Google Search Engine Success Story : हर सवाल का जवाब देने वाला Google बनाने वाले दो दोस्तों लैरी पेज और सर्गेई ब्रिन (Larry Page and Sergey Brin) की क्या है कहानी? करीब से जानिए इन दोनों को. इन दो दोस्तों ने किस तरह Google को बनाया, यह हर किसी के लिए एक नजीर है.
साल 1995 का वक्त, जब भारत में केबल टीवी ने दस्तक देनी शुरू की थी... घरों में रंगीन टीवी ने पैर जमाने शुरू किए और लोग पहली बार दो चैनलों से बाहर की दुनिया को देख रहे थे... लोग घंटों टीवी से चिपके रहते... भारत में जहां टीवी वाली स्क्रीन नया दौर लिख रही थी तो वहीं इसी वक्त भारत से 7500 मील दूर अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में दो दोस्त कंप्यूटर वाली स्क्रीन पर नया इतिहास लिखने जा रहे थे.
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Larry Page और Sergey Brin अपने डोर्मैटरी के कमरे से BackRub नाम के सर्च इंजन की प्रोग्रामिंग में जुटे हुए थे. यही बैकरब आगे चलकर गूगल कहलाया. आज हम जानेंगे गूगल की ही कहानी को क्योंकि आज गूगल बाबा का बर्थडे जो है... 27 सितंबर 1998 को ही गूगल की शुरुआत हुई थी.
Sergey Brin तब 8-9 साल के थे. पिता माइकल के कुलीग एक बार घर आए. यहां माइकल ने ग्रेजुएशन स्टूडेंट्स की शिकायत की. वे कह रहे थे कि बच्चे बेहद ही बेवकूफ हैं. माइकल कह रहे थे कि उन्होंने बच्चों से एक सवाल किया था जिसका जवाब कोई नहीं दे सका. उन्होंने सवाल का जिक्र अपने उन दोस्तों से भी किया. तभी एक कोने में चुपचाप बैठा सर्गेई थोड़ा चीखकर बोला और उस सवाल का हल बता दिया.
एकबार तो पिता ने जवाब को खारिज कर दिया लेकिन जब बीच में एक साथी ने तपाक से टोका तो उन्होंने सर्गेई के जवाब को सही बताया. ये वो वक्त था जब पहली बार पिता माइकल ने बेटे सर्गेई को गंभीरता से लिया था. इसके बाद माइकल ने स्कूल पाठ्यक्रम से अलग सर्गेई की प्रतिभा को उसकी दिशा में बढ़ावा देने के लिए घर में ही शिक्षक रख लिया और उसके लिए पढ़ाई का खास इंतजाम किया.
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Sergey Brin की दिलचस्पी बचपन से ही कंप्यूटर को लेकर थी. 1982 में उसे पहला कंप्यूटर 'कमोडोर 64' मिल गया था. उसने जल्द ही इंटरनेट भी खोज निकाला. थोड़े समय तक सर्गेई उस जमाने के चैट रूम में अक्सर लगा रहता था लेकिन जल्द ही वह ऊब गया क्योंकि उसे पता चल गया था कि ज्यादातर बच्चे सेक्स के बारे में बातचीत करने की कोशिश कर रहे थे.
असल में सर्गेई की दिलचस्पी कंप्यूटर गेम्स को लेकर थी और वह जल्द ही मल्टी यूजर डंगऑन (एमयूडी) की ओर बढ़ गया, जहां कंप्यूटर एक्सपर्ट बच्चे आभासी योद्धाओं की तरह देर रात तक एक लड़ाई छेड़े रहते थे. आगे चलकर सर्गेई ने अपना खुद का एमयूडी गेम भी लिखा था.
वहीं Larry Page का जन्म मिशिगन में हुआ था. Larry Page के दादा कार्ल डेविस पेज जनरल मोटर्स के असेंबली प्लांट में मजदूर थे. वे वहां के कम्यूनिस्ट प्रभाव वासे गुट के श्रमिक संगठन के सदस्य थे. साल 1937 में फ्लिंट की ऐतिहासिक श्रमिक हड़ताल में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी.
अब आते हैं Google की कहानी पर, जिसका सफरनामा मार्च 1996 से शुरू होता है. जब स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में पीएचडी छात्र लॉरेंस (लैरी) पेज व सर्गेई ब्रिन ने वेब सर्च इंजन रिसर्च प्रोजेक्ट बैक रब पर एक साथ काम शुरू कर चुके थे.
