साल 2020: दुनिया में जो कुछ घटा

Updated : Jan 01, 2021 15:48
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Editorji News Desk

कोरोना ने बदली दुनिया

साल 2020 का स्वागत ही एक ऐसी महामारी ने किया जो दाखिल तो चीन में एक बीमारी बनकर हुई थी, लेकिन इसने दुनिया को इस हर लिहाज से बदलकर रख दिया, कोविड 19- पिछले साल के नवंबर में चीन के वुहान से फैले इस वायरस ने साल 2020 की शुरुआत तक चीन के कई हिस्सों को अपनी चपेट में ले लिया.यूरोप में वायरस ने जो कहर मचाया उसकी कहानियां आने वाले कई सौ सालों तक याद रखी जाएंगी.  मार्च में इटली जैसे देशों के कई शहरों में जिस तरह मौतों के बाद क्रबिस्तान में जमीन ही कम पड़ने लगी,वो मंजर दिल तोड़ने वाला था.  धीरे-धीरे पूरी दुनिया ही लॉकडाउन में सिमट कर रह गई. जून -जुलाई तक आते -आते वायरसने यूरोप, एशिया समेत अमेरिका को अपनी चपेट में ले लिया. पूरी दुनिया की सरकारें और राजनीतिक सत्ता इस एक बीमारी के आगे नतमस्तक दिखीं. किसी को समझ नहीं आ रहा था कि कैसे निपटा जाए. हालांकि यहां भी न्यूजीलैड जैसी सरकारें थी जिन्होंने इससे निपटने में रास्ता दिखाया. सबसे हैरान करने वाला रुख अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का रहा, वो कहते रहे कि कोरोना कोई बड़ी बीमारी नहीं और ये जादू की तरह गायब हो जाएगा. लेकिन हुआ इसका उल्टा. बाद में खुद राष्ट्रपति ट्रंप ही कोरोना की चपेट में आ गए थे राजनीतिक रूप से कोरोना ने दुनिया को हतप्रभ और हताश दोनों कर दिया. इतिहासकार युवाल नोवा हरारी ने लिखा भी कि दुनिया के इतिहास में ये महामारी कई दूसरी वजहों से कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण है. और इसकी दो बड़ी वजहें है कि एक तो दुनिया के देश आपस में एकजुट नहीं और दूसरा दुनिया के पास कोई राजनीतिक नेतृत्व नहीं . खैर कोरोना अभी भी यहां है और नए वेरिएंट की खबर ने सबकी नींदे उड़ा दी हैं.


2. अमेरिकी चुनाव.

यूं तो हर चार साल में होने वाले अमेरिकी चुनावों पर सबकी नज़रें लगीं रहती है, लेकिन इस बार के चुनाव बेहद खास थे.बाइडेन जहां सबसे उम्रदराज़ राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं तो ट्रंप का नाम उन राष्ट्रपतियों में शुमार हो गया जो कि पद पर रहने के दौरान हार गए. 7 नवंबर को डेमोक्रेट बाइडेन ने रिपब्लिकन पार्टी के प्रतिद्वंदी डॉनल्ड ट्रंप को एक कड़े मुकाबले में हरा दिया. पेंसिल्वेनिया की जीत आखिरकार मील का पत्थर साबित हुई. तय हो गया था कि 77 साल के बाइडेन अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति बन जाएंगे. उपराष्ट्रपति का चुनाव जीत कर तो कमला हैरिस ने इतिहास की नई धारा रच दी. ये पहली बार है कि एक महिला, अश्वेत और साउथ एशियन अमेरिका की उपराष्ट्रपति बन रही है.उनका नाम इस जिम्मेदारी के लिए काफी बाद में सुझाया गया. चुनाव नतीजों के बाद उन्होंने कहा भी था कि वो अमेरिका की पहली महिला उपराष्ट्रपति बन रही हैं, लेकिन आखिरी नहीं. ये दोनों लोग 20 जनवरी को पद संभालेंगे.

जेसिंडा अर्डन की जीत

.कोरोना वायरस के खिलाफ देश को जंग जिताने वाली न्यूजीलैंड की पीएम जेसिंडा ऑर्डन की जीत दुनियाभर के लिए एक बड़ा संदेश थी. अक्टूबर में हुए चुनाव में जेसिंडा की लेबर पार्टी ने शानदार ऐतिहासिक जीत हासिल की. अर्डन ने अपने चुनाव प्रचार को कोविड इलेक्शंस का नाम दिया. वो जनता को ये बताने में कामयाब रही कि उन्होंने कोरोना से निपटने के लिए कारगर कदम उठाए. बता दें कि न्यूजीलैंड की आबादी 50 लाख है लेकिन यहां कोरोना की वजह से महज 25 लोगों की मौतें हुईं.

ब्लैक लाइव्स मैटर

 25 मई 2020 - ये तारीख अमेरिका में नस्लभेद के विरोध को लेकर एक अहम तारीख बन गई. जब एक अश्वेत शख्स की पुलिस हिरासत में मौत के वीडियो ने बरसो से दबी नस्लभेद के विरोध की चिंगारी को भड़का दिया पुलिस ने जब फ्लॉयड को पकड़ा, तब उन्हें सांस लेने में परेशानी हो रही थी और उसी दौरान उसने दम तोड़ दिया.इसके बाद अमेरिका के सभी राज्यों में विरोध प्रदर्शन देखने को मिले,विरोध इतना ज्यादा था कि राष्ट्रपति ट्रंप को व्हाइट हाउस के बंकर में छिपना पड़ा. इसके बाद पूरी दुनिया में ब्लैक लाइव्स मैटर नाम से आंदोलन शुरू हो गए, अमेरिका के इलिनॉयस जैसे राज्य में भी विरोध प्रदर्शन देखने को मिले जिसे आम
तौर पर सबसे ज्यादा नस्लभेदी माना जाता है. यहां तक की सीरिया के इदलिब में बमबारी में तबाह हुई इमारत की दीवार पर भी जॉर्ज फ्लॉयड का पोट्रेट दिखता है ,यूरोप में गुलामी और नस्लभेद से जुड़ी प्रतिमाओं को गिराया गया. दुनिया की बड़ी कंपनियों को भी ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन को अपना समर्थन देना पड़ा.इस हादसे के बाद नस्लभेद और भेदभाव को लेकर लोग मुखर हो गए और एक दूसरे के साथ अपने अनुभव बांटने लगे.फ्लायड अमेरिका और दुनिया भर में न्याय और बराबरी की मांग का प्रतीक बन गए.

