श्रीलंका भयानक राजनीतिक (Sri Lanka Political Crisis) अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है. बुरे आर्थिक दौर का सामना कर रहा देश एक ऐसे मोड़ पर है जहां ये नहीं पता कि उसका भविष्य क्या होगा. आज से 62 साल पहले भी श्रीलंका में ऐसे ही हालात थे. तब दो भाषायी ग्रुप आमने-सामने थे और तब इसी संघर्ष के बीच इसी देश से दुनिया को इसी देश से पहली महिला प्रधानमंत्री दी थी...
हालांकि इनके सत्ता में आने के बाद देश के हालात और भी बिगड़े... और यही हालात वजह बने सशस्त्र बल लिट्टे के जन्म की... इन प्रधानमंत्री का नाम था सिरिमावो भंडारनायके (Sirimavo Bandaranaike) और आज हम झरोखा में रोशनी डालेंगे श्रीलंका की इन्हीं पूर्व प्रधानमंत्री और इनके शासनकाल पर...
भारत की आजादी के 7 महीने बाद... सुदूर दक्षिण में एक और देश को आजादी मिली थी... तब इस देश में दो बड़े भाषायी ग्रुपों में लड़ाई छिड़ी हुई थी... अस्तित्व और अस्मिता की लड़ाई में कोई भी ग्रुप पीछे हटने को तैयार नहीं था... तमिल मूल के 20 फीसदी लोगों ने जाफना को अपना आधार बनाया था और यहां अपनी सत्ता स्थापित की थी... सिंहली शासकों ने शेर को चिह्न बनाया था, तो तमिल राजाओं ने बाघ को चुना था...
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जब यह देश आजाद हुआ था, तब इसे सीलोन के नाम से जाना जाता था. ये देश सदियों से अपने मसालों, प्राकृतिक संपदाओं के लिए मशहूर था. यूनानियों और मिस्रवासियों के लिए यह ताप्रोवन था, तो अरबों के लिए सेरेनदीब... और भारतीयों के लिए लंका... सीता को उठा ले जाने वाले और राम के हाथों मारे जाने वाले रावण की कर्मभूमि!
आजादी के 12 साल बाद 1960 में दुनिया की पहली महिला प्रधानमंत्री बनी थी... दुनिया की पहली महिला प्रधानमंत्री सिरिमा रतवाटे डायस भंडारनायके को सिरीमावो भंडारनायके के नाम से जाना जाता था. उनका जन्म एक हायर कांडियन फैमिली में हुआ था... उन्हें 1960 में श्रीलंका की प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया था. देश में वह तीन बार इस पद पर रहीं... उन्होंने 1960-1965, 1970-1977 और 1994-2000 तक देश में ये पद संभाला...
सदियों की संस्कृति लिए श्रीलंका में 60 के दशक को सिंघली और तमिल मूल के लोगों के संघर्ष की शुरुआत के तौर पर देखा जा रहा था... 1956 के चुनाव में SWRD भंडारनायके सत्ता में आए थे... उन्होंने अपने वादे का पालन किया और सिंहली को एकमात्र आधिकारिक भाषा घोषित कर दिया. इसी कदम ने देश में अलगाववाद का बीज बो दिया था. सिंहली नेता ने खुलकर तमिलों के विरोध की अनदेखी की. संसद में भाषा से जुड़े विधेयक को पारित किया गया, और देशभर में तमिल हिंसा की आग भड़क उठी.
कोलंबो के समुद्र तट पर तमिल फेडरल पार्टी के 300 सदस्य इकट्ठा हुए... शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे लोगों की अगुवाई श्रीलंका के महात्मा गांधी कहे जाने वाले एस जे वी चेलवानायकम... अचानक 700 सिंहलियों की भीड़ इनपर टूट पड़ी थी... पुलिस मूकदर्शक बनी रही... भीड़ ने चेलवानायकम को तो छोड़ दिया लेकिन समर्थकों को न सिर्फ मारा-पीटा बल्कि उनपर थूका भी.
