अगर आप बच्चे को सूसू-पॉटी की ट्रेनिंग दे सकते हैं तो आप गायों को भी इसकी ट्रेनिंग दे सकते हैं. जी हां, ये कहना है वैज्ञानिकों का. दरअसल, जर्नल करंट बायोलॉजी में छपी एक स्टडी के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने पाया है कि ट्रेनिंग देकर गायों के लिए शौचालय बनाया जा सकता है.
अब अगर आप ये सोच रहे हैं कि इतनी मशक्कत क्यों हो रही है तो बता दें कि ये सब मज़ाक में नहीं बल्कि पर्यावरण सरंक्षण के लिए किया जा रहा है. स्टडी में बताया गया है कि मवेशियों के मलमूत्र से ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन होता है. दरअसल जब मवेशियों के मलमूत्र मिट्टी पर गिरते हैं तो उसमें मौजूद अमोनिया मिट्टी के साथ मिलकर नाइट्रस ऑक्साइड बनाती है. जो कि एक ग्रीनहाउस गैस है. इसकी वजह से मिट्टी और पानी भी दूषित हो जाता है.
इसी वजह से गायों को एक तय जगह पर यूरिनेट करने की ट्रेनिंग देने के लिए वैज्ञानिक लंबे समय से इसकी पैरवी करते आ रहे हैं.
प्रयोग के लिए, एक तबेले में रिसर्चर्स ने 16 गायों को शौचालय का इस्तेमाल करने की ट्रेनिंग देने की कोशिश की. इसे ‘मूलू’ (MooLoo) नाम दिया गया है. इनाम का लालच देकर जैसे बच्चों को प्रोत्साहित किया जाता है ठीक वैसे ही गायों को सज़ा और इनाम दोनों मिलते हैं.
जिसके बाद ये देखा गया कि 16 में से 11 गाय शौचालय का उपयोग करने में ट्रेंड हो गई थीं मतलब ये कि इधर-उधर कहीं भी यूरिनेट करने के बजाय वो खुद ही शौचालय जाने लगीं.
इस रिज़ल्ट के आधार पर रिसर्चर्स का मानना है कि गायों की पॉटी ट्रेनिंग परफॉर्मेंस बच्चों को दी गई पॉटी ट्रेनिंग जितनी ही कारगर है. उनका कहना है कि MooLoo जैसे टॉयलेट मॉडल से 80% मवेशियों का मूत्र इकट्ठा कर अमोनिया उत्सर्जन में कमी लाई जा सकती है.
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