Hinduism in Thailand : दक्षिण एशियाई देश थाईलैंड में हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां आम हैं. यहां कई हिंदू मंदिर हैं. कुछ नए दौर के तो कुछ बेहद प्राचीन. थाईलैंड में रामायण राष्ट्रीय ग्रंथ है. थाई भाषा पर भी भारतीयता का प्रभाव दिखाई देता है. आइए जानते हैं कि थाईलैंड का भारत (Thailand-India Relation) से रिश्ता है क्या और कैसे हिंदू धर्म (How Hinduism reached Thailand) थाईलैंड पहुंचा?
7 करोड़ से कुछ ज्यादा आबादी वाले थाईलैंड में बौद्ध 95 फीसदी (Buddhism in Thailand) से ज्यादा है जबकि हिंदू 0.1 फीसदी (Hinduism in Thailand)... कुल संख्या 80,000 हैं... लेकिन फिर भी पूरे थाईलैंड में इंद्र, ब्रह्मा, गणेश, गरुण, शिव के मंदिर दिखाई देते हैं. कई 800-1000 साल पुराने हैं तो कुछ नए दौर के... अचरज की बात ये कि यहां के हिंदू मंदिरों में बौद्ध धर्म को मानने वाले भी आते हैं और वे हिंदू देवी देवताओं की पूजा वैसे ही करते हैं, जैसे हिंदू आबादी (Hindu Population in Thailand) करती है...
थाईलैंड में दो थाई ब्राह्मण समुदाय (Brahmin Community in Thailand) हैं- ब्रह्म लुआंग (रॉयल ब्राह्मण) और ब्रह्म चाओ बान (लोक ब्राह्मण). सभी थाई ब्राह्मण धर्मों से बौद्ध हैं, लेकिन ये हिंदू देवताओं की पूजा करते हैं. ब्रह्म लुआंग (रॉयल ब्राह्मण) मुख्य रूप से थाई राजा के शाही समारोह करते हैं, जिसमें राजा का राज्याभिषेक भी शामिल होता है. इनकी जड़ें भारत के तमिलनाडु (Tamilnadu) से जुड़ती हैं.. वहीं, ब्रह्म चाओ बान वे ब्राह्मण समुदाय हैं, जो पूजा पाठ नहीं करते हैं...
थाईलैंड के सुवर्णभूमि हवाईअड्डे (Suvarnabhumi Airport In Thailand) पर आपको पांचजन्य शंख (Panchjanya Shankh) और समुद्र मंथन (Samudra Manthan) की आकृति दिखाई देती है...
थाईलैंड में राजा को राम की पदवी के नाम से जाना जाता है, रामायण यहां रामकेन (Ramakien in Thailand) के रूप में राष्ट्रीय ग्रंथ है. कई थाई पेंटिंग्स में रामायण के रंग दिखाई देते हैं. पेटिंग में हनुमान को लंका के ऊपर उड़ते दिखाया गया है.. लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि आखिर भारत का हिंदू धर्म थाईलैंड (How Hinduism reached in Thailand) पहुंचा कैसे?
थाईलैंड का और भारत के हिंदू धर्म से रिश्ता समझने से पहले हमें दो भाषाओं को समझना होगा... एक है थाई स्क्रिप्ट और दूसरी है पल्लव स्क्रिप्ट... पल्लव स्क्रिप्ट एक ऐसी भाषा थी जो दक्षिण भारत में पल्लव राजवंश के दौर में उभरी और इसे वहीं से पहचान भी मिली... इसकी कहानी शुरू होती है चौथी शताब्दी से...
आज के चेन्नई से अगर थाईलैंड के दक्षिणी हिस्से में स्थित इसकी राजधानी बैंकॉक का समुद्री रास्ता देखें तो ये एक सीधी रेखा मालूम होती है... जाहिर है कारोबारियों ने दक्षिण पूर्व एशिया का रुख किया और फिर पल्लव स्क्रिप्ट ने ही बालीनीज, बेबेइन, जावानीज, कावी, खमेर, लान्ना, लाओ, मोन और बर्मीज भाषा को भी जन्म दिया...