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साल 1891 में बनी स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी दुनिया की नामचीन यूनिवर्सिटीज में से एक थी. यूनिवर्सिटी का तिलिस्म ऐसा है कि इसके अलमनाई गूगल, ह्यूलट पेकार्ड, नाइके, सन माइक्रोसिस्टम्स, सिस्को सिस्टम्स और याहू जैसी बड़ी कंपनियां बना चुके हैं. 1930 के दशक से अब तक जितने पेशेवर यहां से निकले हैं, उनकी आमदनी को अगर मिला लिया जाए तो दुनिया की 10वीं सबसे बड़ी इकॉनमी बन जाएगी.
गूगल (Google) को बनाने वाले लैरी व सर्गेई यहूदी हैं. दोनों ऐसे परिवारों से थे जो सरहदों को पार करके आए थे. दोनों के पास न तो खानदानी संपत्तियां थीं, न ही कारोबारी परिवार. न ही इनमें कोई पूंजीवादी प्रवृत्ति थी जैसा कि माइक्रोसॉफ्ट के को फाउंड बिल गेट् ने हाईस्कूल की पढ़ाई के वक्त ही दिखा दिया था.
लैरी व सर्गेई इंटेल के फाउंडर एंडी ग्रोव जैसे भी नहीं थे जो बेहद गरीबी से बाहर आकर कंपनी को बुलंदी पर लेकर गए. लैरी और सर्गेई दोनों ही उच्च कोटि के बौद्धिक परिवारों से थे, जिन्होंने शक्तिशाली संस्थाओं में हक की लड़ाई लड़ी. लैरी के परिवार ने अमेरिकी मोटर कंपनी के खिलाफ श्रमिक संघ का युद्ध छेड़ा जबकि सर्गेई के परिवार ने सोवियत संघ में सरकारी उत्पीड़न व भेदभाव झेला था.
1995 की गर्मियों में जब सर्गेई और पेज मिले तो दोनों में ऐसी कोई बात नहीं हुई जिसे देखकर लगे कि वे आने वाले दौर में एक अच्छे दोस्त बनेंगे. उस दिन शहर की पहाड़ियों के ऊपर और नीचे चलते हुए, दोनों लगातार लड़ते रहे, बहस करते रहे, अन्य बातों के अलावा, अर्बन प्लानिंग को लेकर अपने नजरिए पर भी दोनों उलझे... तब दोनों की उम्र 22-23 साल थी.
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लेकिन एक साल के अंदर ही दोनों ने पार्टनरशिप कर ली. दोनों ने BackRub नाम से एक सर्च इंजन की प्रोग्रामिंग शुरू कर दी. कहा जाता है कि बैकरब ही गूगल का पुराना नाम है. ट्रेडमार्क रजिस्टर के समय इस नाम को बदल कर गूगल (Google) कर दिया गया था.
BackRub नाम रखने की वजह बैकलिंक्स को जांचने से जुड़ा था. लॉजिक यह था कि उनके द्वारा लिखा गया प्रोग्राम backlinks का पता लगाएगा. तब लेर्री पेज और सर्गेई ब्रिन ने सर्च इंजन के लिए जिस तकनीक का इस्तेमाल किया उसे पेज रैंक कहा जाता था.
1996 में सर्च इंजन जिस फॉर्मूले पर काम करता था वो ये था कि कोई शब्द कितनी बार पेज पर दिखेगा. कोई खास वर्ड या यूं कहें कि कीवर्ड जितनी बार दिखता था, तो वह रैंकिंग की स्टेज पर ऊपर उठ जाता था.
ब्रिन और पेज को फीडबैक मिलने लगे. इसके बाद उन्होंने गूगल का ड्रीम प्रोजेक्ट बनाने की सोची... पेज और ब्रिन ने सस्ते उपकरण खरीदें, और अपने उधर पर लिए गए पर्सनल कंप्यूटर से ही एक सर्वर नेटवर्क बना डाला.
बाद में जब उनको एक हार्ड डिस्क की जरूरत पड़ी तो उन्होंने क्रेडिट कार्ड की मैक्सिमम डिस्काउंट पर एक टेराबाईट डिस्क भी खरीद डाली.
