Nathu La Clashes in 1967 : जब भारत ने लिया 1962 हार का बदला, चीन के 340 सैनिक किए ढेर | Jharokha 7 Sep

Updated : Sep 13, 2022 13:03
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Editorji News Desk

India-China Nathu Nathu La Battle in 1967 : नाथू ला और चो ला संघर्षों (Nathu La and Cho La clashes) को आमतौर पर 1967 के भारत-चीन जंग के बाद के असर के तौर पर माना जाता है. आज हम नाथू ला में 1967 में हुए उस संघर्ष के बारे में जानेंगे जिसने चीन को बड़ा जख्म दिया. इस जंग में चीन के लगभग 350 सैनिक मारे गए थे. आइए आज जानते हैं नाथू की लड़ाई को विस्तार से जो मेजर जनरल सगत सिंह (Major General Sagat Singh) के नेतृत्व में लड़ी गई थी.

5 सितंबर 1967 को चीनी-भारतीय सेना की पहली झड़प

5 सितंबर... भारतीय सेना लाथू ला पास पर फेंसिंग कर रही थी... चीन की PLA का सुपरवाइजिंग ऑफिसर वहां आता है और भारत के कमांडिंग ऑफिसर से उलझ पड़ता है. 2 दिन तक फेंसिंग का काम बंद रहता है... 7 सितंबर को 100 चीनी सैनिक बॉर्डर पर फिर आते हैं और भारतीय सैनिकों पर पथराव शुरू कर देते हैं...  7 सितंबर को चीनी सैनिकों ने हिंसा की जो शुरुआत की 11 सितंबर को उसने भयानक रूप ले लिया... 1962 ( 1962 Sino-Indian War ) में मात खाए भारत ने 5 साल बाद ही चीन को ऐसा सबक सिखाया जिसकी उम्मीद देश को बिल्कुल नहीं थी.

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पानी की एक धारा बांटती है भारत-चीन को

भारत-चीन सीमा (Indo China Border) पर स्थित नाथू ला (ऊंचाई 14, 140 फीट) दर्रा सिक्किम राज्य में है. यह गंगटोक से 54 किलोमीटर पूर्व में जवाहरलाल नेहरू रोड (Jawahar Lal Nehru Road) के पास है.  इस दर्रे के उत्तर और दक्षिणी हिस्से पर भारतीय सेना तैनात है जबकि चीन इसके पूर्वी छोर पर है. दोनों सेनाओं के लिए यहां हालात आमने सामने की लड़ाई जैसे हैं. नाथू ला के दक्षिण-पूर्व में एक और पास है जिसका नाम जेलेप ला है. इसकी ऊंचाई 13,999 है. यहां से एक पानी की धारा भी बहती है जो पूर्वी सिक्किम में भारत और चीन को अलग भी करती है.

1965 में नाथू ला पर 17वीं माउंटेन डिविजन तैनात थी

1965 में नाथू ला पर 17 माउंटेन डिविजन (17th Infantry Division) और जेलेप ला पर 27 माउंटेन डिविजन (27th Mountain Infantry Brigade ) तैनात थी. दोनों ही डिविजन 33 कॉर्प्स के तहत थी जिसका बेस सिलिगुड़ी में था. 1965 में भारत-पाकिस्तान के बीच जंग छिड़ी और चीन ने इसका फायदा उठाने की सोची. चीन ने भारत को नाथू ला और जेलेप ला खाली करने का अल्टीमेटम दे डाला. 1965 में 33 कॉर्प्स के ऑपरेशनल प्लान के मुताबिक इन दोनों जगहों को सेना ऑब्जरवेश्नल पोस्ट के तौर पर इस्तेमाल कर रही थी. मेन डिफेंस पोस्ट इन पासेस से कुछ किलोमीटर पश्चिम में थे.

सगत सिंह को मिला था नाथू ला छोड़ने का हुक्म

अगस्त 1965 में, लेफ्टिनेंट जनरल जीजी बेवूर (Lieutenant General GG Bewoor) 33 कॉर्प्स के कमांडर थे और नाथू ला, जेलेप ला की हिफाजत का जिम्मा उन्हीं पर था. मेजर जनरल सगत सिंह (Major General Sagat Singh) ने अगस्त 1965 में ही कॉर्प्स जॉइन किया था. उन्हें कॉर्प कमांडर द्वारा सिलीगुढ़ी में पहली ब्रीफ यही दी गई थी कि अगर चीन का खतरा बढ़ जाए तो 17 माउंटेन डिवीजन नाथू ला को खाली कर देगी और मेजर जनरल हरचरन सिंह के नेतृत्व वाली 27वीं माउंटेन डिवीजन जेलेप ला से पीछे हट जाएगी. डिफेंसिव बैटल इन पासेस के पश्चिम में 6 से 9 किलोमीटर के दायरे में लड़ी जाएंगी.

