Biography of Max Muller: भारतीय ग्रंथो मे क्यों थी मैक्स मूलर की दिलचस्पी? INSIDE STORY | Jharokha 28 Oct

Updated : Nov 06, 2022 20:03
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Mukesh Kumar Tiwari

Biography of Max Muller : मैक्स मूलर (Max Müller) वह विद्वान थे जिन्होंने भारतीय ग्रंथों से दुनिया को पहली बार परिचित कराया. वह संस्कृत के विद्वान भी थे. 28 अक्टूबर 1900 को मैक्स मूलर ने दुनिया को अलविदा कह दिया था. आज हम जानेंगे मैक्स मूलर के ऐसे कार्यों को जो उन्होंने भारतीय ग्रंथों को लेकर किए और साथ ही समझेंगे कि कहीं इसके पीछे मैक्स मूलर और ब्रिटिश हुकूमत का कोई गुप्त एजेंडा तो नहीं था!

थॉमस ऐल्वा एडीसन ने मैक्स मूलर की आवाज रिकॉर्ड की

इलेक्ट्रिक लाइट और मोशन पिक्चर कैमरा (Motion Picture Camera) जैसे गैजेट्स का आविष्कार करने वाले थॉमस ऐल्वा एडीसन (Thomas Alva Edison) अपने वक्त में एक लीजेंड बन चुके थे. 19वीं शताब्दी में उन्होंने ग्रामोफोन (Gramophone) मशीन का आविष्कार किया, जो मानव आवाज को रिकॉर्ड कर सकता है. जब उन्होंने इसे बनाया तो पहली बार वह किसी विद्वान की आवाज को रिकॉर्ड करना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने चुना इंग्लैंड के प्रोफेसर मैक्स मूलर (Professor Max Müller) को... जो 19वीं सदी की महान शख्सियत थे...

उन्होंने मैक्स मूलर को पत्र लिखा, "मैं आपसे मिलना चाहता हूं और आपकी आवाज रिकॉर्ड करना चाहता हूं. मैं कब आ सकता हूं?" मैक्स मूलर के दिल में एडिसन के लिए गहरा सम्मान था. उन्होंने एक सही समय सुझाया जब यूरोप के ज्यादातर विद्वान भी वहां उपस्थित होंगे.

एडिसन एक जहाज से इंग्लैंड पहुंचे. जे फ्लेचर मौलटन, क्यू.सी (J Fletcher Moulton Q.C) के घर पर एडिसन का परिचय सभी से कराया गया. सभी ने एडिसन की खूब सराहना की. एडिसन के अनुरोध पर मैक्स मूलर स्टेज पर आए और इंस्ट्रूमेंट के सामने बोले.

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इसके बाद, एडिसन अपनी लेबोरेट्री में गए और दोपहर तक डिस्क के साथ वापस आए. उन्होंने अपने इंस्ट्रूमेंट से ग्रामोफोन डिस्क बजाया. इंस्ट्रूमेंट से मैक्स मूलर की आवाज सुनकर सभी रोमांचित हो गए. वे इस बात से खुश थे कि मैक्समूलर जैसे महान लोगों की आवाज आने वाली पीढ़ी को सुनाने के लिए सहेजी जा सकती हैं.

ग्रामोफोन पर रिकॉर्ड हुआ पहला शब्द संस्कृत का था

थॉमस अल्वा एडिसन का अभिनंदन तालियों से किया गया... इसके बाद मैक्स मूलर मंच पर आए और स्कॉलर्स से पूछा- आप सभी ने सुबह मेरी ऑरिजिनल आवाज को सुना लेकिन क्या आप बता सकते हैं कि आपने क्या सुना?

अब सब खामोश थे क्योंकि वे उस भाषा को नहीं समझ पा रहे थे जिसमें मैक्स मूलर ने बात की थी. उनके लिए यह भाषा 'यूनानी और लैटिन' (Greek and Latin Language) जैसी थी लेकिन अगर यह वह भी होती, तो वे निश्चित रूप से समझ जाते क्योंकि वे यूरोप के अलग अलग हिस्सों से आए थे. यह एक ऐसी भाषा में थी जिसे यूरोपीय विद्वानों (European Scholars) ने कभी नहीं सुना था.

मैक्स मूलर ने तब समझाया कि उन्होंने क्या कहा था. उन्होंने कहा कि उन्होंने जो भाषा बोली वह संस्कृत थी और यह ऋग्वेद का पहला श्लोक था, जिसे अग्निमीले पुरोहितं कहते हैं, और यह पूरा श्लोक था- ॐ अग्निमीले पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्। होतारं रत्नधातमम्. (Agni - Om Agnim-Iille Purohitam Yajnyasya Devam-Rtvijam | Hotaaram Ratna-Dhaatamam ) ग्रामोफोन प्लेट पर यह पहला रिकॉर्ड किया गया सार्वजनिक वर्शन था.

