Independence Day Special: आजादी की पहली लड़ाई, कैसे पड़ी 1857 के क्रांति की नींव?

Updated : Aug 13, 2023 16:28
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Editorji News Desk

Independence Day Special: आज आजाद भारत अपनी गौरव की गाथा गाते हुए नहीं थक रहा है. लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब गुलामी की जंजीर में जकड़े हुए हिंदुस्तान के लिए आजादी एक ख्वाब थी. हम बात कर रहे हैं 1857 के क्रांति की. इसकी जंग की नींव इंस्ट इंडिया कंपनी की उस राइफल ने रखी जिसके इस्तेमाल में आने वाली कारतूस को चर्बी से बनाया जाता था. इन कारतूसों को बंदूक में डालने से पहले मुंह से खोलना पड़ता था.

कारतूस बना मुद्दा

इस दौरान सैनिकों के बीच ऐसी खबर फैल गई थी कि इन कारतूसों को बनाने में गाय और सूअर की चर्बी का इस्तेमाल किया जाता है. यह हिंदु और मुसलमान दोनों के लिए बेहद गंभीर और धार्मिक विषय था. जब यह कारतूस देशी पैदल सेना को बांटा गया, तब मंगल पांडे ने लेने से इनकार कर दिया. 

भारतीय सिपाहियों ने किया विद्रोह 

गुस्साएं अंग्रेज अफसरों ने उनके हथियार छीनने और वर्दी उतारने का आदेश दिया. लेकिन मंगल पांडे के सामने जो आए उन्होने मौत के घाट उतार दिया. इस घटना के बाद यूपी के मेरठ में अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ ब्रिटिश सेना के भारतीय सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया. विद्रोह की आग यूं तो मेरठ से शुरू हुई थी लेकिन यह धीरे-धीरे कानपुर, बरेली, झांसी, दिल्ली, अवध आदि स्थानों पर फैल गई. विद्रोही सैनिकों और राजा-महाराजाओं ने मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को हिंदुस्तान का सम्राट मान लिया.

करीब 4 महीने चली यह लड़ाई

ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक मंगल पांडे भी फौज में बगावत करके उनके पास ही पहुंचे थे. लेकिन 82 बरस के बूढ़े बहादुर शाह जफर की अगुवाई में लड़ी गई यह लड़ाई करीब 4 महीने चली. 21 सितंबर को अंग्रेजों ने उन्हें कैदी बना कर रंगून जेल भेज दिया, जहां मुगल बादशाह ने अपनी जिंदगी की आखिरी सांस ली.

लेकिन दिलचस्प बात यह है कि जब अंग्रेज अफसर बहादुर शाह जफर को को गिरफ्तार करने पहुंचे तो शायराना अंदाज में कहा....

"दमदमे में दम नहीं है ख़ैर माँगो जान की.. 
ऐ ज़फर ठंडी हुई अब तेग हिंदुस्तान की.."

इसके जवाब में बहादुर शाह ने भी शान से जवाब देते हुए कहा....

"ग़ाजियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की.. 
तख़्त-ए-लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की."

Independence Day Special

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