Dr BR Ambedkar's Conversion to Buddhism : बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर (Babasaheb Bhimrao Ambedkar) ने 1956 में 14 अक्टूबर के दिन हिंदू धर्म छोड़ दिया था. अपने लाखों समर्थकों के साथ नागपुर में बाबासाहेब अंबेडकर ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ले ली थी. शुरुआत में अंबेडकर ने इस्लाम, ईसाई धर्म को भी समझा था लेकिन इसे स्वीकार नहीं किया. आइए आज जानते हैं 1956 के इसी किस्से को गहराई से..
1935 में नासिक जिले के येओला (Yeola) में दलित वर्ग सम्मेलन में भीमराव अंबेडकर (Bhimrao Ambedkar) ने घोषणा की कि मेरा जन्म एक हिंदू के रूप में हुआ हैं लेकिन मैं एक हिंदू के रूप में मरूंगा नहीं... अंबेडकर के इस ऐलान को करने भर की देर थी... अलग अलग धर्मों के प्रतिनिधि उन्हें लोकलुभावन प्रस्ताव देने लगे.
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हैदराबाद के निज़ाम (Nizam of Hyderabad) तब दुनिया के सबसे अमीर शख्स थे. उन्होंने अंबेडकर को 25 करोड़ रुपये की पेशकश की. शर्त ये रखी कि अंबेडकर को पूरे समाज के साथ इस्लाम कबूल करना होगा... जिन ईसाइयों ने 19वीं शताब्दी की शुरुआत से सैकड़ों-हजारों दलितों को ईसाई बनाया था, वे भी इस मौके को अवसर के तौर पर देखने लगी थीं.
अंबेडकर शुरुआत में सिख बनना चाहते थे लेकिन लेकिन 20 साल बाद 14 अक्टूबर 1956 को डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने अपने 3.65 लाख समर्थकों के साथ हिंदू धर्म छोड़कर अंततोगत्वा बौद्ध धर्म अपनाने का फैसला लिया... नागपुर में हुई इस घटना को इतिहास में धर्म परिवर्तन की सबसे बड़ी घटना के तौर पर याद किया जाता है.
अंबेडकर ने इस मौके पर अपने समर्थकों को 22 प्रतिज्ञाएं भी दिलवाईं... जिनमें सबसे पहली प्रतिज्ञा हिंदू देवताओं की पूजा न करना शामिल था.
बीआर अंबेडकर ने जब हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाया था, उस वक्त का दृश्य कैसा था... इस घटना के चश्मदीद रहे बौद्ध भिक्षु भदांत प्रज्ञानंद ने 2017 में आंखो देखी हाल को बयां किया था. तब वह 90 वर्ष के थे और लखनऊ के रिसलदार पार्क के बौद्ध विहार में भिक्षु थे.
उस ऐतिहासिक क्षण वह 22 साल के थे. प्रज्ञानंद ने बताया था कि पूरे माहौल में जोश भरा हुआ था. अक्टूबर 1956 में नागपुर में दीक्षाभूमि में बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर के आध्यात्मिक बदलाव को देखने के लिए लगभग 5 लाख लोग इकट्ठा हुए थे. तब तक अंबेडकर राजनीति से विदा हो चुके थे.
प्रज्ञानंद ने तब भदंत चंद्रमणि महाथेरो की सहायता की थी जिन्होंने औपचारिक रूप से बाबासाहेब अंबेडकर को बौद्ध धर्म में शामिल किया था. तब वहां अंबेडकर की पत्नी सविता भी मौजूद थीं.
बौद्ध भिक्षु ने कहा कि बाबासाहेब समारोह में पूरी तरह से तल्लीन थे और ऐसा लग रहा था कि उनका बाहरी दुनिया से कोई संबंध नहीं था.
आंबेडकर के ऐसा करने के पीछे उत्पीड़न का वह इतिहास था जिसे वह जन्म के बाद से ही झेलते आए थे. परिवार ने तो इसे जैसे तैसे स्वीकार कर लिया था लेकिन वह इसे स्वीकार नहीं कर सके.
ऐसी ही एक घटना उन्होंने तब झेली जब वह दुनिया को समझ ही रहे थे. तब बाल अंबेडकर के पिता रामजी सकपाल की फौजी सेवा खत्म हो गई थी. रामजी अपनी पत्नी और बालक भीम के साथ महू छोड़कर देश के पश्चिमी समुद्र किनारे पर कोंकण क्षेत्र में दापोली कस्बे में लौट आए. दापोली में ही भीम की प्राथमिक शिक्षा शुरू हुई.
पिता रामजी सैनिक प्रवृत्ति के थे. निष्क्रिय बैठना मुश्किल था, सो मिलिट्री क्वाटर्स सतारा में भर्ती हो गए. परिवार भी सतारा आ गया. सतारा में स्कूली शिक्षा पूरी हुई. इसी वक्त गर्मी की छुट्टियां पड़ीं... भीम अपने बड़े भाई और नन्हें भतीजे के साथ पिताजी से मिलने निकले...
