Major Shaitan Singh Bhati, PVC: शैतान सिंह भाटी की फौज ने कैसे ढेर किए थे 1300 चीनी सैनिक? | Jharokha

Updated : Nov 26, 2022 19:14
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Mukesh Kumar Tiwari

Major Shaitan Singh Bhati, PVC: मेजर शैतान सिंह भाटी भारतीय सेना के अफसर थे. भाटी 01 दिसंबर 1924 को राजस्थान के जोधपुर जिले के बंसाल गांव के एक राजपूत परिवार में जन्मे थे. शैतान सिंह भाटी ने 10वीं तक की पढ़ाई जोधपुर (Jodhpur) से पूरी की थी. शैतान सिंह स्कूल के दिनों से ही एक अच्छे फुटबॉल खिलाड़ी थे.

1947 में उन्होंने अपनी ग्रेजुएशन पूरी की थी. पिता लेफ्टिनेंट कर्नल हेम सिंह (Colonel Hem Singh) पहले विश्व युद्ध में फ्रांस में लड़े थे. ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर (Order of the British Empire) से सम्मानित किया था. शैतान सिंह ग्रेजुएशन के दो साल बाद अगस्त 1949 में जोधपुर राज्य बल में अधिकारी के पद पर सेना में भर्ती हो गए थे.

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शैतान सिंह को याद किया जाता है 1962 जंग के लिए. 1962 में रेजांग ला (Rezang La) मोर्चे पर उन्होंने 100 से कुछ ज्यादा सैनिक लेकर चीन से जंग लड़ी थी और चीन के 1300 सैनिकों को ढेर कर दिया था. 1962 जंग (1962 Indo-China War) में उनके अदम्य साहस, लीडरशिप और कर्तव्य के प्रति समर्पण के लिए उन्हें सर्वोच्च युद्धकालीन वीरता पदक परमवीर चक्र (Paramvir Chakra) से सम्मानित किया गया. आज हम शैतान सिंह द्वारा लड़ी गई उसी लड़ाई के बारे में जानेंगे जिसने चीनियों के दांत खट्टे कर दिए थे.

रेजांग ला में मुट्ठी भर सैनिक लेकर चीन से लड़े

उसका नाम तो था शैतान... लेकिन उसने जो काम किया वह भगवान जैसा था... गलवान घाटी (Galwan Valley) से 220 किलोमीटर के फासले पर रेजांग ला है... रेजांग ला (Rezang La) भारत के लद्दाख क्षेत्र में चुशूल घाटी (Chushul Valley) के दक्षिणपूर्व में प्रवेश करने वाला एक पहाड़ी दर्रा है. 2020 में गलवान में हुई झड़प में भारत और चीन करीब-करीब बराबरी पर रहे थे लेकिन 1962 में रेजांग ला में हुई भीषण लड़ाई में भारत के जांबाज 114 सैनिकों ने चीन के 1300 सैनिकों को मारा था.

इस युद्ध की अगुवाई तब मेजर शैतान सिंह भाटी ने ही की थी... शैतान सिंह ने ही अपने मुट्ठीभर सैनिकों में वह जोश भरा, जिसके बूते सैनिकों का हौंसला चीन के आधुनिक हथियारों से कहीं ज्यादा बुलंद हो गया. हालांकि, इस मोर्चे पर जीत तो चीन को मिली थी लेकिन उसने यह माना था कि 1962 की जंग में इसी मोर्चे पर उसे ऐसा नुकसान हुआ जिसे वह कभी भुला नहीं सकेगा.

आज का तारीख का संबंध है उन मेजर शैतान सिंह भाटी से, जिन्होंने 1962 की लड़ाई में रेजांग ला के मोर्चे पर शहादत पाई थी... 18 नवंबर 1962 को ही मेजर शैतान सिंह वीरगति को प्राप्त हुए थे. 

1962 में भारतीय सैनिकों के पास थी 303 राइफलें

बर्फीली हवाओं का जोर.. शून्य से कम तापमान में हाड़ मांस जमा देने वाली ठंड...  बचने के लिए सिर्फ सूती कपड़े, कामचलाऊ कोट और जूतों का सहारा... 17 हजार फीट की ऊंचाई का ऐसा बर्फीला मैदान, जिसपर जंग का अनुभव भी नहीं हो... सामने चीनी सेना की वह टुकड़ी जो सेल्फ लोडिंग राइफल्स, असलहा बारूद से लैस थी और उससे मुकाबले के लिए पास थी 303 राइफलें... सामने आती दुश्मन सेना की बड़ी टुकड़ी, जिसके मुकाबले के लिए थीं आउटडेटेड थ्री नॉट थ्री बंदूकें... कमांडिग ऑफिसर ने भी सैन्य मदद पहुंचाने में हाथ खड़े तक दिए हों. बिग्रेड कमांडर का साफ आदेश था- युद्ध करना है तो करो या फिर चौकी छोड़कर पीछे हट सकते हो. 

