List of riots in India: हाल के दिनों में देश के अलग-अलग हिस्सों से दंगे की खबरें आ रही है. कहा जाता है कि फूट डालो, शासन करो की नीति ब्रिटिश काल में आई. ऐसे में लोगों के मन में सवाल उठते हैं कि क्या उससे पहले भारत के हिंदू-मुस्लिम शांतिपूर्वक रहते थे.
हालांकि इस सवाल के जवाब भी अलग-अलग हैं. उदारवादी, धर्मनिरपेक्ष और वामपंथी भारतीयों के मुताबिक ब्रिटिश राज से पहले भारत में एक सामंजस्यपूर्ण संस्कृति थी. वहीं दक्षिणपंथी हिंदुओं के मुताबिक सांप्रदायिकता हमेशा से भारतीय इतिहास की विशेषता रही है.
भारतीय इतिहास में हिंदू और मुस्लिम शासकों द्वारा एक-दूसरे की धार्मिक परंपराओं के संरक्षण और मिश्रित हिंदू-मुस्लिम पहचान के ढेरों उदाहरण हैं. उसी तरह हिंदुओं और बौद्धों, शियाओं और सुन्नियों, मुगलों और सतनामियों, ब्राह्मणों और नाथपंथियों आदि के बीच धार्मिक विवादों के भी उदाहरण हैं.
कई मुस्लिम शासकों के दौर में गोहत्या पर प्रतिबंध लगाए जाने, मस्जिदों और मंदिरों को नष्ट किए जाने और होली या मोहर्रम के दौरान सड़कों पर जुलूस निकालने के लिए स्थानीय झगड़ों के भी बहुतेरे उदाहरण हैं. लेकिन इन विवादों ने कभी ‘सांप्रदायिकता’ का रूप नहीं लिया था.
माना जाता है कि भारत में पहली बार दंगा 1832 में हुआ था. जो पारसी लोगों ने किया था. आपको जानकर हैरानी होगी कि यह दंगा किसी धर्म के खिलाफ नहीं बल्कि शहर के अधिकारियों के खिलाफ भड़का था. क्योंकि ये लोग शहर के आवार कुत्तों की हत्या करवा रहे थे.
हालांकि भारत में दंगे का मतलब सांप्रदायिक विवाद होता है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि इसकी शुरुआत कब से हुई? एक नजर भारत में दंगों के इतिहास पर...
भारत में दंगों की शुरुआत कब हुई?
1851 का दंगा (Mumbai Riots)
भारत में पहला दंगा पारसी और मुस्लिमों के बीच हुआ था. दंगा तो मुंबई में हुआ लेकिन विवाद की जड़ में गुजरात था. दरअसल गुजराती मैगजीन Chitra Gyan Darpan ने एक स्टोरी की थी. जिसमें पैगंबर मोहम्मद साहब को लेकर कुछ विवादित लिख दिया गया था. इसे चलाने वाले संपादक पारसी थे. किसी अज्ञात शख्स ने उसी विवादित हेडलाइन को दक्षिणी मुंबई स्थित जामा मस्जिद के दीवार पर चिपका दिया... नमाज अदा करने के बाद जब लोग बाहर आए और दीवार पर यह पोस्टर देखा तो आग बबूला हो गए.
1857 का दंगा (Bharuch Riots)
दूसरा दंगा मई 1857 में हुआ. इसमें बेजोनजी भरूचा नाम के एक पारसी शख्स पर मस्जिद का अनादर करने का आरोप लगा था. जिसके बाद माहौल दंगाई हो गया. यह दंगा भरूच और मुंबई में हुआ था. इसके बाद फरवरी 1874, में भी पैगम्बर साहब की बेअदबी के मामले में दंगा भड़क गया था.
