Feroze Gandhi Death Anniversary : फिरोज़ गांधीका जन्म 12 सितंबर 1912 को हुआ था. वह एक राजनेता और पत्रकार थे. फिरोज़ लोकसभा के सदस्य भी रहे. साल 1942 में उनकी शादी इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) से हुई थी. इस शादी से दंपति को 2 बेटे हुए, राजीव गांधी और संजय गांधी. 8 सितंबर 1960 को फिरोज का निधन हुआ. इस लेख में हम फिरोज की जिंदगी के बारे में गहराई से जानेंगे.
साल 1957 के आखिर तक फिरोज गांधी प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू (Prime Minister Jawaharlal Nehru) के निवास पर डिनर करना छोड़ चुके थे. कुछ वक्त पहले तक वह हर रात डिनर टेबल पर नेहरू और इंदिरा के साथ बैठते थे.
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कभी कभी वह दोस्तों को डिनर के लिए बाहर बुलाते. इंदिरा और फिरोज के कड़वाहट भरे रिश्ते की बात अब पीएम आवास के बाहर भी होने लगी थी. पीएम आवास में डिनर के दौरान आने वाले गेस्ट बताते कि फिरोज अगर डिनर डेबल पर होते थे तो चुपचाप भोजन करते और कुछ नहीं बोलते थे, ऐसा तब था जब वो बेहतरीन वक्ता थे.
टेंशन सिर्फ डिनर टेबल पर ही नहीं थी... कांग्रेस पार्टी की एक ऑफिशियल मीटिंग में एक बार पार्टी के नेता अपनी पत्नी और बच्चों को लेकर आ गए. नेहरू को इसकी उम्मीद कतई नहीं थी. बैठक में जब नेहरू सबपर बरसे, तभी पीछे की सीट पर बैठे फिरोज चिल्लाकर बोले- मैं अपनी पत्नी को लेकर यहां नहीं आया हूं... तब इंदिरा अपने पिता के बगल में ही बैठी थीं और फिरोज के इस जवाब से वह अहसज हो उठीं.
आज की तारीख का संबंध उन्हीं फिरोज गांधी से है जिनसे इंदिरा गांधी ने 26 मार्च, 1942 को शादी की. फिरोज गांधी का निधन 8 सितंबर 1960 को हुआ था...
इंदिरा फिरोज के रिश्ते (Indira Gandhi and Feroze Gandhi Relation) में दूरियों का एक और उदाहरण मिलता है. एक दूसरे मौके पर, फिरोज आधिकारिक कार्यक्रम में अपनी सीट को लेकर बिफर गए थे. उन्होंने ये बात तारा अली बेग (Tara Ali Baig) को बताई. बेग फिरोज की दोस्त थीं और जिनके पति चीफ ऑफ द प्रोटोकॉल और कार्यक्रम के ऑर्गनाइजर्स में से एक थे. श्रीमती बेग ने फिरोज को बताया कि सिटिंग प्लान का फैसला इंदु का है और वही इसे बदल सकती हैं. साथ ही उन्होंने ये भी जोड़ा कि मैं उनसे बात करने नहीं जा रही हूं.
लेकिन कुछ साल पहले ऐसा नहीं था... आजादी से पहले जब नेहरू जेल में बंद थे तब उनसे मिलने गई इंदिरा ने पिता के आगे फिरोज से शादी की इच्छा जाहिर की थी. नेहरू थोड़ा चिंतित हो गए थे क्योंकि फिरोज पारसी धर्म से थे..
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वह मानते थे कि फिरोज की पृष्ठभूमि और परवरिश भी नेहरू परिवार से अलग थी. उन्होंने तब इंदिरा को सुझाव दिया कि वह किसी और लड़के के बारे में सोचें लेकिन इंदिरा अपने फैसले पर अडिग रहीं. फिरोज पारसी गुजराती व्यापारी परिवार से थे और महात्मा गांधी के पुरखों की तरह उनके यहां भी पुश्तैनी इत्र फुलेल का धंधा होता था इसलिए उनका नाम भी गांधी पड़ गया.
इंदिरा-फ़िरोज़ के अंतर्धार्मिक विवाह की खबर से जब हलचल बढ़ गई तब जवाहरलाल को एक सार्वजनिक बयान जारी करना पड़ा. हिंदू और पारसी रूढ़िवादी नेहरू को गुस्से में पत्र लिखने लगे थे. नेहरू ने प्रतिक्रिया दी थी कि "शादी एक निजी और पारिवारिक मामला है, जो दो पक्षों से जुड़ा है. .... मेरा लंबे समय से यह विचार रहा है कि हालांकि माता-पिता को इस मामले में सलाह देनी चाहिए, लेकिन चुनाव और अंतिम फैसला इससे जुड़े दोनों लोगों के पास होना चाहिए. जब इंदिरा और फिरोज एक-दूसरे से शादी करना चाहते थे, तो मैंने उनके फैसले को सहर्ष स्वीकार कर लिया और उन्हें बताया कि यह मेरा आशीर्वाद है.”
