EWS आरक्षण पर SC की कभी ना भूलने वाली बात, UP में महिलाओं का ये कैसा सम्मान?

Updated : Nov 27, 2022 17:41
|
Deepak Singh Svaroci

EWS reservation explained : जनरल कैटेगरी के लोगों को ग़रीबी के आधार पर 10% आरक्षण मिलना, सही है या ग़लत? पिछले कई महीनों से चल रही इस बहस पर आज विराम लग गया जब सुप्रीम कोर्ट ने EWS के आरक्षण को बरकरार रखने का फैसला सुनाया. यानी कि सामान्य वर्ग के गरीबों को 10% आरक्षण मिलता रहेगा. 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने 3:2 के बहुमत से 2019 का संविधान में 103 वां संशोधन को संवैधानिक और वैध करार दिया है.

जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने इसे सही ठहराया, जबकि चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस रवींद्र भट्ट ने EWS के खिलाफ फैसला सुनाया है. इस फ़ैसले को मोदी सरकार की बड़ी जीत के तौर पर देखा जा रहा है.

10 फ़ीसदी आरक्षण जारी रहेगा

EWS यानी कि आर्थिक रूप  से कमज़ोर लोगों को शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 10 फ़ीसदी आरक्षण जारी रहेगा. सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने इसे वैध मानते हुए ईडब्लूएस कोटे के तहत आरक्षण को बरकरार रखा है. इस मामले को लेकर साढ़े छह दिन तक सुनवाई चली, बाद में 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया. सबसे पहले जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने अपना फ़ैसला पढ़ा. उन्होंने माना कि आर्थिक आधार पर आरक्षण संविधान का उल्लंघन नहीं करता है.

वहीं पीठ में शामिल जस्टिस बेला त्रिवेदी ने इस बदलाव को आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए मदद के तौर पर देखने की बात कही. वहीं जस्टिस पारदीवाला ने दोनों जजों से सहमति दिखाते हुए कहा कि आरक्षण का अंत नहीं है. इसे अनंतकाल तक जारी नहीं रखना चाहिए, वरना यह निजी स्वार्थ में तब्दील हो जाएगा. आरक्षण सामाजिक और आर्थिक असमानता को खत्म करने के लिए है.

EWS Reservation: जारी रहेगा EWS आरक्षण, SC ने लगाई मुहर...3 जजों ने पक्ष में तो 2 ने विरोध में क्या कहा?

समाज में बंटवारे से प्रगति संभव नहीं

वहीं विरोध में फैसला सुनाते हुए जस्टिस रवींद्र भट ने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर और गरीबी झेलने वालों को सरकार आरक्षण दे सकती है. लेकिन SC-ST और OBC को इस कोटे से बाहर रखने का फ़ैसला असंवैधानिक है. मैं यहां विवेकानंदजी की बात याद दिलाना चाहूंगा कि भाईचारे का मकसद समाज के हर सदस्य की चेतना को जगाना है. ऐसी प्रगति बंटवारे से नहीं, बल्कि एकता से हासिल की जा सकती है. ऐसे में EWS आरक्षण, समानता की भावना को खत्म करने वाला और केवल भेदभाव और पक्षपात वाला है.

वहीं चीफ जस्टिस यूयू ललित ने जस्टिस रवींद्र भट के विचारों पर सहमति जताते हुए, EWS आरक्षण को गलत ठहराया.

अंबेडकर नगर में महिलाओं पर लाठी चार्ज

वहीं उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर में महिलाओं पर लाठी चार्ज किए जाने को लेकर भी कई सारे सवाल उठाए जा रहे हैं. पीएम मोदी सार्वजनिक मंचों से लगातार महिलाओं के सम्मान की बात करते हैं, जबकि उत्तर प्रदेश के पुरुष पुलिसकर्मी, इन महिलाओं को लाठी और डंडों से बुरी तरह पीट रहे हैं. एक महिला तो पिटाई के बाद मौक़े पर ही बेहोश होकर गिर पड़ी. ऐसे में सोशल मीडिया पर लोग सवाल पूछ रहे हैं कि क्या यही पीएम मोदी के सपनों का नया भारत है? इन्हीं तमाम मुद्दों पर होगी आज बात, आपके अपने कार्यक्रम में जिसका नाम है- मसला क्या है?

EWS आरक्षण का फ़ैसला सही कैसे?

