आज से 136 साल पहले अमेरिका के लिबर्टी द्वीप पर फ्रांस से आया पानी का एक जहाज रुका. जिसमें 214 बक्से थे. जब इन बक्सों को खोला गया तो उसमें एक मूर्ति के 350 टुकड़े मिले. बाद में जब इन टुकड़ों को जोड़ा गया तो एक ऐसी मूर्ति तैयार हुई जिसने तब पूरी दुनिया को अचंभित कर दिया था. इस मूर्ति का नाम था स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी (Statue of Liberty).
दुनिया के सात अजूबों (Seven Wonders of the World) में शामिल इस मूर्ति को आज ही के दिन 17 जून 1886 में फ्रांस ने अमेरिका को बतौर तोहफे में दिया था, ताकि दोनों देशों के बीच की दोस्ती और मजबूत हो सके.
देश-दुनिया के ऐतिहासिक कार्यक्रम झरोखा में आज हम इसी दिलचस्प मूर्ति के इतिहास में झांकने की कोशिश करेंगे...
अमेरिका को ब्रिटेन से आजादी मिले 100 साल हो गए थे... जिसे सिलेब्रेट की योजना न सिर्फ अमेरिका में बन रही थी बल्कि वहां से 7 हजार 6 सौ किलोमीटर दूर फ्रांस भी कुछ अलग करने के मूड में था. नेपोलियन के देश फ्रांस ने फैसला लिया कि वो अपने दोस्त अमेरिका को स्वतंत्रता के प्रतीक के तौर पर एक ऐसी मूर्ति गिफ्ट करेगा जिसकी दुनिया में कोई मिसाल न हो. इसके लिए बकायदा दोनों देशों की सरकारों के बीच समझौता भी हुआ. इसके बाद शुरू हुआ स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी को बनाने का कम...
आधिकारिक तौर पर इस मूर्ति का निर्माण फ्रांस में 1875 में शुरू हुआ जो 1886 में जाकर पूरा हुआ. दिलचस्प ये है कि इसकी क्वॉलिटी को चेक करने के लिए इसके सारे टुकड़ों को एक साथ जोड़कर फ्रांस में भी मूर्ति को खड़ा किया गया. बाद में टुकड़ों को फिर से अलग किया गया और फिर बक्से में बंद कर उसे अमेरिका रवाना किया गया.
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इस मूर्ति को फ्रांस के इंजीनियर गुस्टावे एफिल ( Engineer Gustave Eiffel ) ने तैयार किया था. गुस्टावे वही इंजीनियर हैं जिन्होंने एफिल टावर बनाया था. स्टैच्यू को बनाने के लिए जर्नलिस्ट जोसेफ पुलित्जर ( Journalist Joseph Pulitzer ) ने क्राउड-फंडिंग के जरिए 100,000 डॉलर से भी ज्यादा इकट्ठे किए थे.
अहम ये भी है कि दुनिया में अमेरिका की पहचान माने जाने वाली इस मूर्ति की नींव का निर्माण अमेरिका ने किया, जबकि बाकी सारे हिस्सों को फ्रांस ने बनाया. मूर्ति सदियों तक शान से खड़ी रहे इसके लिए जरूरी था कि इसे बेहद मजबूत बनाया जाए. लिहाजा अंदर का पूरा ढांचा स्टील से तैयार हुआ फिर बाहरी ढांचे को बनाने में शुद्ध तांबे का इस्तेमाल किया गया. जिससे इसका वजन 250 टन से कुछ ज्यादा हो गया.
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स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी का एक रोचक तथ्य ये भी है कि इसका पूरा नाम लिबर्टी एनलाइटिंग द वर्ल्ड ( Liberty Enlightening the World ) है. प्रतिमा का नाम रोमन देवी लिबर्ट्स ( Roman Devi Libertas ) के नाम पर रखा गया है, जो रोमन पौराणिक कथाओं में स्वतंत्रता का प्रतीक है. यह प्रतिमा भले ही जलती हुई मशाल के लिए जानी जाती है, लेकिन अब जो मशाल इसमें रखी गई है वो सिर्फ एक कॉपी है. 1984 में, मौसम की वजह से होने वाले नुकसान के कारण मशाल को बदलना पड़ गया था. कॉपी टॉर्च में नए तरीके से मशाल को डिजाइन किया गया, जिसमें ताबे पर 24 किलो सोना चढ़ा है.
चौंकाने वाली बात ये भी है कि इस मूर्ति की ऊंचाई के कारण साल में तकरीबन 300 बार आकाशीय बिजली भी इससे टकराती है. साल 2010 पहली बार बिजली की फोटो खींची गई थी. बहरहाल दो देशों की दोस्ती की ऐसी मिसाल दुनिया में दूसरी नहीं मिलती.
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