Aligarh News: भारत में इन दिनों गौरवपूर्ण इतिहास की खोज जारी है. जिसमें हिंदुओं के अस्मिता और गौरव को वापस लाने की बात कही जा रही है. वहीं दूसरी तरफ उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ में 100 दलित परिवार अपना घर इसलिए बेचना चाहते हैं क्योंकि उन्हें अपने आस्था के साथ जीने नहीं दिया जा रहा है. जबकि ये सभी 100 परिवार पॉश इलाके में रह रहे हैं.
आरोप है कि सांगवान बिरादरी यानी कि जाट समुदाय के लोग डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जयंती और बुद्ध पूर्णिमा मनाने नहीं दे रहे हैं. दलित समुदाय के लोगों का आरोप है कि बुद्ध पूर्णिमा के मौके पर ये लोग भंडारा और अन्य कार्यक्रम करने वाले थे. लेकिन दबंगों ने टेंट उखाड़ दिए.
पुलिस ने टेंट उखाड़ने में की मदद
इतना ही नहीं स्थानीय पुलिस ने भी टेंट उखाड़ने में मदद की. साथ ही कहा कि कार्यक्रम करना है तो प्रशासन की अनुमति लेकर आओ. दलित परिवार जब अनुमति लेने प्रशासनिक अधिकारियों के पास पहुंचे तो उन्हें यह कहकर लौटा दिया गया कि इस कार्यक्रम के लिए अनुमति की जरूरत ही नहीं है. आखिरकार उन्हें अनुमति नहीं मिली.
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भंडारा करने की नहीं मिली इजाजत
इससे पहले भी जब डॉ. बीआर आंबेडकर की जयंती पर भंडारा करने की कोशिश की गई तो उनका कार्यक्रम रुकवा दिया गया. जिस पार्क में वह कार्यक्रम करना चाहते थे, वहां पर पानी भरवा दिया गया. सोचिए जिस देश में डॉ. आंबेडकर को लेकर सभी बड़े दल राजनीति करते नहीं थकते, कई पार्टियां उन्हीं के नाम पर अपनी राजनीति चला रहे हैं, उस देश में उनके नाम पर कार्यक्रम नहीं हो सकता, क्योंकि कार्यक्रम करने वाले दलित हैं.
ये उस देश की हालत है जहां पर कहा जाता है कि मुगलकालीन युग में हिंदुओं पर बहुत अत्याचार हुए हैं. लेकिन 21वीं सदी के इस भारत में दलितों पर अत्याचार करने वाले भी हिंदू ही हैं.
तीन वर्षों में दलितों के खिलाफ 1,39,045 मामले दर्ज
पूरे देश की बात करें तो साल 2018 से 2020 यानी तीन वर्षों में दलितों के खिलाफ 1,39,045 मामले दर्ज किए गए हैं. सहारनपुर के बसपा सांसद हाजी फजलुर्रमान ने संसद में एक सवाल पूछा था, जिसके बाद यह जानकारी मिली है. डाटा के मुताबिक तीन सालों में यूपी में 36,467, बिहार 20,973, राजस्थान 18,418 और मध्य प्रदेश में 16,952 दलितों पर जुल्म हुए. ये सभी आंकड़े 2018 से 2020 के हैं. 2021 और 2022 के आंकड़े मंत्री ने नहीं दिए.
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राजस्थान में डंगावास में दलितों के ख़िलाफ़ हिंसा (2015), रोहित वेमुला की आत्महत्या (2016), तमिलनाडु में 17 साल की दलित लड़की का गैंगरेप और हत्या (2016), तेज़ म्यूज़िक के चलते सहारनपुर हिंसा (2017), भीमा कोरेगांव (2018) और डॉक्टर पायल तड़वी की आत्महत्या (2019), इन मामलों की पूरे देश में चर्चा हुई लेकिन सिलसिला फिर भी रुका नहीं.
2020 में दलितों के खिलाफ अपराध में बढ़ोतरी
एनसीआरबी ने आंकड़ा जारी करते हुए कहा है कि साल 2020 में दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अपराध में बढ़ोतरी हुई है. लेकिन क्या आप जानते हैं इन दोनों समुदाय के लोगों पर सबसे अधिक उत्पीड़न किन राज्यों में हुए हैं? जहां हाल के दिनों में न्याय के नाम पर 'बुल्डोजर से कार्रवाई' की सबसे अधिक चर्चा हुई थी. यूपी और मध्य प्रदेश.
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2019 में देश में अनुसूचित जातियों (एससी) के खिलाफ किए गए अपराधों के लिए 50,291 मामले दर्ज किए गए थे. जबकि साल 2020 में अपराधों में 9.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली है.
वर्ष 2020 के दौरान एससी के खिलाफ हुए अपराध या अत्याचार में सबसे अधिक हिस्सा 'मामूली रूप से चोट पहुंचाने' का रहा और ऐसे 16,543 (कुल मामलों के 32.9 प्रतिशत) मामले दर्ज किए गए. इसके बाद अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम के तहत 4,273 मामले (8.5 प्रतिशत) जबकि 'आपराधिक धमकी' के 3,788 (7.5 प्रतिशत)) मामले सामने आए. आंकड़ों से पता चलता है कि अन्य 3,372 मामले बलात्कार के लिए, शील भंग करने के इरादे से महिलाओं पर हमले के 3,373, हत्या के 855 और हत्या के प्रयास के 1,119 मामले दर्ज किए गए.
भारत में दलितों की सुरक्षा के लिए अनुसूचित जाति/ जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 मौजूद है. इसके तहत एससी और एसटी वर्ग के सदस्यों के ख़िलाफ़ किए गए अपराधों का निपटारा किया जाता है. फिर क्या वजह है कि दलितों पर होने वाले अत्याचार कम नहीं हो रहे हैं.
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