Understanding What Cancer Is - History, Reason and Science : कैंसर एक जानलेवा बीमारी है. आज कैंसर दुनिया भर में मौतों की एक प्रमुख वजह है. 2020 में लगभग 1 करोड़ मौतें कैंसर से ही हुईं यानी हर 6 में से एक मौत कैंसर पेशेंट की थी. कैंसर जागरुकता दिवस के अवसर पर आइए जानते हैं इस बीमारी के बारे में वो बातें जो ज्यादातर लोग नहीं जानते हैं.
साढ़े 7 करोड़ वर्ष पहले, सेंट्रोसॉरस एपर्टस (Centrosaurus Apparatus) प्रजाति का एक डायनासोर बेहद मुश्किल से चल पाया और लड़खड़ाकर गिर गया. बेतहाशा दर्द की वजह से झुंड के कई दूसरे डायनासोर (Dinosaur) मर गए और फिर बाढ़ में बह गए. जिस बीमारी से ये डायनासोर पीड़ित थे वह थी ओस्टियोसारकोमा यानी हड्डी का कैंसर (Osteosarcoma or Bone Cancer). ये अडवांस स्टेज पर आ चुका था.
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द लैंसेट ऑन्कोलॉजी (The Lancet Oncology) की रिपोर्ट में यह बताया गया. इससे एक बात साफ हो जाती है कि कैंसर कोई मॉडर्न दौर की बीमारी नहीं है. कैंसर से जुड़े और भी कई सवाल हैं जो हमारे दिलो दिमाग में तैरते रहते हैं. आइए आज हम ऐसे ही सवालों के जवाब तलाशते हैं झरोखा के इस खास एपिसोड में... आज यानी 7 नवंबर को ही कैंसर जागरुकता दिवस (Cancer Awareness Day) है.
इतिहास दिलचस्प है, और मेडिकल हिस्ट्री खासतौर से.. क्या आपने कभी सोचा है कि पहली बार कैंसर की खोज कब हुई थी? यह एक मॉडर्न हेल्थ प्रॉब्लम (Modern Cancer Problem) लग सकती है, लेकिन लोगों को हजारों सालों से कैंसर हो रहा है. आज हम इसे इसलिए जानते हैं क्योंकि प्राचीन इतिहास में लोगों ने कैंसर के बारे में लिखा था.
ज्यादातर लोग हिप्पोक्रेट्स (Greek physician Hippocrates) को पहला शख्स मानते हैं जिसने कैंसर शब्द का इस्तेमाल किया था. हालांकि हिप्पोक्रेट्स ने सही मायने में इस शब्द का इस्तेमाल नहीं किया था, बल्कि उसके शब्द इससे मिलते जुलते थे. हिप्पोक्रेट्स ने ट्यूमर के बारे में लिखते समय ग्रीक शब्द कार्सिनोस और कार्सिनोमा (Carcino and Carcinoma) का इस्तेमाल किया था. ये शब्द ग्रीक शब्द "क्रैब" यानि केकड़े से संबंधित थे. हिप्पोक्रेट्स को मनुष्यों के ट्यूमर देखकर केकड़े का अभास हुआ और उसने इसी के आधार पर इस बीमारी का नामकरण भी कर दिया.
रोमन फिजिशियन सेल्सस (Roman Physician Celsus) "कैंसर" में शब्द को ट्रांसलेट करने वाले पहले शख्स थे.
हालांकि इन फिजिशियन ने सबसे पहले इस बीमारी का नाम रखा था, लेकिन बीमारी का नाम रखने से पहले यह बीमारी लंबे वक्त से अस्तित्व में थी.
1500 ईसा पूर्व: कैंसर पर दुनिया का सबसे पुराना डॉक्युमेंटेड केस प्राचीन मिस्र के कागजों (पेपिरस) में पाया गया था. इसमें स्तन में पाए जाने वाले ट्यूमर के बारे में बताया गया था. "फायर ड्रिल" नाम के एक गर्म इंस्ट्रूयमेंट से इस ट्यूमर को नष्ट किया गया था. आज, हम इसे "cauterization" कहते हैं. कुछ लेखों से पता चला है कि प्राचीन मिस्रवासी कैंसर (घातक) और गैर-कैंसर ट्यूमर के बीच अंतर कर सकते थे. उदाहरण के लिए, सतह के ट्यूमर को सर्जरी से निकाला गया था.
460 ईसा पूर्व: प्राचीन ग्रीस में, हिप्पोक्रेट्स ने सोचा था कि शरीर में चार तरल पदार्थ होते हैं: रक्त, कफ, पीला पित्त और काला पित्त. उन्होंने कहा कि शरीर के एक हिस्से में बहुत अधिक काला पित्त होने से कैंसर होता है. अगले 1,400 वर्षों तक लोग मानते रहे कि कैंसर तब होता है जब शरीर में ज्यादा काला पित्त जमा हो जाता है.
