Former Prime Minister Chandrashekhar Political Career : चन्द्रशेखर सिंह भारत के 9वें प्रधानमंत्री (9th Prime Minister of India) थे. उनका जन्म 1927 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के इब्राहिमपट्टी का एक किसान परिवार में हुआ था. चंद्रशेखर ने लंबा राजनीतिक जीवन जिया. देश के प्रधानमंत्री बने. प्रधानमंत्री के रूप में इनका कार्यकाल उथल-पुथल से भरा रहा. चंद्रशेखर 10 नवंबर 1990 को प्रधानमंत्री बने थे. इस एपिसोड में हम चंद्रशेखर के राजनीतिक जीवन के बारे में गहराई से जानेंगे.
1990 का आखिरी दौर... चंद्रशेखर (Chandrashekhar) भारत के प्रधानमंत्री थे... एक बार पंजाब के अलगाववादी नेता सिमरनजीत सिंह मान (Separatist Leader Simranjit Singh Mann) लंबी तलवार धारण किए उनसे मिलने पहुंच गए. सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें रोक लिया और कहा कि ऐसा घातक शस्त्र लेकर पीएम से नहीं मिल सकते. चंद्रशेखर तक बात पहुंची तो उन्होंने मान को तलवार के साथ ही अंदर आने की इजाजत दे दी. जिस सुरक्षा अधिकारी पर चंद्रशेखर की निजी सुरक्षा की जिम्मेदारी थी, उसने अपना फर्ज निभाते हुए दरवाजा अधखुला रहने दिया, जिससे वह मान व उनकी तलवार पर नजर रख सके.
अधिकारी ने पीएम और मान के बीच की बातचीत सुनी और देखा कि चंद्रशेखर के सामने पहुंचकर मान ने आधी तलवार खींची और बोले- यह पुरखों से मेरे पास है और बहुत घातक है. इस पर चंद्रशेखर ने जवाब दिया और कहा- इसे म्यान में रख लो. मेरे पुरखों के घर बलिया (Ballia, Uttar Pradesh) में इससे बड़ी तलवार मौजूद है जो इससे भी कहीं ज्यादा घातक है. इतनी सी बात ने मान और उनकी तलवार दोनों को ठिकाने लगा दिया था.
1990 में जिस दिन चंद्रशेखर पीएम पद (Chandrashekhar PM Oath) की शपथ ले रहे थे जब देश जल रहा था. मंडल कमीशन (Mandal Commission) की सिफारिशें लागू करने से भड़के युवा सड़कों पर आत्मदाह कर रहे थे. राम मंदिर आंदोलन (Ram Mandir Movement in India) चरम पर था, जगह जगह सांप्रदायिक दंगे (Religious violence in India) हो रहे थे, इराक-कुवैत युद्ध (Gulf War) की लपटें भारत तक पहुंच रही थी... देश की गिरती अर्थव्यवस्था के बाद इसी कार्यकाल में देश का सोना गिरवी (Mortgaging of Gold) रखा गया और सबसे बड़ा राजनीतिक भूचाल राजीव गांधी की हत्या (Rajiv Gandhi Assassination) के रूप में इसी सरकार के माथे पर आया.
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10 नवंबर 1990 ही वह तारीख है जब चंद्रशेखर भारत के 9वें प्रधानमंत्री बने थे. आज झरोखा में हम बात करेंगे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की है, जो 10 नवंबर 1990 से 21 जून 1991 तक, यानी कुल 223 दिन तक पीएम रहे और इसमें भी लंबा वक्त कार्यवाहक पीएम के तौर पर रहा लेकिन उनका पूरा कार्यकाल उथल-पुथल से भरा रहा...
1995 में संसद में उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार (Outstanding Parliamentarian Award) की शुरुआत की गई थी और इस पुरस्कार को पाने वाले पहले सांसद थे चंद्रशेखर.. चंद्रशेखर को समझने के लिए हमें 1995 से 33 साल पहले 1962 में जाना होगा जब उनका संसदीय जीवन शुरू हुआ था, और वह राज्यसभा पहुंचे थे. वह संसद पहुंचे थे प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (Praja Socialist Party) के टिकट पर लेकिन 1965 में आ गए कांग्रेस में... कांग्रेस में लंबा काम किया लेकिन इंदिरा (Indira Gandhi) से मतभेद बने रहे... इमर्जेंसी (Emergency in India 1977) में 19 महीने के लिए जेल में डाल दिए गए और वहीं पर जो दिन चंद्रशेखर ने बिताए उसे किताब की शक्ल दी 'मेरी जेल डायरी' (Chandrashekhar's book Meri Jail Diary) में... 1977 में कांग्रेस छोड़ी और जनता पार्टी (Janata Party) के अध्यक्ष हो गए.
