Russia Ukraine War: पूरी दुनिया इस वक्त रूस युक्रेन युद्ध की बातें कर रही है. लेकिन ज्यादातर लोगों को ये नहीं पता है कि आखिर रूस ने यूक्रेन पर हमला क्यों किया. क्या ये सिर्फ जमीन छीनने की लड़ाई है . क्या ये इंटरनेशनल गुंडई है. या फिर मामला कुछ और है तो इसे समझने के लिए हमें इस मुद्दे को चार मोटे हिस्सो में बांटना होगा पहला हिस्सा है इसका इतिहास.
पहला हिस्से में समझते हैं कि आखिर इस इलाके का इतिहास क्या है, आखिर क्यों 14 साल में रूस ने तीन तीन युद्ध किए? तो इसकी शुरुआत होती है 1991 से. दरअसल, 1991 में USSR यानी Union of Soviet Socialist Republics टूट गया और 15 अलग अलग देशों का उदय हुआ. इसमें से सबसे बड़ा देश था रूस, और इन्ही 15 देशों में से एक था यूक्रेन. ये हिस्से सोवियत संघ से अलग तो हो गया. लेकिन रूस और पश्चिमी देशों के बीच इन नए देशों पर अपना दबदबा बनाने की होड़ शरु हो गयी. अमेरिका नहीं चाहता कि यूरोप में रूस का दखल हो. इसलिए नाटो यानी नार्थ अटलांटिक ट्रिटी ऑर्गनाजेशन जिसमें आज करीब 30 देश जुड़े हुए हैं. उन्होने इन इलाकों में अपनी समर्थन वाली सरकारों को बढ़ावा दिया. वहीं रूस नहीं चाहता कि उसकी सीमा तक नाटो का दखल हो. अब बताते हैं कि रूस ने अटैक क्यों किया?
हमला क्यों हुआ?
रूस से अलग हुए हिस्सों में जब जब नाटो से नजदीकी बढ़ी तब तक रूस ने हमला किया. 14 साल में रूस ने तीन युद्ध किए. 2008 में जार्जिया, 2014 में क्रिमिया , और 2022 में यूक्रेन. 2008 में जार्जिया के दो हिस्सों को अलग देश घोषित कर दिया था . और 2014 में तो बिना युद्ध किए ही क्रिमिया पर रूस ने कब्जा कर लिया था. यहां ये बात समझनी होगी की जार्जिया भी नाटो से जुड़ना चाहता था. और यूक्रेन ने भी और दोनों को रूस ने तोड़ दिया . पुतिन ने पहले ही कहा है कि नाटो अगर रूस की सीमा तक पहुंचेगा तो उसे रूस पर हमला माना जाएगा.
यूक्रेन हमले की नीव कब पड़ी?
यूक्रेन के पूर्वी हिस्सों और रूस में सांस्कृति समानता है और इनकी नस्ले और भाषा भी एक हैं. इन्ही हिस्सों में कुछ विद्रोहियों के गुट बने. पश्चिमी देश कहते हैं कि रूस इस इलाके में विद्रोह को भड़का रहा है. 2014 में यूक्रेन के क्रिमिया वाले हिस्से पर रूस ने कब्जा कर लिया . इसी वजह से G 8 से G-7 बन गया था . और रूस को G-8 से खदेड़ दिया गया था. आज हो रहा है उसकी नीव वहीं से पड़ गयी थी. 2014 से पहले यूक्रेन में यानुकोविच की सरकार थी . जो रूस के करीबी थे. लेकिन 2014 में देश में विरोध के बाद उन्हे देश छोड़कर भागना पड़ा. और फिर यूक्रेन में जो सत्ता आई वो यूरोपीय यूनियन के समर्थक थे. नतीजा ये हुआ की अचानक यूक्रेन के क्रीमिया इलाके में रूस ने हमला कर दिया और क्रिमिया की सरकारी इमारतों में सैनिक तैनात कर दिए . और इसके बाद वहां जनमत संग्रह कराया गया और दावा किया गया कि 97 फीसदी लोग रूस के साथ मिलना चाहते हैं. और फिर रूस ने इसे अपने नक्शे का हिस्सा बना लिया . वैसे मजे की बात यै है कि 1954 से पहले क्रीमिया रूस का ही हिस्सा था इसे सोवियत संघ ने तोहफे में यूक्रेन को दिया था. अब रूस ने यूक्रेन के पूर्वी हिस्सों पर भी दावा ठोंक दिया है . इस इलाके नाम है डोनस्क और लूनास्क और इस पूरे क्षेत्र को कहते हैं डोनबाल . यानी यूक्रेन के साथ भी रूस वही किया जो जार्जिया के साथ किया था . यानी यूक्रेन के डोनेस्क और लुहांस्क इलाकों में विद्रोहियों का समर्थन किया फिर विद्रोहियों ने इन इलाकों की सरकारी इमारतों पर कब्जा किया और जनमत संग्रह हुआ. जनमत संग्रह में इन इलाकों ने खुद को स्वतंत्र देश घोषित कर दिया. रूस ने 24 फरवरी 2022 को किए हमले से पहले इन दोनों इलाकों को अलग देश के रूप में मान्यता दे दी. पुतिन कहते हैं कि अभी भी यूक्रेन की सेना वहां मौजूद है . और वो इसलिए हमला कर रहे हैं ताकि यूक्रेन की सेना वहां से हट जाए . लेकिन ये मामला जितना बताया जा रहा है सिर्फ उतना नहीं है .