1882 का दंगा (Salem Riots, Tamilnadu)
कहा जा सकता है कि हिंदू-मुस्लिम समुदायों के बीच यह पहला दंगा था. जो तमिलनाडु के सलेम में हुआ था. अगस्त 1882 में हुए इस दंगे की मुख्य वजह मुस्लिमों द्वारा हिन्दू धर्मस्थल पर जबरन मस्जिद बनाना बताया गया. हालांकि इस दंगे में दोनों समुदायों के लोगों की हत्या हुई. लेकिन संख्या को लेकर ठीक-ठीक जानकारी नहीं है. इस दंगे को शांत कराने के लिए दोनों तरफ के काफी लोगों को गिरफ्तार किया गया और जल्द ही दोषियों को अंडमान के जेलों में बंद किया गया. उन्हें काफी कठोर सजा दी गई थी.
1893 के भीषण दंगे (Mumbai Riots)
11 अगस्त 1893 को बम्बई में तब दंगे भड़के थे, जब दक्षिण बम्बई स्थित मशहूर जुमा मस्जिद से कुछ मुसलमान जुम्मे की नमाज़ के बाद निकले और उन्होंने पास की हनुमान गली में हमला बोल दिया. दो दिनों के भीतर इस बारे में सूचनाएं फैलीं और फिर भीषण दंगों की शुरूआत हुई. करीब 11 दिन बाद 22 अगस्त 1893 को ये दंगे थमे और आर्मी तैनात कर दी गई. 25 हज़ार दंगाइयों के हमलों में करीब 75 जानें गईं, मंदिर, मस्जिदें और दुकानों जैसी 300 से ज़्यादा इमारतें तोड़ी या जलाई गईं और सैकड़ों लोग घायल हुए थे.
1921का मालाबार दंगा (Malabar Riots)
केरल के मालाबार इलाके में 1921 में मोपला विद्रोह राजनीतिक शक्ति के खिलाफ संघर्ष के रूप में शुरू हुआ था. लेकिन बाद में सांप्रदायिक हो गया. 20 अगस्त 1921 को शुरू हुआ मोपला विद्रोह कई महीनों तक चला और इसका रक्तरंजित परिणाम सामने आया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मोपला हिंसा के दौरान 10 हजार से ज्यादा लोगों की जान गई थी. सांप्रदायिक हिंसा में सैकड़ों पूजास्थलों को निशाना बनाया गया और जबरन धर्म परिवर्तन के भी आरोप लगे.
1984 सिख-विरोधी दंगा (1984 Sikh Riots)
31 अक्टूबर, 1984 को इंदिरा गांधी की मौत के बाद इस दंगे की शुरुआत हुई थी. इंदिरा गांधी के सिख अंगरक्षकों ने ही उनकी हत्या कर दी. हत्या के अगले ही दिन इस दंगे की शुरुआत हुई जो कई दिनों तक चला. इस दंगे में 800 से ज़्यादा सिखों की हत्या हुई थी.
1986 कश्मीर दंगा (Kashmir Riots)
यह दंगा कश्मीर में मुस्लिम कट्टरपंथी द्वारा कश्मीरी पंडितों को राज्य से बाहर निकालने के कारण हुआ था. इस दंगे में 1000 से भी ज़्यादा लोगों की जानें गयी थीं और कई हज़ार कश्मीरी पंडित बेघर हो गये थे.
1987 का मेरठ दंगा (Meerut Riots)
अप्रैल-जून, 1987 के दौरान मेरठ में सांप्रदायिक दंगे हुए थे. जिसमें मुस्लिमों को निशाना बनाने में राज्य की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही. अयोध्या विवाद पर यह पहला सबसे बड़ा दंगा माना जाता है. दरअसल, 1986 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने राम जन्मभूमि का ताला खोलने का आदेश दिया. इसके परिणामस्वरूप देश में कई सारी घटनाएं हुईं, जिनमें मेरठ का दंगा भी एक था. मेरठ दंगे के दौरान कई जगह दुकानों-घरों में आगजनी की गई. माहौल धीरे-धीरे शांत हो ही रहा था कि एक बार फिर से 19 मई में मेरठ शहर में हालात बिगड़ गए. लूट, आगजनी और झड़पों में करीब 10 लोग मारे गए जिसके चलते कर्फ्यू लगाना पड़ा.
