Jayalalitha Death Mystery: तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की मौत (How Jayalalitha Died) कैसे हुई? जयललिता की मौत के रहस्य को जांचने के लिए बनी जस्टिस ए अरुमुघसामी कमिटी (Justice A Arumughaswamy Committee) ने अपनी रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे किए हैं. जस्टिस ए अरुमुघसामी कमिटी की रिपोर्ट सामने आने के बाद सवाल उठने लगे हैं कि क्या सचमुच जयललिता को अपनों ने ही दगा दिया? आइए आज पड़ताल करते हैं और समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर जयललिता की मौत कैसे हुई?
ये भी देखें- Silk Smitha: सिल्क स्मिता ने क्यों दी जान? Dirty Picture नहीं दिखा पाई पूरा सच! | Jharokha
जयललिता (Jayalalitha) ने कभी शादी नहीं की लेकिन 1995 में उन्होंने एक लड़के की शादी की... और इसमें 100 करोड़ रुपये से ज्यादा का पैसा पानी की तरह बहा दिया... ये शादी शशिकला (V. K. Sasikala) के भतीजे सुधाकरन की थी... जिस शशिकला के लिए जयललिता ने ये सब किया वह उनपर ही तमिलनाडु की पूर्व सीएम (Tamilnadu Former Chief Minister) की मौत का शक गया...
25 साल से ज्यादा वक्त तक शशिकला अपने सगे संबंधियों (Sasikala and her relatives) के साथ जयललिता के घर पर ही रहीं... लेकिन 17 दिसंबर 2011 को जयललिता ने अचानक शशिकला और उसके रिश्तेदारों को अपने घर से बाहर कर दिया... 40 से ज्यादा वे नौकर भी हटाए गए जिन्हें शशिकला 1989 में अपने गांव मन्नारगुडी (Sasikala Village Mannargudi) से लेकर आई थीं. ये 25 साल की दोस्ती में दरार का ये आखिरी सबूत था.
जयललिता से 25 साल पुरानी दोस्ती में शशिकला ने अपनों का ऐसा जाल बिछा दिया था जिसे तमिलनाडु की पूर्व सीएम कभी समझ ही नहीं सकीं. जयललिता के घर सभी नौकर, खाना बनाने वाले, ड्राइवर, सिक्योरिटी गार्ड, मैसेंजर सब शशिकला के गांव से ही आए थे.
कहा तो ये भी गया कि मुख्यमंत्री का पद तो जयललिता के पास था लेकिन हर फैसला शशिकला की मर्जी से ही होता रहा... सीएम की शपथ जयललिता लेती थीं लेकिन सत्ता पर नियंत्रण शशिकला का होता था. लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ जिसने सबकुछ बदल दिया...
तहलका मैगजीन की मानें तो मन्नारगुडी से आए इन लोगों ने जयललिता के इर्द गिर्द ऐसा चक्रव्यूह बना दिया था जिसे वह कभी जान न सकीं. राजनीति में कोई दोस्त नहीं होता... और इस बात को सही साबित करती है शायद, जयललिता की मौत की कहानी...
2016 में जयललिता की मृत्यु हुई थी... आज हम जानेंगे जयललिता की उस दोस्त के बारे में जिसकी महत्वाकांक्षा ने ही शायद उनकी जिंदगी ले ली...
अक्टूबर 2022 में जस्टिस ए अरुमुघसामी कमिटी की 475 पन्नों की रिपोर्ट सामने आई. इस कमिटी को तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता की मौत की जांच के लिए बनाया गया था. कमिटी ने कुल 172 गवाहों के बयान दर्ज किए. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जयललिता की जान बचाई जा सकती थी, लेकिन जानबूझकर उन्हें मौत के मुंह में जाने के लिए छोड़ दिया गया. इस रिपोर्ट में कई लोगों की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं. इन लोगों में इलाज करने वाले डॉक्टर्स से लेकर जयललिता की सहेली शशिकला और तब के स्वास्थ्य मंत्री भी शामिल हैं.
22 सितंबर 2016 को AIADMK की पूर्व प्रमुख जयललिता को बीमार होने पर चेन्नई के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया था. वह 75 दिन अस्पताल में रहीं और 5 दिसंबर 2016 को उन्होंने आखिरी सांस ली. उस वक्त वे मुख्यमंत्री पद पर थीं, मेडिकल बुलेटिन में मौत का कारण हार्ट अटैक बताया गया था. जयललिता के निधन के बाद सवाल हर तरफ उठे थे और उनकी अपनी भतीजी दीपा और भतीजे दीपक सहित AIADMK के कई नेताओं ने मौत पर संदेह जाहिर किया था.
