Operation Polo : जब भारतीय सेना ने हैदराबाद निजाम का घमंड किया था चूर | Jharokha 12 September

Updated : Sep 22, 2022 20:25
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Mukesh Kumar Tiwari

भारतीय सेना ने ऑपरेशन पोलो (Operation Polo) को हैदराबाद का विलय (Annexation of Hyderabad) भारत में विलय कराने के लिए शुरू किया था. सितम्बर 1948 में इस ऑपरेशन के जरिए भारत ने हैदराबाद के आखिरी निजाम को सत्ता से हटा दिया था और हैदराबाद को भारत का हिस्सा बना लिया गया. आज हम जानेंगे ऑपरेशन पोलो के पूरे इतिहास (Operation Polo History) को, ये ऑपरेशन कैसे शुरू किया (How Operation Polo Started) गया, कैसे इसका अंत (How Operation Polo Ends?) हुआ और इसका अंजाम क्या हुआ (What happened after Operation Polo), हम ये सब इस आर्टिकल (All details about Operation Polo) में जानेंगे... 

12 सितंबर को मिली थी ऑपरेशन पोलो को हरी झंडी

आजादी मिले महज 1 बरस गुजरा था... और तारीख थी 12 सितंबर 1948... दिल्ली में कैबिनेट बैठक बुलाई गई थी. वक्त बेहद संजीदा था... एक तरफ कश्मीर में जंग (Indo-Pakistani War of 1947–1948) चल रही थी और दूसरी ओर हैदराबाद में निजाम के तेवर बगावती हो चुके थे... बैठक बुलाने का मकसद ये तय करना था कि 1500 किलोमीटर दूर हैदराबाद का आने वाला कल कैसा होगा? प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (Prime Minister Jawaharlal Nehru), गृह मंत्री वल्लभभाई पटेल (Home Minister Vallabhbhai Patel), रक्षा मंत्री बलदेव सिंह (Defence Minister Baldev Singh) और भारतीय चीफ ऑफ स्टाफ जनरल सर रॉय बुचर (Chief of Staff Sir Roy Bucher), एयर मार्शल एल्महिर्स्ट (Air Marshal Sir Thomas Walker Elmhirst) और जनरल करियप्पा (General M Kariappa) भी इसमें शामिल थे. 

जनरल बुचर ने की थी ऑपरेशन रोकने की कोशिश

फैसले की घड़ी से ऐन पहले स्कॉटलैंड की एडिनबर्ग अकैडमी से पढ़कर आए जनरल बुचर (Chief of Staff Sir Roy Bucher) उठ खड़े हुए और कहा- जेंटलमैन, मैं आपको चेतावनी दे रहा हूं... कश्मीर में पहले ही जंग लड़ी जा रही है और हैदराबाद में कोई भी कार्रवाई भारतीय सेना के लिए एक दूसरा मोर्चा खोल देगी... हम एक साथ दो मोर्चों पर लड़ेंगे. उन्होंने सलाह दी कि इस ऑपरेशन पर आगे न बढ़ा जाए... साथ ही ये भी जोड़ दिया कि अगर मेरी सलाह नहीं मानी गई तो मैं इस्तीफे के लिए तैयार हूं... माहौल में एक पल के लिए खामोशी छा गई... नेहरू इधर उधर देखने लगे. तभी पटेल ने जवाब दिया... आप बेशक इस्तीफा दे डालिए जनरल बुचर... लेकिन पुलिस ऐक्शन कल से शुरू हो जाएगा... 

आज की तारीख का संबंध हैदराबाद में आजाद भारत के बाद की गई उस कार्रवाई से है जिसने निजाम के घमंड को चूर चूर करके उसे घुटनों पर ला दिया... आज झरोखा में हम बात करेंगे ऑपरेशन पोलो की जिसे हरी झंडी आज ही के दिन यानी 12 सितंबर को मिली थी.

