. इसके बजाय, उन्हें प्रधानमंत्री को अपने खिलाफ दायर प्रस्ताव पर मतदान के लिए जाने की सलाह देनी चाहिए थी.

रब्बानी ने अदालत से नेशनल असेंबली की कार्यवाही की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग बनाने का भी अनुरोध किया और रविवार को हुए सेशन पर रोक लगाने के लिए कहा.

"अदालत को संसद के अंदर कार्यवाही के बजाय अधिकार के दुरुपयोग पर विचार करना चाहिए और देखना चाहिए कि क्या स्पीकर अनुच्छेद 5 को लागू कर सकते हैं."

रब्बानी ने यह कहते हुए अपनी बात खत्म की कि दलीलें पूरी हों और अदालत आज एक संक्षिप्त आदेश जारी करे.

मुख्य न्यायाधीश ने इसपर कहा कि [हम] एक आदेश जारी करेंगे अगर सभी पक्ष तर्क पूरा कर लेते हैं...

रब्बानी की दलीलें पूरी होने के बाद पीएमएल-एन के वकील मखदूम अली खान ने अदालत में अपनी दलीलें पेश कीं...

उन्होंने 28 मार्च के सेशन के बाद से नेशनल असेंबली की कार्यवाही के बारे में बताया, जब विपक्ष के नेता शाहबाज शरीफ को 3 अप्रैल तक पीएम इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश करने की अनुमति दी गई थी...

खान ने कहा कि अविश्वास प्रस्ताव पर नियम 37 के तहत 31 मार्च को चर्चा होनी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

उन्होंने पूछा कि क्या सूरी के पास डिप्टी स्पीकर के रूप में इस तरह से प्रस्ताव को खारिज करने का अधिकार है?

खान ने तर्क दिया कि ज्यादातर सदस्यों ने पीएम इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन किया था. 161 सांसद इसके समर्थन में थे.

पीएमएल-एन के वकील ने कहा कि स्पीकर का फैसला असंवैधानिक है क्योंकि यह अनुच्छेद 95 के खिलाफ है, इसलिए इसकी समीक्षा की जा सकती है.

जस्टिस अख्तर ने सवाल किया: "क्या संविधान कहता है कि सुप्रीम कोर्ट संसद के भीतर किए गए हर अवैध कार्य पर फैसला सुना सकता है?"

उन्होंने कहा कि "आप अदालत के दरवाजे संसद की कार्यवाही के लिए खोल रहे हैं जिसके बाद अदालत को छोटे मुद्दों पर संसद के मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार होगा. अगर शीर्ष अदालत ने नेशनल असेंबली की कार्यवाही या फैसलों को खारिज करना शुरू कर दिया तो मामलों के ढेर लग जाएंगे...

अनुच्छेद 5 का हवाला देकर भी अध्यक्ष अविश्वास प्रस्ताव को अस्वीकार नहीं कर सकते: CJP

सोमवार को, शीर्ष अदालत ने पीपीपी के वकील फारूक एच नाइक की दलीलें सुनीं, जिन्होंने तर्क दिया कि रविवार के सेशन में सूरी का फैसला जानबूझकर संसद में मतदान प्रक्रिया से बचने के लिए था.

सुनवाई के दौरान, सीजेपी बंदियाल ने नाइक से पूछा कि डिप्टी स्पीकर का फैसला नाजायज कैसे है.

सीजेपी ने पूछा कि प्रस्ताव कानूनी वैध है या अवैध, इस पर स्पीकर कैसे फैसला दे सकते हैं. "क्या स्पीकर के पास अविश्वास प्रस्ताव को खारिज करने का कोई अधिकार नहीं है?"

सीजेपी ने कहा, "भले ही स्पीकर संविधान के अनुच्छेद 5 का हवाला दे, लेकिन वह अविश्वास प्रस्ताव को खारिज नहीं किया जा सकता है."

सीजेपी ने तब पूछा कि अनुच्छेद 69 के तहत स्पीकर को किस हद तक संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है? "

नाइक ने अदालत से मामले को खत्म करने और फैसला सुरक्षित रखने का अनुरोध किया...

हालांकि, सीजेपी ने टिप्पणी की कि अदालत को दूसरे पक्षों को भी सुनना है. इसके बाद कोर्ट ने सुनवाई स्थगित कर दी...

ये भी देखें- Shehbaz Sharif : कौन हैं Pakistan के PM इन वेटिंग शहबाज़ शरीफ, भारत से क्या है इनका कनेक्शन?
 

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