1962 का युद्ध (1962 Indo-China War)... रेजांग ला पर C Company 13 कुमाउं तैनात थी..  इसकी कमान थी मेजर शैतान सिंह (Major Shaitan Singh Bhati) के हाथ में... रेजांग ला का क्षेत्रफल 2 किलोमीटर का था. इस पर कुल 118 जवान तैनात थे. 3 प्लाटून लगाए गए थे. इनके पास 3 मोर्टार थे. गुरुंग हिल की तरह 13 कुमाउं को आर्टिलरी की कवर फायरिंग नहीं मिल पाई थी और इन्होंने अपनी सुरक्षा के लिए न ही माइंस बिछाए थे.

रेजांग ला की सुरक्षा के लिए बेहद ही कम सामग्री थी लेकिन इस कंपनी का हर आदमी आखिरी गोली, आखिर सांस तक लड़ने को तैयार था. मुश्किलों के बावजूद हर सैनिक का मोराल बेहद ऊंचा था और उसमें हिम्मत व साहस की कोई कमी नहीं थी.

17 नवंबर की रात रेजांग ला पर शुरू हुई लड़ाई

17 नवंबर की रात में सैनिक नियमित पेट्रोलिंग करने के लिए आगे बढ़े. रात 11 बजे बेहद भयानक बर्फीला तूफान आया. तूफान ऐसा था कि सैनिकों के लिए खुद को बचाना भी मुश्किल हो गया. तूफान दो घंटे तक चलता रहा. रात 2 बजे 8वीं प्लाटून ने आधा मील दूर कुछ ट्रूप्स आते देखे. लांस नायक ब्रजलाल तेजी से वापस प्लाटून हेडक्वॉर्टर की ओर खबर देने दौड़ पड़ा. जब सेक्शन कमांडर हुक्मचंद के साथ लांस नायक ब्रजलाल वापस आए तो देखा कि चीनी सैनिक सिर्फ 250 गज दूर हैं. लांस नायक राम सिंह और उनके एलएमजी सेक्शन ने चीनी सैनिकों का ध्यान अपनी ओर खींचा. सेक्शन कमांडर हुक्मचंद ने लाल रोशनी कर अपने साथियों को सावधान किया और साथ में एमएमसी से फायर भी किया. 

शैतान सिंह जंग के बीच सैनिकों का हौसला बढ़ाते रहे

हर तरफ से फायर होने शुरू हो गए. मेजर शैतान सिंह ने वायरलेस के जरिए दूसरी पोस्ट से जानकारी ली. चीनी सेना ने हमला करते ही पोस्ट की सूचना प्रणाली को खत्म कर दिया था जिससे बटालियन हेडक्वॉर्टर से रेजांग ला का संपर्क टूट गया था. चीनी सेना ने नंबर 1 मोर्टार को नष्ट कर दिया था. इस बीच मेजर शैतान सिंह ने प्लाटून को आदेश दिया कि फिर से जानकारी जुटाए, शत्रु के पास कितने सैनिक हैं और उनकी क्या स्थिति है? मेजर शैतान सिंह पैदल सेना की एक प्लाटून की कमान संभालते हुए 17 हजार फीट की ऊंचाई पर तैनात थे.

यह इलाका मुख्य सुरक्षा क्षेत्र से अलग - थलग था और इस क्षेत्र में 5 प्लाटूनों की सुरक्षा चौकियां बनी हुई थी. चीनी सेना के हमले के दौरान मेजर शैतान सिंह अपनी जान को खतरे में डालते हुए एक चौकी से दूसरी चौकी जा जाकर सैनिकों का हौसला बढ़ाते रहे.

नायक शाही राम और एलएमजी सेक्शन ने चीनी सैनिकों को बड़ी लापरवाही से अपनी ओर आते देखा. अतः उन्होंने इन सैनिकों पर गोली बरसानी शुरू कर दी. जो चीनी टुकड़ी उनकी ओर बढ़ रही थी, वह वहीं ढेर हो गई. अब कुछ देर बाद जब 5 बजकर 5 मिनट हुए तब हरिराम और सुरजा ने चीनी सैनिकों के आक्रमण को अपनी ओर आते देखा. उन दोनों ने मोर्टार मदद मांगी. मोर्टार की मदद से सभी चीनी सैनिक यहां भी मौत के घाट उतार दिए गए.