26 मार्च, 1942 को आनंद भवन में इंदिरा और फिरोज की शादी हुई... इंदिरा ने चांदी के छोटे फूलों की कशीदाकारी वाली गुलाबी गुलाबी साड़ी पहनी थी. यह साड़ी उनके पिता द्वारा जेल में काटे गए सूत से बुनी गई थी. नेहरू ने 3259 दिन जेलों में बिताए थे, लगभग नौ साल... गहनों की जगह इंदिरा ने फूलों से बने आभूषण पहने, जो कि कश्मीरी रिवाज है. वह हमेशा की तरह शांत दिख रही थी, लेकिन उसके चेहरे की चमक उसके भीतर के उत्साह को प्रकट कर रही थी. उस दिन वह और भी प्यारी लग रही थीं.
इंदिरा की शादी हिंदू वैदिक रीति-रिवाज से हुई थी. फिरोज खादी की शेरवानी पहने हुए थे. दूल्हा और दुल्हन पवित्र अग्नि के सामने कंधे से कंधा मिलाकर बैठे थे. दुल्हन के बगल में नेहरू बैठे थे और उनके बगल में एक खाली सीट थी, जिस पर ब्रोकेड कुशन था, जो दुल्हन की मां का प्रतीक था, जो उस वक्त जीवित नहीं थीं. जब नेहरू ने फिरोज के हाथ में इंदिरा का हाथ रखा, तो वे पुजारी के बाद शादी की प्रतिज्ञा दोहराते हुए, सात फेरे लेने के लिए उठे.
इंदिरा और फिरोज हनीमून मनाने कश्मीर गए थे. इलाहाबाद की भीषण गर्मी में अपने पिता के बारे में सोचकर, इंदिरा ने उन्हें एक तार भेजा, "काश हम आपको यहां से कुछ ठंडी हवाएं भेज पाते." नेहरू ने तुरंत उत्तर दिया, "धन्यवाद. लेकिन तुम्हारे पास आम नहीं हैं." सितंबर 1942 में इंदिरा और फिरोज दोनों जेल में थे.
लेकिन फिरोज की पहचान इतनी भर नहीं है. वह युवा राष्ट्र भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े होने वाले पहले नेता भी थे. फिरोज ने कई स्कैंडल से पर्दा उठाया और इसी वजह से कईयों को जेल जाना पड़ा और यही वजह बने बीमा इंडस्ट्री के राष्ट्रीयकरण की भी. मूंदड़ा कांड पर तब के वित्त मंत्री डीडी कृष्णमाचारी (DD Krishnamachari) को भी इस्तीफा देना पड़ा.
दामाद फिरोज गांधी जिस तरह से संसद में काम कर रहे थे, जवाहरलाल नेहरू उससे खुश नहीं थे. इंदिरा ने भी अपने पति की तारीफ नहीं की... फिरोज ऐसे पहले शख्स थे जो इंदिरा की कथित तानाशाही रवैये को सामने लेकर आए थे. 1959 में फिरोज ने इंदिरा को डिनर डेबल पर नेहरू के सामने तानाशाह कहकर बुलाया था. आनंद भवन में फिरोज के मुंह से ये शब्द इसलिए निकले थे क्योंकि चुनाव के बाद केरल में बनी वामपंथी सरकार को इंदिरा हटाने के लिए अडिग थीं और वहां राष्ट्रपति शासन लगने जा रहा था. उन्होंने अपने एक भाषण में भविष्यवाणी की थी कि देश में आपातकाल घोषित कर दिया जाएगा.
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फिरोज गांधी भारत में पहले ऐसे शख्स थे जिन्होंने भ्रष्टाचार के विरोध में आवाज उठाई थी लेकिन बावजूद इसके इतिहासकारों और लेखकों द्वारा उन्हें कम तवज्जो मिली. वह एक स्वतंत्रता सेनानी थे, संविधान सभा के सदस्य थे, अपनी ही पार्टी के एक निर्भीक आलोचक थे और सबसे बढ़कर नेहरू परिवार से थे.
फिरोज जब 20 साल के थे तब वह स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे. 21 साल होने तक वह 3 बार जेल जा चुके थे. इलाहाबाद में वह कांग्रेस के अहम कार्यकर्ता बन चुके थे और पार्टी के लिए काम करते हुए ही वह कमला नेहरू और इंदिरा के करीब भी आए. फ़िरोज़ ने बीमार कमला की देखभाल की और इस तरह नेहरू परिवार के साथ उनका एक रिश्ता बन गया.
इंदिरा के जीवन में अगला महत्वपूर्ण मोड़ फिरोज गांधी के साथ उनका रोमांटिक जुड़ाव था. ऐसा लग रहा था कि यह रिश्ता एक अभिशाप लेकर आया था जो उन्हें उनके सक्रिय वर्षों के दौरान - राजनीतिक और व्यक्तिगत रूप से परेशान करने के लिए था.
फ़िरोज़ के दोस्त निखिल चक्रवर्ती, का मानना था कि फ़िरोज़ "महिलाओं पर फिदा" रहते थे, "इंग्लैंड में उनकी एक प्रेमिका थी, यहां तक कि तब भी जब वह हर वीकेंड इंदिरा से मिलने जाते थे. उनके कई अफेयर थे और इंदिरा उनके बारे में जानती थी. तथ्य यह भी है कि रिश्ते के लिहाज से फिरोज पर भरोसा नहीं किया जा सकता था.
