किसानों के इस आंदोलन की तस्वीर अब कितनी व्यापक हो चुकी है, ये आपको इसी से समझ आ जाएगा कि अब घर के बाहर कदम ना रखने वाले हरियाणा के समाज की महिलाएं अब दिल्ली की सरहद पर कड़कड़ाती ठंड में बैठ गई हैं.हमने यमुनागर के खुर्दबंद से आईं कुछ महिलाओं से बात की. महिलाएं चाहें हरियाणा की हो या पंजाब की..युवा हों या बुजुर्ग... सबके तेवर तल्ख है और दर्द ये भी कि सरकार सुन नहीं रही. किसान अगर कहते हैं कि वो तैयारी के साथ आएं हैं तो, गलत नहीं कहते...आप उनकी ट्रॉली में झांक लीजिए...वो
चलता फिरता घर ही बन गई हैं. ये इस आंदोलन की खूबसूरती है, जो यहां आता है, यहीं का हो जाता है.कदम कदम पर सुबह से शाम तक चलने वाले लंगर हैं. उससे फर्क नहीं पड़ता कि रोटियां बेलने वाले और सेंकने वाले हाथ अस्सी साल के हैं या आठ साल के..पंजाब के हैं या दिल्ली के. किसानों के इस आंदोलन के समर्थन को समझने के लिए आपको हरबंस सिंह जैसों से मिलना होगा, जो पेशे से किसान नहीं हैं, वो कहते हैं ये देश का आंदोलन नहीं है, पूरे देश का है.बॉर्डर के आर-पार कई किलोमीटर जाड़े के सर्द दिनों में आंदोलन कर रहे इन किसानों का आंदोलन दूसरे आंदोलनों से अलग है.ये अपनी बात सरकार को सुनाना चाहते हैं, लेकिन इन का अंदाज बेहद शांतिपूर्ण है, बच्चे, बूढ़े, महिलाएं..डटे सब हुए हैं...हर कोई कहता है कि बात मनवा कर ही वापस जाएंगे, उनकी आंखों में दृढता की चमक लेकिन जुबान में प्यार भरा शहद है..वो हर किसी से प्यार से मिलते हैं, बतियाते हैं, खिलाते पिलाते हैं. इस आंदोलन को बाहर से समझा नहीं जा सकता...इसकी ताकत को समझने के लिए आपको इनके पास आना पड़ेगा, इनसे मिलना होगा
सिंघु बॉर्डर से एडिटर जी के लिए अल्पयू