यूक्रेन मसले ( Ukraine Crisis ) पर अमेरिका और रूस बीते कई महीने से आमने सामने हैं और कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं है. जब बड़े मुल्कों में टकराव की स्थिति है, लोग परेशान हैं.
रूस बनाम पश्चिमीं देशों के बीच युद्ध की आहट के बीच, आइए जानते हैं यूक्रेन संकट की ज़रूरी बातें
पहले बात भुगोल की:
यूक्रेन के एक तरफ रूस है, उत्तर में बेलारूस ( Belarus ) और इसका बाकी बचा हिस्सा यूरोप के देशों से लगा हुआ है. इस देश की हालत किसी सैंडविच जैसी लगती है.
इसकी लोकेशन ने पूर्व सोवियत रिपब्लिक को वृहद रूस और पश्चिम के बीच युद्ध के लिए इसे फ्रंटलाइन बना दिया है.
विवाद है क्या?
अमेरिका और पश्चिम ( America and West Countries ) को डर है कि रूस यूक्रेन पर हमले की तैयारी कर रहा है. रूस ने यूक्रेन से लगी अपनी सीमा पर एक लाख से ज्यादा सैनिकों को तैनात कर दिया है.
रिपोर्ट्स में बताया गया है कि रूस ने टैंक, मिसाइलें और तोपखाने भी तैनात किए हैं
लेकिन क्यों?
पुतिन की मांग है कि पश्चिमी देश, यूक्रेन को नाटो में शामिल न करने और सैन्य गठबंधन के पूर्व की ओर विस्तार को रोकने के लिए वचन दें. एक मांग जिसे पश्चिमी देशों ने सिरे से खारिज कर दिया है.
पश्चिमी देशों में खतरे की एक और घंटी बजी है. वह इसलिए कि रूस ने देश के सुदूर पूर्व में अपने सहयोगी बेलारूस में बड़ी संख्या में सैनिक भेजे हैं. बेलारूस की सीमा भी यूक्रेन के साथ लगती है.
अब, वर्तमान को समझने के लिए रूस-यूक्रेन के इतिहास पर एक नज़र डालते हैं. सोवियत संघ के पतन से पहले, यूक्रेन उसका हिस्सा हुआ करता था. और रूस अब भी बड़ा भाई बना रहना चाहता है, और यूक्रेन को पश्चिमी देशों के पाले में नहीं जाने देना चाहता है.
2013 में विरोध का किस्सा तब शुरू हुआ जब रूस समर्थित यूक्रेन की सरकार ने मॉस्को के साथ डील साइन की. इस वजह से यूक्रेन भर में प्रदर्शन हुए और कहा गया कि देश ने रूस के सामने सरेंडर कर दिया है.
महीनों के विरोध के बाद रूस समर्थक सरकार को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया और एक नई सरकार ने यूरोपीयन यूनियन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए.
पलटवार करते हुए, 2014 में, पुतिन ने क्रीमिया में सैनिकों को भेजा. यह एक प्रायद्वीप है जो 1950 के दशक से ही यूक्रेन का हिस्सा रहा है.
यूक्रेन और पश्चिमी देशों के विरोध के बावजूद, रूस ने क्रीमिया पर कब्जा कर लिया. रूस पर आरोप है कि वह पूर्वी यूक्रेन में अलगाववादी विद्रोहियों को सैन्य साजो सामान और हथियारों की मदद पहुंचाता है.
यूक्रेन को हमेशा से नाटो और पश्चिम से सैन्य और आर्थिक मदद मिलती रही है. जाहिर है, पुतिन को यह पसंद नहीं और रूस, यूक्रेन को नाटो या यूरोपीय संघ में शामिल होने से रोकना चाहता है.
नाटो, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पश्चिमी देशों द्वारा सोवियत संघ के खिलाफ एकजुट होने के लिए बनाया गया एक सैन्य गठबंधन है.
अभी क्या हालात हैं?
अगर पुतिन यूक्रेन पर हमला करते हैं तो अमेरिका और यूरोपीय यूनियन (European Union) ने रूस के खिलाफ कड़े प्रतिबंध लगाने की धमकी दी है. अमेरिका और रूस के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला है.
बिडेन और पुतिन ने भी बात की है, लेकिन अभी तक किसी भी मुद्दे पर एकमत नहीं हुए हैं. अब जब बड़े मुल्क टस से मस होने को तैयार नहीं है, यूक्रेन के लोग दहशत के साए में जी रहे हैं.