Brazil Election: दक्षिणपंथ की राजनीति से घिरा ब्राजील अब वामपंथ की ओर चल पड़ा है. जी हां.., ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति और वामपंथी वर्कर्स पार्टी के नेता लुईस ईनास्यू लूला डा सिल्वा (Luis Iasue Lula da Silva, leader of the Left Workers' Party) फिर से देश के राष्ट्रपति बन गए हैं. लूला डी सिल्वा ने बेहद कड़े मुकाबले में जेयर बाल्सोनारो (Jair Balsonaro) को हरा दिया है. हालांकि बोलसोनारो यह चुनाव बहुत कम अंतर से हारे हैं. लूला को 50.9 प्रतिशत और जेयर को 49.2 प्रतिशत वोट मिले हैं. लूला 1 जनवरी 2023 से ब्राजील की सत्ता संभालेंगे. बता दें कि लूला डी सिल्वा 2003 से 2010 के दौरान ब्राजील के राष्ट्रपति रह चुके हैं.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने ब्राजील के नए राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा को बधाई दी है. वहीं, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने वामपंथी लूला डी सिल्वा को बधाई देते हुए कहा कि यह सामाजिक न्याय की जीत हुई है.
'साउथ अमेरिका के ट्रंप' कहे जाने वाले बोल्सोनारो यानी ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति का केवल 4 साल का कार्यकाल रहा. उनका कार्यकाल बेहद विवादस्पद (controversial) रहा. बोल्सोनारो पर आरोप लगा कि उन्होंने स्थानीय आदिवासियों के हितों की परवाह किए बिना अमेजॉन के वर्षावन का विनाश उस तेजी से किया जैसा आधुनिक इतिहास में नहीं हुआ. बोल्सोनारो ने अपने कार्यकाल में 3 ऐसे विवादित बयान दिए, जिससे दुनियाभर में हंगामा हुआ. पहला, "मैं तुम्हारा बलात्कार भी नहीं करूंगा क्योंकि तुम इसके लायक नहीं हो." दूसरा "अगर मैं दो मर्दों को गली में किस करते हुए देखूं, तो मैं उन्हें मारूंगा." तीसरा "हम ब्राजीलियाई समलैंगिकों से नफरत करते हैं".
- ट्रंप जैसे नेता की बन गई थी जायर बोलसोनारो की छवि
- कोरोना कुप्रबंधन को उनकी हार का सबसे बड़ा कारण
- कोरोना से ब्राजील में दुनिया में सबसे अधिक मौतें
- ब्राजील में कोविड प्रोटोकॉल पर बहुत जोर नहीं दिया गया
- जनता में नाराजी के कारण बोल्सोनारो चुनाव हार गए
- लूला दी सिल्वा काफी गरीब परिवार से संबंध रखते थे
- घर चलाने के लिए बूट पॉलिश किया, मूंगफली भी बेची
- 1970- सेना की तानाशाही शासन के दौरान राजनीति में एंट्री
- 1980 में वामपंथी वर्कर्स पार्टी का गठन किया
- 2002 में किस्मत पलटी, पहली बार देश के राषट्रपति बने
- साल 2018 में लूला दा सिल्वा पर करप्शन के आरोप लगे
- जेल जाने की वजह से वोटिंग के अधिकार छीन लिए गए
- 580 दिन जेल में रहना पड़ा, बाद में बेगुनाह साबित हुए