Impact of Demonetization on Indian Economy : 8 नवंबर 2016 के दिन रात 8 बजकर 15 मिनट पर PM Narendra Modi ने देशभर में नोटबंदी लागू कर दी थी. एक झटके में 500 और 1000 रुपये के नोट चलन से बाहर हो गए थे, जो उस वक्त भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ थे. इस फैसले के 6 साल बाद आइए जानते हैं इसके असर को.
क्या आप जानते हैं कि देश में पहली बार नोटबंदी (First Demonetization in India) कब हुई थी? भारतीय मुद्रा इतिहास (Indian Currency History) में कई बार नोटबंदी हुई है और हर बार निशाना बड़े नोट ही रहे हैं. आजादी से पहले हुई नोटबंदी में ढाई रुपये की करेंसी को बंद कर दिया गया था. यह बात साल 1926 की है.
2 रुपये 8 आने यानी ढाई रुपये के इस नोट को साल 1918 में जारी किया गया था. तब कागज की करेंसी को कल्पना से परे माना जाता था क्योंकि जमाना सिक्कों का था. लेकिन ढाई रुपये के नोट ने लोगों को बताया था कि कागज की मुद्रा कैसी होती है?
17 सेंटीमीटर लंबे और 12 सेंटीमीटर चौड़े नोट पर किंग जॉर्ज पंचम (George V) का चित्र बना था. इस नोट को डॉलर के साथ भारतीय करेंसी के आसान विनिमय के लिए जारी किया गया था लेकिन करेंसी का भाव स्थिर न होने की वजह से परेशानी आने लगी थी और फिर इसे हटा लिया गया.
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1949 में 5 हजार और 10 हजार के नोट आए थे, प्रयोग सफल नहीं रहा और ये दोनों नोट वापस लेने पड़े.
भारत में आखिरी बार नोटबंदी 8 नवंबर 2016 (8 November 2016 Demonetization) को हुई, जिसे हमने और आपने होते हुए देखा.
आज हम जानेंगे 8 नवंबर 2016 में हुए नोटबंदी के फैसले को और इसके असर को... हम जानेंगे कि देश ने इस फैसले से क्या पाया और क्या खो दिया...
जब 8 नवंबर 2016 को PM नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने रात 8 बजकर 15 मिनट पर नोटबंदी का ऐलान किया तो मानों सारे देश में भूकंप सा आ गया था. PM मोदी के ऐलान से पहले कुछ लोगों को लगा था कि वह भारत-पाकिस्तान के कड़वे होते रिश्ते के बारे में बोलेंगे या शायद दोनों देशों के बीच युद्ध के बारे में... लेकिन नोटबंदी का ऐलान उन सबसे भयानक साबित हुआ.
रातों रात लोगों की नींदें उड़ गईं. आपाधापी में लोग समझ ही न सके कि उन्हें अपने पास मौजूद नोटों का करना क्या है?
कई लोग ज्वैलर्स के पास दौड़े और उल्टे सीधे दाम में सोना खरीदने लगे. कई लोगों ने निवेश के लिए दूसरे रास्ते अपनाए... अगले दिन से Bank और ATM लोगों के स्थायी पते बन गए. लाइनें भारत की आबादी का चेहरा बन गईं. सरकार भी कभी लोगों को राहत देने के लिए व कभी काला धन (Black Money) जमा करने वालों के लिए नए नए कानून बनाती दिखी.
कभी Bank व ATM से पैसे निकलवाने की सीमा घटाना व बढ़ाना व कभी पुराने रुपयों को जमा करवाने के बारे में नियम में सख्ती करना या ढील देना.
कभी पीएम और उनकी टीम लोगों को इस नोटबंदी के फायदे (Advantages of Demonetization in India) गिनाने में लगे रहे और कभी 50 दिन का समय वक्त मांगते नजर आए. लोगों के अंदर भी बहुत भाई-चारा दिखाई दिया. अमीर दोस्तों के काम उनके गरीब दोस्त आए. अमीर रिश्तेदारों को अपनी गरीब रिश्तेदारों के महत्व का एहसास होने लगा. अमीर बेटे की गरीब मां का बैंक अकाउंट भी सालों बाद जिंदा हो उठा.
