आज बात होगी सोशल मीडिया के बायकॉट कल्चर की. प्रभास की अपकमिंग फिल्म 'आदिपुरुष' को लेकर इन दिनों सोशल मीडिया पर बायकॉट की मांग उठने लगी है. फिल्मों के बायकॉट का यह ट्रेंड नया नहीं है. पिछले कुछ सालों में आपने 'बायकॉट' शब्द कई बार सुने होंगे. इससे पहले रणबीर कपूर की फिल्म ब्रह्मास्त्र को लेकर भी कुछ ऐसी ही मांग उठी थी. सोशल मीडिया पर फिल्म को ट्रोल करने की वजह रणबीर कपूर का एक पुराना बयान था, जिसमें वो ख़ुद को बीफ़ खाने वाला बता रहे थे. हालांकि फिल्म को वैसा नुकसान नहीं पहुंचा... रिपोर्ट के मुताबिक इस फिल्म ने पहले सप्ताह में ही 410 करोड़ की कमाई कर ली.
लाल सिंह चड्ढा से धाकड़ तक को झेलना पड़ा बायकॉट
लेकिन सभी फ़िल्में इतनी भाग्यशाली नहीं रही हैं. आमिर ख़ान की बहुप्रतिक्षित फ़िल्म लाल सिंह चड्ढा जो 6 ऑस्कर जीतने वाली हॉलीवुड फिल्म "फॉरेस्ट गंप" की रीमेक है, वह बुरी तरह फ्लॉप हो गई. 180 करोड़ के बजट से बनी यह फिल्म, वर्ल्डवाइड बॉक्स ऑफिस पर 130 करोड़ रुपए की ही कमाई कर सकी. इस फिल्म के बायकॉट की वजह लोगों के मन में आमिर और करीना को लेकर फैली नफ़रत थी. इससे पहले अक्षय कुमार की रक्षा बंधन, सम्राट पृथ्वीराज, तेलगु स्टार विजय देवरकोंडा की लाइगर, अनुराग कश्यप और तापसी पन्नू की दोबारा और कंगना रनौत की बिग बजट फिल्म धाकड़...
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बायकॉट कल्चर से भारी नुकसान
इन सभी फिल्मों को बायकॉट कल्चर की वजह से भारी नुकसान झेलना पड़ा है. लेकिन क्या फिल्मों के बायकॉट से सिर्फ अभिनेता, अभिनेत्री या निर्देशक को ही नुकसान होता है? एक फिल्म को बनाने में कई लोगों की मेहनत होती है. फिल्में बनाने से लेकर सामान उठाने तक. ऐसे में फिल्मों के फ्लॉप होने से अभिनेता, अभिनेत्री या निर्देशक से ज्यादा नुकसान आर्थिक रूप से कमज़ोर उन परिवारों का होता है, जिनकी कमाई करोड़ो में नहीं बल्कि हज़ारों में होती है. ऐसे में बिना सोचे समझे फिल्मों के बायकॉट कराने का ट्रेंड कितना घातक है, आज इसी मुद्दे पर होगी बात, आपके अपने कार्यक्रम मसला क्या है में?
बेड पब्लिसिटी, कितना गुड
ऐसा नहीं है कि फिल्मों के बायकॉट का कल्चर नया है. समाज के नैतिक ठेकेदार, पहले भी फिल्मों के बायकॉट की मांग करते रहे हैं. दीपा मेहता की फिल्म 'फायर' और वाटर तो याद ही होगा. लेकिन हाल के दिनों में यह ट्रेंड काफी ज़्यादा बढ़ गया है. संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत और गंगूबाई काठीवाड़ी का काफी विरोध किया गया. आरोप लगे कि इतिहास के तथ्यों के साथ छेड़छाड़ किया गया है. इसके अलावा शाहरुख ख़ान की 'माई नेम इज ख़ान', आमिर ख़ान की पीके, लिपस्टिक अंडर माई बुर्क़ा, सड़क-2, तूफ़ान, विक्रम वेधा, लिस्ट काफी लंबी है. कुछ दिनों पहले तक लोगों में एक धारणा यह भी बन गई थी कि इस तरह के ट्रेंड जान-बूझकर चलाए जाते हैं, जिससे उनकी फिल्मों की पब्लिसिटी हो. वो कहावत है ना, Any publicity is a good publicity. लेकिन हाल के दिनों में ऐसा होता नहीं दिख रहा है.