तमिलों के खिलाफ ये हिंसा कोलंबो के दूसरे हिस्सों में भी फैल गई. सिंघली दंगाईयों ने तमिलों की दुकानों और घरों को जला दिया... इस हिंसा और पुलिस की कार्रवाई में 150 लोग मारे गए थे... भंडारनायके ने तमिल भाषा को प्रोत्साहन देने की घोषणा की. भंडारनायके ने चेलवानायकम संग मिलकर भंडारनायके-चेलवानायकम संधि या बी.सी. संधि को रूपरेखा दी.
संधि की आलोचना हुई तो भंडारनायके ने कठोरपंथियों और बौद्ध भिक्षुओं के आगे झुकते हुए सभी मोटर-वाहनों की नंबर प्लेट पर सिंहली भाषा में श्री लिखना अनिवार्य कर दिया. अब फिर तमिल क्षेत्रों विरोध शुरू हो गया. तमिल नेताओं ने सभी तमिल वाहन मालिकों से तमिल में श्री लिखवाने की अपील की. अब बौद्ध भिक्षु सड़क पर आ गए और बीसी संधि को भंग करने की मांग करने लगे. भंडारनायके ने बिना किसी की परवाह किए घर के बाहर जमा बौद्ध भिक्षुओं के सामने ही इस संधि की कॉपी को फाड़ दिया...
तमिल विरोधी हिंसा फिर शुरू हो गई. 20 हजार तमिलों को भागकर शरणार्थी शिविरों में शरण लेनी पड़ी. हालात ऐसे हो गए कि शिविरों में जगह कम पड़ने लगी. भंडारनायके ने फिर तमिलों से समझौते की कोशिश की और इसी को लेकर 1959 में एक बौद्ध भिक्षु ने उनकी हत्या कर दी. इसके बाद जल्दी जल्दी दो चुनाव हुए... आखिर SNFP सत्ता में आई और भंडारनायके की विधवा और सिरिमावो भंडारनायके दुनिया की पहली प्रधानमंत्री बनीं...
सच ये भी है कि सिरिमावो को क्रूर बहुमत का जनादेश मिला था. उन्होंने भी तमिलों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया. फेडरल पार्टी ने देशभर के तमिल क्षेत्रों में विरोध प्रदर्शन किए. जाफना से एक समानांतर डाक सेवा भी शुरू कर दी गई.भंडारनायके सरकार ने हर तमिल विरोध को कठोरता से कुचलने की कोशिश की. चेलवानायकम को जेल में बंद कर दिया गया. सिरिमावो ने श्रीलंका में तमिलों पर जबर्दस्ती सिंघली लादने की कोशिश कीं. बर्थ सर्टिफिकेट, पासपोर्ट, टैक्स और संपत्ति के दस्तावेज सिंहली भाषा में बनाए जाने लगे...
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सिंहली को सरकारी कामकाज और यूनिवर्सिटी में ऐडमिशन के लिए एकमात्र भाषा बना दिया गया. नौकरी पाने और प्रमोशन के लिए सिंहली को अनिवार्य कर दिया गया. ऐसे हालात में कई तमिल अफसर प्रमोशन से चूक गए. वे सिंघली सीखना भी नहीं चाहते थे.
1965 में सिरिमावो सत्ता से दूर गईं. जीत यूएनपी की हुई. नए प्रधानमंत्री डुडले सेनानायके (Dudley Senanayake) ने तमिलों के साथ शांति स्थापित करने की कोशिशें की. उन्होंने चेलवानायकम के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए. अब विपक्ष में बैठी सिरिमावो ने इसका जमकर विरोध किया.