EWS कोटे को लेकर कुल 40 याचिकाएं दायर की गई थीं. इनमें तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी DMK और साल 2019 में जनहित अभियान की तरफ़ से दायर याचिका प्रमुख हैं. याचिका में तीन ऐसे सवाल थे जो EWS आरक्षण के फ़ैसले को पूरी तरह ग़लत बता रहे थे. आख़िरकार पांच जजों की पीठ को इन तीन सवालों पर फ़ैसला करना पड़ा.

EWS Reservation: SC के फैसले का BJP ने किया स्वागत, कांग्रेस नेता बोले- सुप्रीम कोर्ट जातिवादी है

सवाल नंबर 1- EWS आरक्षण देने के लिए संविधान में जो संशोधन किया गया है, क्या वह संविधान की मूल भावना के ख़िलाफ़ नहीं है?

सवाल नंबर 2- SC/ST वर्ग के सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को EWS आरक्षण से बाहर रखना, संविधान की मूल भावना के ख़िलाफ़ नहीं है?

सवाल नंबर 3- राज्य सरकारों को निजी संस्थानों में एडमिशन के लिए EWS कोटा तय करने का अधिकार मिलना, संविधान की भावना के ख़िलाफ़ नहीं है?

8 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए यही तीन सवाल तैयार किए थे. 13 और 14 सितंबर को केस की लिस्टिंग हुई यानी की बहस की तारीख मुकर्रर हुई. केंद्र सरकार की तरफ से बहस में हिस्सा ले रहे थे- अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल. वहीं एडवोकेट मोहन गोपाल, एडवोकेट रवि वर्मा, एडवोकेट पी विल्सन और अन्य विरोध में थे.

वकीलों ने क्या तर्क दिए?

13 सितंबर को जब सुनवाई शुरू हुई तो एडवोकेट मोहन गोपाल ने कहा, 8 लाख रुपए सालाना कमाई वाला कोई भी परिवार EWS कोटे का लाभ ले सकता है. हमारे देश में ज्यादातर परिवारों की मंथली इनकम 25 हजार है, जबकि EWS कोटे का लाभ पाने की सीमा मंथली 66 हजार रुपए हैं. यानी जो लोग भी इस कोटे का लाभ लेंगे उसकी आर्थिक स्थिति दूसरे वर्गों से बेहतर होगी. 

वहीं एडवोकेट मीनाक्षी अरोड़ा का तर्क था कि आरक्षण की व्यवस्था लाने का मुख्य उद्देश्य ऐतिहासिक रूप से अन्याय झेलने वाले वर्ग को मेन स्ट्रीम में लाना है. आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्ण की गरीबी मिटाने के लिए आरक्षण देने की नहीं पैसे देने की ज़रूरत है. वहीं एडवोकेट संजय पारीख ने कहा कि EWS कोटे को अलग से रखना पिछड़े, दलित और आदिवासी समुदाय के गरीबों को संविधान में दिए गए समानता के अधिकार का उल्लंघन है.

EWS Reservation: किसे मिलेगा EWS आरक्षण का लाभ? क्या मुसलमान भी हैं शामिल? जानें शर्तें और नियम

सीनियर एडवोकेट पी विल्सन ने कहा- SC, ST, OBC को अलग कर उच्च जातियों को EWS आरक्षण देने के बारे में मैं यही कहना चाहता हूं कि ‘शेर और बैल के लिए एक तरह का कानून बनाना भी उत्पीड़न ही है. समाज में जातिगत भेदभाव मौजूद है. इसके लिए मैं एकलव्य और महाभारत का जिक्र नहीं करना चाहता. देश के राष्ट्रपति को मंदिर में घुसने से रोक दिया गया, इससे जाहिर होता है कि भेदभाव अभी भी है. आरक्षण ही केवल इस ऐतिहासिक अन्याय को ठीक करने की दवा है.’ 

वहीं प्रोफेसर रवि वर्मा कुमार ने कहा कि मुझे EWS माने जाने से सिर्फ इसलिए अयोग्य ठहराया जा रहा है. क्योंकि मैं अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग के रूप में पैदा हुआ हूं. 10% कोटा मेरी उस जाति की निंदा करता है जिसमें मैं पैदा हुआ हूं. ऐसे में अनुच्छेद 19 के तहत समान अवसर के मौलिक अधिकार और अनुच्छेद 19 के तहत किसी विशेष जाति से जुड़े होने के मेरे अधिकार से मुझे वंचित कर दिया गया है. 

