5 July Jharokha: पाकिस्तान के खूंखार तानाशह Zia Ul Haq को पायलट ने मारा या आम की पेटियों में रखे बम ने ?

Updated : Sep 16, 2022 20:30
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Editorji News Desk

5 जुलाई 1977... यानी आज से ठीक 45 साल पहले... पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल जियाउल हक (Muhammad Zia-ul-Haq) ने प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो (Prime Minister Zulfikar Ali Bhutto) की चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंका और देश में मार्शल लॉ लागू कर दिया... आज झरोखा में  बात करेंगे जिया उल हक की... जिन्होंने पाकिस्तान में सैन्य हुकूमत के इतिहास (Military Coup History in Pakistan) की कभी न भूलने वाली दर्दनाक कहानी लिख दी.....

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सेंट स्टीफन कॉलेज से पढ़े जिया उल हक

जालंधर पंजाब में जन्मे और गरीबी में पलकर बड़े हुए जिया उल हक को आने वाले कल का अंदाजा नहीं था.. उन्हें ये नहीं पता था कि वे भविष्य में क्या बनने वाले हैं... ब्रिटिश इंडिया के दौर में उनके पिता एक मामूली क्लर्क थे. उन्होंने जिया की परवरिश कट्टर मजहबी माहौल में की थी मगर फिर भी जिया को जैसे तैसे दिल्ली के सबसे प्रतिष्ठित सेंट स्टीफन कॉलेज (St Stephen's College) से उच्च शिक्षा दिलाई...

दक्षिण एशिया उपमहाद्वीप में जब इस्लामिक आंदोलन चला तो जिया ने उसमें पूरी सक्रियता दिखाई थी... बाद में वे फौज में भर्ती हुए... विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गए ....

5 जुलाई 1977 को सत्ता पर जिया ने कब्जा किया

5 जुलाई 1977 की तड़के, पाकिस्तान में तबके सेना प्रमुख जनरल जिया उल हक ने प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंका और देश में मार्शल लॉ लागू कर दिया... पाकिस्तान का यह दुर्भाग्य था क्योंकि जिन भुट्टो को जिया ने सत्ता से हटाया था, उन्हीं भुट्टो ने एक साल पहले जिया को सेना की कमान सौंपी थी... भुट्टो ने ऐसा करने के लिए जनरलों को दरकिनार किया था... भुट्टो को यकीन था कि जिया कभी उनके खिलाफ विद्रोह या सरकार का तख्तापलट नहीं करेंगे....

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ज़िया ने जो तख्तापलट किया, वह एक और मामले में महत्वपूर्ण था... 1971 में पूर्वी पाकिस्तान में देश की हार के बाद ऐसा लगने लगा था कि पाकिस्तान में अब कभी सेना सुप्रीम पावर नहीं होगी लेकिन जिया ने इस धारणा को बदल दिया... पाकिस्तान पर 11 साल से ज्यादा वक्त की हुकूमत में उन्होंने देश की सेना को एक नया रूप दिया, जिसे आज भी महसूस किया जा सकता है...

जिया उल हक की जड़ें भारत में

जिया उल हक ने जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दिलाई, पाकिस्तान को कट्टर इस्लाम की ओर ले गए लेकिन... उनकी जड़ें जो निश्चित ही भारत में थी, उससे जुड़ी कई और अनगिनत कहानियां हैं... हम इन्हीं में से एक किस्से का जिक्र आज कर रहे हैं.

अक्टूबर 1981 में, दिल्ली के सेंट स्टीफंस से शिक्षकों और छात्रों की एक टीम पाकिस्तान गई... प्रिंसिपल विलियम राजपाल और प्रोफेसर एरिक कपाड़िया इस टीम में वरिष्ठ सदस्य थे... जैसे ही कपाड़िया साहब ने वाघा चेक पोस्ट को पार किया, उन्हें एक टेलीफोन के बारे में बताया गया... उनसे कहा गया कि फोन पर राष्ट्रपति जिया-उल हक हैं और वे अपने हिस्ट्री के टीचर से बात करना चाहते हैं...

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कपाड़िया साहब ऐसे माहौल के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं थे... उन्होंने कहा, "जरूर कोई गलती हुई होगी" 6 फीट लंबे पाकिस्तानी रेंजर्स ने उनसे कहा, राष्ट्रपति लाइन में हैं और बेहतर होगा कि वह रिसीवर उठा लें... इतिहास के प्रोफेसर ने कुछ शब्द बुदबुदाए और फोन उठा लिया.. आगे जो हुआ वह उनके लिए कभी न भूलने वाला लम्हा था...

जिया की यादगार तस्वीर

राष्ट्रपति ने टीम को डिनर पर बुलाया...प्रिंसिपल राजपाल 1942 ओटीसी (ऑफिसर ट्रेनिंग ग्रुप) ग्रुप की एक तस्वीर हासिल करने में सफलता पाई थी... इसमें 18 साल के जिया उल हक सबसे आखिरी वाली लाइन में खड़े दिखाई दे रहे थे...  जब राजपाल ने उन्हें फोटो दी तो जिया ने कहा:

मेरे पिता मुझे कॉलेज में हर महीने 30 रुपये देते थे. 18 फीस के लिए, 10 खाने के लिए... मेरे पास 2 रुपये बचते थे. तब मुझे इस तस्वीर को लेने के लिए जितने पैसे चाहिए थे, वह मेरे पास नहीं थे... इसलिए मैं आपको बता नहीं सकता कि प्रिंसिपल राजपाल से आज मिली इस तस्वीर का मोल मेरे लिए क्या है...

