How 1971 War Changed Parveen Babi Life : टाइम मैगजीन (Time Magazine) के कवर पेज पर छपने वाली पहली भारतीय स्टार परवीन बाबी... जिंदगी में 3 ऐक्टर्स से प्यार किया... डैनी, कबीर बेदी और महेश भट्ट... लेकिन किसी से शादी नहीं कर पाईं... 70 और 80 के दशक की टॉप रहीं... जिसकी एक झलक के लिए कभी सिनेमाहॉल में भीड़ टूट पड़ती थी, जब साल 2005 में उस ऐक्ट्रेस की जब मौत हुई तो वो इस कदर गुमनाम हो चुकी थीं कि लाश की बदबू से पता लगा कि अब वह नहीं रहीं... तब डैनी, कबीर और महेश भट्ट (Danny Denzongpa, Kabir Bedi and Mahesh Bhatt) तीन ही ऐक्टर्स उनके अंतिम संस्कार पर पहुंचे थे.
साल 1973 में फिल्म ‘चरित्र’ से फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा और जल्द ही एक बड़ी स्टार बन गईं. अमिताभ बच्चन के साथ जोड़ी कामयाब रही. दोनों ने दीवार, अमर अकबर एंथोनी, खुद्दार, काला पत्थर, सुहाग, नमक हलाल और शान जैसी फिल्मों में काम किया.
16 दिसंबर को भारत ने 1971 युद्ध में पाकिस्तान पर विजय पाई थी. इसी दिन एक राष्ट्र के रूप में बांग्लादेश का उदय हुआ था. इस युद्ध की वजह से जो कुछ बदला, उसमें से एक परवीन बाबी की जिंदगी भी थी... इसी जंग की वजह से परवीन की शादी होते होते रह गई थी... और अगर वो शादी हो गई होती तो परवीन कभी बॉलीवुड में एंट्री नहीं ले पाती...
परवीन बाबी का जन्म 4 अप्रैल 1954 को सौराष्ट्र (अब गुजरात) के जूनागढ़ में हुआ था. जूनागढ़ के नामचीन परिवार में जन्मी परवीन, मां-पिता की इकलौती संतान थीं.. परिवार का संबंध पश्तूनों की खिलजी बाबी जनजाति से था, जिन्हें गुजरात के पठान के रूप में जाना जाता था. ये लंबे वक्त से गुजरात में ही बसे हुए थे. परवीन का जन्म उनके माता-पिता की शादी के चौदह साल बाद हुआ था. उनके पिता वली मोहम्मद खान बाबी, जूनागढ़ के नवाब के ऐडमिनिस्ट्रेटर थे और उनकी माँ जमाल बख्ते बाबी थीं. परवीन ने 1959 में अपने पिता को खो दिया था, तब वह सिर्फ 5 साल की थीं...
अब आते हैं 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध (Indo-Pak 1971 War) पर... यह युद्ध 3 दिसंबर से 16 दिसंबर के बीच बमुश्किल 13 दिनों तक चला था लेकिन परवीन बाबी की जिंदगी पर इसने गहरा असर छोड़ा था.
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भारत की सबसे ग्लैमरस और सेंसेशनल ऐक्ट्रेसेस में से एक परवीन की तब अगर शादी हो जाती तो शायद वह कभी बॉलीवुड में कदम नहीं रख पातीं... लेकिन तकदीर ने उनके हिस्से में कुछ और ही कहानी लिख डाली थी... पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह जनरल याह्या खान (General Yahya Khan) ने न तो 1971 के पाकिस्तानी संसदीय चुनावों के फैसले को स्वीकार किया.. असंतुष्ट नेता मुजीब उर रहमान (Sheikh Mujibur Rahman) को गिरफ्तार करवाने से भी वह खुद को रोक न सके और पूर्वी पाकिस्तान पर मार्शल लॉ भी लागू किया... ये तीनों ही फैसले वजह बनी 1971 की जंग की...
याह्या खान और उनके सेना प्रमुख टिक्का खान ने 3 दिसंबर, 1971 को श्रीनगर से बाड़मेर तक भारत के 8 एयरफोर्स स्टेशन पर हमले करवाए... इंडियन एयरफोर्स ने वक्त से पहले इन्हें खाली कर दिया था... पाकिस्तान के हमले का नतीजा ये हुआ कि 13 दिन बाद ढाका में पाक सेना ने भारतीय सेना के आगे सरेंडर कर दिया... पाकिस्तान के सरेंडर में देश के कमांडर जनरल अमीर अब्दुल्ला खान नियाज़ी को भारतीय लेफ्टिनेंट-जनरल जेएस अरोरा को अपनी सर्विस रिवाल्वर सौंपनी पड़ी थी... एक नया देश बांग्लादेश बना...
युद्ध के मैदान से लगभग 2,569 किलोमीटर दूर एक जवान हो रही लड़की परवीन बाबी के पहले प्यार और सपनों को इस युद्ध ने क्रूरता से खत्म कर दिया था... परवीन को तब इस बात का अहसास नहीं था कि नियति ने उनके लिए क्या लिख डाला है...
करिश्मा उपाध्याय ने 'परवीन बाबी - ए लाइफ' (Parveen Babi: A Life) में ऐक्ट्रेस की जिंदगी के अनसुने किस्सों को सामने लाने की कोशिश की है. 1969 की सर्दियों में जब परवीन अपने कॉलेज ब्रेक पर थी, तब दूर के चचेरे भाई जमील से उनकी सगाई कर दी गई थी. जमील तब पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस (PIA) के पायलट थे. सगाई के आलीशान फंक्शन को लोगों ने 'मिनी वेडिंग' जैसा बताया था...फंक्शन में परवीन, जमील के बगल में बैठी थीं.