हरिराम और सुरजा ने अपनी आंखों से भयानक युद्ध देखा लेकिन 5 बजकर 15 मिनट पर ये खत्म भी हो गया था. इसके 50 मिनट बाद जो चीनी सैनिक पेट्रोलिंग पर निकले थे उनकी भिड़ंत भारतीय सैनिकों से हो गई. 

ब्रिगेड का आदेश था- चाहें तो चौकी छोड़ दें

 7 प्लाटून के एक जवान ने संदेश भेजा कि करीब 400 चीनी उनकी पोस्ट की तरफ आ रहे हैं. तभी 8 पलटन ने भी मेसेज भेजा कि रिज की तरफ से करीब 800 चीनी सैनिक आ रहे हैं. मेजर शैतान सिंह को ब्रिगेड से आदेश मिल चुका था कि युद्ध करें या चाहें तो चौकी छोड़कर लौट सकते हैं पर उन्होंने पीछे हटने से मना कर दिया. मतलब किसी भी तरह की सैन्य मदद की गुंजाइश नहीं थी. इसके बाद मेजर ने अपने सैनिकों से कहा अगर कोई वापस जाना चाहता है तो जा सकता है. पर सारे जवान अपने मेजर के साथ थे. 

5 बजकर 15 मिनट पर खत्म हुई लड़ाई के बाद चीनी सैनिकों ने नई रणनीति बनाई थी लेकिन सुरजा चीनी सैनिकों की रणनीति को समझ गया और उसने लांस नायक राम सिंह को एलएमजी लेकर 40 गज की दूरी पर एक चट्टान को सुरक्षा ढाल बनाकर जाने को कहा और साथ में गुलाब सिंह से भी कहा कि वह भी लांय नायक राम सिंह के साथ आगे बढ़े. चीनी सैनिक 600 गज की दूरी पर थे और अपनी एमएमजी के साथ पोजीशन लेकर आक्रमण के लिए तैयार थे. लेकिन इस बीच में चीनी सैनिकों ने मोर्टार से आक्रमण कर दिया.

भारतीय प्लाटून सिर्फ 40 गज की दूरी पर था जब सुरजा ने अपनी प्लाटून को फायरिंग का आदेश दिया. चीनी सैनिकों के हमले में यहां कई भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे. 

अब सुरजा के साथ 11 सैनिक और थे. गुलाब सिंह को एमएमजी का कार्य सौंपा गया. राम सिंह भी 500 गज दूर से उनकी मदद कर रहे थे. उन्होंने देखा कि उनकी एक प्लाटून चीनी सैनिकों ने घेर ली है. अतः दोनों आदमी 70 गज की दूरी से दुश्मन पर टूट पड़े. गुलाब सिंह गिर पड़े लेकिन राम सिंह लगातार फायर करते रहे, जब तक की वो भी एमएमजी फायर में घायल नहीं हो गए. यहां चीनियों के दांत खट्टे हो गए.

6 बजकर 55 मिनट पर चीनी सेना ने गोले फेंकने शुरू किए

नंबर 2 मोर्टार पर तैनात रामकुंवर पर एक फायर आकर लगा, वे वहीं शहीद हो गए. अब ये तय हो चुका था कि चीनी पहले 7वें और 8वें प्लाटून पर हमला करेंगे. इसके बाद 9वें प्लाटून पर और फिर कंपनी हेडक्वॉर्टर पर... 6 बजकर 55 मिनट पर सरज निकल चुका था और चीनी सेना की आर्टिलरी ने गोले फेंकने शुरू कर दिए. तीसरे सेक्शन के चंदगी राम और पहले सेक्शन के हुक्म सिंह ने चीन के पहले दो आक्रमण नाकाम कर दिए. लेकिन चीनियों ने अब मोर्टार से हमला कर दिया. इस हमले में कुमाउं रेजिमेंट के ज्यादा सैनिक शहीद हुए.

7वीं प्लाटून को सुरजा ने अपनी आंख से ध्वस्त होते देखा. सुरजा ने हेडक्वॉर्टर को खबर दी कि प्लाटून शहीद हो गया है. इस हमले में सभी भारतीय सैनिक शहीद हो गए, जो घायल थे दुश्मन ने उनके सीने में संगीन घोंप दी. 8 बजे चीनी सेना ने ग्रीन लाइट से सिग्नल दिया कि 7वीं और 8वीं प्लाटून को खत्म कर दिया गया है.

चीनी सैनिकों ने जहां 7वीं प्लाटून को खत्म किया, वहीं पर इकट्ठा होने लगे. हालांकि लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई थी. थोड़ी ही दूरी पर नायक शाही राम चीनी सैनिकों की गतिविधि पर नजर रखे थे. शाहीराम ने जब चीनियों पर फायर किया तब मेजर शैतान सिंह को उनकी स्थिति का पता चला.