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गोवा को आजाद करा चुके थे सगत सिंह

यहां एक बात और जोड़ दें कि सगत सिंह वही दिलेर अफसर थे जो 1961 में पुर्तगाल के कब्जे से गोवा को आजाद (Annexation of Goa) करा चुके थे और आगे चलकर 1971 में ढाका पर भी उन्होंने चढ़ाई कर दी थी. जिस नाथू ला दर्रे की कमान उन्हें मिली थी वह एक प्राकृतिक वाटरशेड के किनारे पर है. यह इलाका भारतीय सेना को चीनी सेना के ऊपर प्राकृतिक तौर पर बढ़त देता है. 1962 जंग के बाद इस रूट को व्यापार के लिए बंद कर दिया गया था लेकिन 2006 में फिर से इसे व्यापार के लिए खोला गया.

सगत सिंह ब्रिगेडियर और कमांडर से मिले 

मेजर जनरल सगत सिंह तब इन हालातों में नए थे इसलिए उन्होंने इस प्लान पर तब कोई भी विरोध दर्ज नहीं कराया. हालांकि, जब सगत सिंह ने एक बार कार्यभार संभाल लिया, वह अपने डिविजनल सेक्टर में गए, अपने ब्रिगेडियर और कंपनी कमांडर से मिले. सैनिकों के मनोबल को जांचा और परखा... चीनी सेना के दबाव के बीच सगत सिंह ने दर्रे को खाली करने से इनकार कर दिया. उन्होंने माना कि वाटरशेड के इस ओर वाला पूरा इलाका भारत का है जबकि चीन का क्षेत्र पानी की धारा के दूसरी ओर है. साथ ही, नाथू ला दर्रा 17 माउंटेन डिविजन द्वारा रक्षात्मक तौर पर बेहद अहम पॉइंट था.

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जेलेप ला को 27वीं माउंटेन डिविजन ने खाली कर दिया

सबसे बड़ी बात ये कि डिविजनल कमांडर के तौर पर सगत सिंह ही 17 माउंटेन डिवीजन की तरफ से की जाने वाली कार्रवाई के जिम्मेदार थे इसलिए यह उनपर था कि वह पेशेवर फैसले लेते हुए किस तरह से कदम बढ़ाएं.... इसी बीच 27 माउंटेन डिवीजन ने जेलेप ला को खाली कर दिया. चीनियों ने इस दर्रे पर कब्जा कर लिया. आज भी वहां चीन का कब्जा है. ये सब 1965 में हुआ. इसके बाद सितंबर 1965 से सितंबर 1967 तक हालात यही बने रहे. 

1967 में नाथू ला पर चीनी सेना ने हलचल तेज की

इस बीच चीनी लाउडस्पीकर चलाकर और झूठी खबरें सुनाकर प्रोपैगेंडा चलाते रहे, गलत जानकारियां देते रहे. दोनों देशों की सेनाओं के बीच धक्कामुक्की भी हुईं. ऐसा कई बार हुआ... सितंबर 1967 में नाथू ला पर चीनी सेना ने हलचल तेज कर दी थी.

भारत की 2 ग्रेनेडियर्स को नाथू ला पर तैनात कर दिया गया. ये चीनियों से संख्या में दोगुने थे. तब नाथु ला दर्रे पर गश्त के दौरान दोनों देशों के सैनिकों के बीच अक्सर धक्का मुक्की होती रहती थी. धक्का मुक्की की एक घटना का गंभीर संज्ञान लेते हुए सरकार ने नाथू ला और सेबु ला के बीच तार बिछाने का काम शुरू किया. अगस्त 1967 में भारतीय सेना ने नाथू ला पर वाटरशेड के साथ साथ फेंसिंग शुरू कर दी. चीनियों को ये रास नहीं आया और उन्होंने झड़पें कीं. 

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7 सितंबर 1967 को नाथू ला पर फिर हुई झड़प

भारत मैकमोहन रेखा - McMahon Line (हिमालय की शिखा) को अपनी आधिकारिक सीमा मानता है, जबकि चीन इसे अंतर्राष्ट्रीय सीमा के रूप में नहीं मानता है. 5 सितंबर को, भारतीय सेना जब यहां बाड़ लगा रही थी, तब चीन की सेना ने इसका विरोध किया. इस वजह से बाड़ लगाने का काम रोक दिया गया. 7 सितंबर को बाड़ लगाने का काम फिर से शुरू कर दिया गया. इसी दिन लगभग 100 चीनी सैनिक सीमा के भारतीय हिस्से में दाखिल हो गए... हाथापाई तेज हुई... चीनी सैनिकों ने पथराव किया और भारतीयों ने भी इसका जवाब दिया.

