कोरोना इंफेक्शन के दौरान हर मरीज़ में बुखार, खांसी से लेकर लॉस ऑफ टेस्ट जैसे अलग अलग सिम्पटम्स देखने को मिले. इन सबके अलावा एक और सिम्प्टम जो कोरोना संक्रमितों में बहुत ज़्यादा नज़र आया वो था एनोस्मिया यानि लॉस ऑफ स्मेल. क्या कभी फूलों के बगीचे में जाकर या परफ्यूम लगाकर आपको उसकी महक सूंघने में परेशानी हुई है? अगर हां, तो ये एनोस्मिया हो सकता है. अब अमेरिका के जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने ये दावा किया है कि जो लोग ज़्यादा प्रदूषण वाले इलाकों में रहते हैं उनमें इस बीमारी का खतरा कहीं गुना ज़्यादा होता है. शोधकर्ताओं ने ये भी बताया कि ऐसी हवा जिसका पार्टिकल मैटर 2.5 हो, उसमें ज़्यादा देर तक रहने पर भी एनोस्मिया का खतरा दुगना हो सकता है.
एनोस्मिया से पीड़ित व्यक्ति में सूंघने की क्षमता खत्म हो जाती है जिसके कारण ना तो उन्हें खाने का स्वाद आता है और ना ही वो अपने रोज़ाना के काम सही से कर पाते हैं.
'जामा ओपन' जर्नल में प्रकाशित इस रिपोर्ट में बताया गया कि सूंघने की क्षमता का कम होना या जाना काफी हद तक आपके आस पास के प्रदूषण स्तर पर निर्भर करता है. ऐसा हमारी ओल्फैक्टरी नर्व की लोकेशन की वजह से हो सकता है. ओल्फैक्टरी नर्व फर्स्ट करेनियल नर्व होती है जो हमारी नेज़ल कैविटी के अपर साइड में होती है. ये स्मेल का पता लगाने का काम करती है.
ऐसा पहली बार नहीं है जब पॉल्यूशन से होने वाली परेशानियों और इसके खतरनाक प्रभावों के बारे में बात की गई हो. पहले भी कई बार अलग अलग स्टडीज़ में ये पता चला है कि एयर क्वालिटी इंडेक्स PM 2.5 होने पर हवा सेहत के लिए नुकसानदायक हो जाती है और कार्डियोवैस्कुलर डिसीज, लंग कैंसर, सोचने समझने की क्षमता में कमी, अस्थमा और समय से पहले मृत्यु का कारण बन सकती है.