अपने तीखे तेवर और बेबाकी से बोलने के अंदाज से चंद्रशेखर सभी को निरुत्तर कर दिया करते थे. चंद्रशेखर को उनके तेवर, बेबाकी से बोलने, विरोधियों पर हावी होने तथा बागी रवैये ने युवा तुर्क (Yuva Turk) के नाम से भी मशहूर किया.
1977, 1980 में बलिया से जीते लेकिन 1984 में इंदिरा के निधन के बाद उठी सहानुभूति लहर में बलिया की अपनी परंपरागत सीट नहीं बचा सके. 3 दशक से लंबे राजनीतिक जीवन में यही एकमात्र चुनाव था जिसमें चंद्रशेखर को शिकस्त मिली थी. 1989 में बलिया यूपी में और महाराजगंज बिहार में, दोनों सीटों पर लड़े जीते... लेकिन सीट रखी बलिया की अपने पास... लेकिन यही चुनाव था जिसने देश में गठबंधन की राजनीति का दौर शुरू कर दिया था.
कांग्रेस जो 1984 में 404 पर थी अब 197 पर आ गई थी और जनता दल 143 सीट लेकर दूसरे नंबर पर थी. वीपी सिंह (Vishwanath Pratap Singh) पीएम बने, लेफ्ट और बीजेपी का समर्थन बाहर से था. साल 1990 में लाल कृष्ण आडवाणी (Lal Krishna Advani) की गिरफ्तारी के बाद बीजेपी ने वीपी सिंह (VP Singh) की सरकार को दिया समर्थन वापस ले लिया साथ ही लगभग 64 सांसद उस वक्त चंद्रशेखर के समर्थन में आ गए थे. वीपी सिंह की सरकार गिरने का यही प्रमुख कारण बना. इसके बाद साल 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की पार्टी जनता दल (Janata Dal) का पतन हो गया.
चंद्रशेखर के मन में पीएम बनने की आस जगी. पीएम की लड़ाई में जनता दल दो फाड़ हो गई थी. चंद्रशेखर वाले गुट का नाम समाजवादी जनता पार्टी (Samajwadi Janata Party) था जिसके नेता वह खुद थे. राजीव मध्यावधि चुनाव (Mid Term elections in India) नहीं चाहते थे. वह जानते थे कि जनता दल की टीआरपी लगातार गर्त में जा रही है लेकिन वह चाहते थे कि उसके साथियों वाला ये गुट भी अपनी लोकप्रियता और खोए... लिहाजा चंद्रशेखर वाले गुट को बाहर से समर्थन देकर उन्हें पीएम बना दिया.
यहीं से शुरू हुई चंद्रशेखर की असली लड़ाई
जनवरी 1991 में भारत के सामने तेल और उर्वरक जैसे बुनियादी आयात के बदले में डॉलर देने का संकट आया. IMF से मदद के बावजूद भारत का विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves) काफी कम था. 1.1 बिलियन डॉलर का ही विदेशी मुद्रा भंडार देश के पास बचा था. राजीव गांधी के कार्यकाल में देश ने भारी कर्ज ले रखा था और अब उसे चुकाने की घड़ी थी. खाड़ी युद्ध (Gulf War) ने तेल के दाम आसमान पर पहुंचा दिए थे. इन मुश्किलों के बीच चंद्रशेखर ने अर्थव्यवस्था का काम संभाल रहे वरिष्ठ अधिकारियों से सलाह ली. तब वित्त मंत्री थे यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha). भारत के पास इतना ही डॉलर था कि वह सिर्फ 5 हफ्ते के इंपोर्ट का खर्च ही संभाल सकता था. वेंकिटरमणन और मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) ने देश का सोना इस्तेमाल करने का सुझाव दिया.
रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) के गवर्नर ने पीएम को वह नियम समझाया जिसके अनुसार संकट के वक्त स्वर्ण कोष (Gold Fund of India) का इस्तेमाल किया जा सकता है. चंद्रशेखर इस व्यवहारिक कदम पर सहमत हो गए.
जब साथियों ने इसके राजनीतिक परिणाम की वजह से हिचक दिखाई तो वह चीखकर बोले- जब आपकी इज्जत दांव पर हो को ज्यादा महत्वपूर्ण क्या है? धातु का टुकड़ा या आपकी विश्वसनीयता! हारकर बैंक ऑफ इंग्लैंड (Bank of England) के पास देश का 47 टन रिजर्व सोना गिरवी रखकर 40 करोड़ डॉलर जुटाए गए.
इस बुरे दौर ने जन्म दिया आर्थिक सुधारों को आगे चलकर नरसिम्हा राव (Narasimha Rao) के कार्यकाल में फले फूले.
चंद्रशेखर ने राम जन्मभूमि और बाबरी मसले के हल की भी बड़ी कोशिशें की. उसी हल के सिलसिले में उनकी दोनों पक्षों से बात होती रहती थी. एक दिन विश्व हिंदू परिषद (Vishwa Hindu Parishad) के वरिष्ठ नेताओं से उनकी मुलाकात राजमाता सिंधिया (Rajmata Scindia) के निवास स्थान सिंधिया विला (Scindia Villa) में हो रही थी. इस मुलाकात में अशोक सिंहल (Ashok Singhal) ने तीखे तेवर अपनाए. उन्होंने और आचार्य गिरिराज किशोर (Acharya Giriraj Kishore) ने सख्त आवाज में कहा- अगर आप इनकार करेंगे तो हम मस्जिद की जगह मंदिर का निर्माण शुरू कर देंगे.
चंद्रशेखर ने सर्द आवाज में कहा, आप लोग देश के प्रधानमंत्री से बात कर रहे हैं, अगर आप वहां जाएंगे और सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के आदेश का उल्लंघन करेंगे तो मैं सेना से कह दूंगा कि वह गोली चलाए... तब सैंकड़ों मरेंगे या हजारों, मैं नहीं जानता. बैठक में सन्नाटा छा गया. सब की समझ में आ गया कि चंद्रशेखर पर दबाव नहीं बनाया जा सकता.
इसके बाद उनकी बात दोनों पक्षों से हुई, वे समझौते के करीब भी थे. लेकिन राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) के पास खबर पहुंचनी शुरू हो गई थी. करीबियों ने उनसे कहा कि अगर चंद्रशेखर ने अयोध्या मसला हल कर दिया तो उनका कोई मुकाबला नहीं कर पाएगा. माखन लाल फोतेदार (Makhan Lal Fotedar) और सुब्रमण्यन स्वामी (Subramanian Swamy) ने राजीव गांधी के पास जाकर ये कहा था.
इसी के बाद शुरू हो गई सरकार गिराने की कोशिश.... बात मार्च 1991 की है. दिल्ली के दस जनपथ (10 Janpath) पर राजीव गांधी के घर के बाहर दो लोग चाय पीते दिखे. ये दोनों हरियाणा CID के सिपाही थे. कांग्रेस ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री चंद्रशेखर राजीव गांधी की जासूसी करवा रहे हैं. 6 मार्च को कांग्रेस ने सदन में हंगामा कर दिया.
बात अविश्वास प्रस्ताव तक आ गई... सदन में इसपर बहस चल रही थी... कांग्रेस की बेंचे खाली थीं. पत्रकार संतोष भारतीय (Journalist Santosh Bhartiya) ने अपनी किताब 'V.P Singh, Chandrashekhar, Sonia Gandhi Aur Main' में लिखा है - मैं तब लॉबी में खड़ा था और अचानक देखा कि रंगराजन कुमार मंगलम (Rangarajan Kumaramangalam) भागते नजर आ रहे हैं. मुझे बोले, राजीव मान गए हैं, समर्थन वापस नहीं लेंगे. मैं उनके चेहरे की खुशी साफ देख सकता था. फिर कहने लगे, हम लोग कांग्रेस सांसदों को इकट्ठा कर रहे हैं, मैं चंद्रशेखर जी से कहने जा रहा हूं कि अपना भाषण 30 मिनट बाद दें या देर रात को दें.
