स्वस्तिक अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल-प्रतीक माना जाता रहा है. इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वस्तिक चिह्न अंकित करके उसका पूजन किया जाता है. स्वस्तिक शब्द सु+अस+क से बना है. ‘सु’ का अर्थ अच्छा, ‘अस’ का अर्थ ‘सत्ता’ या ‘अस्तित्व’ और ‘क’ का अर्थ ‘कर्त्ता’ या करने वाले से है. इस प्रकार ‘स्वस्तिक’ शब्द का अर्थ हुआ ‘अच्छा’ या ‘मंगल’ करने वाला. स्वास्तिक हर दिशा से देखने पर समान दिखाई देता है.
हिंदू धर्म के अलावा जैन और बौद्ध जैसे धर्मों में भी लाल, पीले, सफेद रंग से अंकित स्वस्तिक का प्रयोग होता रहा है. बौद्ध धर्म में स्वस्तिक का आकार गौतम बुद्ध के हृदय स्थल पर दिखाया गया है. अमरावती के स्तूप पर भी स्वस्तिक चिह्न हैं. विदेशों में इस मंगल-प्रतीक के प्रचार-प्रसार में बौद्ध धर्म के प्रचारकों का भी काफ़ी योगदान रहा है. जापान में प्राप्त महात्मा बुद्ध की प्राचीन मूर्तियों पर स्वस्तिक चिह्न अंकित हुए मिले हैं. जापानी लोग स्वस्तिक को मन जी कहते हैं. इसके अलावा वास्तु शास्त्र में मुख्य द्वार की दोनों ओर की दिवारों पर स्वास्ति चिह्न बनाने के बारे में बताया गया है. इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.