Al Aqsa Mosque History : इजरायल में एक त्यौहार मनाया जाता है योम किप्पूर (Yom Kippur)... 1973 में इसी त्योहार के दिन अरब देशों मिस्र और सीरिया ने मिलकर इजरायल पर हमला कर दिया था. त्यौहार के दिन हुए इस हमले के इजरायल तैयार नहीं था... शुरुआत में तो उसे नुकसान पहुंचा लेकिन बाद में इजरायल ने इन देशों में घुसकर उनसे जंग की कीमत वसूल की...
इस जंग को चौथे अरब-इजरायल युद्ध (4th Arab Israel War) या रमजान युद्ध के नाम से भी जाना गया. 4 अक्टूबर 2022 को यही त्यौहार फिर आया तो यहूदी घुस गए यरुशलम की अल अक्सा मस्जिद में... पुलिस की देखरेख में कुल 468 यहूदियों ने इस मस्जिद में कदम रखा और त्यौहार मनाया...
6020 स्क्वेयर किलोमीटर वाले फलस्तीन में 36 एकड़ की ये मस्जिद क्यों संघर्ष का अखाड़ा बनी रहती है? अल अक्सा मस्जिद का सुनहरा गुंबद जितना आकर्षक है उतने ही दर्दनाक इससे जुड़े विवाद हैं. आज का दिन इस मस्जिद के इसलिए भी अहम है क्योंकि साल 2000 में इजरायली पुलिस ने अल अक्सा मस्जिद में जबरन प्रवेश किया था जिसके बाद हिंसा का तांडव शुरू हो गया था.
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आखिर क्या है इस मस्जिद में जो यहूदी और फलस्तीनी इस मस्जिद को लेकर टकराते रहते हैं... आज झरोखा में जानते हैं इसी मस्जिद के इतिहास को ....
मस्जिद यरुशलम के पुराने शहर के दक्षिणपूर्वी हिस्से में यह स्थित है. अल अक्सा का डोम ऑफ द रॉक (Dom of the Rock) गुंबद शहर के हर कोने से दिखाई देता है.
पूरा कॉम्प्लैक्स 1,44,000 वर्ग मीटर का है और इसमें मस्जिद, प्रार्थना कक्ष, आंगन और धार्मिक स्थल हैं.
अरबी में, अल-अक्सा का अर्थ हैं: "सबसे दूर", जो मक्का से इसकी दूरी को बताता है. इस्लाम की पवित्र पुस्तक, कुरान में भी इसका उल्लेख किया गया है.
मुसलमानों का यह भी मानना है कि यही वह जगह है जहां पैगंबर मुहम्मद ने एक रात की अपनी चमत्कारी यात्रा के दौरान प्रार्थना में नबियों का नेतृत्व किया.
अपने धार्मिक महत्व के अलावा, अल-अक्सा फलस्तीनी लोगों की संस्कृति और उनमें भरी राष्ट्रीयता का प्रतीक है.
चमकता हुआ सुनहरा गुंबद दुनिया भर के मुसलमानों के लिए एक धार्मिक निशानी जैसा है. यहां नमाज अदा करना किस्मत की बात मानी जाती है.
इस्लाम के आगमन के बाद के वर्षों में मुस्लिम पवित्र शहरों मक्का और मदीना की तीर्थयात्रा में यरुशलेम में एक पड़ाव लेते थे.
अल-अक्सा के विशाल प्रांगण में अभी भी हजारों की संख्या में लोग आते हैं जो हर शुक्रवार को सामूहिक नमाज के लिए इकट्ठा होते हैं.
रमजान के पवित्र महीने के दौरान यहां रौनक बढ़ जाती है.
ईद अल-फितर पर, आसपास के इलाकों में जुलूस निकलते हैं, मिठाईयां बांटी जाती हैं.
अगर बात करें यहूदियों के लिहाज से, तो बता दें कि यहूदियों के लिए ये साइट टेंपल माउंट की जमीन कही जाती है. वे मानते हैं कि कभी यहां पर यहूदियों के दो प्राचीन मंदिर मौजूद रहे हैं. पहला राजा सुलैमान (अरबी में सुलेमान) द्वारा निर्मित मंदिर, जिसे बेबीलोनियों ने नष्ट कर दिया था और दूसरा मंदिर रोमनों द्वारा नष्ट कर दिया गया था.
साइट "फाउंडेशन स्टोन" के तौर पर भी मानी जाती है, जिसे लेकर यहूदी मानते हैं कि दुनिया का निर्माण यहीं से शुरू हुआ.