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उनके हाथ में एक पर्ची थी जिसपर राजीव ने कुछ लिखकर भेजा था. संतोष भारतीय, रंगराजन कुमार मंगलम के पीछे पीछे लोकसभा में प्रधानमंत्री की सीट के पीछे गए. मंगलम ने पर्ची चंद्रशेखर के हाथ में दी. चंद्रशेखर ने इसे पढ़ा- पढ़कर बोले- प्रधानमंत्री के पद का मजाक बना रखा है. उस पर्ची को फाड़कर फेंक दिया और इसी के साथ चंद्रशेखर सरकार और नौंवी लोकसभा का भविष्य तय हो गया. चंद्रशेखर अपनी सीट पर खड़े हुए और पीएम पद से इस्तीफे का ऐलान करके निकल गए.
चंद्रशेखर के बतौर प्रधानमंत्री रहते भारत ने अर्थव्यवस्था में संकट (1991 Indian Economic Crisis) से निपटने के लिए रास्ता निकाल लिया था लेकिन राजनीतिक मोर्चे पर आपदा टूट पड़ी. 21 मई को राजीव गांधी तमिलनाडु में चेन्नई के पास श्रीपेरुंबुदुर (Sriperumbudur in Tamilnadu) में चुनाव प्रचार कर रहे थे, तभी लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) के आतंकवादियों ने उनकी हत्या कर दी.
राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री रहते श्रीलंका में सिंहलियों और तमिलों के बीच संघर्ष में हस्तक्षेप का फैसला किया था और वहां शांति स्थापित करने के लिए भारतीय सेना को भेजा था. राजनीतिक रूप से यह दांव उल्टा पड़ा और इसने राजीव गांधी की जान भी ले ली. यह एक दुखद हादसा था और इसके अचानक होने से यह पीड़ादायक भी था. भारत सकते में था और कांग्रेस पार्टी बगैर उत्तराधिकारी के शोकमग्न थी. आतंकियों का मकसद न सिर्फ बदला लेना था बल्कि वे अराजकता भी पैदा करना चाहते थे.
एक किस्सा चंद्रशेखर के पीएम बनने से 7 साल पहले का है. भारत में पदयात्राओं ने अक्सर ही राजनीति की दिशा बदलने का कार्य किया है. चंद्रशेखर ने भी एक ऐसी ही पदयात्रा 1983 में पूरी की. चंद्रशेखर ने कन्याकुमारी से दिल्ली में महात्मा गांधी की समाधि राजघाट (Mahatma Gandhi's Samadhi Raj Ghat) तक 6 जनवरी 1983 से 25 जून 1983 तक 4260 किलोमीटर तक की पदयात्रा की. इस यात्रा ने चंद्रशेखर का राजनीतिक करियर (Chandrashekhar Political Career) बदलकर रख दिया.
अपने जिंदा रहते चंद्रशेखर ने अपने बेटों या किसी शागीर्द का राजनीतिक रास्ता तैयार नहीं किया. कहते हैं कि एक बार उनके बेटे ने पूछा कि वे उसे क्या देकर जा रहे हैं? इस पर चंद्रशेखर ने अपने एक सुरक्षाकर्मी को बुलाकर उससे उसके पिता का नाम पूछा. उसने बताया तो बेटे से पूछा कि तुम इनके पिताजी का नाम जानते हो? बेटे ने उत्तर दिया, नहीं...चंद्रशेखर बोले- मैं तुमको यही देकर जा रहा हूं कि जब तुम किसी को अपने पिता का नाम बताओगे तो वह यह नहीं कहेगा जो तुमने इनके पिता के बारे में कहा.
चलते चलते 10 नवंबर को हुई दूसरी अहम घटनाओं पर भी एक नजर डाल लेते हैं
1920 - भारतीय मज़दूर संघ के संस्थापक दत्तोपन्त ठेंगड़ी (Dattopant Thengadi) का जन्म
1659: शिवाजी (Shivaji) ने अफजल खान (Afzal Khan) को मार गिराया
1698: कलकत्ता को ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) को बेच दिया गया था