पार्टी एक, कुनबा एक और लोकसभा सीट भी एक लेकिन उम्मीदवार दो...असदुद्दीन ओवैसी और अकबरुद्दीन ओवैसी ने हैदराबाद की लोकसभा सीट से नॉमिनेशन करके सभी को चौंका दिया है... कोई कह रहा है कि भाई-भाई न रहा तो किसी ने बोला कि राजनीति है जनाब और यहां सब चलता है.
ये खबर जितनी चौंकाने वाले ही, उससे भी ज्यादा जरूरी है इस मुद्दे को समझना-
पहला सवाल जो ज़हन में आता है वो ये है कि आखिर असदुद्दीन ओवैसी की ही सीट पर उनके भाई अकबरुद्दीन ओवैसी ने पर्चा क्यों भरा है...इसका जवाब पार्टी की सोची-समझी रणनीति है ...जी हां आपने बिल्कुल सही सुना, दरअसल, AIMIM का इरादा 'बैकअप कैडिडेट' खड़ा करना है. तो चलिए सबसे पहले 'बैकअप कैडिडेट' की इस गुत्थी को ही समझते हैं...
अगर इलेक्शन कमीशन मुख्य उम्मीदवार या मेन कैंडिडेट के नॉमिनेश को खारिज कर दे या किसी कारणवश कैंडिडेट की मौत हो जाए तो ऐसी सिचुएशन में पार्टी के पास 'बैकअप कैंडिडेट' को मेन कैंडिडेट बनाने का ऑप्शन होता है. ज्यादातर राजनीतिक दल चुनावों में 'बैकअप कैंडिडेट' उतारते हैं और पहले भी इसके कई उदाहरण देखने को मिले हैं. यहां ये भी समझना जरूरी है कि जैसे ही मेन कैंडिडेट का नॉमिनेश इलेक्शन कमीशन अप्रूव कर देता है तो उसी घड़ी 'बैकअप कैंडिडेट' का नॉमिनेशन इनवैलिड हो जाता है.
इससे पहले अकबरुद्दीन ओवैसी ने चंद्रायनगुट्टा से अपना नामांकन दाखिल किया था और बाद में उनके बेटे नूर उद्दीन औवेसी को 'बैकअप कैंडिडेट' के तौर पर नॉमिनेशन किया था और बाद में अपना नामांकन वापस लिया था.
'बैकअप कैंडिडेट' न होने की स्थिति में चुनावी समीकरण किस तरह बदलता है, इसका ताजा उदाहरण हाल ही में सूरत सीट पर देखने को मिला जहां बीजेपी उम्मीदवार की निर्विरोध जीत हुई... दरअसल सूरत लोकसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार का नामांकन रद्द होते ही अन्य आठ उम्मीदवारों ने भी अपने नाम वापस लिए और बीजेपी उम्मीदवार मुकेश दलाल निर्विरोध जीत हासिल करने में कामयाब रहे.
इससे पहले 'बैकअप कैंडिडेट' न होने की वजह से मध्य प्रदेश की चर्चित खजुराहो लोकसभा सीट से विपक्षी दलों के INDIA गठबंधन को तगड़ा झटका लगा...खजुराहो लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर मीरा यादव ने नामांकन दाखिल किया था लेकिन नॉमिनेश लेटर पर साइन न होने की वजह से उनका नॉमिनेशन कैंसिल कर दिया गया.
भई, बैकअप कैंडिडेट की ये गुत्थी सुलझते ही ये भी साफ हो गया कि अकबरुद्दीन ओवैसी, भाई असदुद्दीन ओवैसी के खिलाफ नहीं बल्कि साथ ही हैं...वो कहते हैं ना राजनीति में रणनीति जायज है लेकिन भाईचारा सबसे ऊपर.