मस्जिद के पास ही चर्च ऑफ द होली स्पेलकर है, जो कि ईसाईयों के लिए बेहद अहम है. ये जगह यीशू की कहानी, मृत्यु, सूली पर चढ़ाने और पुनर्जीवन की कहानी का केंद्र है.
1967 में पूर्वी यरुसलम पर इजरायल का कब्जा शुरू होने के बाद से, यह मस्जिद मुस्लिमों और यहूदियों के बीच विवाद का केंद्र रही है. यहूदी इस मस्जिद पर पूर्ण नियंत्रण चाहते हैं.
अल-अक्सा इस्लाम के उदय के वक्त का आर्किटेक्चर सहेजे हुए है. धार्मिक इमारतों और संरचनाओं के अलावा, साइट पर 32 जल स्रोत हैं, जिनमें नहाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कुएं भी शामिल हैं.
अल-अक्सा की दीवारों पर कई ऐसी निशानियां हैं, जो मामलुक और अय्यूबिद काल के हैं.
इस्लामी मान्यता के अनुसार, डोम ऑफ़ द रॉक पहला क़िबला, या दिशा थी जिसकी ओर मुंह करके मुस्लिम शुरुआत में नमाज करते थे.
इस्लाम के अनुसार, अल-अक्सा सबसे शुरुआती मस्जिदों में से एक थी. जहां मुसलमान हज और उमराह तीर्थयात्रा करते थे.
मस्जिद पैगंबर मुहम्मद की जन्नत की चमत्कारी यात्रा का हिस्सा मानी जाती है. इसे अरबी में अल-इसरा वा अल-मिराज कहा जाता है.
मुसलमानों का मानना है कि पैगंबर मुहम्मद ने 124,000 नबियों से मुलाकात की और अल-अक्सा मस्जिद में अल्लाह को याद किया था.
अरबी में, डोम ऑफ द रॉक को कुब्बत अल-सखरा कहा जाता है.
संरचना को उमय्यद खलीफा अब्दुल मलिक इब्न मारवान ने 691-692 के बीच एक चट्टान पर बनाया था, जिसके बारे में माना जाता था कि पैगंबर यहीं से जन्नत गए थे.
डोम ऑफ द रॉक इस्लामी वास्तुकला के शुरुआती नमूनों में से एक है. इसकी अष्टकोणीय संरचना में चार प्रवेश मार्ग हैं, और इसके आंतरिक भाग को कुरान में सूरह अल-इसरा के छंदों से सजाया गया है. ये शिलालेख कुरान के पाठ के शुरुआती जीवित उदाहरणों में से कुछ हैं.
मस्जिद में सबसे पुराने मेहराबें भी हैं.
अब आते हैं पश्चिमी दीवार पर. इस दीवार को यहूदी बेहद पवित्र मानते हैं. अल-अक्सा में सबसे महत्वपूर्ण स्थलों में से एक पश्चिमी दीवार है, जिसे मस्जिद के दक्षिण-पश्चिम किनारे पर अल-बुराक दीवार के रूप में भी जाना जाता है.
दीवार पैगंबर गेट और मोरक्कन गेट के बीच है. इस क्षेत्र में एक छोटी मस्जिद भी है, जिसका निर्माण 1307 और 1336 के बीच किया गया था.
माना जाता है कि यह दीवार लगभग 20 मीटर ऊंची और 50 मीटर लंबी है, जहां पैगंबर मोहम्मद ने जन्नत में जाने से पहले एक पंख वाले घोड़े जैसे जीव अल-बुराक को बांधा था.
पश्चिमी दीवार यहूदियों के लिए पवित्र है, जो मानते हैं कि यह हेरोडियन टेंपल की आखिरी बाकी निशानी है. इस टेंपल को रोमन काल में 70वीं सदी में नष्ट कर दिया था.
हर साल, हजारों यहूदी इस जगह पर इकट्ठा होते हैं और प्रार्थना करते हैं.
सिल्वर गुंबद वाला ये स्ट्रक्चर अल-अक्सा की दक्षिणी दीवार की ओर है और यहां यह मुसलमानों द्वारा निर्मित पहली इमारत है. यहां इमाम खड़ा होकर नमाज कराते हैं.
जब मुसलमानों ने 638 में यरुसलेम में प्रवेश किया, तो इस्लाम के दूसरे खलीफा उमर बिन अल-खत्ताब और उनके साथियों ने मस्जिद के निर्माण का आदेश दिया. यह क्षेत्र तब बंजर और वीरान था.
मूल रूप से, मस्जिद एक साधारण इमारत थी जो लकड़ी के ट्रस पर थी, लेकिन आज जो संरचना दिखाई देती है, उसे पहली बार आठवीं शताब्दी की शुरुआत में उमय्यद खलीफा वालिद बिन अब्दुल मालेक बिन मारवान ने बनाया था.