थाई लिपि और कई दूसरी दक्षिण एशियाई लिपियां पुरानी तमिल पल्लव लिपि की ही शाखा से निकली भाषाएं है... इसीलिए आज भी थाई और पुरानी तमिल लिपियों के बीच समानताएं मिलती हैं.
इसे और सरल करें... तो ऐसे कहेंगे कि खमेर स्क्रिप्ट (कम्बोडियन स्क्रिप्ट) पुरानी तमिल पल्लव स्क्रिप्ट से निकली है और थाई स्क्रिप्ट, खमेर स्क्रिप्ट से निकली है.
तमिल ब्राह्मी स्क्रिप्ट> तमिल पल्लव स्क्रिप्ट> खमेर स्क्रिप्ट> थाई स्क्रिप्ट
बड़ा सवाल ये है कि क्यों थाईलैंड के लोगों के लिए संस्कृति एक पवित्र भाषा है? दरअसल, पल्लव स्क्रिप्ट (Pallav Script) का इस्तेमाल संस्कृत के ग्रंथों, तांबे की प्लेटों और हिंदू मंदिरों और मठों के पत्थरों पर शिलालेख लिखने के लिए किया गया था. और इसी वजह से संस्कृत से भी इसका जुड़ाव हो गया...
थाई लोगों के लिए, संस्कृत एक पवित्र भाषा है. थाई राजाओं ने हमेशा संस्कृत नाम या पदनी को अपनाया है... जैसे Thammaracha, महात्मार्चा, रमातीबोधी, रामरचातीरथ... 1782 से रामा पदवी चली आ रही है... लेकिन पिछले 80 सालों में सामान्य थाई लोगों ने भी संस्कृत से लगने वाले नामों को अपना लिया है. थाईलैंड के निवासी पहले ये समझते थे कि संस्कृत नाम केवल राजशाही के लिए होने चाहिए...
भाषा का जुड़ाव होता है संस्कृति से और संस्कृति जुड़ी होती है धर्म से... भाषा की इसी डोर ने छाप छोड़ी थाईलैंड सहित दक्षिण पूर्व एशिया पर और भाषा के रास्ते ही आगमन हुआ हिंदू धर्म का...
अब दूसरा सवाल ये है कि आखिर कैसे रामायण और राम थाईलैंड की संस्कृति में रच बस गए...?
राम और रामायण थाईलैंड में दशरथ जातक कथा - Dashrath Jatak Katha (बौद्ध रामायण) के जरिए पहुंचा... रामायण के बौद्ध संस्करण को दशरथ जातक के रूप में जाना जाता है...
अब आते हैं पुराने चैप्टर पर... जब भारतीय थाईलैंड पहुंचे थे...
एक थ्योरी है कि हिंदू धर्म सबसे पहले व्यापारियों के जरिए थाईलैंड पहुंचा था. लेकिन यह सीधे थाईलैंड नहीं पहुंचा था... पहले ये कंबोडिया (Cambodia) पहुंचा और फिर कंबोडिया से होते हुए थाईलैंड पहुंचा...
हाल के दिनों में, यूरोपीय और भारतीय विद्वानों ने दक्षिण पूर्व एशिया को 'फर्दर इंडिया', 'ग्रेटर इंडिया', या 'हिंदूनाइज्ड या इंडियनाइज्ड स्टेट' के रूप में बताया है.
दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में 'इंडियनाइजेशन' के प्रोसेस का गहराई से अध्ययन करने वाले पहले शख्स जॉर्ज कोडेस थे जो एक फ्रांसीसी विद्वान थे. उन्होंने जहां भारत की सभ्यता को महसूस किया उन देशों को 'फर्दर इंडिया' के नाम से बुलाया.
संस्कृत, बौद्ध, और जैन ग्रंथों से पता चलता है कि दो क्षेत्रों के बीच रिश्ता दो हज़ार साल से भी पहले का है, मुख्य रूप से समुद्री यात्राओं के माध्यम से और व्यापार ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इतिहासकार कर्मवीर सिंह ने 'भारत-थाईलैंड संबंधों के सांस्कृतिक आयाम: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य' (2022) नाम के एक शोध पत्र में लिखा है कि व्यापारी अपने साथ "भारतीय धर्म, संस्कृति, परंपरा और दर्शन को अपने साथ दक्षिण एशिया के देशों में ले आए. “उनके साथ ब्राह्मण पुजारी, बौद्ध भिक्षु, विद्वान और लड़ाके भी थे और इन सभी ने भारतीय संस्कृति को दक्षिण पूर्व एशिया के मूल निवासियों तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. कुछ व्यापारियों और ब्राह्मण पुजारियों ने स्थानीय लड़कियों से शादी की. कुछ ब्राह्मणों को राजाओं ने अपने पुरोहित के रूप में भी रखा.
जब थाईलैंड में खमेर साम्राज्य (Khmer Empire) सत्ता में आया, तो हिंदू धर्म तब तक प्रमुख धर्म बना रहा जब तक कि जयवर्मन VII (1181-1218 का शासन) का काल रहा. खामेर साम्राज्य कंबोडिया से आया था और अपने साथ हिंदू धर्म लेकर आया था और राजा की पसंद का धर्म होने की वजह से देश में इसका प्रभाव तेजी से फैला..
थाईलैंड की पूर्व राजधानी अयुत्थाया (Ayutthaya in Thailand) का नाम अयोध्या के नाम पर रखा गया जो भारत में भगवान राम की जन्मस्थली है और इससे 3500 किलोमीटर दूर है... 802 में खामेर अम्पायर ने थाईलैंड पर सत्ता स्थापित की थी और इसने 1431 तक सत्ता कायम रखी... बौद्ध धर्म इस पूरे काल में अयुत्थाया साम्राज्य का मुख्य धर्म था और हिंदू धर्म का इसकी संस्कृति और समाज पर गहरा असर था...
खमेर लोग भी हिंदुओं की तरह ही पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं. पारंपरिक विवाहों में पारंपरिक हिंदू विवाहों की तरह ही कुंडली का मिलान होता है. मृत्यु के बाद, शरीर का अंतिम संस्कार किया जाता है; राख का एक हिस्सा नदी में विसर्जित कर दिया जाता है और बाकी एक स्तूप के अंदर रखा जाता है.
थाईलैंड में, हिंदू धर्म को राजशाही के लिए आवश्यक माना जाता है और शाही पदवी मिली हुई थी. राजा धर्मराज प्रथम के 1361 शिलालेख में बताया गया है कि राजा को वेदों और एस्ट्रोनॉमी का ज्ञान था.
थाईलैंड में हिंदू धर्म आने की एक दूसरी थ्योरी ये है कि देश के दक्षिणी हिस्से में इसके आगमन से बरसों पहले यह भारत में अमरावती से या बर्मा में मोन लोगों के जरिए थाईलैंड के मैदानी इलाकों में पहुंच चुका था.
बात करें भारत के धार्मिक ग्रंथ रामायण की तो माना जाता है कि रामायण दक्षिण भारत के व्यापारिक मार्गों से 7वीं शताब्दी की शुरुआत में थाईलैंड पहुंची थी. थाईलैंड में इसे एक नए रूप में स्वीकार किया गया.
यहां ये भी बता दें कि राजराजा चोल I और उनके उत्तराधिकारियों राजेंद्र चोल I, वीरराजेंद्र चोल और कुलोथुंगा चोल I के शासनकाल के दौरान, चोल सेनाओं ने 11वीं सदी में श्रीलंका, मालदीव और दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ हिस्सों जैसे मलेशिया, इंडोनेशिया और श्रीविजय साम्राज्य के दक्षिणी थाईलैंड पर आक्रमण किया था.
थाई लोगों ने भारतीय रामायण को अपने राष्ट्रीय महाकाव्य के रूप में अपनाया और वे लगभग 800 वर्षों से अधिक वक्त से इससे साहित्यिक रूप से जुड़े हैं. थाईलैंड के लोग रामायण की कथा को हिंदुओं की तरह ही गंभीरता से लेते हैं. अयुत्थाया की स्थापना के बाद से उनके सभी राजा राजा राम के रूप में गद्दी पर बैठते हैं.
1767 में बर्मीज आक्रमणकारियों ने अयुत्थाया को तबाह कर दिया था... इसके बाद थाईलैंड के लोगों ने नई अयुत्थाया की स्थापना की. बैंकॉक का असली नाम "क्रुंग देवमहानगर अमररत्नकोसिन्द्र महिन्द्रायुध्या महातिलकभव नवरत्नराजधानी पुरीरम्य उत्तमराजनिवेशन महास्थान अमरविमान अवतारस्थित्य शक्रदत्तिय विष्णुकर्मप्रसिद्धि" है. यह किसी भी शहर का सबसे बड़ा नाम है... अब, वर्तमान राजा चक्री वंश के 10वें राम हैं. "चक्र" राम या विष्णु के शस्त्र चक्र से लिया गया नाम है.
यही कारण है कि थाई लोगों के लिए राजशाही का विशेष महत्व है: राजा उनकी सभ्यता का संरक्षक और धारक होता है. जब तक भगवान राम का अस्तित्व है, तब तक थाई सभ्यता की ज्योति अयुत्थाया भी है. राजा के साथ उनका रिश्ता जापानियों और उनके सम्राट के बीच के रिश्ते के समान ही है. हालाँकि, "थाई" वास्तव में एक जातीय समूह नहीं है, यह एक सांस्कृतिक पहचान है. राजा इस पहचान और एकजुटता के आध्यात्मिक पहलू का प्रतिनिधित्व करता है.
थाईलैंड एक ऐसा देश है जहां की 95% आबादी बौद्ध है, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं था. अपने शुरुआती दिनों में, यह शक्तिशाली खमेर साम्राज्य द्वारा शासित था. यह साम्राज्य, जो अब आधुनिक कंबोडिया है, वह हिंदू धर्म को मानता था और नतीजा ये हुआ की हिंदू धर्म का प्रभाव आज थाईलैंड पर दिखाई देता है.
थाईलैंड में हिंदू धर्म को और दिलचस्प जो चीज बनाती है, वो ये कि मंदिरों में आने वाले 95% श्रद्धालु वास्तव में थाई मूल के बौद्ध होते हैं. वे हिंदू देवी देवताओं के प्रति उसी तरह का समर्पण दिखाते हैं जैसा अन्य हिंदू भक्त दिखाते हैं. उनकी पूजा भी हिंदुओं जैसी ही होती है- जैसे अगरबत्ती, दीपक जलाना और देवताओं को माला चढ़ाना.
थाईलैंड के ज्यादातर लोग हिंदू धर्म को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा मानते हैं. कई थाई लोग भी पुजारियों से उनके लिए हिंदू रीति रिवाजों के साथ पूजा करने को कहते हैं...
दिवंगत थाई सम्राट, राजा भूमिबोल अदुल्यादेज, बौद्ध और हिंदू धर्मग्रंथों में खासी दिलचस्पी रखते हैं. उन्होंने अपनी रिसर्च के जरिए कुछ कहानियों को फिर से गढ़ा था. वह विशेष रूप से राजा जनक से प्रभावित थे. उन्होंने अपने रिसर्चर्स को नेपाल के जनकपुर भी भेजा था.
आज थाईलैंड में कई बौद्ध मंदिरों में हिंदू देवताओं की मूर्तियां देखी जा सकती हैं और कई हिंदू मंदिरों में बौद्ध धर्म को मानने वालों की भीड़... थाईलैंड ने हिंदू धर्म को अपने तरीके से गढ़ा है... यहां Brahma (Phra Phrom), Indra (Phra In) और Shiva (Phra Isuan) , Garuda, the vahana of Vishnu (Phra Narai) बुलाए जाते हैं...
Lord Shiva – Phra Isuan
Lord Vishnu – Phra Witsuwanu
Lord Brahma – Phra Phrom
Mata Parvati – Phra Uma Thewi
Mata Laxmi – Phra Laksami Thewi
Lord Indra – Phra In
Lord Surya – Phra Athit
Lord Vayu – Phra Phai
Lord Ram – Phra Ram
Mata Sita – Phra Sida
Lord Hanuman – Phra Hanuman