Agnipath Scheme: राजनीति में बेहद कम ही मौके़ देखने को मिलते हैं जब सत्ताधीन पार्टी के सांसद या विधायक, जनहित में अपनी सुख-सुविधा के त्याग के लिए भी तैयार हो जाएं. बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने अग्निवीरों के समर्थन में अपनी पेंशन छोड़ने की बात कही है. अग्निवीर स्कीम के ख़िलाफ़ देश के युवाओं में जो आक्रोश है, वह आप सबने टीवी स्क्रीन पर देखा है. किस तरह रेलगाड़ी और बसें फूंक दी गईं, वह भी आपने देखा है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस हिंसक प्रदर्शन की वजह से रेलवे का जितना नुकसान हुआ, वह पिछले एक दशक में सबसे ज्यादा है.
छात्रों के गुस्से का ज्यादातर लोगों ने समर्थन किया लेकिन सबने माना कि छात्रों का उपद्रवी बनना ठीक नहीं है. असर यह हुआ कि छात्र, पीछे हट गए. प्रदर्शन के दौरान कई छात्रों ने अग्निवीर स्कीम का यह कहते हुए विरोध किया कि सेना के जवानों से पेंशन छुड़वाया जा रहा है, सिर्फ चार साल की नौकरी दी जा रही है.. क्या देश के सांसद और विधायक अपनी पेंशन छोड़ने को तैयार हैं?
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छात्रों के सवाल पर चुप्पी मार गए नेता
छात्रों को इस सवाल का जवाब ना ही सांसदों और विधायकों से मिला और ना ही उन लोगों से जो उन्हें नादान बताते हुए कह रहे थे कि छात्र समझ नहीं पा रहे हैं. सरकार उनका ही भला कर रही है.... ख़ास बात यह है कि छात्रों के विरोध का समर्थन कर रहे पार्टी के सांसद और विधायक भी इस सवाल को खा गए.
अब एक बार फिर वरुण गांधी पर लौटते हैं. उन्होंने अग्निवीरों के समर्थन में एक ट्वीट किया. उन्होंने लिखा, 'अल्पावधि की सेवा करने वाले अग्निवीर पेंशन के हकदार नही हैं तो जनप्रतिनिधियों को यह ‘सहूलियत’ क्यूं? राष्ट्ररक्षकों को यदि पेंशन का अधिकार नहीं है तो मैं भी खुद की पेंशन छोड़ने को तैयार हूं. क्या हम विधायक/सांसद अपनी पेंशन छोड़ यह नहीं सुनिश्चित कर सकते कि अग्निवीरों को पेंशन मिले?
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आम लोगों से की गई थी गैस सब्सिडी छोड़ने की अपील
मुझे उम्मीद है कि आम लोगों से 200-300 रुपये की गैस सब्सिडी छोड़ने के लिए अपील करने वाली सरकार के अन्य सांसद-विधायक भी, वरुण गांधी की तरह आगे आएंगे और राष्ट्र निर्माण के लिए यह ऐतिहासिक त्याग करेंगे. आखिरकार भारतीय जनता पार्टी के नेता ही देशहित की बात सोच सकते हैं, अन्य विपक्षी दलों से इतने बड़े त्याग की कल्पना भी कैसे की जा सकती है. हालांकि मेरी सभी दलों के सांसदों और विधायकों से अपील है कि वह वरुण गांधी की तरह अपना एक कदम आगे बढाएं और देशहित में राजनीति की नई मिसाल पेश करें.
पश्चिम बंगाल के पूर्व स्पीकर हाशिम अब्दुल हलीम ने सांसदों और विधायकों के पेंशन को लेकर कभी कहा था कि जब लोगों के पास खाने के लिए पैसे नहीं है, तो फिर जनता के प्रतिनिधि राजा की तरह कैसे रह सकते हैं....
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नेता होने का मतलब जनसेवा नहीं
वह अलग ज़माना था जब नेता होने का मतलब जनसेवा माना जाता था. पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री से लेकर कई वामपंथी नेताओं तक ने इसका उदाहरण पेश किया है. वे जब रिटायर हुए तो उनके अकाउंट खाली थे. आज के समय में सांसदों के लिए शायद ऐसा कर पाना मुश्किल ना हो.. क्योंकि सिर्फ चुनाव लड़ने में करोड़ों रुपये फूंक दिए जाते हैं. और अगर एक बार चुनाव हार गए तो फिर अगले चुनाव में क्या होगा समझ लीजिए...
एक नजर डालते हैं और जानते हैं कि सांसदों और विधायकों को पूर्व बनने के बाद कौन-कौन सी सुविधाएं मिलती हैं-
पूर्व सांसदों-विधायकों को मिलने वाली सुविधाएं
सांसदों के वेतन
वहीं सांसदों को वेतन के तौर पर एक लाख रुपये मिलते हैं. निर्वाचन क्षेत्र भत्ता 70 हजार रुपये और कार्यालयी भत्ते के नाम पर 60 हजार रुपये मिलते हैं. इसके अलावा आवास, यात्रा भत्ता, टेलिफोन, इंटरनेट, सत्र के दौरान दैनिक भत्ता जैसे अन्य भत्ते और सुविधाएं भी मिलती हैं. हालांकि अप्रैल 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय कैबिनेट ने कोरोना महामारी की वजह फैसला किया कि सांसदों और मंत्रियों की सैलरी में 30% की कटौती की जाएगी.