साथ ही, फ़िरोज़ के साथ इंदिरा के रिश्ते ने उन्हें पिता और पति के बीच उनके जिंदगी को बांट सा दिया था और इन दोनों की विचारधाराएं बेहद जुदा थीं. सागरिका घोष ने अपनी पुस्तक इंदिरा: इंडियाज मोस्ट पावरफुल प्राइम मिनिस्टर में लिखा है कि उनका शादी का फैसला भी पिता के खिलाफ लिया गया फैसला था. फिरोज गांधी निजी तौर पर एक उद्दंड, तेज-तर्रार थे जबकि जवाहरलाल नेहरू निखरी हुई शख्सियत.
दिलचस्प है, जबकि नेहरू के पास शादी को अस्वीकार करने की वजहें थी, महात्मा गांधी ने इंदिरा और फिरोज के रिश्ते का समर्थन किया और उन्हें अपना आशीर्वाद दिया.
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साल 1944 में इंदिरा ने राजीव गांधी को जन्म दिया. इसके बाद उनके दिल में राजनीति की दिलचस्पी जगने लगी. वह अपने पिता का साथ देने के लिए मायके आ गईं. वहीं फिरोज अकेले पड़ गए. इंदिरा पिता का कामकाज में हाथ बंटाने लगीं. फिरोज भी ‘नेशनल हेराल्ड’ की जिम्मेदारी संभालने लगे. साल 1946 में इंदिरा ने दूसरे बच्चे संजय गांधी को जन्म दिया.
वहीं, 8 सितंबर, 1960 को हार्ट अटैक से फिरोज गांधी का निधन हो गया था. बीबीसी की एक रिपोर्ट में बर्टिल फाक की किताब फ़िरोज़- द फॉरगॉटेन गांधी के हवाले से कहा गया है कि निधन के बाद फिरोज के शव को तीन मूर्ति भवन में रखा गया था. इस रिपोर्ट में कहा गया कि उस समय वहां सभी धर्मग्रंथों का पाठ किया गया था. वहीं, जब उन्हें पहली बार दिल का दौरा पड़ा था तो उन्होंने अपने दोस्तों से कह दिया था कि वह हिंदू तरीकों से अपनी अंतयेष्टि करवाना पसंद करेंगे, क्योंकि उन्हें अंतिम संस्कार का पारसी चलन पसंद नहीं था जिसमें शव को चीलों के लिए खाने के लिए छोड़ दिया जाता है.
इसके बाद उनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति-रिवाज से किया गया. उस वक्त राजीव गांधी 16 साल के थे और उन्होंने ही फिरोज़ गांधी की चिता को मुखाग्नि दी थी. इसके बाद उनकी अस्थियों को संगम में प्रवाहित भी की गई थी.
प्रयागराज में आज भी फिरोज की कब्र मौजूद है जिसके बारे में कहा जाता है कि फिरोज गांधी के अंतिम संस्कार के बाद कुछ अस्थियों को तो विसर्जित कर दिया गया, जबकि कुछ अस्थियों को दफना दिया गया था. इंदिरा गांधी की जीवनीकार कैथरीन फ़्रैंक ने अपनी किताब ‘इंदिरा’ में भी विस्तार से लिखा है कि हिन्दू रीति-रिवाज़ों से अंतिम संस्कार किए जाने के बाद पारसी क़ब्रिस्तान में अस्थियां दफ़नाई गई थीं और एक पक्का मज़ार भी बनवाया गया. प्रयागराज के ममफोर्ड गंज में कब्रिस्तान है और यहीं पर फिरोज गांधी की समाधि है. साल 2009 के बाद गांधी परिवार को कोई भी सदस्य यहां नहीं आया. न ही फिरोज के जन्मदिवस पर और न ही उनकी पुण्यतिथि पर.
फिरोज और नेहरू दोनों के चले जाने से इंदिरा की जिंदगी में जो खालीपन आया था उसे बेटे संजय ने भरा. सागरिका ने संजय के साथ उनके रिश्ते को "धृतराष्ट्र सिंड्रोम" के रूप में बताया है...
चलते चलते आज की दूसरी घटनाओं पर एक नजर डाल लेते हैं
1320 - गाजी मलिक उर्फ गयासुद्दीन तुगलक (Ghiyasuddin Tughlaq) दिल्ली का सुल्तान बना.
1948 - हिंदी और पंजाबी फिल्मों के जाने-पहचाने अभिनेता सतीश कौल (Satish Kaul) का जन्म हुआ.
1982 - जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री शेख़ मोहम्मद अब्दुल्ला (Sheikh Mohammad Abdullah) का निधन हुआ.
1988 - जाने माने कारोबारी विजयपत सिंघानिया (VIjay Singhania) माइक्रो लाइट सिंगल इंजन एयरक्राफ्ट से लंदन से अहमदाबाद पहुंचे.