Morbi bridge collapse : 'झूलतो पुल' पर लोगों की हंसती-मुस्कुराती, सेल्फी लेती हुई पहली तस्वीरें और टूटे हुए पुल पर चढ़कर किसी तरह अपनी जान बचाती हुई दूसरी तस्वीरें... हादसे के समय और हादसे के बाद की पूरी कहानी बताती है. कहानी की शुरुआत करूं, उससे पहले बारी-बारी से दोनों वीडियो देख लेते हैं. आपके फुल स्क्रीन पर दिख रहा यह वीडियो हादसे के समय की है. जब कोई शख्स अच्छे लम्हों को अपने कैमरे में क़ैद करने की हसरत लिए वीडियो बना रहा था. लेकिन अगले ही पल जो हुआ, उसकी कल्पना ना तो हंसते-मुस्कुराते पुल पर खड़े इस भीड़ ने की होगी और ना ही वीडियो बना रहे शख्स ने.
वहीं अब दूसरा वीडियो देख लेते हैं. थोड़ी देर पहले तक जो लोग पुल पर डांस कर रहे थे, कूद-कूद कर पुल को झुलाने की कोशिश कर रहे थे, अब वही लोग अपनी जान बचाने के लिए
टूटे हुए पुल के सहारे समतल जमीन तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं.
गुजरात के मोरबी पुल हादसे में अब तक 140 से अधिक लोगों की मौत की ख़बर सामने आ चुकी है. मच्छू नदी पर जब यह हादसा हुआ, शाम के करीब साढ़े छह बजे थे. दिन था रविवार, 30 अक्टूबर. वहां मौजूद लोगों के मुताबिक पुल पर एक समय में 1000 से ज़्यादा लोग जमा हो गए थे. जबकि मीडिया रिपोर्ट्स में पुल पर खड़े होने वालों की संख्या 500 के क़रीब बताई गई है.
सिर्फ पांच दिन पहले ही इस पुल को मरम्मत करने के बाद दोबारा खोला गया था. साथ ही रविवार होने और दिवाली की छुट्टी होने की वजह से पुल पर अचानक से भीड़ इकट्ठा होने की बात भी कही जा रही है. टीवी चैनलों से बात करते हुए कई प्रत्यक्षदर्शियों ने यहां तक कहा कि घटना के वक़्त कुछ लोग पुल पर कूद रहे थे और कुछ बड़े तारों को खींच रहे थे.
अभी तक इस हादसे के सही कारणों को लेकर कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है. लेकिन वहां मौजूद ज्यादातर लोग इस हादसे के लिए ''लोगों की भारी भीड़'' को मुख्य वजह बता रहे हैं. सवाल उठता है कि मोरबी के इस ऐतिहासिक पुल के मरम्मत की ज़िम्मेदारी संभाल रही अजंता ओरेवा ग्रुप ऑफ कंपनीज के एमडी ने जब प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ब्रिज को आम लोगों के लिए खोलने का ऐलान किया तो अफ़सरों और संबंधित विभाग ने NOC की मांग क्यों नहीं की?
पुल की क्षमता 100 लोगों की थी, लेकिन घटना के समय लोगों की संख्या 500 से 1000 तक होने का दावा किया जा रहा है. आख़िर कंपनी ने लोगों की सुरक्षा को नज़रअंदाज़ करते हुए 100 से ज़्यादा लोगों को टिकट ही क्यों दी? हादसे में घायल हुए धीरज बाबूभाई सोलंकी के मुताबिक उन्होंने खुद के लिए एक टिकट 70 रुपये की खरीदी थी और बच्चों के लिए 12 रुपये प्रति टिकट. इसका मतलब यह तो तय है कि कोई भी पुल पर यूं ही टहलते हुए नहीं पहुंच गया था. जो भी गया, कंपनी ने बाक़ायदा उसे टिकट दी.
कई लोगों के आरोप यह भी है कि कंपनी ने ज़्यादा पैसे कमाने के लिए टिकट को महंगे दामों पर बेचा और लोगों की सुरक्षा से खिलवाड़ किया. क्या इस तरह घड़ी-बल्ब बनाने वाली कंपनी के ज़िम्मे पुल के मरम्मत की जिम्मेदारी सौंपना प्रशासनिक लापरवाही नहीं है? छह महीने से बंद इस पुल को रेनोवेशन के बाद, इसकी मजबूती की जांच किए बगैर चालू करने की जल्दबाज़ी क्यों दिखाई गई? आज इन्हीं तमाम सवालों पर होगी बात, आपके अपने कार्यक्रम- मसला क्या है में....
रविवार शाम जब पुल टूटा तो एक साथ कई लोग, 100 फीट नीचे पानी में गिरे. पानी की गहराई भी 15 फीट के करीब बताई जा रही है. हालांकि NDRF पुल के नीचे गाद होने की बात बता रहे हैं. संभवत: यही वजह है कि लोग जब पुल से नीचे गिरे तो कई लोग गाद में जा धंसे. प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक पुल टूटने के बाद लोग एक-दूसरे के ऊपर गिरे थे. घटना के बाद ज्यादातर लोग पुल के नीचे गिरे, जबकि कुछ लोग जाल में ही अटक गए. किसी की औलाद उसके सामने दम तोड़ रहा था तो किसी के मां-बाप. कोई औरत मरते-मरते भी इसलिए परेशान थी क्योंकि उसकी कोख ही, उसके बच्चे के लिए कब्र बनने वाली थी. किसी के आंखों के सामने ही उसका पूरा परिवार दम तोड़ रहा था तो कोई अपनों को खोने के बाद भी दूसरे बच्चों की जान बचाने के लिए अपने टूटे हुए सब्र बांध रहा था.
दैनिक भास्कर ने कुछ लोगों की आपबीती बताई है. उसी में से कुछ का ज़िक्र यहां करने जा रहा हूं. घटना के वक़्त आरिफ समेत उनका 8 सदस्यीय परिवार भी ब्रिज पर मौजूद था. हादसे में आरिफ़ की जान तो बच गई लेकिन पत्नी और पांच साल के बेटे की जान चली गई. जबकि बेटी समेत पांच सदस्य अभी भी लापता हैं. हलीमाबेन की बेटी जो अपनी ननद की सगाई में आई हुई थीं, अपने आंखों के सामने परिवार के 6 लोगों को हादसे का शिकार होती देखी. हलीमा ने बताया कि उनकी बेटी-दामाद, दोनों नवासे, हलीमा के जेठ और उनका लड़का 'झूलतो पुल' देखने गए थे, लेकिन उसके टूटने से नदी में गिर गए.
जामनगर जिले के जलिया देवानी गांव के रुपेश भाई ने अपने तीन बच्चों और पत्नी सब को खो दिया. वह ख़ुद किसी तरह ब्रिज की केबल पकड़कर बच गया. जबकि उसकी पत्नी अपने बच्चों को ढूंढ़ने गई और ख़ुद कीचड़ यानी कि गाद में फंस कर अपनी जान गंवा बैठी. वहीं चार साल का जियांश जो रविवार शाम अपने मम्मी-पापा के साथ घूमने निकला था. अब अनाथ हो गया है. मोरबी के रहने वाले हार्दिक फलदू और पत्नी मिरल की हादसे में मौत हो गई, लेकिन डूब रहे जियांश को किसी ने बचा लिया. जियांश की जान तो बच गई, लेकिन अब उसके सिर से माता-पिता का साया हट गया है.
रेस्क्यू के काम में लगे NDRF कमांडेंट वीवीएन प्रसन्न कुमार ने ANI से बात करते हुए कहा कि हमने इतनी मौतें पहली बार देखी हैं. एक चश्मदीद, जिसने 8 लोगों की जान बचाई, उसने बताया कि यहां हजार से ज्यादा लोग मौजूद थे. बच्चे डूब रहे थे, हमने पहले उन्हें बचाया, बाद में बड़ों को निकाला. कई लोग पाइप के सहारे भी हादसे के शिकार लोगों को निकाल रहे थे. जो लोग तैरना जानते थे, वो ख़ुद तैरकर बाहर आ गए.
इस घटना को लेकर अब कई सारे सवाल उठ रहे हैं. कांग्रेस ने आरोप लगाते हुए कहा है कि एक दो दिनों में चुनाव की घोषणा होने वाली थी. इसलिए चुनावी फ़ायदा लेने के लिए इस पुल को बिना चेक किए हुए ही अफरातफरी में शुरू कर दिया गया.
आपकी जानकारी के लिए बता दूं, मोरबी की शान कहलाया जाने वाला केबल सस्पेंशन ब्रिज का इतिहास 143 साल पुराना है. यह पहली बार 20 फरवरी 1879 को शुरू किया गया था. बीच में भी इस पुल की कई बार मरम्मत की गई है. पिछले छह महीने से भी ब्रिज के रेनोवेशन का काम चल ही रहा था. जिसके लिए 2 करोड़ रुपए खर्च भी किए गए. बाद में इसे गुजराती नव वर्ष के मौके पर यानी 26 अक्टूबर को दोबारा से खोला गया.
वहीं पुलिस ने अब तक कार्रवाई करते हुए ओरेवा कंपनी के मैनेजर, दो टिकट क्लर्क, रिपेयरिंग करने वाले कॉन्ट्रैक्टर समेत 9 लोगों को गिरफ्तार किया है. इस मामले में अब सवाल सीधे-सीधे मोरबी नगर निगम और पुल का रख-रखाव कर रही कंपनी के बीच हुए समझौते पर खड़े हो रहे हैं.
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए मोरबी मगर निगम के चीफ़ ऑफ़िसर ने बताया कि पुल को मरम्मत के बाद फ़िटनेस सर्टिफ़िकेट इसलिए नहीं दिया गया था क्योंकि अभी तक यहां सेफ़्टी ऑडिट नहीं हो सका था. ओरेवा ग्रुप ने नगर निगम को ये जानकारी ही नहीं दी थि कि पुल 26 अक्टूबर से दोबारा खोला जा रहा है.
नगर निगम ने यहां तक बताया कि पुल की मरम्मत और नवीनीकरण के लिए करीब 10 महीने का समय दिया गया था लेकिन कंपनी ने इसे केवल सात महीने में ही खोल दिया. एक और महत्वपूर्ण बात सामने आई है. ओरेवा ग्रुप की प्रमुख कंपनी अजंता मैन्यूफ़ैक्चरिंग प्राइवेट लिमिटेड इस ब्रिज के काम को साल 2008 से ही देख रही है. मोरबी नगर निगम के साथ हुए ताज़ा समझौते के तहत कंपनी को अगले 15 सालों के पुल रख-रखाव की पूरी ज़िम्मेदारी दे दी गई थी. इसमें पुल का संचालन, देख-रेख, सुरक्षा, टिकट व्यवस्था, सफ़ाई और यहां तक कि कर्मचारियों की तैनाती भी शामिल है.
नए समझौतों के तहत फिलहाल व्यस्कों के लिए टिकट की कीमत 15 रुपये प्रति व्यक्ति ही होगी. साल 2027-2028 के बाद से कंपनी टिकट के दाम हर साल 2 रुपये के हिसाब से बढ़ा सकती है, जबकि रविवार को 70 रुपये के कीमत से एक टिकट बेची गई है. यानी एक बात तो साफ है कि रविवार को जब लोग इतनी भारी संख्या में पुल पर पहुंचे तो इसके लिए कंपनी सीधे-सीधे ज़िम्मेदार है.
वहीं बीजेपी नेता और गुजरात के पूर्व डिप्टी सीएम नितिन पटेल ने एक टीवी चैनल से बात करते हुए कहा कि मोरबी पुल हादसे की नैतिक जिम्मेदारी सरकार की है. क्योंकि राज्य में हमारी सरकार है. जिले का प्रशासन हमारा है, कलेक्टर हमारा है और म्युनिसिपालिटी भी जिला प्रशासन के अंतर्गत ही आती है. दीवाली के बाद, पुल आम लोगों के लिए खोल दिया गया था. लोग वहां जा रहे थे. सबको इस बात की जानकारी थी. इसके बावजूद किसी ने सुध नहीं ली. वहीं इस घटना को लेकर विपक्षी दल सरकार पर हमलावर है.
JDU अध्यक्ष ललन सिंह ने पीएम मोदी का एक पुरान वीडियो शेयर करते हुए सवाल किया है कि ये यह 'एक्ट ऑफ गॉड' है या 'एक्ट ऑफ फ्रॉड'? उन्होंने अपने ट्वीटर हैंडल पर लिखा- गुजरात में चुनाव है, 2001 से CM रहे भाजपा नेता मोदी जी 2014 से देश के प्रधानमंत्री हैं. मोरबी की दुर्घटना से सभी भारतवासियों का मन व्यथित है, लेकिन आदरणीय मोदी जी बताएं कि पश्चिम बंगाल में यह एक्ट ऑफ़ गॉड नहीं बल्कि एक्ट ऑफ़ फ्रॉड था तो गुजरात में क्या है? ललन सिंह ऐसा क्यों कह रहे हैं, उसे समझने के लिए पीएम मोदी का वह पुराना बयान सुन लेते हैं. जो उन्होंने ट्वीट भी किया है.
अच्छी बात यह है कि कांग्रेस की तरफ से अब तक इस तरह की राजनीति देखने को नहीं मिली है. कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने मोरबी की घटना पर कहा कि वे किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहते. मोरबी में लोगों की जान गई है. ऐसे में इस घटना का राजनीतिकरण ठीक नहीं होगा. वहीं कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी कहा है कि ब्रिज हादसे पर हम राजनीति नहीं करना चाहते, मामले की जांच HC के रिटायर्ड जजों से कराई जाए"
वहीं गुजरात के मोरबी में सिविल अस्पताल के रातोंरात कायापलट करने की कोशिश वाली उन तस्वीरों को लेकर कांग्रेस ज़रूर हमलावर है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे से पहले अस्पताल की रंगाई-पुताई की जा रही है. कांग्रेस हैंडल से इस घटना को त्रासदी बताते हुए ट्वीट किया गया है- "कल PM मोदी मोरबी के सिविल अस्पताल जाएंगे... उससे पहले वहां रंगाई-पुताई का काम चल रहा है... चमचमाती टाइल्स लगाई जा रही हैं... PM मोदी की तस्वीर में कोई कमी न रहे, इसका सारा प्रबंध हो रहा है... इन्हें शर्म नहीं आती...! इतने लोग मर गए और ये ईवेंटबाजी में लगे हैं...
आम आदमी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल ने भी इन तस्वीरों के साथ कुछ ऐसी ही बातें ट्वीट करते हुए लिखी है.
ऐसा नहीं है कि मोरबी सिविल अस्पताल में चल रहे रंगाई-पुताई को लेकर केवल विपक्ष ही हमलावर है. घायल लोगों का इलाज़ करा रहे परिजन भी इस घटना को लेकर बेहद गुस्से में हैं. सिविल अस्पताल में आए एक व्यक्ति ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा कि वह आधी रात से अपनी भांजी और उसके मंगेतर को तलाश रहे हैं, लेकिन अस्पताल में हर कोई मेगा यात्रा में व्यस्त है.
विनोद नाम के एक शख्स ने बताया कि 'भांजी और उसका मंगेतर रविवार को सैर के लिए मोबिया ब्रिज पर गए थे. उन्हें लापता हुए 24 घंटे से अधिक हो गए हैं, मैं पुल पर भी गया, लेकिन उनका कुछ पता नहीं चला. मैंने अस्पताल में भी हर जगह उन्हें तलाशा, लेकिन वह कहीं नहीं मिले. सिविल अस्पताल में कोई भी मदद नहीं कर रहा है.
अगर वे जिंदा नहीं भी हैं तो कोई उनके शव के बारे में ही बता दे, लेकिन कोई कुछ नहीं बता रहा. प्रधानमंत्री के लिए अस्पताल अपनी दीवारों को पेंट करने में व्यस्त है. यह तो हमारे देश की स्थिति है. प्रशासन का ध्यान पूरी तरह से प्रधानमंत्री के दौरे पर है औऱ लोग भटक रहे हैं.'
हालांकि सवाल फिर वही है कि इस घटना के लिए ज़िम्मेदारी किसकी तय होनी चाहिए और ज़िम्मेदारी तय तभी होगी जब इन सवालों के जवाब मिलेंगे? क्या पुल को जल्दबाजी में चालू किया गया, अगर हां तो क्यों? पुल के रेनोवेशन के बाद उसकी मजबूती की जांच क्यों नहीं हुई? ब्रिज की क्षमता को लेकर चेतावनी या सूचना बोर्ड कहीं पर क्यों नहीं लगाया गया था? घड़ी-बल्ब बनाने वाली कंपनी के ज़िम्मे इतने बड़े पुल को छोड़ने का फ़ैसला क्यों लिया गया? क्या गुजरात सरकार इन सवालों के जवाब ढूंढ़ पाएगी या फिर चुनावी शोर के बीच यह मामला दब कर रह जाएगा?