हालांकि विधायकों के पेंशन को लेकर सभी राज्यों में अलग-अलग नियम हैं. गुजरात में विधायकों को पेंशन ही नहीं मिलता है. वहीं पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार ने सत्ता में आते ही विधायकों की पेंशन को लेकर एक बड़ा फैसला किया. जिसके तहत विधायकों को एक ही पेंशन मिलेगा.. यानी कि अगर आप पांच कार्यकाल से विधायक हैं तो भी पेंशन एक बार के विधायक जितना ही मिलेगा.
विधायकों को पेंशन कितना मिलता है?
इसे समझने के लिए दिल्ली का उदाहरण लेते हैं. एक सामान्य प्रक्रिया के तहत आज अगर कोई दिल्ली का विधायक पांच साल पूरा करता है तो उसे 10,000 रुपए मूल पेंशन दी जाती है. इसमें 5000 रुपए डीपी जोड़ा जाता है. 1500 रुपए प्रति वर्ष के हिसाब से इनसेंटिव दिया जाता है. यानी पांच वर्ष के 7500 रुपए हुए. मूल पेंशन पर 234 प्रतिशत महंगाई भत्ता जोड़ा जाएगा. इस हिसाब से एक टर्म पूरा करने वाले विधायक की पेंशन 50,000 रुपए के करीब होगी.
विधायकों के वेतन
वहीं अगर विधायकों के वेतन की बात करें तो तेलंगाना में विधायकों को वेतन-भत्तों के रूप में सबसे ज्यादा ढाई लाख रुपये प्रतिमाह मिलते हैं. वहीं उत्तराखंड में विधायकों को हर महीने 2 लाख रुपये से ज्यादा मिलते हैं. एक विधायक को प्रत्येक महीने सैलरी और भत्ता मिलाकर 1 लाख से 2.5 लाख रुपए तक मिलता है. एक नजर विधायकों के वेतन पर डालते हैं.
यहां पर मैंने दो तरह के राज्यों का ज़िक्र किया है. पहले वह राज्य है जहां पर विधायकों को सबसे कम वेतन मिलता है, वहीं दूसरे वह हैं जहां पर विधायकों को सबसे अधिक वेतन मिलता है..
यो तो हुई अग्निपथ स्कीम को लेकर अग्निवीरों की मांग और वरुण गांधी के प्रस्ताव पर चर्चा, अब एक अच्छी खबर की बात करते हैं...
मधुबनी में सड़क समतलीकरण का काम शुरू
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गुरुवार को हमने बिहार के मधुबनी जिले की एक खबर दिखाई थी. आसमान से ली गई ड्रोन कैमरे की तस्वीरें, जिसमें दूर-दूर तक गड्ढे और उसमें भरा पानी दिख रहा था. इस वीडियो को देख सोशल मीडिया पर लोग गड्ढे में सड़क या सड़क में गड्ढा वाला कमेंट कर सरकार की खिल्ली उड़ा रहे थे. कई लोग सवाल कर रहे थे कि इस स्वीमिंग पूल के बीच से कोई सड़क ढूंढ़ दे तो मान जाएं. एडिटर जी ने भी इस खबर को प्रमुखता से दिखलाया. इतना ही नहीं इलाके के विधायक अरुण शंकर प्रसाद से भी बात की. अच्छी बात यह है कि NHAI यानी कि नेशनल हाईवेज अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने खबर को संज्ञान में लेते हुए अगले ही दिन सड़क के समतलीकरण का काम शुरू कर दिया है...
नेशनल हाईवे जयनगर डिवीजन ने सोकिंग मशीन के सहारे एनएच के बीच बने गड्ढो से पहले पानी निकालवाया. फिर बगल से मिट्टी काटकर समतलीकरण का काम शुरू कर दिया. हालांकि इस तरह के प्रयास पिछले कई सालों में दर्ज़नों बार हुए हैं. लेकिन स्थिति फिर वही ढाक के तीन पात वाली है. NHAI के इस प्रयास से बरसात के मौसम में फौरी राहत तो मिल गई है लेकिन इलाके के लोगों को स्थायी समाधान का इंतजार है...
एक बार फिर से इस वीडयो को देखिए. गड्ढे के दो आगे गड्ढे, गड्ढे के दो पीछे गड्ढे नहीं बल्कि सैकड़ों गड्ढे दिखाई देंगे. पहेली ना होते हुए भी यह गड्ढे पहेली जान पड़ेंगे. इस सड़क पर सबसे बड़ा गड्ढा 100 फीट का बताया गया है.. यह सड़क, कलुआही-बासोपट्टी-हरलाखी से गुजरने वाला मुख्य मार्ग है. मानसी पट्टी से कलना तक सड़क की ऐसी ही हालत है. 2015 के बाद से ही यह सड़क ऐसे ही जर्जर बनी हुई है. अब तक तीन बार टेंडर जारी किया गया है, लेकिन सभी ठेकेदारों ने कुछ दूर सड़क बनाने की खानापूर्ति के साथ काम छोड़ दिया और फरार हो गए. खबर दिखाने के बाद गड्ढों को छिपा तो दिया है लेकिन इसका स्थायी समाधान कब निकलेगा, लोगों को इस बात का इंतजार है.