ईरानी सेनाध्यक्ष कासिम सुलेमानी की हत्या 

बगदाद में ईरानी सेनाध्यक्ष कासिम सुलेमानी की हत्या की एक बड़ी अंतर्राष्ट्रीय घटना थी. कासिम ईरान को ईरान के सबसे ताकतवर सैन्य कमांडर और खुफिया प्रमुख की तरह जाना जाता था. वो सश्स्त्र बलों की शाखा रेवोल्यूशनरी गार्ड की भी अध्यक्षता कर रहे थे जो कि सीधे आयतुल उल खामनेई को रिपोर्ट करती है. मर्डर के बाद अमेरिका ने इस कदम को ठीक ठहराया, कहा गया कि वो अमेरिकी प्रतिष्ठानों और राजनयिकों पर हमले की साजिश रच रहे थे और ये मर्डर एक डिफेंस मैकनिज्म की तरह था. ईरान की सबसे ताकतवर फौज की लंबे अरसे तक अगुवाई कर रहे कासिम सुलेमानी को वेस्ट एशिया में ईरानी गतिविधियों को चलाने का प्रमुख रणनीतिकार माना जाता था. अमेरिका सुलेमानी को अपने सबसे बड़े दुश्मनों में से एक मानता था. सुलेमानी को दूसरे देशों पर ईरान के रिश्ते मजबूत करने के लिए जाना गया, सुलेमानी ने यमन से लेकर सीरिया तक और ईराक से लेकर दूसरे मुल्कों तक रिश्तों का एक मज़बूत नेटवर्क तैयार किया. अमेरिकी सरकारों के बार-बार लगाए जाने पर सुलेमानी सुलेमानी ईरान के लिए एक सुरक्षा कवच की तरह सामने रहते. कुद्स फोर्स ईरान के रेवॉल्यूशनरी गार्ड्स की विदेशी यूनिट का हिस्सा है.कुद्स फोर्स का काम है विदेशों में ईरान के समर्थक सशस्त्र गुटों को हथियार और ट्रेनिंग मुहैया कराना. कासिम सुलेमानी इसी कुद्स फोर्स के प्रमुख थे. लेकिन अमेरिका ने उन्हें और उनकी कुद्स फोर्स को सैकड़ों अमेरिकी नागरिकों की मौत का ज़िम्मेदार करार देते हुए साल 2018 में 'आतंकवादी' घोषित कर दिया था

शिंजो आबे का कुर्सी छोड़ना

 जापान के पीएम शिंजो आबे की कुर्सी से उतरना एक बड़ी राजनीतिक घटना थी, अगस्त में खराब सेहत की वजह से उन्होंने कुर्सी छोड़ी.आबे ने बताया कि वे अल्सरेटिव कोलाइटिस की दिक्कत से जूझ रहे हैं अगले ही महीने योशिहिदे सुगा को जापान की सत्ताधारी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी का नया नेता चुना गया. उन्हें आबे का करीबी माना जाता है और वो साल 2006 से उनके साथ हमकदम की तरह रहे हैं और उनके करीबी माने जाते हैं. उन पर भी दुनिया भर की निगाहें लगी हुई हैं.

 

मैक्रों और इस्लाम 
आखिर में बात फ्रांस की उस घटना की जिसने इस्लाम और उससे जुड़े कई सवालों को बहस के केंद्र में रख दिया था. फ्रांस में 16 अक्टूबर को पैगंबर मोहम्मद का कार्टून दिखाने वाले एक शिक्षक की 18साल के एक मुस्लिम लड़के ने दिन दहाड़े हत्या कर दी. इस हत्या के बाद देश भर में बड़े पैमाने पर विरोध हुए. राष्ट्रपति मैक्रों ने शिक्षक के फैसले का समर्थन किया था, वहीं ये कहकर वो तुर्की समेत कई दूसरे देशों के निशाने पर आ गए कि इस्लाम संकट में है. उसके बाद मैक्रों और कई मुस्लिम देशों की आपस में ठन गई, कई मुस्लिम देशों में फ्रांस में बनी चीजों के बहिष्कार की मांग की गई.मैक्रो ने रक्षा परिषद की बैठक तक में ये कह दिया था कि डर अब दूसरी ओर के लोगों को लगेगा, साथ ही सरकरा ने चरमपंथियों पर निशाना भी साधा था, हालांकि कई एक्सपर्ट ने कहा कि साल 2022 में राष्ट्रपति का चुनाव है और मैक्रों जरुरत
से ज्यादा प्रतिक्रिया कर रहे हैं. तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप ने तो यहां तक कह दिया कि फ्रांसीसी राष्ट्रपति का दिमाग खराब हो गया है. .इस पर फ़्रांस की प्रतिक्रिया ने धर्म और राजनीति की सीमा के सवाल पर देश के भीतर और बाहर विवादों को फिर हवा दे दी

ट्रंपफ्रांसकमला हैरिसअमेरिका और ईरानमैक्रोंबाइडेनकोविडजेसिंडा

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