रविवार को नेपाल में आम चुनावों (Nepal Elections) के लिए मतदान हुआ. नई ससंद को चुनने के साथ ही प्रांतीय विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए भी वोट (Vote) डाले गए. नेपाल में 22,000 से ज्यादा मतदान केंद्र पर करीब एक करोड़ 80 लाख मतदाताओं (Voters) ने अपने मत का प्रयोग किया, जिसका परिणाम (Election result) एक सप्ताह के अंदर आ सकता है. लेकिन इस चुनाव पर भारत और चीन दोनों की करीब से नज़र रख रहे हैं. चलिए यहां समझते हैं कि आखिर क्यों नेपाल के ये चुनाव भारत के लिए अहम है.
किस-किस के बीच मुख्य मुकाबला ?
नेपाल में मुख्य मुकाबला प्रधानमंत्री शेरबहादुर देउवा (Sher Bahadur Deuva) और नेता प्रतिपक्ष केपी शर्मा ओली (KP Sharma Oli) के बीच है. शेरबहादुर देउवा की पार्टी नेपाली कांग्रेस (Nepali congress) के साथ जहां प्रचंड की माओवादी केंद्र पार्टी, माधव नेपाल की यूनीफाइड सोशलिस्ट और महंथ ठाकुर की लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी शामिल हैं, तो वहीं केपी ओली की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (Nepal Communist Party) के साथ उपेंद्र यादव की जनता समाजवादी पार्टी है.
भारत के लिए क्यों अहम है परिणाम ?
भारत (India) शुरू से ही नेपाल (Nepal) के चुनाव पर करीब से नजर रखते आया है और चुनाव में सुरक्षा (Election security) देने के लिए नेपाल की मदद भी की है. क्योंकि भारत के लिए नेपाल में किसकी सरकार बनेगी ये बात बेहद अहम है, क्योंकि भारत विरोधी माने जाने वाले केपी शर्मा ओली लगातार भारत विरोधी बयान देते रहे हैं और उन्होंने चुनाव में भी कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा (Kalapani, Lipulekh and Limpiyadhura) को मुद्दा बनाया है और कहा है कि अगर उनकी सरकार बनी तो वो इन क्षेत्रों को वापस लेकर आएंगे, जिस पर भारत अपना दावा करता है.
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क्या है भारत-नेपाल सीमा विवाद ?
भारत और नेपाल के बीच यह सीमा विवाद (India-Nepas border dispute) पुराना है, जिसकी वजह से दोनों देशों के बीच 2 दिसंबर 1815 को ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) और नेपाल के बीच सुगौली संधि (Treaty of Sugauli) हुई थी, लेकिन तब भी ये सीमा विवाद नहीं सुलझ सका था. अब चुनावी मुद्दों में इस विवाद का फिर से उठना दोनों ही देशों के लिए चिंता विषय है. क्योंकि नेपाल हमेशा से आरोप लगातार रहा है कि भारत ने इन हिस्सों पर कब्जा किया है.
भारत के करीबी माने जाते हैं शेरबहादुर देउवा
हालांकि सियासी जानकार मानते हैं कि शेरबहादुर देउवा के सत्ता में रहते भारत-नेपाल के रिश्तों में फिर से नरमी आई थी, जो केपी ओली की सरकार में खटाई में थी. सियासी जानकार मान कर चलते हैं कि शेरबहादुर देउवा की सरकार में वापसी से भारत-नेपाल के रिश्ते फिर से मधुर हो सकते हैं, वहीं केपी ओली की बात करें, तो जब वो सत्ता में थे. तो चीन (China) और नेपाल तेजी से करीब आए थे, जिसका सीधा असर भारत-नेपाल संबंधों पर पड़ा था.
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