मैक्स मूलर ने इसे ही क्यों चुना? इसका उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि वेद मानव जाति का सबसे पुराना ग्रंथ हैं और अग्निमे पुरोहितम ऋग्वेद (Rigveda) का पहला श्लोक है. सबसे प्राचीन समय में जब यूरोप के लोग चिंपैंजी की तरह पेड़ से पेड़ और शाखा पर कूद रहे थे, जब वे अपने शरीर को ढंकना नहीं जानते थे,खेती नहीं जानते थे और शिकार करके गुफाओं में रहते थे, उस सुदूर अतीत में, भारतीयों ने उच्च सभ्यता विकसित कर ली थी और वेदों को गढ़ लिया था...

आज मैक्समूलर का जिक्र इसलिए क्योंकि आज ही के दिन 28 अक्टूबर 1900 को मैक्स मूलर ने दुनिया को अलविदा कह दिया था... मैक्स मूलर से जुड़ी कई बातें हैं जिनकी आज भी चर्चा होती है लेकिन सत्य ये भी है कि इसी शख्स ने पश्चिम को पहली बार भारतीय ग्रंथों से परिचित कराया था.

6 दिसंबर 1823 को हुआ था मैक्स मूलर का जन्म

फ्रेडरिक मैक्स मूलर (Friedrich Max Müller) का जन्म 6 दिसंबर 1823 को हुआ था और उनका निधन हुआ 28 अक्टूबर 1900 को... वह एक जर्मनवासी (German) थे और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) के कर्मचारी.. उनका संबंध कई यूरोपीय और एशियाई संस्थाओं से था.

वह संस्कृत में बहुत योग्य थे. उन्होंने संस्कृत में जबर्दस्त योगदान दिया, पढ़ाई की लेकिन 1860 के चुनाव में संस्कृत के बोडेन प्रोफेसर पद के चुनाव में वह हार गए थे. उनके मुताबिक इसकी वजह उनका जर्मनी से होना और भारत के व्यावहारिक प्रत्यक्ष ज्ञान की कमी थी. ऑक्सफ़ोर्ड में Comparative Philology position खास तौर से उनके लिए बनाया गया था. वह अपनी मृत्यु तक इस पद पर रहे.

उन्होंने उपनिषदों का अनुवाद किया, और फ्रांज बोप की गाइडेंस में संस्कृत भाषा पर रिसर्च किया. बोप इंडो-यूरोपीय भाषाओं (Indo European Language) के पहले सिस्टमैटिक स्कॉलर थे.

मूलर ने हितोपदेश नामक भारतीय दंतकथाओं के संग्रह का अनुवाद और प्रकाशन किया. उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के संग्रह में पाई गई इंग्लैंड में उपलब्ध पांडुलिपियों का इस्तेमाल करके संस्कृत में पूरा ऋग्वेद प्रकाशित किया. 

मैक्स मूलर ने प्राचीन ग्रंथों का हिंदी में अनुवाद किया

मूलर ने कुछ सबसे प्राचीन और सम्मानित धार्मिक ग्रंथों का संपादन करके उनका अंग्रेजी में अनुवाद किया. खास कर उन्होंने संस्कृत में लिखे गए ऋग्वेद, ऋग-वेद-संहिता को अंग्रेजी में ट्रांसलेट कर दुनिया तक पहुंचाया. उनका महतवपूर्ण कार्य 'सैक्रेड बुक्स ऑफ द ईस्ट' (पूर्व के धार्मिक-पवित्र-ग्रंथ) और सैक्रेड बुक्स ऑफ़ द बुद्धिष्ट का संपादन था. मैक्स मूलर ने 'भारतीय दर्शन' पर भी कुछ रचनाएं की थीं. अपने आखिरी दिनों में वह बौद्ध दर्शन में अधिक रुचि रखने रखने थे.

हालांकि मूलर के व्यक्तित्व का दूसरा पक्ष भी है. और यह पक्ष उन्हें विवादित बना देता है. मूलर मानते थे कि ईसाई धर्म के विचारों को हिंदू धर्म में सुधार के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए. मूलर भारत में ईसाई धर्म लाने के लिए उत्सुक थे. उनके मार्गदर्शन में, ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत में शिक्षा सुधारों के लिए एक बड़ी राशि दी.
 
मैक्स मूलर ने ऋग्वेद का ट्रांसलेशन किया जिससे पश्चिम जगत भारतीय इतिहास के बारे में जान सका. हालांकि कई लोग कहते हैं कि मैक्स मूलर ने भ्रमित करने का काम भी साथ साथ किया. 