मेजर शैतान सिंह ने रामचंद्र, निहाल सिंह और हरफूल को तैनात किया. लेकिन सैनिकों के पास अब कुछ नहीं बचा था. मोर्टार बिना एम्युनिशन के बेकार थी. सैनिकों के हाथ में अब सिर्फ राइफल ही थी. इसी दौरान चीनी सैनिकों की एमएमजी फायर ने शैतान सिंह के सिर पर गंभीर चोट पहुंचाई. 32 सैनिक शहीद हो चुके थे. 

शैतान सिंह के सिर और हाथ पर चोट आई

इसी बीच मेजर शैतान सिंह की बांह में शेल का टुकड़ा लगा. एक सिपाही ने उनके हाथ में पट्टी बांधी और आराम करने के लिए कहा लेकिन घायल होकर भी मेजर ने मशीनगन मंगाई. उन्होंने मशीनगन का ट्रिगर रस्सी से अपने पैर पर बंधवा लिया. उन्होंने रस्सी की मदद से पैर से फायरिंग शुरू कर दी. तभी एक गोली मेजर शैतान सिंह के पेट पर लगी. उनका बहुत खून बह गया था और बार-बार उनकी आंखों के सामने अंधेरा छा रहा था. लेकिन जब तक उनके शरीर में खून का एक भी कतरा था, तब तक वो हार कहां मानने वाले थे.

वो टूटती सांसों के साथ दुश्मन पर निशाना साधते रहे और सूबेदार रामचंद्र यादव को नीचे बटालियन के पास जाने को कहा, ताकि वो उन्हें बता सके कि हम कितनी वीरता से लड़े. मगर सूबेदार अपने मेजर को चीनियों के चंगुल में नहीं आने देना चाहते थे, इसलिए उन्होंने शैतान सिंह को अपनी पीठ पर बांधा और बर्फ में नीचे की ओर लुढ़क गए. कुछ नीचे आकर उन्हें एक पत्थर के सहारे लिटा दिया.

करीब सवा आठ बजे मेजर ने आखिरी सांस ली. सूबेदार रामचंद्र ने हाथ से ही बर्फ हटाकर गड्ढा किया और मेजर की देह को वहां डालकर उसे बर्फ से ढक दिया. कुछ समय बाद युद्ध खत्म हुआ तो इस इलाके को नो मैन्स लैंड घोषित किया गया.

अगले साल फरवरी में जब एक गड़रिया चुसूल सेक्टर की तरफ गया तो उसे वहां बर्फ में दबी हुई लाशें दिखीं. उसने फौरन नीचे आकर भारतीय चौकी में जानकारी दी तो पता चला ये भारतीय सैनिकों के शव हैं. जब शव निकाले गए तो किसी जवान के हाथ में लाइट मशीन गन थी तो किसी के हाथ में ग्रेनेड. किसी की भी पीठ पर गोली नहीं लगी थी, यानी सब लड़ते-लड़ते शहीद हुए थे. उस बर्फ से ढके रणक्षेत्र में मेजर शैतान सिंह का मृत शरीर 3 महीने बाद पाया गया. उनकी वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र प्रदान किया गया.

रेजांग ला पर 118 भारतीय सैनिक व अधिकारी लड़े थे जिसमें से 109 शहीद हो गए. 5 को चीनी सैनिकों ने पकड़ लिया था जबकि 4 जिंदा वापस लौटे थे. युद्ध में गोरखा एवं कुमाओं रेजिमेंट ने जो जौहर दिखाया वह अमर इतिहास बन गया. इस लड़ाई में 1300 चीनी सैनिक मारे गए. भारत के 140 जवान शहीद हुए थे. बीजिंग रेडियो को भी मानना पड़ा कि रेजांग ला पर उसे भारी कीमत चुकानी पड़ी. 

चलते चलते 18 नवंबर को हुई दूसरी घटनाओं पर भी एक नजर डाल लेते हैं

1727 - महाराजा जय सिंह द्वितीय ने जयपुर शहर की स्थापना की
1738 - फ्रांस और ऑस्ट्रिया के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर
1948 - बिहार की राजधानी पटना के पास स्टीमर हादसे में 500 लोग डूबे
1963 - अमेरिकी टेलीफोन कंपनी बेल सिस्टम्स डायलिंग पैड वाला फोन लेकर आई
1910- भारत के प्रसिद्ध क्रांतिकारियों में से एक बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt) का जन्म हुआ

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