दक्कन में मुगलों ने किए थे सुबेदार नियुक्त

इतिहासकार बताते हैं कि दक्कन पर जब मुगलों (Mughals of India) ने कब्जा किया, तब अपना राज कायम करने के लिए सूबेदार नियुक्त किए थे. 18वीं शताब्दी की शुरुआत में मुगल शासक ने मीर कमर-उद-दीन खान सिद्दिकी (Mir Qamar Ud Din Khan Siddiqi) को दक्कन का सूबेदार नियुक्त किया. आसफजाह का खिताब लेकर कमर उद दीन खान सिद्दिकी ने अपना शासन शुरू किया. इसी दौरान जब मुगल शासक औरंगजेब की मौत (Aurangzeb Death) हुई तब से मुगल सल्तनत कमजोर पड़ने लगी. इसी का फायदा उठाते हुए मीर कमर-उद-दीन खान सिद्दीकी ने दक्कन के बड़े हिस्से को अपना घोषित कर लिया. इस तरह से और एक स्वतंत्र रियासत अस्तित्व में आया और यहीं से आसफजाही राजवंश (Asaf Jahi Dynasty) की शुरुआत हुई.

आसफजाही निजामों ने दिया था अंग्रेजों का साथ

आगे चलकर जब अंग्रेजों ने भारत पर कब्जा करना शुरू किया तब आसफजाही निजामों (Asaf Jahi Nizam) ने कूटनीति के तहत अंग्रेजों का साथ दिया. अंग्रेजी हुकूमत के दौरान भारत के कई राज्यों/इलाकों में सीधे अंग्रेजों का शासन था. हैदराबाद जैसी रियासतों में अंग्रेजों ने स्थानीय राजाओं की मदद से शासन चलाया लेकिन इन रियासतों में से ज्यादातर में तानाशाही व्यवस्था थी. हैदराबाद रियासत में भी निजाम के सिवाय किसी की नहीं चलती थी. 

भारत की सबसे बड़ी रियासत थी हैदराबाद

आजादी के वक्त भारत की सबसे बड़ी देसी रियासत हैदराबाद थी. मौजूदा समय के तेलंगाना का ज्यादातर हिस्सा, कर्नाटक व महाराष्ट्र के बड़े हिस्सों को मिलाकर हैदराबाद रियासत हुआ करती थी. हैदराबाद की रियासत में 3 भाषायी क्षेत्र थे. तेलंगाना के ज्यादातर लोग तेलुगु बोलते थे. महाराष्ट्र का जो हिस्सा हैदराबाद में था वहां मराठी और कर्नाटक में कन्नड़ का वर्चस्व था. राजा को निजाम कहा जाता था. निजाम उस्मान अली खान (H.E.H Mir Osman Ali Khan) हैदराबाद रियासत का सातवां निजाम था और अपने वक्त में दुनिया का सबसे अमीर शख्स भी. एक अनुमान के मुताबिक 40 के दशक में उस्मान अली के पास करीब 250 अरब अमेरिकी डॉलर की संपत्ति थी. हैदराबाद एक संपन्न रियासत थी. निजाम ने आलीशान बंगले, महल बनवाए, सड़कें बिछवाईं, रेल चलवाईं. डाक सेवा शुरू की, कई विश्वस्तरीय शिक्षा संस्थान खोले.

रजाकारों की एक सेना ने लिया भारतीय सेना से मोर्चा

1947 में हैदराबाद के निजाम नवाब मीर उस्मान अली खान (H.E.H Mir Osman Ali Khan) थे. टाइम मैगजीन ने जिसे दुनिया की सबसे अमीर शख्सियत माना था. एक तथ्य ये भी है कि भारतीय सेना ने तब दुनिया के सबसे अमीर राजा से जंग लड़ी. उस्मान अली खान हैदराबाद रियासत को एक स्वतंत्र राष्ट्र बनने का सपना देख रहे थे. उन्होंने अंग्रेजों से इसे डोमिनियन बनाए जाने को कहा था. भारत सरकार ने पहले सल्तनत के साथ बातचीत का रास्ता चुना. लेकिन इस प्रोसेस के बीच ही उठ खड़ा हुआ कासिम रिज़वी के नेतृत्व वाला एक उग्रवादी संगठन को... रजाकारों की एक सेना तैयार हो गई और ये किसी भी कीमत पर भारत से लड़ने को तैयार थे.