जिया ने स्टीफन के ग्रुप के लिए एक प्लेन मुहैया कराया ताकि वे मोहन जो दारो देख सकें. नए लड़के उन्हें देखकर भावविभोर हो उठे थे...

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जिया के व्यक्तित्व का एक पक्ष ये था तो दूसरा पक्ष बेहद क्रूर था... 

पाकिस्तान को शरिया कानून जिया के दौर में ही मिला

ज़िया के वक्त का पाकिस्तान कट्टर इस्लामिक विचारधारा की बेड़ियों में जकड़ा जा रहा था... ईशनिंदा की सजा मौत इसी काल में की गई... छोटे मोटे जुर्म करने वाले अपराधियों को कोड़े मारे जाने लगे थे, वो भी सबके सामने... असेंबली में कौन जाएगा और किसका पत्ता कटेगा यह सब उसके इस्लामिक तौर तरीके से तय किया जाने लगा था... इस दौर में गैर मुस्लिमों को राजनीतिक नुमाइंदगी मिलनी एक तरह से बंद हो चुकी थी... पाकिस्तान भर में मदरसों की पौध लहलहाने लगी थी... 

क्या था 'ऑपरेशन टोपैक'?

वो जिया ही थे जिन्होंने कश्मीर में आतंक की साजिश की शुरुआत की और 'ऑपरेशन टोपैक' की शुरुआत की...

ऑपरेशन टोपैक (Operation Tupac) के पहले चरण में जम्मू कश्मीर में सरकार विरोधी भावनाएं भड़काईं गई और बड़े विद्रोह की जमीन तैयार की गई. इसी ऑपरेशन के तहत कश्मीर में हथियार बंद गिरोहों को बड़े पैमाने पर संगठित किया गया. सरहद पार ट्रेनिंग दी गई... 

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ऑपरेशन के दूसरे चरण में सियाचिन, करगिल, रजौरी पुंछ सेक्टर में ज्यादा दबाव बनाना शामिल था, ताकि भारतीय सेना कश्मीर घाटी के अहम हिस्सों में अपनी तैनाती कम करने के लिए मजबूर हो जाए. ऐसा होने पर पट्टन, श्रीनगर, बारामूला और कुपवाड़ा आदि इलाकों में संगठित हमले करने की आसानी होती... इस चरण में आतंकी तत्वों के जरिए एयरफील्ड, रेडियो स्टेशन, सुरंग और करगिल लेह राजमार्ग जैसी अहम जगहों को बर्बाद करने की तैयारी की गई थी...

तीसरे चरण में कश्मीर में आजादी अभियान को और ऊपर ले जाना शामिल था... 

17 अगस्त को क्रैश हुआ जिया का प्लेन

लेकिन 17 अगस्त को वह तारीख भी आई जिसने पाकिस्तान की तारीख में एक कभी न भूलने वाला दौर जोड़ दिया...  इस्लामाबाद से 530 किलोमीटर दूर है बहावलपुर... इसी बहावलपुर में एक अमेरिकी टैंक का परीक्षण होने जा रहा था... न्यौता जनरल जिया उल हक को भी भेजा गया... वह जाना तो नहीं चाहते थे लेकिन कई जनरलों ने उन्हें आने के लिए मजबूर कर दिया था....

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जिया बहावलपुर पहुंचे लेकिन टैंक का परीक्षण फुस्स साबित हुआ... गुस्से में वह वापस बहावलपुर हवाईअड्डे पहुंचे... यहां वह अपने पाक 1 प्लेन के सी 130 मॉडल में सवार होने से पहले उन्हें तोहफे में कुछ आम की पेटियां दी गई... ये पेटियां भी प्लेन में रखवा दी गईं... 

जिया के साथ पाकिस्तान में अमेरिकी अंबैसडर ऑर्नाल्ड रॉफेल और पाक फौज के कई अधिकारी सवार थे... जनरल मिर्जा असलम बेग को भी इसी में सवार होने था लेकिन आखिर वक्त में उन्होंने इनकार कर दिया और पीछे वाले दूसरे प्लेन में सवार हो गए...

जनरल ज़िया के प्लेन हवा में उड़ चला था... कंट्रोल टावर ने पायलट मशहूद हसन से जगह पूछी तो उन्होंने जवाब दिया स्टैंडबाय... उस वक्त तक तो सब ठीक था लेकिन तीन मिनट बाद ही सब कुछ बदल गया... कंट्रोल टॉवर और पाक-वन का संपर्क टूट गया...

बहावलपुर के रेगिस्तान में प्लेन जमीन से टकराकर ज्वालामुखी की आग जैसा फटा.... इस प्लेन हादसे में 30 लोगों की मौत हुई जिसमें सबसे चौंकाने वाला नाम जिया उल हक का था... 

जिया उल हक की मौत कैसे हुई?

इस घटना के 24 साल बाद पाकिस्तान का एटम बम बनाने वाले साइंटिस्ट अब्दुल कादिर खान (Abdul Qadeer Khan) ने एक खुलासा किया... उन्होंने कहा कि जनरल जिया को पायलट ने मारा था... उन्होंने इंटरव्यू में खुलासा किया कि विंग कमांडर मसहूद हसन ने उनके साथी को बताया था कि वह जिया का कत्ल करने वाला है... वजह थी एक धार्मिक नेता को सजा ए मौत की सजा जिसे विंग कमांडर बहुत मानते थे... खैर न खान कभी अपनी बात का सबूत दे पाए और न ही जांच में कभी कुछ साफ हो पाया.

(इस आर्टिकल के लिए रिसर्च मुकेश तिवारी @MukeshReads ने किया है)

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