ये भी देखें- World AIDS Day 2022: क्यों Gay-Bisexuals को शिकार बना रही एड्स की बीमारी? जानें चौंकाने वाला सच| Jharokha
पन्नीरसेल्वम के नेतृत्व में जयललिता की पार्टी AIADMK के कई नेताओं ने उनकी मौत पर सवाल उठाए थे. नेताओं ने कहा कि उनकी सहयोगी शशिकला और उनके परिवार वालों ने इस मामले में काफी कुछ छुपाया. इसके बाद पलानीस्वामी सरकार ने जांच बिठा दी. इसके अलावा डीएमके ने अपने चुनावी घोषणापत्र में वादा किया था कि वह जयललिता की मौत का सच सामने लाएगी.
2017 में तब के मुख्यमंत्री के. पलानीस्वामी ने मामले की जांच के लिए जस्टिस ए अरुमुघसामी की अध्यक्षता में कमिटी बनाई थी. इसकी रिपोर्ट मिलने के बाद तमिलनाडु सरकार ने इसे विधानसभा में पेश किया है.
सबसे पहले जयललिता की मौत की असल तारीख को लेकर विवाद हुआ. हॉस्पिटल के बुलेटिन में मौत 5 दिसंबर 2016 की रात साढ़े 11 बजे बताई गई लेकिन जयललिता की देखभाल में जुटे नर्स, टेक्नीशियन और दूसरे हॉस्पिटल स्टाफ ने जांच कमिटी के सामने बताया कि 4 दिसंबर 2016 को 3 बजकर 50 मिनट पर जयललिता का कार्डिक फेल्योर हो चुका था. तब उनके हार्ट में कोई भी इलेक्ट्रिक ऐक्टिविटी नहीं हो रही थी. ब्लड सर्कुलेशन भी रुक गया था.
रिपोर्ट में जयललिता को देर से सीपीआर देने की बात भी कही गई. ऐसा बताया गया कि 3:50 से पहले उनका कार्डिक फेल्योर हुआ था लेकिन CPR दिया गया 4:20 पर. तब तक जयललिता की मृत्यु हो चुकी थी. जांच रिपोर्ट के अनुसार, इससे पता चलता है कि 4 दिसंबर की शाम 3:50 पर ही जयललिता दम तोड़ चुकीं थीं.
जस्टिस ए अरुमुघसामी की अध्यक्षता में बनी कमेटी की रिपोर्ट में सबसे पहला सवाल शशिकला पर खड़ा किया गया है. साथ ही, जयललिता के पर्सनल डॉक्टर केएस शिवकुमार (शशिकला के रिश्तेदार), उस समय के हेल्थ सेक्रेटरी जे. राधाकृष्णनन और तब के स्वास्थ्य मंत्री सी विजयभास्कर, अस्पताल में जयललिता का इलाज करने वाले डॉक्टर वाईवीसी रेड्डी, डॉ. बाबू अब्राहम, अपोलो हॉस्पिटल के चेयरमैन प्रताप रेड्डी, पूर्व चीफ सेक्रेटरी राम मोहन राव, पूर्व सीएम पन्नीरसेल्वम की भूमिका को शक के दायरे में रखा गया है. जांच कमिटी ने हर किसी की भूमिका को जांचने की सिफारिश की है.
जयललिता की सबसे करीबी शशिकला पर ही सबसे गंभीर आरोप लगे. रिपोर्ट के अनुसार, शशिकला ने जानबूझकर जयललिता का सही इलाज नहीं कराया. सिर्फ शशिकला ही थीं, जो जयललिता के कमरे तक जा सकती थीं. शशिकला ही थीं, जिन्हें हर डॉक्टर अपनी रिपोर्ट देते थे. जयललिता के अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान हर कंसेंट फॉर्म पर शशिकला ने ही साइन किए थे.
रिपोर्ट में कहा गया कि जब जयललिता होश में थीं, तब यूएस के कार्डियो सर्जन डॉ. समीन शर्मा ने एक जरूर कार्डिक सर्जरी की सलाह दी थी. जयललिता की जान बचाने के लिए ये कार्डिक सर्जरी बेहद जरूरी थी. जयललिता ने होश में रहते खुद इस सर्जरी के लिए कहा था लेकिन शशिकला सहित, तब के स्वास्थ्य मंत्री सी विजयभास्कर, पूर्व हेल्थ सेक्रेटरी जे राधाकृष्णन, जयललिता के डॉक्टर शिवकुमार ने इसे कराने से इनकार कर दिया था.
