हमारे देश में न्याय व्यवस्था में देरी की कई मिसालें हैं और अब 1993 दंगों (Mumbai Riots) से जुड़ा एक ऐसा ही मामला सामने आया है. इसमें एक लोकल कोर्ट ने 28 साल बाद एक आदमी को ये कहते हुए बरी किया कि वो बेगुनाह है और वो सिर्फ घटना का प्रत्यक्षदर्शी था. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक राशिद खान (Rashid Khan) की दंगों के वक्त उम्र 34 साल थी और अब राशिद 62 साल के हो चुके हैं. उनको हाल ही में मुंबई की एक स्थानीय अदालत ने सारे आरोपों से बरी किया.दरअसल ये पूरा मामला 12 जनवरी 1993 को हुए वाक्ये से जुड़ा है जब मुंबई के पूर्वी वडाला इलाके में दो गुटों के बीच पथराव हुआ था, लेकिन कुछ ही समय में भीड़ आक्रामक हो गई और पुलिस को फायरिंग भी करनी पड़ी.
इस घटना में एक आदमी की गोली लगने से मौत हो गई और कुछ दूसरे लोग घायल हो गए. बाद में एफेडेविट में पुलिस ने बताया कि उसने भीड़ में से 15 लोगों को गिरफ्तार किया था, इन्हीं 15 लोगों में राशिद खान भी थे. इस मामले में कोर्ट ने 15 में से 10 आरोपियों को पहले ही बरी कर दिया था, 4 का पता नहीं चल पाया और राशिद खान को पिछले साल गिरफ्तार किया गया. हालांकि पुलिस ने जो तीन गवाह पेश किए उन्हें कोर्ट ने नाकाफी पाया , लिहाज़ा कोर्ट ने कहा कि -आरोपी पर कोई विशेष इल्ज़ाम नहीं लगाया गया है.
अगर ये माना जाता है कि आरोपी उस वक़्त मौके पर मौजूद था, तो ये हो सकता है कि वो निर्दोष हो और सिर्फ़ एक प्रत्यक्षदर्शी था. यानि राशिद को संदेह का लाभ मिला और उन्हें बरी कर दिया गया. कोर्ट के आदेश के बाद 8 महीने से जेल में रह रहे राशिद को रिहा कर दिया गया.
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