Imran Khan arrested: पाकिस्तान (Pakistan) की सेना साबुन के कारखाने चलाती है.अचल संपत्ति का कारोबार करती है और इसलिए एक सैन्य-उपक्रम (Pak army) है कि देश के गठन के बाद से चुनी हुई सरकारों के लिए शासन करना असंभव हो गया है. इससे पहले हम आपको बताएं कि पाकिस्तान की सेना एक राजनीतिक और आर्थिक उपक्रम कैसे बन गई, आइए पहले यह समझें कि भारत में सेना अब भी अराजनीतिक क्यों बनी हुई है.
अपनी किताब आर्मी एंड नेशन: द मिलिट्री एंड इंडियन डेमोक्रेसी सिंस इंडिपेंडेंस (Army and Nation: The Military and Indian Democracy Since Independence) में स्टीवन विल्किंसन ने भारतीय सेना को 'तख्तापलट-रोधी' कहने के लिए नेहरू-युग को श्रेय दिया. भारत के पहले प्रधान मंत्री ने बजट कटौती की एक श्रृंखला के माध्यम से कमांडर-इन-चीफ के कार्यालय को अलग सेना नौसेना और वायु सेना प्रमुखों के साथ बदल दिया. अधिकारियों को सिविल सेवकों से नीचे रखा. उन्हें भाषण देने से रोक दिया और वरिष्ठ अधिकारियों को निगरानी में रखा और अराजनैतिक बने रहे. साल 1970 के दशक तक भारतीय सशस्त्र बलों को नागरिक प्राधिकरण के अधीन करने की प्रक्रिया पूरी हो गई थी. इसकी तुलना पाकिस्तान से कीजिए. 1977 तक इस्लामाबाद ने दो सैन्य तख्तापलट देखे थे और पांच और होने वाले थे.
साल 2013 में पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार एक लोकतांत्रिक निर्वाचित सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया और दूसरी निर्वाचित सरकार को सत्ता हस्तांतरित की. इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के परिसर से इमरान खान की गिरफ्तारी केवल एक लोकतांत्रिक पाकिस्तान के लिए एक सेनानी के रूप में उनके समर्थकों के बीच उनकी स्थिति को बढ़ाने का काम कर सकती है. इसका मतलब है कि इस कहानी में किसी भी प्रमुख नेता के लिए इस बढ़ते हुए नए संकट से कोई आसान निकास नहीं है. इमरान की गिरफ्तारी को प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की सरकार की नहीं, बल्कि पाकिस्तानी सेना की कार्रवाई के रूप में देखा जा रहा है.
यहां तक कि अगर सेना ने खुद के पैर में गोली मार ली है, तो इस बात की संभावना नहीं है कि इस तरह के विरोध से शीर्ष पर मन बदल जाएगा. यह कदम उठाने के बाद अगर सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर (Army Chief General Asim Munir) अपने विरोधी के खिलाफ पीछे हट जाते हैं तो हैरानी होगी.
इमरान की गिरफ्तारी की भविष्यवाणी की गई थी. चूंकि उनको पद से हटाने के बाद से उनकी लोकप्रियता बढ़ गई थी. दोषी करार देकर उन्हें चुनाव से बाहर रखने का एकमात्र तरीका था. उन्हें हत्या से लेकर राज्य के उपहारों की बिक्री से मुनाफाखोरी तक के 140 मामलों में दर्ज किया गया है. इमरान के सत्ता से बाहर होने के बाद पार्टियों के गठबंधन से बनी शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली सरकार और सेना इस प्रयास में एकजुट है.
सत्तारूढ़ गठबंधन को इमरान के हाथों चुनाव का डर है. अगर वह चुने जाते हैं, तो जनरल मुनीर जिनकी सेना प्रमुख के रूप में नियुक्ति सरकार द्वारा उनकी सेवानिवृत्ति की तारीख को आगे बढ़ाने के बाद हुई, वह सबसे पहले हताहत होंगे. जबकि मुनीर की नियुक्ति और इमरान के निष्कासन पर विभाजन को लेकर सेना के भीतर कुछ कलह दिखाई देती है. शीर्ष पर कई लोग उन्हें पाकिस्तान में अपनी प्रमुख स्थिति के लिए सीधे खतरे के रूप में देखते हैं.
विरोध प्रदर्शन कितने समय तक चलता है और सेना उनसे कैसे निपटती है. यह आगे क्या होगा इसमें निर्णायक भूमिका निभाएगा. अभी तक पाकिस्तानी सेना द्वारा किसी तरह के बल का प्रयोग नहीं किया गया है.