20 मई 1987 में सेना, पुलिस और पीएसी ने कार्रवाई करते हुए तलाशी अभियान चलाया. इस अभियान में लोगों को घर से बाहर निकालकर तलाशी ली गई. सेना ने तलाशी अभियान के बाद सैंकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया.
1989 वाराणसी दंगा (Varanasi Riots)
वाराणसी को आस्था का शहर माना जाता है. इस पवित्र शहर में क्रमवार 1989, 1990 और 1992 में भयंकर दंगे हुए थे. यह दंगे मुख्यत: हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच पूजा विवाद के कारण हुए थे. इस हिंसा में कई लोगों की जानें गईं और कई लोग बेघर हुए.
1989 का भागलपुर दंगा (Bhagalpur Riots)
साल 1989 के अक्टूबर-नवंबर महीने में भागलपुर जिला जल रहा था. शहर और आसपास के करीब 250 गांव दंगे में झुलसते रहे. सरकारी दस्तावेजों में मरने वालों की गिनती 1,000 पर जाकर रुक जाती है. मगर लोग कहते हैं कि इन दस्तावेजों के बाहर करीब 1,000 लोग और मरे थे. मरने वालों में करीब 93 फीसद मुसलमान थे. इस दंगे में पुलिस की भूमिका बेहद शर्मनाक रही. कई ऐसे मौके आए जब स्थानीय पुलिस ने सेना और बीएसएफ को गुमराह किया. जान-बूझकर उन्हें भटकाया. जिन मुस्लिम-बहुल गांवों पर हमले हो रहे थे, वहां आर्मी और बीएसएफ को न भेजकर उन्हें किसी और ही गांव में भेज दिया. हिंदू दंगाई हिंसा करते रहे और पुलिस ने उन्हें ऐसा करने दिया.
1992 मुंबई दंगा (Mumbai Riots)
इस दंगे की मुख्य वजह बाबरी मस्जिद का विध्वंस था. हिंसा की शुरुआत दिसंबर1992 में हुई, जो जनवरी 1993 तक चली. श्रीकृष्ण कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक दिसंबर,1992 और जनवरी, 1993 के दो महीनों के दौरान हुए हुए दंगों में 900 लोग मारे गए थे. इनमें 575 मुस्लिम, 275 हिंदू , 45 अज्ञात और पांच अन्य थे. सुधाकर नाइक की कांग्रेस की सरकार इन दंगों पर काबू पाने में पूरी तरह से असमर्थ साबित हुई और आखिरकार सेना को बुलाना पड़ा था.
2002 गुजरात दंगा (Gujarat Riots)
गुजरात के गोधरा में हुए दंगे देश के इतिहास में हुए सबसे विभत्स दंगों में से एक माना जाता है. इसकी शुरुआत 2002 में हुई थी, जब कारसेवक अयोध्या से गुजरात साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन से लौट रहे थे. इसी बीच कुछ असामाजिक तत्वों ने ट्रेन की कई बोगियों में आग लगा दी. इस घटना में 59 कारसेवकों की मौत हो गई. बाद में प्रतिकार के रूप में इस घटना ने पूरे गुजरात में दंगे के रूप ले लिया.
10 शवों को लेकर कारसेवकों के शवों को का काफिला निकला. अंतिम यात्रा में 6 हजार लोग शामिल हुए थे. अहमदाबाद के गुलबर्ग सोसायटी, नरोदा गाम के करीब यह भीड़ बेकाबू होने लगी. जिसके बाद पूरा प्रदेश दंगों की चपेट में आ गया था. इन दंगों में 790 मुस्लिम और 254 हिन्दुओं की मौत हुई. तब देश के मौजूदा पीएम नरेंद्र मोदी गुजरात के सीएम हुआ करते थे.