इस प्रोजेक्ट के लिए दोनों को Sun Microsystem के को-फाउंडर Andy Bechtolsheim ने इन्वेस्टमेंट किया.
Andy Bechtolsheim के बाद दूसरे इन्वेस्टर्स भी कूद पड़े. फाइनली 4 सितम्बर 1998 को गूगल को रजिस्टर कर दिया गया.
इन्वेस्ट से जो भी फण्ड मिला उनसे एक ऑफिस भी खोला गया. Google Inc. ने अपना पहला ऑफिस मेनलो पार्क, कैलिफोर्निया में खोला. शुरुआती दिनों में ये कंपनी Page और Brin की एक दोस्त “Susan Wojcicki” के garage में चलती थी जो कि Menlo Park, California में थी.
सबसे पहले गूगल ने google.com (beta formet) लॉन्च किया. शुरुआत में गूगल 10000 सर्च रिजल्ट्स पर डे दिखाता था. 21 सितंबर 1999 को गूगल ने अपने ऑफिसियल साईट से बीटा को हटा दिया.
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साल 2003 में दो-तीन जगहों के बदलने के बाद गूगल ने अपना ऑफ़िस Mountain View, California में शिफ्ट किया जहां की वो आज भी स्थित है.
बैकरब ही बाद में गूगल बन गया लेकिन सवाल ये है कि ये नाम कहां से आया. 1920 में अमेरिकी गणितज्ञ Edward Kasner ने अपने भांजे Milton Sirotta को ऐसी संख्या के लिए नाम चुनने में मदद करने के लिए कहा, जिसमें 100 मौजूद हों. Sirotta ने उन्हें “googol” नाम सुझाया और Kasner ने इस शब्द का इस्तेमाल करने का फैसला किया. यह शब्द साल 1940 में शब्दकोश में आ गया. Kasner ने उस साल मैथमेटिक्स एंड द इमेजिनेशन नाम से एक किताब लिखी और उस किताब में उन्होंने 100 जीरो के साथ नंबर के लिए googol शब्द का इस्तेमाल किया.
1998 में जब कंपनी की शुरुआत की गई, तो को-फाउंडर लेरी पेज और Sergei Brin ने नाम गूगल तय किया. वे इंजीनियर थे और इस शब्द को जानते थे. उन्होंने Googol शब्द को जैसे के तैसा नहीं लेते हुए, उसमें कुछ बदलाव करके Google कर दिया.
आज गूगल ने हमारी जिंदगी को पूरी तरह बदलकर रख दिया है...
आज हम सर्च करने के लिए जिस Chrome Browser का इस्तेमाल करते हैं, वह भी Google का है... वह न सिर्फ हमारी हिस्ट्री को सहेजता है बल्कि इसका इस्तेमाल भी करता है. Email भेजने के लिए और रिसीव करने के लिए हम Gmail यूज करते हैं, करोड़ों लोग इंटरनेट पर Youtube को देखते हैं... Youtube से न सिर्फ Google कमाई करता है बल्कि इसके क्रिएटर्स भी मालामाल हो रहे हैं...
हमें कुछ भी खोजना होता है, पता लगाना होता है, नक्शा ढूंढना होता है तो हम Google Map से लेकर Google Search इंजन तक खंगाल डाल लाते हैं और वो भी सिर्फ एक अंगूठे से.... इसके अलावा Android, Playstore, Google Meet जैसे कई गूगल प्रोडक्ट्स हैं जो हमारी आपकी लाइफ को हर पल कंट्रोल कर रहे हैं...
इस मामले में दिलचस्प बात ये भी है कि गूगल को बनाने वाले जोड़दार बंधु लैरी पेज और सर्गेई ब्रिन खबरों में बेहद कम रहते हैं...
चलते चलते एक नजर 27 सितंबर की दूसरी घटनाओं पर भी डाल लेते हैं
1760 - मीर कासिम (Mir Qasim) बंगाल के नवाब बने
1833 - समाज सुधारक राजा राममोहन राय (Raja Ram Mohan Roy) का निधन हुआ
2008 - महान गायक महेन्द्र कपूर (Mahendra Kapoor) का निधन हुआ
1907 – भारतीय क्रान्तिकारी भगत सिंह (Bhagat Singh) का जन्म हुआ