नोटबंदी यानी डिमोनेटाइजेशन का एक सच ये भी है कि नक्सलियों और हवाला कारोबारियों (Naxalites and Hawala Operators) में भी अफरा-तफरी मच गई. हालांकि जनसामान्य की कठिनाई को देखकर कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) ने सख्त लहजे में कहा कि सरकार का यह फैसला बिना सोचा समझा है.
नोट बदलने को लेकर सरकार की ओर से हर रोज कुछ न कुछ बदले जा रहे नियम पर भी कोर्ट ने फटकार लगाई और कहा कि इससे साबित होता है कि सरकार ने बिना होमवर्क किए ये बड़ा फैसला सहज तरीके से कर दिया लेकिन हाई कोर्ट भी सरकार के फैसले को बदल नहीं सकता, बैंक कर्मचारियों की प्रतिबद्धता होनी चाहिए.
आतंकवाद पर प्रभाव (Impact on Terrorism)- डिमोनेटाइजेशन से आतंकवाद एक आर्थिक आतंकवाद के साए में आ गया. उसका पोषण करने वाले हवाला कारोबारियों की कमर टूट गई. सबसे ज्यादा नुकसान हवाला कारोबारियों को हुआ. वे ही आतंकवादियों, हथियारों के अवैध कारोबारियों, नशीली दवाओं के तस्करों, सट्टेबाजों, नकली नोटों के बैंक थे.
यही हाल नक्सलियों का हुआ. पूर्वोत्तर भारत में उन्होंने स्थानीय लोगों से जोर जबर्दस्ती करके अपने बड़े नोट बदलने की कोशिश तो की लेकिन उन्हें कम से कम 30 फीसदी धनराशि का बलिदान देना ही पड़ा.
भ्रष्टाचार पर लगाम (Action on Corruption)- भ्रष्टाचारियों में एक संदेश गया कि भ्रष्टाचार में लिप्त होकर धन संचित करना व्यर्थ है. नोट बदलने की कतार में देखा गया कि उसमें 5 से 10 फीसदी पुलिस के लोग और दूसरे सरकारी कर्मचारी थे.
डिमोनेटाइजेशन को डिजिटल पेमेंट (Digital Payment Growth) प्रमोट करने के लिए एक पॉलिसी बूस्टर के तौर पर पेश किया गया था लेकिन जमीन पर इसका जो असर हुआ वह बहुत अलग था. डिमोनेटाइजेशन को लेकर सबसे बड़ा दावा ये था कि यह सिस्टम में मौजूद नकली करेंसी को हटा देगा और बेहिसाब करेंसी रखने वाले जमाखोरों को मजबूर कर देगा कि वे इसे बैंक में जमा करें.
इसकी घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था कि सरकारी अधिकारियों के बिस्तरों के नीचे रखे करोड़ों नोटों की रिपोर्ट से या बोरियों में नकदी मिलने की सूचना से कौन सा ईमानदार नागरिक दुखी नहीं होगा? विचार तो यह था कि जिनके पास बेहिसाब नकदी थी, उन्हें या तो मजबूरी में टैक्स अथॉरिटीज के सामने इसकी घोषणा करनी होगी या इससे छुटकारा पाना होगा. कई लोगों ने नोटबंदी को भ्रष्टाचार के खिलाफ एक तरह की सर्जिकल स्ट्राइक बताया था.
इस विचार को कुछ अर्थशास्त्रियों ने भी समर्थन दिया, जैसे सौम्य कांति घोष (Saumya Kanti Ghosh) जो भारत के सबसे बड़े बैंक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के मुख्य आर्थिक सलाहकार थे. 14 नवंबर, 2016 को बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार में प्रकाशित एक लेख में घोष ने अनुमान लगाया कि "लगभग ₹4.5 लाख करोड़ (डिमोनेटाइज्ड) पैसा सिस्टम से हट सकता है".