2006 अलीगढ़ दंगा (Aligarh Riots)
रामनवमी पर दंगों का इतिहास पुराना है. 5 अप्रैल 2006 को हिन्दुओं के पवित्र पर्व रामनवमी के अवसर पर हिंदू और मुसलमानों के बीच हिंसक दंगा हुआ, जिसमें 6-7 लोगों की मौत हो गई. बता दें अलीगढ़ को उत्तर प्रदेश का सांप्रदायिक दंगों से ग्रस्त शहर भी कहा जाता है.
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2010 देगंगा दंगा (Deganga Riots)
पश्चिम बंगाल के देगंगा में कुछ अतिवादियों ने हिन्दू मंदिरों को तोड़ दिया, और मंदिर के खजाने को लूट लिया. इसके परिणाम में कई लोगों की हत्याएं हुईं और कई लोगों को बेघर होना पड़ा.
2012 असम दंगा (Assam Riots)
यह दंगा असम के कोकराझार में रह रहे बोडो जनजाती और बांग्लादेशी घुसपैठियों के बीच हुआ था. इस दंगे में करीब 80 लोगों की मौत हुई और लाखों लोग बेघर हुए. यह मानव इतिहास का सबसे भयावह दंगा माना जाता है.
2013 मुज़फ्फरनगर दंगा (Muzaffarnagar Riots)
उत्तरप्रदेश का मुज़फ्फरनगर जिला, मुस्लिम बहुल इलाका है. मुज़फ़्फ़रनगर जिले के कवाल गांव में जाट-मुस्लिम हिंसा के साथ इस दंगे की शुरुआत हुई थी, जिसमें 62 लोगों की जान गई. दरअसल 27 अगस्त 2013 को कवाल गांव में कथित तौर पर एक जाट समुदाय लड़की के साथ एक मुस्लिम युवक ने छेड़खानी की. इसके बाद जिस लड़की से कथित छेड़छाड़ हुए उसके चचेरे भाई ने उस मुस्लिम युवक को पीट-पीट कर मार डाला. जवाब में मुस्लिमों ने लड़की के भाईयों की जान ले ली.
2020 दिल्ली दंगा (Delhi Violence)
दिल्ली का बड़ा दंगा फरवरी साल 2020 में हुआ था. इस दंगे की शुरुआत उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई थी, जिसमें जाफराबाद, मौजपुर, बाबरपुर, चांद बाग, शिव विहार, भजनपुरा, यमुना विहार इलाके में काफी नुकसान हुआ था. इस दंगों की वजह से 53 लोगों की मौत हुई थी.
भारत में दंगों का इतिहास काफी पुराना रहा है. हमने यहां पर जिन घटनाओं का जिक्र किया है वह सभी बड़ी घटनाएं थी. हालांकि इसके बावजूद कई सारे दंगे रह गए हैं. सभी घटनाओं से एक ही सबक मिलता है कि ज्यादातर दंगे उकसावे में आकर हुए हैं. इसे समझने के लिए भागलपुर दंगे का एक बार फिर से जिक्र जरूरी है. इस दंगे की शुरुआत एक अफवाह से हुई थी. किसी ने कहा कि परबत्ती में एक कुएं के अंदर टुकड़ों में कटी हुईं 200 लाशें मिली हैं. ये लाशें हिंदुओं की हैं.
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यह बात पूरे शहर में आग की तरह फैल गई और हिंदू भड़क गए. इस अफवाह ने दंगों की हिंसा को कई गुना बढ़ा दिया. बाद में पता चला कि ये हिंदुओं की लाशें नहीं थीं. ये एक मुहम्मद जावेद का परिवार था. परिवार के 12 सदस्यों को मारकर टुकड़े-टुकड़े किया गया और फिर कुएं में फेंक दिया.