जयललिता के अस्पताल में भर्ती होने के बाद, डॉक्टरों ने शशिकला को उनकी डायग्नोसिस के बारे में बताया और इलाज के लिए उनसे निर्देश लिया. यह देखते हुए कि लाइफ सेविंग ट्रीटमेंट के बारे में स्पष्ट सलाह थी, ऐसा लगता है कि शशिकला ने इसे नज़रअंदाज़ करना चुना. इस बीच, रिपोर्टों में कहा गया है कि शशिकला के रिश्तेदारों ने अस्पताल के 10 कमरों पर कब्जा कर लिया था. आयोग ने कहा कि तत्कालीन प्रभारी राज्यपाल सी विद्यासागर राव ने तीन बार अस्पताल का दौरा करने की औपचारिकता पूरी की और राष्ट्रपति को लिखे अपने पत्र में यह उल्लेख नहीं किया कि वह "गंभीर स्थिति" में थीं, भले ही उन्हें अवगत कराया गया था.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अस्पताल और उसके डॉक्टर, तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री सी विजयभास्कर, तत्कालीन स्वास्थ्य सचिव जे राधाकृष्णन और उनके निजी चिकित्सक शिवकुमार, सभी जयललिता को इलाज के लिए विदेश ले जाने के खिलाफ थे. रिपोर्ट में कहा गया है कि अपोलो अस्पताल के अध्यक्ष प्रताप सी रेड्डी ने मीडिया के सामने यह झूठा बयान दिया कि मुख्यमंत्री को कभी भी छुट्टी दी जा सकती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्होंने हृदय रोग और दिवंगत मुख्यमंत्री के इलाज के बारे में वास्तविक तथ्यों का खुलासा नहीं किया.
जांच रिपोर्ट में जयललिता का इलाज करने वाले डॉ. वाईवीसी रेड्डी और डॉ.बाबू अब्राहम भी शक के घेरे में हैं. इन पर आरोप है कि ब्रिटेन-अमेरिका के डॉक्टर्स के कहने के बावजूद इन्होंने एंजियो/सर्जरी को टाल दिया था.
अपोलो हॉस्पिटल के चेयरमैन सी प्रताप रेड्डी भी इसमें फंसते दिखाई दे रहे हैं. नवंबर 2016 में जयललिता के हॉस्पिटल में भर्ती रहचे प्रताप रेड्डी ने मीडिया को बयान दिया था कि उनका इंफेक्शन नियंत्रण में है और अस्पताल से डिस्चार्ज होना उनकी इच्छा पर है.
ये भी देखें- क्या Miss World कॉम्पिटिशन में Priyanka Chopra को मिला स्पेशल ट्रीटमेंट? अवॉर्ड वाली रात का सच | Jharokha
लेकिन जांच कमिटी ने पाया कि मेडिकल रिकॉर्ड्स और डॉक्टर्स से मिली जानकारी के अनुसार, 'रेड्डी सच्चाई से दूर थे'
जयललिता की मौत पर पन्नीरसेल्वम ने सबसे पहले सवाल उठाया था, हालांकि जांच रिपोर्ट में उनपर भी गंभीर आरोप लगे हैं। कमेटी ने कहा, 'वो इनसाइडर और एक मूक दर्शक थे। वो सब जानते थे कि अपोलो हॉस्पिटल में क्या हुआ, खासतौर पर इलाज के दौरान होने वाली गतिविधियां उन्हें मालूम थीं। लेकिन तब तक वह चुप रहे। पहले वह मुख्यमंत्री बने और जब पद से हटना पड़ा तो उन्होंने सीबीआई जांच की मांग की।'
शशिकला, जयललिता की मृत्यु तक उनके साथ थीं. 1991 में जब जयललिता पहली बार मुख्यमंत्री बनीं तो शशिकला उनके करीब आ गई थीं. यह जोड़ी तमिल राजनीति में इतनी लोकप्रिय हुई कि लोग जयललिता अम्मा और शशिकला को चिन्नमा कहने लगे.
स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार, शशिकला ने जयललिता से मिलने के लिए अपने पति (जिन्होंने 1976 में अपनी सरकारी नौकरी खो दी थी) के कुछ संपर्कों का इस्तेमाल किया. जयललिता उस समय एक उभरती हुई हस्ती थीं और करिश्माई एमजी रामचंद्रन की बहुत करीबी सहयोगी थीं. एमजीआर की मृत्यु के बाद मुश्किल दिनों में जब जयललिता को पार्टी ने दरकिनार कर दिया, तो शशिकला ने जया को सुरक्षित रखने के लिए अपने संपर्कों का इस्तेमाल किया.
इसके बाद ही उनकी दोस्ती और मजबूत हुई. फिर, घटनाओं के एक चौंकाने वाले मोड़ में, शशिकला और उनके पूरे दल को जयललिता के पोएस गार्डन स्थित घर से बाहर निकाल दिया गया और पार्टी कार्यकर्ताओं को उन्हें दूर रखने की चेतावनी दी गई. तहलका की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि ऐसा इसलिए था क्योंकि जयललिता को शशिकला द्वारा धीमा जहर देकर मारने की साजिश के बारे में पता चला था.
स्थानीय मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया कि गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने जयललिता को इस बारे में चेतावनी दी थी और यहां तक कि उनकी चिकित्सा जरूरतों की देखभाल के लिए एक विश्वसनीय गुजराती नर्स को भेजने की पेशकश भी की थी. अरुमुगास्वामी आयोग ने कहा कि शशिकला की भतीजी कृष्णप्रिया ने बयान दिया था कि “जयललिता शशिकला और उनके रिश्तेदारों पर शक करती थीं और इस वजह से उन्होंने उन्हें पोएस गार्डन से भेज दिया था. उसके बाद दिवंगत मुख्यमंत्री और शशिकला के बीच मधुर संबंध नहीं रहे.
बाद में, राजनीति में हस्तक्षेप न करने के बारे में शशिकला से एक पत्र प्राप्त करने के बाद ही जयललिता ने उन्हें अपने पोएस गार्डन निवास पर लौटने की अनुमति दी. जैसे ही शशिकला ने जयललिता की दुनिया में दोबारा प्रवेश किया, चीजें सामने आने लगीं. सितंबर 2016 में, चेन्नई के अपोलो अस्पताल ने एक बयान जारी किया कि जयललिता को बुखार और डीहाइड्रेशन की वजह से अस्पताल में भर्ती कराया गया था. बाद के दिनों में अस्पताल से कई बुलेटिनों में दावा किया गया कि मुख्यमंत्री ठीक हो रही हैं.
अरुमुगास्वामी आयोग ने सरकार से ऐसे कई लोगों की जांच करने को कहा है जिनके खिलाफ उसने आरोप लगाया है. इस बीच शशिकला ने अपने ऊपर लगे आरोपों से साफ इनकार किया है. उन्होंने कहा कि “जिन लोगों में अम्मा [जयललिता] से राजनीतिक रूप से लड़ने की हिम्मत नहीं थी, उन्होंने उनकी मौत का राजनीतिकरण करने का तुच्छ कार्य किया है लेकिन लोग इस तरह के कार्यों का समर्थन नहीं करेंगे.” शशिकला ने तीन पन्नों के अपने बयान में कहा कि आयोग के निष्कर्ष अनुमान पर आधारित हैं. मैंने अम्मा के इलाज में एक बार भी दखल नहीं दिया. मेडिकल टीम ने ही जांच की थी. दवाई देने और उचित उपचार देने का फैसला किया. मैं बस यह सुनिश्चित करना चाहती थी कि अम्मा को फर्स्ट क्लास मेडिकल केयर मिले. अब यह राज्य सरकार पर निर्भर है कि वह आयोग की सिफारिशों पर अमल करती है या उनकी अनदेखी करती है.
चलते चलते 5 दिसंबर को हुई दूसरी घटनाओं पर भी एक नजर डाल लेते हैं
1898 – भारतीय-पाकिस्तानी कवि जोश मलीहाबादी का जन्म हुआ
1932 – भारतीय अभिनेत्री नादिरा का जन्म हुआ
1965 – भारतीय फैशन डिजाइनर मनीष मल्होत्रा का जन्म हुआ
1971 – गाजीपुर की लड़ाई में पाक की हार, भारत ने ये इलाका पाकिस्तान को सौंपा.
1985 – क्रिकेटर शिखर धवन का जन्म हुआ
ये भी देखें- When Indira Gandhi Dismissed Gujarat Government: इंदिरा ने क्यों बर्खास्त की थी गुजरात सरकार ? | Jharokha