ऐसी उम्मीदें बहुत जल्द बुझ गईं. 2 फरवरी, 2017 को डिमोनेटाइजेशन के बाद अपने बजट भाषण में, तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली (Arun Jaitley) ने पहला संकेत दिया कि इस कदम से बड़े पैमाने पर बेहिसाब नकदी जमा नहीं हुई है.
“नोटबंदी के बाद, लोगों द्वारा पुरानी मुद्रा में जमा किए गए डिपॉजिट से जुड़े आंकड़ों के शुरुआती विश्लेषण ने एक अलग तस्वीर प्रस्तुत की. 8 नवंबर से 30 दिसंबर 2016 की अवधि के दौरान, 5.03 लाख रुपये के औसत जमा के साथ लगभग 1.09 करोड़ खातों में 2 लाख रुपये से 80 लाख रुपये के बीच डिपॉजिट किए गए थे.
कुल जमा राशि 10.38 लाख करोड़ रुपये थी. यह डिमोनेटाइज्ड करेंसी के कुल मूल्य का लगभग दो-तिहाई था. डिमोनेटाइज्ड करेंसी का मूल्य लगभग 15.44 लाख करोड़ था. जब भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India), बैंकों को लौटाई गई डिमोनेटाइज्ड करेंसी (Demonetized Currency) की राशि के बारे में फाइनल आंकड़े लेकर आया, तब तक 99% से ज्यादा था. हालांकि, 1000 रुपये के 8.9 करोड़ नोट (1.3 फीसदी) नहीं लौटे.
हालांकि, पहले यह उम्मीद की जा रही थी कि बैन किये जा रहे नोटों का एक बड़ा हिस्सा बैंको में वापस नहीं आएगा, जो काला धन होगा. लेकिन RBI के आकड़ों के बाद सरकार ने कहा कि ऐसा नहीं माना जा सकता कि जो नोट्स बैंकों में जमा कर दिए गए वो सारे ही पैसे काला धन नहीं है, ऐसा नहीं कहा जा सकता. यानी जो पैसे बैंकों में आ गए उनमें से भी कुछ हिस्सा काला धन हो सकता है.
डिमोनेटाइजेशन को डिजिटल पेमेंट (Digital Payment) के लिए एक सहारे के तौर पर बताया गया. आज कई लोग इस नीति को इसी वजह से सही ठहराते हैं लेकिन सच यही है कि ऑनलाइन या कैश पेमेंट (Online or Cash Payment) को बढ़ावा देने का विचार बाद में आया. जब ये नीति लाई गई तब भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) में नकदी की मात्रा को कम करने की बात ही कही गई थी.
8 नवंबर, 2016 के भाषण में प्रधानमंत्री ने कहा, “सर्कुलेशन में करेंसी आकार सीधे भ्रष्टाचार के स्तर से जुड़ा हुआ है. भ्रष्ट तरीकों से अर्जित की गई नकदी सिस्टम में होने से महंगाई और भी बदतर हो जाती है. इसका खामियाजा गरीबों को भुगतना पड़ता है. इसका सीधा असर गरीबों और मिडिल क्लास की पर्चेजिंग पावर पर पड़ता है.
जमीन या घर खरीदते समय आपने खुद अनुभव किया होगा कि चेक से भुगतान की गई राशि के अलावा बड़ी रकम नकद में मांगी जाती है. इससे ईमानदार व्यक्ति को संपत्ति खरीदने में परेशानी होती है. नकदी के दुरुपयोग से मकान, जमीन, उच्च शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल आदि जैसी वस्तुओं और सेवाओं की लागत में आर्टिफिशियल बढ़ोतरी होती है.