1628: विलियम हार्वे नाम के एक डॉक्टर ने शरीर को अंदर से जानने के लिए शव परीक्षण करने शुरू कर दिए. इसने वैज्ञानिकों को यह पता लगाने में भी मदद की कि हर अंग क्या करता है. उदाहरण के लिए, जब ब्लड सर्कुलेशन की खोज की गई, तो इसने अलग अलग बीमारियों पर रिसर्च करने के रास्ते खोल दिए.
ये तो हुई कैंसर के बारे में गुजरे दौर की जानकारी लेकिन आखिर कैंसर होता कैसे है, अब ये भी जान लेते हैं
हमारा शरीर खरबों कोशिकाओं से बना है जो मिलकर टिशू और ऑर्गन को बनाती हैं. हर कोशिका के न्यूक्लियस के अंदर के जीन यह बताते हैं कि उन्हें कब बढ़ना है, काम करना है, विभाजित होना है और मरना है. जब हमारी उंगलियां बनती हैं तो इसके लिए दो उंगलियों को शरीर से अलग करने के लिए कई कोशिकाएं मरती हैं.
आम तौर पर, हमारी कोशिकाएं जीन के निर्देशों का पालन करती हैं और हम स्वस्थ रहते हैं. लेकिन जब हमारे डीएनए में कोई बदलाव होता है या इसे नुकसान होता है, एक जीन बदल सकता है. ये जीन ठीक से काम नहीं करते क्योंकि उनके डीएनए में कई तरह के निर्देश हो जाते हैं. यह उन कोशिकाओं के बनने का कारण बन सकता है जिन्हें विभाजित होने और नियंत्रण से बाहर होने के लिए आराम करना चाहिए और इसी से कैंसर हो सकता है.
हर इंसान का शरीर कोशिका के बनने से ही होता है. नर के शुक्राणु और मादा के अंडाणु (Male Sperm and Female Egg) मिलते हैं तो एक गेंद जैसी कोशिका बनती है. इसी के बार बार बंटवारे से हमारे शरीर का विकास होता है. कैंसर वो बीमारी है जो तब होती है जब कोई कोशिका असामान्य तरीके से बढ़ने लगती है. आमतौर पर शरीर की कोशिकाएं नियंत्रित होकर ही बढ़ती हैं और बंटती भी हैं.
सामान्य कोशिकाएं नुकसान पहुंचने पर या पुराने होने पर मर जाती हैं. लेकिन जब कोशिकाएं अनियंत्रित तरीके से बढ़ती हैं तो ही कैंसर की अवस्था पैदा होती है. कैंसर की हालत में कोशिका के विकास को नियंत्रित करने वाले संकेत ठीक से काम नहीं करते हैं. कैंसर की कोशिकाएं बढ़ती तो हैं लेकर जब उन्हें रुकना चाहिए तो भी कई गुना बढ़ जाती हैं. इसे ऐसे समझें कि कैंसर वाली कोशिकाएं स्वस्थ कोशिकाओं के नियम का पालन नहीं करती हैं. कैंसर असल में कोशिकाओं के विभाजन की प्रक्रिया का बेकाबू हो जाना है.
ये ऐसे ही है जैसे एक बीज से कोई पौधा उगता है... पौधा फिर वृक्ष बनता है... उसकी टहनियां निकलती हैं. कैंसर की शुरुआत भी कोशिका में आए बदलाव के बाद ऐसे ही होती है. जब कोशिकाओं का बंटवारा तेज़ी से बेक़ाबू होने लगता है, तो कैंसर का पौधा, पेड़ में तब्दील हो जाता है, जिसकी कई शाखाएं हो जाती हैं.
1838 में, जोहान्स मुलर (Johannes Muller) के नाम से जाने जाने वाले रोगविज्ञानी ने बताया कि कैंसर कोशिकाएं ही कैंसर बनाती हैं. इससे पहले यह माना जाता था कि कैंसर लिंफ से बना होता है. लिंफ कोशिकाओं के चारों ओर द्रव की एक पतली परत होती है, ऊतक द्रव (Tissue fluid) कहते हैं.
कैंसर का पता लोगों को अक्सर तब चल पाता है जब बीमारी कंट्रोल से बाहर हो चुकी होती है. ये स्टेज 3 या 4 होती है. लेकिन अगर जरा जरा सी बातों को ध्यान में रखा जाए तो कैंसर पेशेंट के शरीर के बदलावों को आसानी से जाना जा सकता है.