चीनी दूतावास ने भी दी भारत को धमकी

चीन ने 10 सितंबर को भारत को दूतावास के जरिए 'धमकी' दी. उसने कहा कि चीन-सिक्किम सीमा पर उसकी नजर हैं और अगर स्थिति बिगड़ी तो 'गंभीर परिणाम' के लिए भारत ही जिम्मेदार होगा. भारतीय कोर कमांडर ने 11 सितंबर को बाड़ को पूरा करने का आदेश दिया था. उस दिन सुपरवाइजिंग ऑफिसर के नेतृत्व में चीनी काम शुरू होते ही विरोध में खड़े हो गए.. कोर कमांडर लेफ्टिनेंट कर्नल राय सिंह उनके साथ बातचीत करने के लिए बाहर गए लेकिन चीनियों ने तुरंत उन पर गोलियां चला दीं, जिससे वह घायल हो गए.

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सुबह साढ़े 7 बजे भारतीयों ने एक सीटी की आवाज सुनी और फिर उनपर गोलियों की बौछार शुरू हो गई. मिनटों में ही भारत के कई सैनिक मारे जा चुके थे. सीओ भी घायल थे.  दोनों ओर से फायरिंग शुरू हो गई. रातभर और अगले दिन भी फायरिंग चलती रही. चीनियों ने आर्टिलरी और मोर्टार फायरिंग शुरू कर दी. भारतीय सेना तोपखाने को मोर्चे पर नहीं ला सकती थी क्योंकि इसकी इजाजत प्रधानमंत्री ही दे सकते थे. डिविजनल हेडक्वॉर्टर से संपर्क नहीं हो पा रहा था. बीत रहे हर घंटे के साथ भारतीयों के लिए हालात चिंताजनक हो रहे थे. 

सगत सिंह ने दिया तोपखाने के इस्तेमाल का आदेश

इस मोड़ पर सगत सिंह ने ऐसा फैसला लिया जिसकी चीनियों को बिल्कुल उम्मीद नहीं थी. उन्होंने आर्टिलरी के इस्तेमाल का फैसला किया. बाद में जब प्रधानमंत्री को इस पूरे घटनाक्रम के बारे में बताया गया तो उन्होंने इस कदम की सराहना की. आर्टिलरी का ऑब्जरवेशन पोस्ट ऐसी जगह तैनात था जहां से चीनियों पर सीधा हमला किया जा सकता था. चीनियों को ऐसे हमले का अंदेशा बिल्कुल नहीं था. 13 और 14 सितंबर को हुए इस हमले में चीन के 340 सैनिक मारे गए और 350 सैनिक घायल हुए. चीन का डिफेंस धराशायी हो चुका था. सगत सिंह यहां चीन की सेना पर एक और हमला करना चाहते थे लेकिन उन्हें इसकी परमिशन नहीं मिली. 16 सितंबर 1967 से सीजफायर लागू कर दिया गया.

चीनी सेना ने चाओ ला इलाके में भी किया हमला

चीनी इस हार को पचा नहीं पाए... घटना के 15 दिन बाद 1 अक्टूबर 1967 को चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (People's Liberation Army) ने चाओ ला इलाके में भारत के क्षेत्र में धोखे से आक्रमण किया. इसका 7/11 गोरखा राइफल्स व 10 जैक राइफल्स ने कड़ा उत्तर दिया. चीन ने सितंबर के संघर्ष विराम को तोड़कर हमला इसलिए किया था कि सर्दी शुरू होते ही भारतीय सेना करीब 13 हजार ऊंचे चो ला दर्रे पर अपनी चौकियों को खाली कर देती है. गर्मियों में सेना यहां दोबारा तैनात होती है.

चीन ने हमला तो ये सोचकर किया कि भारत की चौकियां खाली होंगी लेकिन खुफिया सूचना भारतीय सेना को मिल चुकी थी. भारतीय सेना ने चौकियां खाली नहीं की थीं और चीन के हमले पर उसे मुंहतोड़ जवाब मिला. इस लड़ाई के चलते नाथू ला और चो ला दर्रे की सीमा पर बाड़ लगाने का काम पूरा हो गया और चीन इस इलाके में कभी घुसपैठ नहीं कर सका.

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युद्ध में घायल कर्नल राय सिंह को महावीर चक्र, वीरगति पाने वाले कैप्टन डागर को वीर चक्र और मेजर हरभजन सिंह को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया.

चलते चलते आज की दूसरी अहम घटनाओं पर भी एक नजर डाल लेते हैं

1826 - बांग्ला लेखक राजनारायण बोस (Rajnarayan Basu) का जन्म हुआ.
1923 - विएना में इंटरपोल की स्थापना (Interpol Established in Vienna) हुई
1948 - मलयालम फिल्मों के अभिनेता ममूटी का जन्म (Mammootty Birthday) हुआ
1963 -  अशोक चक्र विजेता नीरजा भनोट (Neerja Bhanot) का जन्म हुआ.

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