मसूर स्टेशन पर उन्हें लेने पिताजी आने वाले थे लेकिन पिताजी को वक्त पर जानकारी न मिली इसलिए वे आ न सके. किसी तरह स्टेशन मास्टर से कह सुनकर एक बैलगाड़ी किराए पर ली और गोरेगांव की ओर बढ़ गए.
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रास्ते में बैलगाड़ी हांकने वाले ने इनसे पूछताछ की... गाड़ीवाला सवर्ण जाति का था. जैसे ही उसे पता चला कि ये सभी महार जाति के हैं, उसने इन्हें बुरी तरह फटकारा... बैलगाड़ी से बैलों के हटा दिया और पीछे का हिस्सा धम्म से जमीन पर आ गिरा... भीम, भाई और भतीजा धूल में आ गिरे...
दोगुने किराए पर वह सहमत हुआ लेकिन बैलगाड़ी चलानी पड़ी बड़े भाई को... बैलगाड़ी वाला पीछे पीछे चलता रहा... ऐसे अनगिनत किस्से अंबेडकर के बचपन, किशोर और जवानी की अवस्था से जुड़े हुए हैं, जब उन्होंने जातीय व्यवस्था का दंश झेला था.
अब सवाल ये है कि आखिर क्यों अंबेडकर ने बौद्ध धर्म ही अपनाया? इस्लाम या ईसाई धर्म क्यों नहीं? जिसके लिए अरब देशों तक ने लाख कोशिशें की. अंबेडकर ने इसके पीछे जो तर्क किया था वो ये था कि बुद्ध को जो बाकियों से अलग करता है, वह आत्मत्याग है. पूरी बाइबल में, यीशु इस बात पर जोर देते हैं कि वह परमेश्वर के पुत्र हैं और अगर वे लोग जो परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना चाहते हैं और उन्हें परमेश्वर के पुत्र के तौर पर नहीं मानेंगे, वे नाकाम हो जाएंगे.
पैगंबर मोहम्मद के बारे में अंबेडकर ने कहा कि उनका दावा भी यीशु जैसा ही था कि वह परमेश्वर के भेजे दूत हैं. लेकिन उन्होंने जोर इस बात पर भी दिया कि वही अंतिम दूत हैं.
कृष्ण, जीसस और मोहम्मद दोनों से एक कदम आगे निकल गए. उन्होंने सिर्फ परमेश्वर के पुत्र होने या परमेश्वर के दूत होने की बात नहीं कही. उन्होंने खुद को ही परमेश्वर कहा. उनके अनुयायी उन्हें देवाधिदेव, देवताओं के देवता कहते हैं. अंबेडकर ने ये बातें ‘Buddha and Future of His Religion’ शीर्षक से छपे अपने लेख में कही थी.
ये कोलकाता की महाबोधि सोसायटी की मासिक पत्रिका में 1950 में छापा गया था.
अंबेडकर ने आगे कहा कि बुद्ध ने कभी खुद को ऐसी संज्ञा नहीं दी. वह मनुष्य की संतान के रूप में पैदा हुए थे और एक आम आदमी बने रहकर संतुष्ट थे. उन्होंने कभी किसी अलौकिक उत्पत्ति या अलौकिक शक्तियों का दावा नहीं किया और न ही उन्होंने अपनी अलौकिक शक्तियों को साबित करने के लिए चमत्कार किया. बुद्ध ने मार्गदाता और मोक्षदाता के बीच स्पष्ट अंतर किया. जीसस, मोहम्मद और कृष्ण ने अपने लिए मोक्षदाता का दावा किया.
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अंबेडकर चाहते थे कि धर्म परिवर्तन का समारोह या तो बंबई में हो या प्राचीन बौद्ध स्थल सारनाथ में हो. बंबई में अंबेडकर इसे इसलिए कराना चाहते थे इसका प्रचार प्रसार हो. लेकिन फिर उन्होंने इसके लिए नागपुर को चुना तो भारत के मध्य में स्थित था और वहां उनके काफी समर्थक भी थे. 15 अक्टूबर 1956 को अंबेडकर ने धर्म बदल लिया. इस घटना के 6 हफ्ते बाद अचानक अंबेडकर की मृत्यु हो गई. बंबई में उनका अंतिम संस्कार किया गया जहां उनके सिर के नीचे बुद्ध की प्रतिमा रखी गई. शवयात्रा में दस लाख लोगों ने हिस्सा लिया.
1882- मौजूदा पाकिस्तान में यूनिवर्सिटी ऑफ पंजाब (Punjab University) की स्थापना हुई
1884 - 'गदर पार्टी' (Gadar Party) के संस्थापक लाला हरदयाल (Lala Hardayal) का दिल्ली में जन्म हुआ
1964 - मार्टिन लूथर किंग जूनियर (Martin Luther King Jr.) को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया