Gujarat Assembly Elections 2022 : जब आनंदीबेन की बात पर भड़क उठी थीं PM मोदी की पत्नी जसोदाबेन | Jharokha

Updated : Nov 29, 2022 19:25
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Mukesh Kumar Tiwari

Gujarat Assembly Elections 2022 and Anandiben Patel Story : गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 में कई राजनीतिक बयान सुनाई दिए, कई राजनीतिक हलचल उठी.. आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) से लेकर कांग्रेस (Congress) तक ने सरकार बनाने के लिए जीतोड़ मेहनत की. राज्य की राजनीतिक हलचल के बीच हम जानते हैं एक ऐसी महिला नेता के बारे में जिसने गुजरात को बदलकर रख दिया. ये थीं आनंदी बेन पटेल (Anandiben Patel). आइए जानते हैं गुजरात की राजनीति में आनंदीबेन के सफरनामे को करीब से...

मेहसाणा जिले के खरोद गांव में हुआ आनंदीबेन का जन्म

उत्तरी गुजरात के मेहसाणा जिले (Mahesana District) में एक गांव है खरोद... राज्य की राजधानी गांधीनगर (Gujarat Capital Gandhinagar) से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस गांव वहां से पहुंचने में एक घंटे लगते हैं... राजधानी से दूर होकर भी ये गांव गुमनामी के अंधेरे में ही रहा था. 21 नवंबर 1941 को गांव में जन्म हुआ था आनंदीबेन पटेल (Anandiben Patel) का...

आनंदीबेन राजनीति की सीढ़ियां ज्यों ज्यों चढ़ती गईं, इस गांव की गांधीनगर से दूरी भी मानों कम होती गई... हालांकि इस गांव को लाइमलाइट में आने में फिर भी 57 बरस लग ही गए... गुजरात की पहली महिला मुख्यमंत्री आनंदीबेन ने उत्तर प्रदेश का राज्यपाल (Uttar Pradesh Governor) बनने से पहले मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के राज्यपाल (Madhya Pradesh and Chhattisgarh Governor) की जिम्मेदारी भी संभाली... 2002 से 2014 तक वह गुजरात कैबिनेट में मिनिस्टर (Gujarat Cabinet Minister) रही हैं... और जब नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) 2014 में भारत के प्रधानमंत्री बने तब आनंदीबेन राज्य की मुख्यमंत्री बनाई गई थीं...

आनंदीबेन के जन्मदिन के मौके पर आज हम जानेंगे गुजरात की राजनीति के इस अहम चेहरे के बारे में करीब से... 

आनंदीबेन पटेल ने बताया था नरेंद्र मोदी को अविवाहित

2018 में गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री हो चुकी आनंदीबेन मध्य प्रदेश की राज्यपाल थीं... तब एक कार्यक्रम में आनंदीबेन ने कह दिया था कि नरेंद्रभाई ने शादी नहीं की है लेकिन वो औरतों और बच्चों का दर्द समझते हैं. आनंदीबेन के इस बयान को सुनकर जसोदाबेन और उनका परिवार नाराज हो गया था. जसोदाबेन (PM Modi Wife Jashodaben) के साथ PM नरेंद्र मोदी की शादी तब हुई थी, जब वह 17 बरस के थे.

तब जसोदाबेन ने कहा था सभी को पता है कि नरेंद्र मोदी की शादी हुई थी, फिर भी ये लोग झूठ फैला रहे हैं.

तब जसोदाबेन ने भाई अशोक मोदी (Ashok Modi) के मोबाइल फोन से शूट किए गए वीडियो के जरिए कहा था- मैं आनंदीबेन के बयान से हैरान हूं. उन्होंने (मोदी ने) खुद 2014 में लोकसभा चुनाव के लिए पर्चा दाखिल करते समय अपने घोषणापत्र में लिखा है कि वह शादीशुदा हैं और इसमें मेरे नाम का उल्लेख भी है.

जशोदाबेन ने आगे कहा, "एक पढ़ी-लिखी महिला (गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन) ने एक शिक्षिका (जसोदाबेन) के बारे में जिस तरह टिप्पणी की, वह अशोभनीय है. इतना ही नहीं, आनंदीबेन के इस आचरण ने भारत के प्रधानमंत्री की छवि को धूमिल किया है." वह मेरे लिए बहुत सम्मानित हैं, वह मेरे लिए राम हैं."

नरेंद्र मोदी ने 2002, 2007 और 2012 के गुजरात विधानसभा चुनावों में चुनाव के नामांकन फॉर्म में अपनी वैवाहिक स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं दी थी. 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले मोदी ने पहली बार औपचारिक रूप से चुनावी हलफ़नामे में कबूल किया था कि उनकी शादी हुई थी. उन्होंने नामांकन पर्चे में जोसदाबेन को अपनी पत्नी बताया. हालांकि, पैन कार्ड और जायदाद से जुड़े बाकी कागजातों में उन्होंने इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी.

ये तो बाद हुई आनंदीबेन पटेल से जुड़े हालिया विवाद की लेकिन अब आइए बात करते हैं गुजरात की इस कद्दावर महिला नेत्री के उस राजनीतिक जीवन पर जिसने कई महिलाओं को पॉलिटिक्स में कदम रखने के लिए प्रेरित किया.

आनंदीबेन कभी राजनीति में नहीं आना चाहती थीं

आनंदीबेन पटेल की राजनीतिक यात्रा को एक बात और दिलचस्प बनाती है, वो ये कि शुरुआत में वह इसमें आने से ही हिचकिचा रही थीं. एक युवा छात्रा के रूप में, राजनीति आनंदीबेन की प्लानिंग में नहीं थी. उन्होंने खुद को महिला सशक्तिकरण के लिए एक कार्यकर्ता के रूप में कार्य करने के लिए आगे बढ़ाया था. उन्होंने कहा था कि “मैं Pilwai Science and Arts College में अकेली छात्रा थी, कॉलेज में गुजराती शिक्षक ने एक बार मुझे लड़कियों को पढ़ाने के लिए प्रेरित करने के लिए पिलवई से सटे गांवों का दौरा करने के लिए कहा था. मैं इन गांवों में गई और लड़कियों को पढ़ाई के महत्व का एहसास कराया.”

उन्होंने एक और कदम तब उठाया जब उनकी सबसे बड़ी बहन, सरिताबेन, 30 वर्ष की उम्र में विधवा हो गईं. उनकी हालत देखकर, आनंदीबेन ने महिलाओं और विधवाओं के उत्थान के लिए काम करने का फैसला किया और महिला विकास गृह से जुड़ गईं. उन दिनों विधवाओं पर काफी सामाजिक दबाव था. महिला विकास गृह ने विधवाओं के लिए एक कोर्स शुरू किया था और आनंदीबेन ने तब 40 महिलाओं को ये कोर्स सिखाया.

आनंदीबेन ने 1962 में मफतलाल पटेल से शादी की

उन्होंने 1962 में मफतलाल पटेल से शादी की. शादी के 4 साल बाद दोनों अहमदाबाद चले गए, जहां आनंदीबेन ने अपनी पढ़ाई जारी रखी. उन्होंने साइंस में मास्टर्स की डिग्री ली. गुजरात विद्यापीठ से उन्होंने मास्टर डिग्री हासिल की. यहां उन्हें गोल्ड मेडल मिला.. इसके बाद आनंदीबेन ने अहमदाबाद में आश्रम रोड पर स्थित लड़कियों के लिए एक स्कूल मोहिनाबा कन्या विद्यालय के साथ एक शिक्षण करियर की शुरुआत की.

शिक्षिका रहते बच्चों के लिए आंदोलनकारियों से भिड़ गई थीं

यह सेमी गवर्नमेंट स्कूल वह जगह है जहां आनंदीबेन ने लगभग आधी जिंदगी बिताई. 1967 से 1998 तक उन्होंने यहां अध्यापन किया. स्कूल में उनकी सहकर्मी मीनाक्षी देसाई ने एक समाचार वेबसाइट को बताया था- पूरे राज्य में हड़ताल का आह्वान किया गया था. जब सुबह असेंबली चल रही थी, तो भीड़ जमा हो गई और प्रशासन पर दिनभर के लिए स्कूल बंद करने का दबाव बनाने लगी. हालांकि, पटेल ने विरोध किया. उन्होंने धरना देने वालों से कहा कि बच्चे स्कूल पहुंच चुके हैं, अगर उन्हें तुरंत वापस भेज दिया गया तो उन्हें परेशानी होगी. उन्होंने भीड़ से आग्रह किया कि स्कूल को बच्चों को सामान्य समय पर घर भेजने की अनुमति दी जाए.”

आनंदीबेन ने पिकनिक मनाने गई लड़कियों को डूबने से बचाया

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में उनके करीबी सहयोगी रहे भाईलाल पटेल ने भी एक घटना को याद किया था और बताया था कि नवगाम जलाशय के पास दो छात्राएं पानी में डूबने वाली थी. ये पिकनिक पर गई थीं. आनंदीबेन पानी में कूद गईं और दो लड़कियों में से एक के बाल पकड़ लिए और उसे पानी से बाहर खींच लिया. उसके साथ दूसरी लड़की भी बाहर आ गई क्योंकि वह उससे चिपकी हुई थी.

आनंदीबेन ने अपने भांजे का बाल विवाह रोक दिया था

महिला सशक्तिकरण को लेकर आनंदीबेन इस कदर दृढ़ थीं कि उन्होंने अपने बड़े भाई के बेटे देवचंदभाई पटेल के बाल विवाह को रोक दिया था. भाईलाल पटेल के अनुसार, “उसने विसनगर की एक अदालत से शादी के खिलाफ स्टे ऑर्डर हासिल कर लिया था. शादी संपन्न होने से पहले पुलिस बुला ली गई. हालाँकि वह जानती थी कि उसके इस फैसले से उसके भाई और अन्य रिश्तेदार नाराज़ होंगे, लेकिन वह रुकी नहीं. वह हमेशा समाज में चल रही कुरीतियों के खिलाफ लड़ी.

गुजरात में आए सूखे ने आनंदीबेन की सोच को बदल दिया

लेकिन महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करते हुए भी आनंदीबेन ने राजनीति की ओर रुख नहीं किया था. लेकिन गुजरात में 1985-87 में आए सूखे ने उनकी सोच को बदल दिया था. उन्होंने बताया था कि मैं राजनीति के लिए बहुत उत्सुक नहीं थी. मुझे अपने बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान देना था लेकिन सूखे के दौरान, मैंने उत्तर गुजरात और सबसे बुरी तरह प्रभावित कच्छ में जमीनी हकीकत को जानने के लिए 4 दिन की न्याय यात्रा की.

यात्रा के दौरान उनका सामना ग्रामीणों,और खासतौर से महिलाओं की समस्याओं से हुआ. यहां उन्होंने फैसला किया कि बदलाव सिर्फ राजनीति के रास्ते जाकर ही लाया जा सकता है. उन्होंने बीजेपी की महिला विंग की अध्यक्ष के रूप में राजनीतिक पारी शुरुआत की. तब बीजेपी के पास गुजरात में कोई महिला नेत्री नहीं थी और उसकी महिला विंग भी निष्क्रिय थी. उन्हें जानने वाली एक बीजेपी कार्यकर्ता ने बताया, "उन्होंने एकता यात्रा का आयोजन किया, यात्रा के दौरान गुजरात में अलग अलग कार्यक्रमों के लिए महिलाओं को संगठित किया और बीजेपी की महिला शाखा को क्रियाशील बनाया."

1992 में आनंदीबेन का राजनीतिक जीवन बदल गया

आनंदीबेन के राजनीतिक करियर में पहला बड़ा अवसर 1992 में जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में आया. उनकी पार्टी ने गणतंत्र दिवस पर लाल चौक पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने की योजना बनाई थी और अलगाववादियों ने घाटी में ऐसी किसी भी कार्रवाई के खिलाफ चेतावनी दी थी. बीजेपी कार्यकर्ता याद करते हैं, ''महिला होने के बावजूद उन्होंने आतंकी धमकियों को नकारा और लाल चौक पर तिरंगा फहराया. वास्तव में, राष्ट्रीय ध्वज फहराने के तुरंत बाद, कार्यक्रम स्थल पर एक बम विस्फोट भी हुआ.”

राज्यसभा की सदस्यता छोड़कर जीतीं चुनाव, मंत्री भी बनीं

इस तरह से दिलेरी भरे कदम ने उन्हें 1994 में राज्यसभा पहुंचा दिया. बीजेपी द्वारा राज्य विधानसभा के लिए मंडल सीट से उन्हें मैदान में उतारने का फैसला करने के बाद उन्होंने 1998 में संसदीय सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. विधानसभा चुनाव में वह जीतीं और केशुभाई पटेल सरकार में शिक्षा मंत्री बनीं. उन्होंने तब से पीछे मुड़कर नहीं देखा. लगातार चार बार विधायक चुनी जाने वाली गुजरात की एकमात्र महिला वही हैं.

उनके पति, मफतलाल पटेल अब उनसे अलग हैं. वह उन्हें एक निर्णायक नेता और एक स्वतंत्र विचारक के रूप में याद करते हैं. वह बताते हैं कि कैसे उन्होंने पुरुषोत्तम रूपाला जैसे वरिष्ठ नेता द्वारा लिए गए फैसलों को भी वीटो कर दिया था. चुनाव के लिए उम्मीदवारों की हमेशा पार्टी के वरिष्ठ नेताओं द्वारा सिफारिश की जाती है. कुछ साल पहले, रूपाला, जो उस समय गुजरात भाजपा प्रमुख थे, ने अहमदाबाद नगर निगम चुनाव के लिए कुछ नामों का सुझाव दिया था लेकिन, उनकी सलाह पर ध्यान दिए बिना, आनंदीबेन ने उन उम्मीदवारों को मैदान में उतारने पर जोर दिया, जिनके बारे में उन्हें लगा कि उनके जीतने की अधिकतम संभावना है.

एक बार, Ahmedabad District Primary Education Committee के अध्यक्ष के रूप में, उन्होंने 27 नई अपॉइंट महिला टीचर्स का तबादला कर दिया. उन्हें लगा कि वे उस जगह पर फिट नहीं थी जहां उनकी नियुक्ति की गई थी लेकिन जब फाइल शिक्षा मंत्रालय के पास पहुंची तो फैसला पलट दिया गया क्योंकि तबादला नियमों का पालन नहीं किया गया था. आनंदीबेन तब शिक्षा मंत्री थीं.

लंबे विचार-विमर्श के बाद लिए गए फैसलों पर अड़े रहना ही आनंदीबेन की खासियत है. भाईलाल पटेल कहते हैं, ''वह जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेतीं, लेकिन एक बार फैसला कर लेने के बाद वह उस पर अड़ी रहती हैं, भले ही इसका मतलब लोगों को परेशान करना हो, चाहे वह परिवार के सदस्य हों या बाहरी. एक महिला में इस तरह की इच्छा शक्ति असाधारण होती है.”

ये भी देखें- Bal Thackeray: BJP से पहले बाल ठाकरे ने क्यों मिलाया था Muslim League से हाथ?

आनंदीबेन, नरेंद्र मोदी सरकार में अच्छी पोजिशन वाले मंत्रियों में से थीं. मोदी और पार्टी दोनों ने उन्हें सरकार के लिए महत्वपूर्ण माना, 2012 के विधानसभा चुनावों में स्पष्ट हो गया जब उन्हें पाटन निर्वाचन क्षेत्र से अहमदाबाद शहर के घाटलोडिया सीट पर ट्रांसफर कर दिया गया. वे निर्वाचन क्षेत्र के परिसीमन की वजह से कोई जोखिम नहीं लेना चाहते थे. तब आनंदीबेन ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 1,10,395 मतों से हरा दिया था, जो कि मोदी की जीत से भी बड़ा अंतर था.

चुनाव के दौरान उनका कैंपेन मैनेज करने वाले भाईलाल पटेल ने कहा कि अमित शाह, नितिन पटेल और सौरभ पटेल मोदी की गुड बुक में हैं, लेकिन इन नामों से उलट आनंदीबेन हर दिन मीडिया की खबरों में भले न रहती हों लेकिन यह उनका काम ही है जो उन्हें लगातार आगे बढ़ाता रहा.

चलते चलते 21 नवंबर को हुई दूसरी अहम घटनाओं पर भी एक नजर डाल लेते हैं

1517: दिल्ली के सुल्तान सिकंदर शाह लोदी (Sikander Shah Lodi) का निधन हुआ
1877: थॉमस अल्वा एडिसन (Thomas Alva Edison) ने दुनिया के सामने पहला फोनोग्राफ पेश किया.
1867: लग्जमबर्ग (Luxembourg) को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित किया गया. इसके बाद भी देश हॉलैंड से जुड़ा रहा
1906: चीन ने आज ही के दिन अफीम के कारोबार (Opium Business in China) पर रोक लगाई
1947: आज ही के दिन भारत में पहली बार डाक टिकट (First Postage Stamp in India) जारी किया गया

Narendra ModiAnandiben Patelgujarat assembly elections 2022

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