हमले की प्लानिंग
1917 में मॉस्को के इन दोनों इलाकों में खदानों में काम करने के लिए बड़ी संख्या में मजदूर भेजे गए थे. जो यहीं बस गए . बीते दो सालों से पुतिन सरकार ने ऐसे रूसी मूल के लोगों को रूसी पासपोर्ट जारी कर रहे थे . इनकी संख्या करीब 80 हजार के आसपास मानी जाती है . बात में रूस ने आरोप लगाया कि यूक्रेन की सेना इन रूसी मूल के लोगों का उत्पीड़न कर रही है . और फिर विद्रोहियों को समर्थन दिया और दो अलग अलग देशों की नीव पड़ गयी.
हमले का गैस कनेक्शन?
नार्वे के बाद यूक्रेन में पूरे यूरोप का दूसरा सबसे बड़ा गैस भंडार है. और इसका ज्यादातर हिस्सा अब तक निकाला नहीं गया है. इनता बड़ा गैस भंडांर होने के बाद भी यूक्रेन को गैस का आयात करना पड़ता है यानी दूसरे देशों से खरीदना पड़ता है. इस वक्त रूस यूरोप को करीब 40-50 % गैस अकेले सप्लाई करता है . और ये गैस नार्ड स्ट्रीम पाइपलाइन और यूक्रेन से रास्ते सप्लाई की जाती है. इसकी वजह से जो गैस यूक्रेन के रास्ते यूरोप जाती है उसपर यूक्रेन को पैसे मिलते हैं . उदाहरण के तौर पर जर्मनी रूस से 55 फीसदी गैस खरीदता है और ये गैस यूक्रेन के रास्ते उसे मिलती है इसकी ऐवज में यूक्रेन को 7 अरब अमेरिकी डॉलर की आमदनी होती है. और ये यूक्रेन की जीडीपी के करीब 3 से 4 फीसदी के बराबर है . यूक्रेन के जिन दो हिस्सों को रूस ने अलग देश घोषित कर दिया है यानी डोनेस्क और लुहांस्क वहां भी इनका बड़े भंडार है . इसके अलावा यूक्रेन दुनिया का पांचवा सबसे ज्यादा लौह अयस्क बेचने वाला देश है. इसके अलावा लीथियम गौलियम, जर्मेनियम, टाइटेनियम, मैगनीज़, जैसे रेयर अर्थ एलिमेंट्स का यूक्रेन में भंडार है . इनका इस्तेमाल स्मार्ट फोन, डिजिटल कैमरा, कमप्यूटर हार्ड डिस्क जैसी चीजें बनाने में में किया जाता है . और यूक्रेन मक्का और गेंहू का भी सबसे बड़े निर्यातक देशों में से एक है. पश्चिम एशिया और अफ्रीका को इसका बहुत बड़ा हिस्सा जाता है. यानी अकेले यूक्रेन पर कब्जे से दुनिया की बहुत बड़ी आबादी के खाने पर . डिजिटल डिवाइस के कोरोबार पर , आटोमोबाइल सेक्टर पर, और सबसे बड़े एनर्जी सेक्टर पर रूस का दबदबा हो जाएगा जो कि अमेरिका नहीं चाहता, क्योंकि इससे वो दुनिया की अर्थव्यवस्था में अपनी गिरती हिस्सेदारी को बढ़ा देगा . तो ये थी यूक्रेन रूस युद्ध की पूरी एबीसीडी .