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फिल्म फ्लॉप होने का ज्यादा नुकसान छोटे कलाकारों को
सोचिए एक फिल्म में अभिनेता, अभिनेत्री और निर्देशक के अलावा 200-300 अन्य एक्टर होते हैं. इसके अलावा राइटर, एडिटर, कैमरा मैन, मेकअप आर्टिस्ट, सेट आर्टिस्ट, कॉस्ट्यूम डिजाइनर ना जानें और कौन-कौन. सीधे-सीधे शब्दों में कहूं तो एक फिल्म से लगभग 2000-3000 परिवार जुड़े होते हैं. ये तो वो लोग हैं जिनपर डायरेक्ट असर होता है. सोचिए फिल्म बनाने के लिए जिन सामानों की ज़रूरत होती है, उसे बेचने वाले दुकान से लेकर बनाने वाले लोग तक.. सभी प्रभावित होते हैं.
2030 तक फिल्म इंडस्ट्री के 100 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान
फिल्म स्टार अक्षय कुमार ने कुछ दिनों पहले हिंदुस्तान टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में बायकॉट कल्चर को लेकर अपनी राय रखी. उन्होंने कहा कि 'एक फिल्म को बनाने में काफी लोगों की मेहनत और पैसे लगते हैं. सोशल मीडिया पर चल रहे बायकॉट कल्चर से फिल्म इंडस्ट्री के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है. ऐसा कर हम अपने ही देश की इकॉनमी तबाह कर रहे हैं.'
आपकी जानकारी के लिए बता दूं वित्तीय वर्ष 2022 में फिल्म और टेलीविजन इंडस्ट्री से 4.12 मिलियन यानी कि 41 लाख़ 20 हज़ार रोज़गार का अनुमान रखा गया था. जबकि वित्तीय वर्ष 2017 में यह केवल 22 लाख के करीब था. सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव अपूर्व चंद्र ने हाल ही में दुबई एक्सपो में भारतीय मंडप का उद्घाटन करते हुए कहा कि देश का मीडिया और मनोरंजन उद्योग फिलहाल 28 अरब डॉलर का है. 2030 तक इसके 100 अरब डॉलर पर पहुंचने का अनुमान है.
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टिकट का दाम कम करना कितना मुश्किल?
इतना ही नहीं फिल्म इंडस्ट्री को प्रमोट करने के लिए 23 सितंबर को नेशनल सिनेमा डे के दिन देशभर में मूवी टिकट का दाम 75 रुपये कर दिया गया था. इसका असर यह हुआ कि देश में ज्यादातर फिल्मों के शो हाउसफुल रहे. इस फॉर्मूले से फिल्म इंडस्ट्री में भी उत्साह देखने को मिला. नतीजा यह रहा कि फ्लॉप होती फिल्मों के बीच 26 से 29 सितंबर तक सभी फिल्मों के टिकटों के दाम 100 रुपये कर दिए गए.
सवाल यह है कि शहरों में मौजूद मल्टीप्लेक्स के लिए इतने कम दामों में टिकट उपलब्ध करवाना आसान होगा. क्योंकि लगभग 1 करोड़ तो सिर्फ किराया में ही चला जाता है. फिल्मों के हाउसफुल होने के बावजूद, मल्टीप्लेक्स मालिकों के लिए मुनाफा निकालना बड़ी चुनौती होती है, लिहाजा टिकट की कीमतों को 100 रुपये तक लाना कितना आसान होगा?
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कोरोना काल में हुआ भारी नुकसान
एक ज़माने में 400-500 करोड़ का कारोबार करने वाली इस फिल्म इंडस्ट्री को कोरोना काल के दौर में लॉकडाउन की वजह से काफी नुकसान झेलना पड़ा है. बड़ी मुश्किल से इंडस्ट्री संभलने की कोशिश कर रही है. लेकिन सोशल मीडिया पर अब तक दर्ज़नों फिल्मों को बायकॉट झेलना पड़ा है. तो क्या फिल्मों के फ्लॉप होने की वजह बायकॉट कल्चर ही है? क्योंकि कई जानकार मानते हैं कि अगर कंटेट में दम हो तो फिल्मों को हिट होने से कोई नहीं रोक सकता. फिल्म प्रोड्यूसर गोल्डी बहल ने एक इंटरव्यू में कहा कि एक अच्छी फिल्म को कोई भी हिट होने से नहीं रोक सकता.