हैदराबाद रियासत में हिंदुओं पर हुए कई अत्याचार

रजाकारों ने अपनी सेना में बड़े पैमाने पर भर्ती अभियान चलाया था जिसमें राज्य से बाहर के लोग भी शामिल थे. राजनीतिक हत्याओं का दौर भी शुरू हुआ और हिंदुओं के गांव उजाड़ दिए गए. 1948 की शुरुआत तक रजाकार इतने ताकतवर हो चुके थे कि वह इस सल्तनत पर हमले का जवाब दे सकें. 6 सितंबर को चिल्लाकल्लू गांव के पास एक पुलिस चौकी पर रजाकारों ने गोलीबारी कर दी. पूना हॉर्स की एक स्क्वॉड्रन और 2/5 गोरखा राइफल्स की कंपनी को तफ्तीश के लिए भेजा गया. वे भी हमले की चपेट में आए. जब से संकट शुरू हुआ, रजाकारों ने राज्य के लगभग 70 गांवों पर हमला किया, राज्य के बाहर 150 हमले किए गए, हत्याएं, बलात्कार और लूटपाट की घटनाएं हुईं. निजाम को रजाकारों पर लगाम लगाने की आखिरी चेतावनी दी गई.

निजाम ने UN भेज दिया था डेलिगेशन

निजाम कार्रवाई करने के बजाय ये जोर देते रहे कि हालात सामान्य है और सैनिक सब संभालने में सक्षम हैं. निजाम ने एक डेलीगेशन को कराची के रास्ते यूएन हेडक्वार्टर भी भेज दिया था. इसने उसी पावर पॉलिटिक्स को जन्म दिया जिसने जम्मू-कश्मीर को विवादित बना दिया था. यह निर्णायक कार्रवाई का वक्त था. जनरल ई.एन. गोडार्ड जीओसी-इन-चीफ दक्षिणी कमान ने सैन्य कार्रवाई की पहली रूपरेखा तैयार की. इसमें 1 आर्मर्ड डिविजन के जरिए पूर्व में 250 किलोमीटर दूर विजयवाड़ा, पश्चिम में 300 किलोमीटर दूर सोलापुर से हमले की रणनीति तैयार की.

मेजर जनरल जे.एन चौधरी की कमान में ऑपरेशन

ऑपरेशन पोलो की अंतिम योजना गोडार्ड योजना पर आधारित थी. मेजर जनरल जे.एन.चौधरी (Major General J. N. Chaudhuri) की कमान में भारतीय टास्क फोर्स में चार ऑपरेशनल ग्रुप शामिल थे.

हैदराबाद में भाड़े के सैनिकों रखने की परंपरा थी. इसमें अरब, रोहिल्ला, यूपी के मुसलमान और पठान शामिल थे. सेना में 3 बख्तरबंद रेजिमेंट, एक घुड़सवार रेजिमेंट, 11 पैदल सेना बटालियन और तोपखाने शामिल थे. इसके अलावा भी 22 हजार लोगों की सेना थी. इसके बाद होमगार्ड और रजाकार भी थे. इनकी कमान मेजर जनरल इल इदरूस अन अरब के पास थी. रजाकारों की कुल संख्या 2 लाख थी. सिर्फ 25 फीसदी के पास आधुनिक छोटे हथियार थे और बाकी तलवारों से लैस थे.

कासिम रिजवी ने बनाई रजाकारों की सेना

इतिहासकार इस बात को लेकर भी एकमत नहीं हैं कि खुद उस्मान अली खान ने रजाकारों की सेना बनाई थी या फिर कासिम रिजवी नाम के कट्टरपंथी ने निजाम की कमजोरी का फायदा उठाते हुए एक अलग सेना बनाई थी. कुछ लोगों का यह भी कहना है कि 7वें निजाम को इस बात का अहसास हो गया था कि अंग्रेज जल्द ही देश छोड़कर चले जाएंगे. निजाम का इरादा था कि अंग्रेजों के जाने के बाद वह हैदराबाद को एक स्वतंत्र देश घोषित कर देगा.