डिमोनेटाइजेशन के बाद से डिजिटल पेमेंट में तेजी से बढ़ोतरी हुई है लेकिन डिमोनेटाइजेशन के बाद क्या भारत एक कैशलेस इकॉनमी (Cashless Economy) बन गया है, ये एक अलग सवाल है. नोटबंदी से एक साल पहले 2015-16 में सर्कुलेशन में करेंसी भारत के नॉमिनल जीडीपी का 12.1% थी. 2016-17 में यह गिरकर 8.7% हो गई.
ऐसा इसलिए क्योंकि बैंकिंग सिस्टम डिमोनेटाइजेशन के बाद सिस्टम में करेंसी वापस लाने के लिए संघर्ष कर रही थी. तब से यह रेशियो लगातार चढ़ता गया और 2019-20 में यह 12% तक पहुंच गया. इस आंकड़े से पता चलता है कि डिमोनेटाइजेशन का कोई महत्वपूर्ण असर नहीं हुआ. नोटबंदी की घोषणा के बाद की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर घटकर 6.1 फीसदी पर आ गई थी. जबकि इसी दौरान साल 2015 में यह 7.9 फीसदी पर थी.
यह संख्या 2020-21 में 14.5% के ऑल टाइम हाई लेवल पर पहुंच गई. लेटेस्ट नंबर कोविड महामारी के दौर का है. 2020-21 में भारत की नॉमिनल जीडीपी में 3% की सालाना कमी देखी गई, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था में नकद-जीडीपी रेशियो को बढ़ा दिया.
कैशलेस इकॉनमी के सवाल की तुलना में इसका जवाब देना ज्यादा मुश्किल है. इसका कारण यह है कि डिमोनेटाइजेशन एकमात्र नीति बदलाव नहीं था जिसने भारत में टैक्स कलेक्शन को प्रभावित किया है. इसके बाद जुलाई 2017 में GST लाई गई.
सितंबर 2019 में, सरकार ने कॉर्पोरेट टैक्स रेट में उल्लेखनीय कमी की घोषणा की, जिससे डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन में भारी गिरावट आई. यहां तक कि जब आर्थिक जानकार कॉर्पोरेट टैक्स (Corporate Tax) कटौती के दूरगामी प्रभावों का इंतजार कर रहे थे, अर्थव्यवस्था महामारी की चपेट में आ गई, जिस वजह से जीडीपी और टैक्स कलेक्शन में गिरावट हुई.
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अर्थव्यवस्था के लिए डिमोनेटाइजेश के दूरगामी फायदे के बारे में एक और बड़ा सवाल इस तथ्य से आता है कि नोटबंदी के बाद के वर्षों में जीडीपी विकास दर में तेजी से गिरावट शुरू हुई. भारत की जीडीपी विकास दर 2011-12 में 5.2% से लगातार बढ़कर 2016-17 में 8.3% हो गई. 2019-20 में GDP 4% होने के साथ साथ अर्थव्यवस्था ने विकास की रफ्तार को खोना शुरू कर दिया.
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के आकड़ों के अनुसार नोटबंदी के बाद 2017 के शुरुआती 4 महीनों में तकरीबन 15 लाख नौकरियां (Employement in India) गईं. रोजगार के मामलों में असंगठित क्षेत्र (Unorganized Sector) पर नोटबंदी का काफी असर पड़ा. नोटबंदी के बाद कुछ महीनों में असंगठित क्षेत्र में लाखों लोगों की नौकरियां जाती रही थी. हालांकि, समय बीतने के साथ नकदी का लेन देन सामान्य हो गया और नौकरियों पर भी इसका सकारात्मक असर पड़ना स्वाभाविक है.
चलते चलते 8 नवंबर को हुई दूसरी बड़ी घटनाओं पर भी एक नजर डाल लेते हैं
भारत में 1950 को पहला भाप इंजन चितरंजन रेल कारखाने (Chittaranjan Locomotive Works - Indian Railway) में बनाया गया
पंजाब (Punjab) से अलग करके 1966 में हरियाणा (Haryana) राज्य का गठन किया गया
सन 1973 में मैसूर (Mysore) का नाम बदलकर कर्नाटक (Karnataka) किया गया
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