Allahabad University: 400% फीस बढ़ोतरी के खिलाफ सड़क पर छात्र... शिक्षा होगी दूर की कौड़ी?

Updated : Oct 04, 2022 18:30
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Deepak Singh Svaroci

Allahabad university protest :  इन दिनों देश का प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस पार्टी, लोगों को बीच अपने जनाधार को वापस पाने के लिए भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्त है... जबकि केंद्र की सत्ता पर आसीन राजनीतिक दल बीजेपी गोवा, पंजाब, गुजरात समेत अन्य राज्यों में कांग्रेस मुक्त भारत के सपने को पूरा करने में जुटी है. इन सब के बीच देश के मुद्दे, लोगों के मुद्दे राजनीतिक रूप से अनाथ हो चुके हैं. सवारी अपने सामान की सुरक्षा के लिए अब ख़ुद ही ज़िम्मेदार हैं. छात्र, सीखने की अवस्था में होते हैं, लेकिन इन दिनों सीखना-सिखाना भी काफी महंगा होता जा रहा है. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के छात्र इन दिनों 400 फीसदी फीस बढ़ोतरी के विरोध में सड़क पर आंदोलन कर रहे हैं. लेकिन क्या वजह है कि सरकारें, विपक्ष या प्रमुख मीडिया संस्थान इन ख़बरों को उतनी तवज्जो नहीं दे रहे. इन्हीं तमाम मुद्दों पर है आधारित है हमारा आज का कार्यक्रम 'मसला क्या है?'

फ़ीस बढ़ोतरी से नाराज़ छात्र

फ़ीस बढ़ोतरी से नाराज़ यह छात्र सड़क पर आत्मदाह की कोशिश कर रहा है. सैकड़ों छात्रों से घिरा यह छात्र अपना रोष सरकार और सिस्टम के सामने ला रहा है. लेकिन यह रास्ता कितना ख़तरनाक हो सकता है, एक पिता या भाई होने के नाते इसे आप भी समझ सकते हैं.  शुक्र है कि पुलिस इसे देशद्रोही या आतंकी नहीं बता रही है, बल्कि उसे बचाने की कोशिश कर रही है. इस बात पर यूपी पुलिस की तारीफ तो बनती है. वरना रेलवे भर्ती परीक्षा में अनियमितता का मुद्दा उठाने वाले इसी इलाहाबाद के छात्रों को हॉस्टल में घुसकर जांबाज़ यूपी पुलिस ने किस तरह धोया था, वह तो याद ही होगा.

फीस बढ़ोतरी का मामला कोई नया नहीं है. हाल के दिनों में स्कूल से लेकर IIT और MMBS तक की पढ़ाई महंगी की जा चुकी है. लेकिन बवाल इस तरह सड़कों पर नहीं दिखा. 

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इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के इन छात्रों को पता चल चुका है कि पक्ष-विपक्ष की राजनीति में उनका सामान गायब किया जा रहा है. इसलिए अब अपने सामान की रक्षा के लिए स्वयं ही सड़क पर कूद चुके हैं. वहीं विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. संगीता श्रीवास्तव का कहना है कि यह फीस बढ़ोतरी 112 साल बाद किया गया है. वह भी इस यूनिवर्सिटी के अस्तित्व को बचाने और एक नये आयाम तक ले जाने के लिए.. इसलिए छात्रों को इसे पॉजिटिवली लेना चाहिए.

छात्रों का क्या है तर्क?  

वहीं आंदोलनकारी छात्रों का तर्क है कि बीजेपी सरकार, 112 साल पुराने इलाहाबाद विश्वविद्यालय को भी रेलवे, एयरलाइंस और अन्य सरकारी संस्थानों की तरह निजी हाथों में भेजने की तैयारी कर रही है. इसके साथ ही छात्रों ने यह भी कहा है कि वह फीस बढ़ोतरी का विरोध नहीं कर रहे... लेकिन एक साथ 400 फीसदी, फीस बढ़ोतरी का क्या मतलब है? आगामी सत्र यानी 2022-23 में छात्र छात्राओं को बढ़ी हुई फीस देनी होगी. भारत जैसा देश, जहां की 70 प्रतिशत आबादी निम्न और मध्यमवर्गीय परिवार से है, वो अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए इतनी मोटी रकम कैसे देंगे?