निजाम को इस बात का अहसास था कि अंग्रेजों के भारत से चले जाने के बाद जनता हैदराबाद रियासत को भारत में विलीन करने की मांग करेगी क्योंकि रियासत में ज्यादातर हिंदू थे. कुछ लोगों के मुताबिक निजाम ने खुद हैदराबाद रियासत को मुस्लिम राष्ट्र बनाने के मकसद से धर्म परिवर्तन करवाते हुए हिंदुओं को मुस्लिम बनाने के लिए रजाकारों की सेना बनाई. बहरहाल, रजाकारों ने हैदराबाद रियासत में दमनकारी नीति अपनाई और हत्या, लूटपाट, बलात्कार का गंदा और अमानवीय नंगा नाच किया. राज्य की जनता रजाकारों के आतंक से त्रस्त थी.

निजाम ने जिन्ना को भी भेजा था संदेश

इतिहास की किताबों के मुताबिक, भारत की आजादी के समय निजाम ने मोहम्मद अली जिन्ना (Muhammad Ali Jinnah) के पास संदेश भिजवाकर यह जानने की कोशिश की थी कि अगर उसकी सेना और भारतीय सेना के बीच युद्ध हुआ तो क्या पाकिस्तान उसका साथ देगा? इतना ही नहीं, निजाम ने भारतीय सेना से जंग के लिए कुछ यूरोपीय देशों से हथियार खरीदने की कोशिश भी की. निजाम चाहता था कि हैदराबाद रियासत आजाद मुल्क बने, जबकि ज्यादातर जनता पूरी रियासत को भारत में शामिल करवाने के लिए आंदोलन कर रही थी.

क्यों रखा गया ऑपरेशन पोलो नाम?

सैनिय कार्रवाई को पूरी तरह सीक्रेट रखा गया. सैन्य ऑपरेशन को ऑपरेशन पोलो का नाम दिया गया. ऐसा इसलिए क्योंकि तब हैदराबाद शहर में सबसे ज्यादा 17 पोलो मैदान हुआ करते थे. ऑपरेशन पोलो के तहत मेजर जनरल जे एन चौधरी के नेतृत्व में भारतीय सैनिकों ने हैदराबाद रियासत में प्रवेश किया.

13 सितंबर 1948 को शुरू हुआ ऑपरेशन पोलो

13 सितंबर 1948 को हैदराबाद रियासत में निजाम और उसके रजाकारों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई शुरू हुई. रजाकार ज्यादा समय तक भारतीय सेना के सामने टिक नहीं सके. 100 घंटे के भीतर ही निजाम और रजाकारों ने हार मान ली. यु्द्ध में बचे रजाकारों ने भारतीय सेना के सामने सरेंडर कर दिया. 17 सितंबर को निजाम ने रेडियो पर अपनी हार का ऐलान किया. रजाकारों के मुखिया कासिम रिजवी को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

इस ऑपरेशन में भारतीय सेना के 66 जवान वीरगति को प्राप्त हुए जबकि 97 जख्मी हुई. हैदराबाद स्टेट फोर्स के 490 जवान मारे गए और 122 घायल हुए. रजाकारों को और भी ज्यादा नुकसान हुआ.
 
गौर करने वाली बात ये भी है कि पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के निधन के दो दिन बाद ऑपरेशन पोलो शुरू हुआ था. कहा जाता है कि एक खास रणनीति के तहत भारतीय सैन्य कार्रवाई जिन्ना के निधन के 2 दिन बात शुरू की गई थी और सरदार पटेल ने ऑपरेशन पोलो को कामयाब करने के लिए कई सारी बातों को गुप्त रखा. इस बात से कोई इनकार नहीं करता कि सरदार पटेल के साहसिक फैसले और शानदार रणनीति की वजह से हैदराबाद रियासत की जनता को एक क्रूर शासक और उसकी अत्याचारी सेना से मुक्ति मिल गई. 17 सितंबर 1948 को हैदराबाद रियासत का भी भारत में विलय हो गया.

चलते चलते आज की दूसरी अहम घटनाओं पर भी एक नजर डाल लेते हैं

1398 - तैमूर लंग (Taimur Lang) सिंधु नदी के तट पर पहुंचा
1873 - पहला टाइपराइटर (First Typewriter) ग्राहकों को बेचा गया
1928 - फ्लोरिडा (Florida) में भीषण तूफान से 6000 लोगों की मौत
1912 - फिरोज गांधी (Feroze Gandhi) का निधन हुआ

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