मस्जिद ने कई भूकंपों और हमलों को झेला है. इसका असर आज भी दिखाई देता है.
इसका अंतिम बार रिनोवेशन ऑटोमन काल के दौरान हुआ था.
आज, अल-क़िबली मस्जिद में नौ प्रवेश द्वार हैं. मुख्य प्रवेश द्वार भवन के उत्तरी भाग के मध्य में है. अंदर, पत्थर और संगमरमर के स्तंभ हैं.
पत्थर के स्तंभ प्राचीन हैं, जबकि संगमरमर वाले 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में हुए रिनोवेशन का हिस्सा थे.
फिलिस्तीनियों के लिए, अल-अक्सा एक धार्मिक जगह से बढ़कर हैं और यह एक सांस्कृतिक जीवन का केंद्र है, जहां वे जश्न मनाने और शोक मनाने के लिए पहुंचते हैं.
कई फ़लिस्तीनी अक्सर मस्जिद का दौरा करते हैं. इनमें ज्यादातर युवा होते हैं और उनके लिए, अल-अक्सा में एक तरह से देश की छवि दिखाई देती है.
कई लोग रमज़ान के दौरान मस्जिद में अपना रोज़ा तोड़ते हैं और शुक्रवार को वहां नमाज़ पढ़ने जाते हैं. हालांकि, प्रार्थना की पूरी प्रक्रिया इजरायली फोर्सेस पर डिपेंड करती है.
मस्जिद से फलिस्तीनी जुड़ाव की दूसरी वजह ऐसी कोशिशें हैं जो यहां फिर से टेंपल बनाना चाहती हैं.
हाल के दशकों में टेंपल को फिर से बनाने की मांग जोर से हो रही है और इसे धार्मिक और राजनीतिक समर्थन भी मिला है.
यह साइट फलिस्तीन का पहला संग्रहालय, इस्लामिक संग्रहालय माना जाता है, जिसे 1923 में स्थापित किया गया था और इसमें दुर्लभ संग्रहों के साथ-साथ कुरान की पांडुलिपियां भी शामिल हैं.
अल-अक्सा मस्जिद, पूर्वी यरुशलम और वेस्ट बैंक को 1967 युद्ध के दौरान इजरायली फोर्स ने कब्जे में ले लिया था.
1967 युद्ध में जीत और उसके बाद के कब्जे के बाद, इजरायल के अधिकारियों ने यहूदियों को पश्चिमी दीवार पर प्रार्थना करने की अनुमति दी, लेकिन अल-अक्सा के अंदर नहीं.
प्रतिबंधों के बाद, यहूदी और विदेशी पर्यटक केवल मगरिबी गेट के जरिए साइट में प्रवेश कर सकते हैं.
फिर भी, अल-अक्सा पर हमले होते रहे हैं.
1988 में पहली फ़िलिस्तीनी इंतिफ़िदा (प्रदर्शन) के दौरान, इज़राइली सेना ने मुस्लिम उपासकों पर हमला किया, जो डोम ऑफ़ द रॉक के बाहर आंगन में मौजूद थे, आंसू गैस और रबर-स्टील की गोलियों का इस्तेमाल किया गया. इसमें कई लोग घायल हुए.
सबसे बड़ी घटनाओं में से एक सितंबर 2000 में हुई, जब इजरायल के विपक्षी नेता एरियल शेरोन ने अल-अक्सा का दौरा किया. तब भारी हथियारों से लैस इजरायली सैनिक यहां तैनात किए गए थे.
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इस कदम को उकसावे के तौर पर देखा गया. इस घटना को बाद में दूसरे इंतिफादा की शुरुआत को जिम्मेदार ठहराया.
2015 में, यहूदियों ने पूर्वी यरुशलम पर इजरायल के कब्जे की सालगिरह का जश्न मनाने के लिए साइट में प्रवेश किया. इसने फिलिस्तीनी विरोध को और भड़का दिया. इसे "यरुशलम दिवस" के रूप में जाना जाता है. 17 मई एक ऐसी तारीख है जब आमतौर पर विरोध प्रदर्शन उग्र हो जाते हैं.
चलते चलते 6 अक्टूबर की दूसरी घटनाओं पर एक नजर डाल लेते हैं
1661 - सिखों के 7वें गुरु गुरु हरराय का निधन हुआ.
1862 - भारतीय दंड संहिता कानून पारित हुआ और एक जनवरी से लागू हुआ.
1946 - दिवंगत बॉलीवुड एक्टर विनोद खन्ना का जन्म हुआ.