जैसे- भारतीय संस्कृति की शुरुआत 1500 ईसा पूर्व बताना और आर्यों को भारत से बाहर का कहना.

मैक्स मूलर का पत्नी को लिखा पत्र हुआ था सार्वजनिक

मृत्यु से पहले मैक्स मूलर ने अपनी पत्नी को पत्र लिखा था. पत्र में मैक्स मूलर ने लिखा था कि वह भारतीय दर्शन की ऐतिहासिकता को प्रभावित करने में सफल रहा है. उसका मूल उद्देश्य भारतीय संस्कृति को कमजोर करना था. इस बात का जिक्र मैक्स मूलर द्वारा मृत्यु पूर्व पत्नी को लिखे गए पत्र में डाईंग डिक्लेरेशन जैसा है और यह पत्र छापे भी गए. इस बात की पुष्टि आर्कियोलॉजिस्ट और प्रोफेसर बी बी लाल ने भी की है.

मूलर के पत्र से पता चला कि उन्हें खास तौर से ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसीलिए नौकरी पर रखा था. नौकरी पर रखे जाने से पहले वह गरीबी में जीवन जी रहे थे... 

1832 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में संस्कृत की चेयर शुरू की गई थी. इसमें मैक्समूलर को संस्कृत ग्रन्थों खास तौर पर वेदों के अनुवाद का काम सौंपा गया. जब यह खबर महर्षि दयानंद तक पहुंची तो उन्होंने इसका विरोध करते हुए लिखा- “यस्मिन् देशे द्रुमो नास्ति तत्रैरण्डोऽपि द्रुमायते” यानी जिन देशों में विशाल वृक्ष नहीं होते, वहां के लोग अरंड (Castor) की झाड़ियों को ही पेड़ समझते हैं.

तब के महान क्रांतिकारी और वकील श्यामजी कृष्ण वर्मा ने भी इसका विरोध किया था. विरोध का कोई नतीजा नहीं हुआ. वेदों से लेकर मनुस्मृति तक के कई श्लोकों का अनुवाद ब्रिटिश और जर्मन लोगों ने किया.

मैक्स मूलर ने जिस वजह से भारतीय सामाजिक एवं सभ्यता व उसके सांस्कृतिक विकास की टाइम लाइन 1500 ईसा पूर्व तय की... आखिर ऐसा करने के पीछे क्या मकसद था, यह एक बड़ा सवाल है.

कहीं वह ब्रिटिश क्राउन की छवि को चमकाना तो चाहते थे . इस मनगढ़ंत बात से कि भारतीय जनता एक असभ्य समाज का समूह है जो कि बाहरी लुटेरे-लड़ाकू आर्यों के द्वारा भारत की मूल नस्ल को दबाकर स्वयंभू रूप से स्थापित हो गए.

कहीं, वह वह वेदों को जानकर इसका मूल ज्ञान अंग्रेजों तक पहुंचाने के लिए ही ईस्ट इंडिया कंपनी में नियुक्त किए गए थे.

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कॉलोनियन काल में जब भारत ब्रिटेन का उपनिवेश था, भारतीय प्रचीन इतिहास पर चर्चा तो हुई लेकिन इतिहास को ईसा से मात्र 1500 वर्ष पूर्व तक सीमित कर दिया गया, यह बात संदेह पैदा करती है. 

4 फरवरी 1875 को अरगिल के राजा को लिखे पत्र में मैक्स मूलर ने कहा- मेरे विचार से बाइबल में वर्णित जीवन की उत्पत्ति ही वास्तविक इतिहास है. 

इसके बाद मैक्स मुलर ने एक और बात लिखी - भारत को सभ्य बनाने के जिस गौरवशाली काम को करने,भारत के पहले विजेता और स्वामी, आर्य आये थे, अब उसी काम को पूरा करने के लिए भारतीयों के भाई के रूप में उसी आर्य मूल के वंशज अंग्रेज आये हैं.

हम आपको छोड़े जाते हैं मैक्समूलर के दोनों पक्षों के साथ... आप हमें बताइए कि आप मैक्स मूलर के बारे में क्या राय रखते हैं? कॉमेंट बॉक्स में अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें... मिलता हूं अगली बार एक नए शो में, नया किस्सा लेकर

चलते चलते 28 अक्टूबर की दूसरी घटनाओं पर एक नजर डाल लेते हैं

1420 – बीजिंग को आधिकारिक तौर पर मिंग राजवंश की राजधानी बनाया गया.

1492 – क्रिस्टोफर कोलंबस ने क्यूबा की धरती पर कदम रखा. 

1922 – बेनिटो मुसोलिनी के नेतृत्व में फासिवादियों ने रोम पर कब्जा किया.

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