केंद्र सरकार का जवाब

जिसके बाद केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने दलील देते हुए कहा- सरकार ने आरक्षण के 50% बैरियर को नहीं तोड़ा है. 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने ही फैसला दिया था कि 50% से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए. ताकि बाकी 50% जगह सिर्फ सामान्य वर्ग के लोगों के लिए बची रहे. यह आरक्षण 50% में आने वाले सामान्य वर्ग के लोगों के लिए ही है. इससे राज्य सरकारों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का अधिकार मिलेगा. आर्थिक आधार, परिवार के मालिकाना हक़ वाली ज़मीन, सालाना आय या अन्य सोर्स हो सकते हैं.

आखिरकार इस मामले में सोमवार सुबह फाइनल फ़ैसला आया. जिसके तहत समान्य वर्ग के गरीबों को दिया जाने वाला 10% आरक्षण जारी रहेगा. सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों में से 3 जजों ने EWS कोटे को सही माना, जबकि जस्टिस रवींद्र भट और CJI यूयू ललित अल्पमत में रहे. 

'7 दशक में पहली बार भेदभावपूर्ण सिद्धांत को मंजूरी'

जस्टिस रविंद्र भट ने EWS आरक्षण के विरोध में कहा कि इस अदालत ने 7 दशक में पहली बार भेदभावपूर्ण सिद्धांत को मंजूरी दी है. आर्थिक मानकों के आधार पर ये आरक्षण संविधान का उल्लंघन नहीं करता है, लेकिन इससे SC, ST और OBC वर्ग को बाहर रखना भेदभाव दिखाता है. आरक्षण वंचितों को दिया गया और इससे दूसरे वंचित समूहों को बाहर नहीं रखा जा सकता.

EWS कोटे को सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी, सवर्ण गरीबों को मिलता रहेगा आरक्षण

आर्थिक रूप से कमजोर ज्यादातर लोग एससी और ओबीसी से हैं, लेकिन उन्हें ये कहकर बाहर रखना कि उनके लिए पहले से ही आरक्षण है, अन्याय होगा. संशोधन के जरिए जो वर्गीकरण किया गया है, वो मनमाना है और इससे भेदभाव पैदा होता है. हमारा संविधान बहिष्कार की अनुमति नहीं देता है और ये संशोधन सामाजिक न्याय के ताने-बाने को कमजोर करता है. इस तरह ये बुनियादी ढांचे को कमजोर करता है. ये समान अवसर के सिद्धांत का भी उल्लंघन है.

क्या है संविधान का 103वां संशोधन

आप दर्शकों की जानकारी के लिए बता दूं कि मोदी सरकार जनवरी 2019 में 103वां संशोधन लेकर आई थी. संविधान में इस संशोधन के साथ ही आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य वर्ग के लोगों के लिए नौकरियों और शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण देने का रास्ता खोल दिया गया. केंद्र सरकार ने साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट में बताया था कि आर्थिक रूप से कमजोर 10% आरक्षण देने का कानून उच्च शिक्षा और रोजगार में समान अवसर देकर 'सामाजिक समानता' को बढ़ावा देने के लिए लाया गया है.

जिस किसी की सालाना आय 8 लाख रुपये से कम होती है, उसे आर्थिक रूप से कमजोर माना गया है. यानी कि 66 हजार रुपये तक की मासिक आय वाले सामान्य वर्ग के लोगों को नौकरियों और शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण का लाभ मिल सकेगा. 

यूपी में महिलाओं का ये कैसा सम्मान?

अब दूसरी ख़बर का रुख़ करते हैं. यह तस्वीर उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर की है. यह उस नए भारत की तस्वीर है, जहां के प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी स्वयं कई मंचों से बार-बार महिलाओं के सम्मान की बात कर चुके हैं. लेकिन लगता है सीएम योगी की पुलिस तक यह बात ही नहीं पहुंची या फिर उन्होंने सुनकर अनसुना कर दिया. पहले यह वीडियो देखिए. वीडियो में दो महिलाएं दिख रही हैं. पहले महिला पुलिस उनपर लाठी डंडे चला रही थी. लेकिन बाद में पुरुष पुलिस भी उनके साथ हो लिए.

दो पुरुष पुलिसवाले दोनों हाथों से महिलाओं पर डंडे बरसा रहे हैं. यह महिलाएं जान बचाकर भागी तो फिर दोनों पुलिसवाले किसी अन्य महिला को पीटने में लग गए. दोनों तब तक लाठी बरसाते रहे, जब तक महिला बेसुध होकर ज़मीन पर नहीं गिर गई. बाकी महिलाओं को पुरुष पुलिस के सामने मैदान छोड़ना पड़ा. 

महिलाएं सड़क पर क्यों?

मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि ये महिलाएं अंबेडकर प्रतिमा पर कालिख पोतने का विरोध कर रही थी. यह घटना उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर जनपद के जलालपुर कोतवाली क्षेत्र अंतर्गत वाजिदपुर मोहल्ले की है. विवाद की शुरुआत शनिवार को हुई जब कुछ अराजकतत्वों ने अंबेडकर प्रतिमा पर कालिख पोत दिया. जिसके बाद रविवार को घटना से आक्रोशित कुछ महिलाएं विरोध प्रदर्शन के लिए सड़क पर उतर गईं.

ख़बर मिली है कि प्रदर्शन में शामिल महिलाओं ने महिला पुलिस कर्मियों के साथ बदसलूकी और मारपीट की. जिसके बाद अपनी सहयोगी महिला कर्मियों को बचाने के लिए पुलिस कर्मियों ने प्रदर्शन कर रही महिलाओं पर जमकर लाठीचार्ज किया.          

हालांकि सोशल मीडिया पर लोग इस घटना को लेकर यूपी पुलिस से काफी नाराज़गी ज़ाहिर कर रहे हैं. Priyam Singh नाम के एक ट्विटर यूजर लिखते हैं- महिलाओं का लाठियों से सम्मान करती यूपी पुलिस के सिपाही. कुछ तो शर्म करो… 

निवेश बेनीवाल नाम के एक अन्य ट्विटर यूजर ने लिखा- उत्तर प्रदेश के जिला अंबेडकर नगर में बाबा साहब की मूर्ति के पास नींव खुदाई का विरोध कर रही महिलाओं पर योगी की पुलिस ने बर्बरता के साथ लाठियां भांजी.

वहीं समाजवादी नेता IP singh ने घटना का वीडियो ट्वीट करते हुए लिखा- मुख्यमंत्री आदित्यनाथ जी की आत्मनिर्भर पुलिस आपा खोकर महिलाओं पर बर्बरता पूर्वक लाठीचार्ज कर रही है.

UP News: अंबेडकरनगर में ग्रामीणों और पुलिस में भिड़ंत, लाठीचार्ज में कई महिलाएं घायल

वहीं BSP प्रमुख Mayawati के भतीजे आकाश आनंद ने घटना का वीडियो ट्वीट करते हुए लिखा- बाबा साहेब ने कहा था, वे एक समाज की प्रगति उसके महिलाओं की प्रगति के आधार पर मापते हैं. और आज यूपी की हालत इतनी बदतर हो गई है कि बाबासाहेब की मूर्ति के अपमान का विरोध कर रही हमारी माताओं और बहनों को इस बर्बरता से पीटा गया. 

नशे में धुत पिटाई करती इंदौर की महिलाएं

ये तो महिलाओं पर पुरुष पुलिस के लाठीचार्ज की कहानी थी. लेकिन आख़िर में आपको छोड़े जाता हूं भारत के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर की तस्वीर के साथ. मध्य प्रदेश में गुंडों की तरह पिटाई कर रही यह भीड़ महिलाओं की है. पिटाई भी एक महिला की ही हो रही है. सोशल मीडिया पर दावा किया गया है कि मारपीट करने वाली महिलाएं नशे में धुत हैं.

ब्रजेश राजपूत ने एक ट्वीट करते हुए लिखा- उड़ता इंदौर.. नशे में धुत्त लड़कियों का पब के बाहर मारपीट का वायरल वीडियो. मारपीट करने वाली लड़कियों के ख़िलाफ़ इंदौर पुलिस ने मामला दर्ज कर हमला करने वाली लड़कियों की तलाश शुरू कर दी है..

Masla kya haiWomen ProtesterSupreme Courtlathi chargeEWS quota

Recommended For You

editorji | भारत

History 05th July: दुनिया के सामने आई पहली 'Bikini', BBC ने शुरू किया था पहला News Bulletin; जानें इतिहास

editorji | एडिटरजी स्पेशल

History 4 July: भारत और अमेरिका की आजादी से जुड़ा है आज का महत्वपूर्ण दिन, विवेकानंद से भी है कनेक्शन

editorji | एडिटरजी स्पेशल

Hathras Stampede: हाथरस के सत्संग की तरह भगदड़ मचे तो कैसे बचाएं जान? ये टिप्स आएंगे काम

editorji | एडिटरजी स्पेशल

History 3 July: 'गरीबों के बैंक' से जुड़ा है आज का बेहद रोचक इतिहास

editorji | एडिटरजी स्पेशल

History: आज धरती के भगवान 'डॉक्टर्स' को सम्मानित करने का दिन, देखें इतिहास