सेनानायके ने उत्तर पूर्व के तमिल बहुल क्षेत्रों में तमिल भाषा को आधिकारिक भाषा घोषित कर दिया. सिरिमावो इसे हजम नहीं कर सकती थीं. विधेयक के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन इस कदर हुए कि संधि को भंग करना पड़ा. 1970 में सिरिमावो भंडारनायके फिर सत्ता में आईं. लेकिन इस बार उनके सामने बड़ा संकट तमिलों से नहीं बल्कि कम्युनिस्टों की ओर से आया. मॉस्को में पढ़े लिखे सिंहली क्रांतिकारी रोहाना विजेवीरा की लीडरशिप में जनता विमुक्ति पेरामुना / पीपुल्स लिब्रेशन फ्रंट नाम की कम्युनिस्ट पार्टी ने 1971 में जबरन सत्ता हथियाने की कोशिश ती.
ग्रामीण क्षेत्रों में जब सैंकड़ों सिंघली युवकों ने पुलिस स्टेशनों पर कब्जा करना शुरू किया, तो सरकार के हाथ पांव फूल गए. देश की सेना में जवान गिनती भर के थे. इस कब्जे से सरकार के हाथ पांव फूल गए थे. ऐसा लगा कि सरकार किसी भी क्षण गिर जाएगी लेकिन भारत और दूसरे मित्र देशों की मदद के बाद सेना और पुलिस ने जवाबी कार्रवाई की. 1971 में इस विद्रोह को कुचलने के लिए लगभग 10 हजार सिंहली युवक युवतियों को मौत के घाट उतारना पड़ा था.
इस संकट से उबरने के बाद सिरिमावो एक बार फिर तमिलों के खिलाफ आक्रमण की ओर मुड़ीं. तमिल विरोध करते रहे लेकिन फिर भी 1972 में उन्होंने नया संविधान लागू करके देश का नाम सीलोन से बदलकर श्रीलंका कर दिया गया. सिंहली को राजभाषा घोषित कर दिया गया और बौद्ध धर्म को ऊंचे और खास स्थान पर बिठा दिया गया.
इस कदम के बाद तीन तमिल पार्टियां फेडरल पार्टी, तमिल कांग्रेस और सीलोन वर्कर्स कांग्रेस एक मंच पर आ गईं. इन्होंने एकसाथ होकर तमिल यूनाइटेड फ्रंट (Tamil United Liberation Front) का गठन किया. लेकिन सिरिमावो सरकार ने उनकी मांगों पर ध्यान देने की बजाय तमिलनाडु से फिल्मों, पु्स्तकों और पत्रिकाओं के आयात पर ही प्रतिबंध लगा दिया. सिरिमावो सरकार के कार्यकाल में कभी ऐसा नहीं लगा कि सिंघली और तमिल संघर्ष को कम करने या शांति की कोशिश की गई हों.
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90 के दशक में सिरिमावो के साथ साथ, भारत में इंदिरा गांधी और इजरायल में गोल्डा मायर भी प्रधानमंत्री बनीं. बाद में सिरिमावो तीसरे कार्यकाल के लिए सत्ता में लौटीं... हालांकि इस दौरान वह बीमारी से पीड़ित रहीं. अक्टूबर 2000 में 84 साल की सिरिमावो अपना वोट डालने के लिए गृहनगर अटानगाले पहुंची थीं. वोट डालकर जब वह कोलंबो के लिए कार में आ रही थीं, तभी रास्ते में उन्हें हार्ट अटैक आया और वह चल बसीं....
बहरहाल, दुनिया की पहली प्रधानमंत्री सिरिमावो को श्रीलंका ने जो पहचान दी और वही देश एक बार फिर राजनीतिक भूचाल के भंवरजाल में उलझा दिखाई दे रहा है...
चलते चलते आज की दूसरी घटनाओं पर एक नजर डाल लेते हैं
1940 - गुजरात के 12वें मुख्यमंत्री शंकरसिंह वाघेला (Shankar Singh Vaghela) का जन्म
1947 - भारत के मशहूर क्रिकेटर चेतन चौहान (Chetan Chauhan) का जन्म
2020 - भारतीय राजनेता लालजी टंडन (Lalji Tandon) का निधन
2008 - नेपाली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और भारतीय मूल के रामबरन यादव (Ram Baran Yadav) नेपाल के राष्ट्रपति बने