बिना किसी वजह के अगर शरीर का वजन तेजी से कम होने लगे तो यह कैंसर के शुरुआती संकेतों में से एक हो सकता है. pancreas, Stomach, Lung cancer की स्थिति में पेशेंट का वजन तेजी से कम होता है. हालांकि दूसरे कैंसर पीड़ित पेशेंट का वजन भी तेजी से कम हो सकता है.
Healthsite.com के मुताबिक, सारा दिन थकान महसूस होना भी कैंसर के अहम संकेतों में से एक हो सकता है. Leukemia, Colon cancer की स्थिति में ऐसा होता है.
स्किन में किसी भी तरह की गांठ या लम्प नजर आए, तो ये भी कैंसर का संकेत हो सकता है. ब्रेस्ट कैंसर, लिम्फ नोड्स अंडकोष के कैंसर में आमतौर पर गांठें बन जाती है.
अगर त्वचा का रंग बदलकर पीला, काला या लाल हो रहा है, तो ये भी कैंसर का लक्षण हो सकता है. साथ ही, शरीर के तिल, मस्से का रंग बदल जाए या साइज बदल जाए तो इसे नजरअंदाज न करें.
Bone Cancers Or Testicular Cancer होने पर तेज दर्द होता है. पीठ दर्द कोलोरेक्टल (colorectal), pancreatic या ovarian cancer के संकेत होते हैं.
कब्ज, दस्त, मल में खून आना कोलोरेक्टल कैंसर के संकेत हो सकते हैं. पेशाब करते समय दर्द के साथ खून आना bladder cancer और prostate cancer के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं.
Swelling in lymph nodes, हां अगर तीन से चार हफ्ते तक ग्रंथियों में सूजन (Swollen glands) बने रहे तो सजग हो जाएं. लिम्फ नोड्स के साइज में बढ़ोतरी भी कैंसर का संकेत हो सकती है.
एनीमिया होने पर लाल रक्त कोशिका में कमी आ जाती है. यह हेमटोलॉजिकल कैंसर का संकेत (haematological cancers) हो सकता है.
कैंसर के इलाज में कीमोथेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है. जर्मन केमिस्ट पॉल एर्लिच (Paul Ehrlich) ने 1900 के दशक की शुरुआत में संक्रामक रोगों के इलाज के लिए दवाओं के साथ काम करना शुरू किया था. उन्होंने बीमारी के इलाज के लिए केमिकल के इस्तेमाल का उल्लेख करने के लिए "कीमोथेरेपी" शब्द बनाया. हालांकि, वह कैंसर के इलाज के लिए दवा को लेकर बहुत आशावादी नहीं थे.
कीमोथेरेपी देने के अलग अलग तरीके हैं. जैसे एक है ओरल कीमोथेरेपी जिसमें गोलियां या कैप्सूल देना शामिल होता है.
दूसरा है कीमोथेरेपी इंजेक्शन जो कि कीमोथेरेपी का सबसे आसान तरीका है. इसमें पेशेंट्स को इलाज के दौरान कीमोथेरेपी दवा के इंजेक्शन लगाए जाते हैं. इसके जरिए दवा सीधे को उपचार के दौरान कीमोथेरेपी दवाओं के इंजेक्शन लगाए जाते हैं। इस तरह के इंजेक्शन या तो नसों में या कीमो पोर्ट के माध्यम से दिए जाते हैं, जहां दवा सीधे ब्लड सर्कुलेशन में प्रवेश कर जाती है.
जब कैंसर कोशिकाएं तेजी से बढ़ती हैं, तो कीमो दवाओं से इन तेजी से बढ़ने वाली कोशिकाओं को टारगेट करके खत्म किया जाता है. जब एक कीमोथेरेपी दवा दी जाती है, तो वह सिर्फ कैंसर वाली कोशिकाओं को ही नष्ट नहीं करती है बल्कि स्वस्थ कोशिकाओं पर भी हमले करती है. इसी वजह से कुछ साइडइफेक्ट होते हैं.
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इन साइडइफेक्ट्स में थकान, बालों का झड़ना, बुखार, एनीमिया, उल्टी, कब्ज, डायरिया आदि है. स्किन और नाखूनों में भी बदलाव आता है. वजन, रुचि में भी बदलाव होता है. कुछ साइडइफेक्ट तो घंटों में दिखते हैं, जबकि कुछ सालों में आते हैं. लेकिन सच यही है कि आज तक कैंसर को खत्म करने के लिए कीमोथेरेपी सबसे कामयाब इलाज में से एक रहा है. हालांकि इसमें लगातार बदलाव और प्रोग्रेस होता रहा है.