जब वह कॉलेज लौटीं तो उनके पास एक मोटा एल्बम था और इसकी एक खास तस्वीर उनकी पसंदीदा थी, जिसमें वो और जमील कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे... इस तस्वीर ने जल्द ही परवीन के तकिए के नीचे जगह बना ली थी... उन्होंने तकिए पर P+J भी लिख डाला था...
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एक साल बाद जमील का अहमदाबाद आना हुआ... परवीन अपने होने वाले पति को फ्लॉन्ट करने से खुद को रोक नहीं पाईं. वह उन्हें शहर के बांकुरा में अपने फेवरेट रेस्तरॉ में ले गई. यहां जमील ने दोस्तों को सफर की रोमांचक कहानियों से दीवाना बना दिया. जमील एक हसबैंड मटेरियल थे.
यही वो समय था जब भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी "पूर्वी पाकिस्तान" से आए 1 करोड़ से ज्यादा शरणार्थियों की समस्या से जूझ रही थीं. असल युद्ध 3 दिसंबर, 1971 को शुरू हो चुका था. इंदिरा ने 27 मार्च, 1971 की शुरुआत में लोकसभा को बताया था, "इस तरह के गंभीर हालात में, एक सरकार के रूप में हम जितना कम बोलें, बेहतर होगा" उन्होंने उसी दिन फिर से राज्यसभा में कहा, "एक गलत कदम, एक गलत शब्द का असर गंभीर नतीजे पैदा कर सकता है."
मार्च से अक्टूबर 1971 के बीच 6 महीने से ज्यादा वक्त तक इंदिरा ने ग्लोबल लीडर्स को पत्र लिखकर भारतीय सीमा के हालात से परिचित कराया. उन्होंने मॉस्को का दौरा किया और जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, बेल्जियम और संयुक्त राज्य अमेरिका का दौरा किया. उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान में आम लोगों की निर्मम हत्या और जनरल टिक्का खान की बर्बरता पर दुनिया को जगाने की कोशिश की.
इंदिरा ने कलकत्ता के पास अवामी लीग की निर्वासित सरकार को काम करने की अनुमति दी लेकिन इसे किसी भी औपचारिक दर्जे से दूर रखा. जब बांग्लादेश को मान्यता देने के लिए विपक्ष और ज्यादा मुखर हो गया, तो इंदिरा ने अगस्त 1971 में टिप्पणी की, "देश में कुछ ऐसे लोग हैं जो बांग्लादेश के मुद्दे से राजनीतिक पूंजी बनाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन यह गैर-जिम्मेदाराना कार्रवाई का अवसर नहीं है, सरकार कदम उठाएगी. इस तरह के कदम (बांग्लादेश की मान्यता) का सवाल सभी पहलुओं पर सावधानी से विचार करने के बाद ही उठाया गया है."
बता दें कि 1970-71 के दौरान पाकिस्तान को गृहयुद्ध का सामना करना पड़ा था. देश के पश्चिमी क्षेत्र के नागरिक और सेना द्वारा देश के पूर्वी हिस्से को नियंत्रित किया गया. यह क्षेत्र बांग्ला भाषी था... यहां के रीति-रिवाजों और विरासत से पश्चिमी पाकिस्तान के हुक्मरान नफरत करते थे. अवामी लीग के शेख मुजीब उर रहमान ने पाकिस्तान की 313 संसदीय सीटों में से 169 पर जीत हासिल की, लेकिन उन्हें प्रधानमंत्री पद नहीं मिला.
रिपोर्ट्स बताती हैं कि युद्ध में 3 लाख से 5 लाख के बीच मौत हुई लेकिन बांग्लादेश सरकार ने यह आंकड़ा 30 लाख बताया. कई शिक्षाविद् मानते हैं कि बांग्लादेश संग्राम के दौरान पहली बार बलात्कार को जानबूझकर युद्ध के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया था. एक अनुमान के अनुसार, इस दौरान 3 लाख से ज्यादा बंगाली भाषी महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया.
जब दोनों देशों के बीच असल जंग छिड़ गई तो परवीन की मां ने सगाई तोड़ने का फैसला किया. परवीन को सगाई टूटने की खबर मां ने पोस्टकार्ड के जरिए दी. परवीन ने जब पोस्टकार्ड पढ़ा, तो वह पूरी तरह टूट गई थीं. परवीन ने उस तकिए पर रोते हुए कई रातें गुजारीं जिसपर जमील का नाम लिखा था.
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जीत के बाद, इंदिरा को युद्धविराम की घोषणा की जल्दी थी. उन्होंने दुनिया को यह साफ कर दिया कि भारत की महत्वाकांक्षा क्षेत्रीय नहीं थी और न ही उसकी भावना बदले की या विस्तारवादी थी. हालांकि, ये राजनीतिक और कूटनीतिक कदम परवीन बाबी पर कोई असर नहीं करने वाले थे...परवीन ने एक कलम उठाई और दिल टूटने का दर्द कागज पर लिखना शुरू कर दिया...
चलते चलते 16 दिसंबर को हुई दूसरी अहम घटनाओं पर भी एक नजर डाल लेते हैं
1840 - मौत के 19 साल बाद फ्रांस के सम्राट नेपोलियन बोनापार्ट का अंतिम संस्कार किया गया
1903 - मुंबई का ताज पैलेस होटल मेहमानों के लिए खोला गया
1937 - भारत के सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाजों में से एक हवा सिंह का जन्म हुआ
1945 - 2 बार जापान के PM रहे फूमिमारो कनोए ने युद्ध अपराधों का सामना करने की बजाय आत्महत्या कर ली
1959 - कर्नाटक के 18वें मुख्यमंत्री HD कुमारस्वामी का जन्म हुआ