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ऐसा भी नहीं है कि इंजीनियरिंग के छात्रों ने फीस बढ़ोतरी का विरोध ही नहीं किया था. यह वीडियो अक्टूबर 2019 का है. जिसमें जंतर-मंतर पर कई छात्रों ने इसके विरोध में आवाज़ उठाई.. इसके साथ ही दिल्ली के अन्य छात्रों से भी जुड़ने को कहा गया. लेकिन सरकार के कान पर जू तक नहीं रेंगी. अंतत: छात्रों और अभिभावकों ने इसे विधि की नियती मानते हुए स्वीकार कर लिया. यह 900 फीसदी फीस बढ़ोतरी का विरोध कर रहे थे. जिसके बाद मानव संसाधन मंत्रालय ने कहा कि बढ़ोतरी केवल नये प्रवेशों पर लागू होगी और ‘‘जरूरतमंद छात्रों’’ को जरूरी वित्तीय सहायता मुहैया करायी जाएगी. 

कहां बढ़ी फीस?

एक नज़र हाल में बढ़ाए गए फीस बढ़ोतरी पर डालते हैं. IIT बॉम्बे ने MTech-PHD कोर्स के लिए 35% फीस बढ़ा दी है. जबकि दो साल पहले ही ऑल इंडिया इंजीनियरिंग स्टूडेंट काउंसिल ने IIT में M.Tech कोर्सेज की फीस में 900 फीसदी की बढ़ोतरी के फैसले का विरोध किया था. वहीं इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में 400 फीसदी की फीस बढ़ोतरी को लागू किया गया है. हालांकि इसके विरोध में छात्रों का प्रदर्शन जारी है. वहीं दिल्ली यूनिवर्सिटी के सभी कॉलेज में डेवलपमेंट फीस में 50 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है.

जबकि इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कॉम में पत्रकारिता कोर्स की फीस में 100 फीसदी की बढ़ोतरी  की गई है. इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ कई छात्रों ने चिट्ठी लिखकर अपना विरोध दर्ज कराया था.

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जबकि फिल्म और टेलीविजन की पढ़ाई के लिए मशहूर संस्थान सत्यजीत रे फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान ने फिल्म-टेलीविजन कोर्स की फीस में 100% की बढ़ोतरी की है. वहीं फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, पुणे ने प्रत्येक साल 10 प्रतिशत फीस बढ़ोतरी करने का फ़ैसला किया है. 

यहां तक कि प्राइवेट मेडिकल और डेंटल कॉलेज भी 30-35 प्रतिशत फीस बढ़ाने का प्रस्ताव राज्य सरकार को भेज चुके हैं. वो सभी कोरोना महामारी के दौरान हुए नुकसान का हवाला दे रहे हैं. इनकी मांग है कि 2022-23 में नई कोर्स फीस के साथ ही नए छात्रों के दाखिले हों. 

फंडिग में भी कटौती कर रही है केंद्र सरकार?

आपकी जानकारी के लिए बता दूं, सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों को फंडिंग केंद्र सरकार करती है. तो क्या केंद्र सरकार अब विश्वविद्यालयों को देने वाली फंडिग में भी कटौती कर रही है? यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि आरोप है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और जामिया मिल्लिया इस्लामिया को मिलने वाले फंड में कटौती की गई है.

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18 जुलाई 2022 को मॉनसून सत्र के दौरान लोकसभा में केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री सुभाष सरकार ने एक सवाल के जवाब में बताया कि पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 2021-22 में 15 प्रतिशत फंड की कमी की गई है. 

कोरोना ने सिर्फ स्कूल-कॉलेज को ही किया तबाह?

सवाल उठता है कि जिस कोरोना महामारी के नाम पर कॉलेज फी में बढ़ोतरी की जा रही है, क्या उससे पैसे देने वाले लोग यानी कि छात्रों के अभिभावक मां-बाप प्रभावित नहीं हुए? क्या केंद्र सरकार अब यूनिवर्सिटी को फंडिग करने में भी विचारधारा का पूरा ख़्याल रखती है? क्या अब शिक्षा लोगों के लिए बेसिक नहीं लग्जरी हो जाएगा, यानी कि जिनके पास पैसे होंगे वहीं अपने बच्चों को बड़ा बनाने का भविष्य देख सकते हैं.

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