Indira Gandhi Assassination: भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (India former prime minister Indira Gandhi) की 31 अक्टूबर 1984 को उनके अंगरक्षकों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. इंदिरा की इस हत्या से देश सन्न हो गया था. इंदिरा को गोली मारने वाले सतवंत सिंह और बेअंत सिंह (Satwant Singh and Beant Singh) पर भी जवाबी फायरिंग की गई थी जिसमें से बेअंत सिंह की मौत वहीं हो गई थी. सतवंत सिंह को इलाज के बाद बचा लिया गया था. आज हम जानेंगे इंदिरा की हत्या के उसी बीते किस्से को जिसने देश की राजनीति को हिलाकर रख दिया था.
6 जनवरी 1989 की सुबह... सर्दी भीषण थी लेकिन दिल्ली में उस रोज बारिश हुई थी... जब दिल्लीवाले अपनी नींद से जाग रहे थे उसी समय तिहाड़ जेल में 54 साल के केहर सिंह (Kehar Singh) और 30 साल के सतवंत सिंह (Satwant Singh) को फांसी पर चढ़ाया जा रहा था. सतवंत सिंह उन दो सुरक्षाकर्मियों में से एक था जिसने भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर अपनी ऑटोमैटिक राइफल की पूरी मैगजीन खाली कर दी थी... केहर सिंह ने इस जुर्म की साजिश रची थी.
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6 जनवरी को न तो सुबह आम थी और न ही सुरक्षा... दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में 24 घंटे से ज्यादा वक्त तक भारी सुरक्षा इंतजाम रखे गए थे. देश 5 साल पहले सिख हिंसा (1984 anti-Sikh riots) का तांडव देख चुका था. फांसी के बाद शवों को जेल में ही दफनाया गया था. इंदिरा पर गोली चलाने वाले दूसरे सुरक्षाकर्मी बेअंत सिंह को वहीं ढेर कर दिया गया था.
आज झरोखा में जिक्र इंदिरा की हत्या का... 31 अक्टूबर 1984 की सुबह ही भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सुरक्षाकर्मियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी... इंदिरा की हत्या से पहले और हत्या के बाद बहुत कुछ घटा और आज हम इन्हीं में से कुछ बातों का जिक्र आपसे करेंगे...
30 अक्टूबर 1984 को भुवनेश्वर के परेड ग्राउंड में इंदिरा की एक चुनावी सभा थी.. इंदिरा का भाषण उनके सूचना सलाहकार एचवाई शारदा प्रसाद (H. Y. Sharada Prasad) तैयार करते थे. उस रोज भी उन्होंने ही किया था लेकिन अचानक इंदिरा ने जो बोलना शुरू किया, वह लिखित भाषण में कहीं नहीं था...उनके तेवर भी बदल गए थे.
इंदिरा ने कहा था, 'मैं आज यहां हूं. कल शायद यहां न रहूं. मुझे चिंता नहीं... मैं रहूं या न रहूं. देश की चिंता करना हर नागरिक की जिम्मेदारी है. मेरा लंबा जीवन रहा है और मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने अपना पूरा जीवन अपने लोगों की सेवा में बिताया है. मैं अपनी आखिरी सांस तक ऐसा करती रहूंगी और जब मैं मरूंगी तो मेरे ख़ून का एक-एक क़तरा भारत को मजबूत करने में लगेगा.'
उनके इस भाषण से लोग चकित रह गए थे, खुद उनकी ही पार्टी के लोग इसे लेकर असमंजस में थे कि आखिर इंदिराजी ने ऐसे शब्द क्यों कहे थे. 31 अक्टूबर 1984 को उनके दो बॉडीगॉर्ड सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने अपने सर्विस वेपन्स से उन्हें गोली मार दी थी, जिसके बाद कुछ ही क्षणों में उनकी मौत हो गई थी.
कभी-कभी नियति शब्दों में ढलकर आने वाले वक्त का इशारा करती है. भाषण के बाद जब इंदिरा राजभवन लौटीं तो राज्यपाल बिशंभरनाथ पांडे (Bishambhar Nath Pande) ने कहा कि आपने हिंसक मौत का जिक्र कर मुझे हिला दिया. इंदिरा गांधी ने जवाब दिया कि उन्होंने जो भी कहा वह ईमानदारी से भरा और तथ्यों से पूर्ण था.
30 अक्टूबर की रात तक, इंदिरा गांधी दिल्ली में वापस आ गई थीं. वह उसके लिए एक व्यस्त दिन था लेकिन रात को वह ठीक से सो नहीं पाईं. सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने अपनी किताब राजीव में लिखा है- कि इंदिरा गांधी अगले दिन सुबह चार बजे तक जाग रही थीं... सोनिया को इसका अहसास तब हुआ जब वह अपनी अस्थमा की दवा लेने उठी थीं.
इंदिरा गांधी एक ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी थीं... मेकअप आर्टिस्ट उनके बालों को संवार रही थी... इंदिरा को ब्रिटिश ऐक्टर और टेलीविजन प्रेजेंटर पीटर उस्तीनोव (Peter Ustinov) के साथ एक टीवी इंटरव्यू के लिए तैयार होना था और शाम को, उन्हें ब्रिटेन की राजकुमारी ऐनी, महारानी एलिजाबेथ द्वितीय और प्रिंस फिलिप की बेटी के सम्मान में डिनर की मेजबानी करनी थी.
प्रधानमंत्री चाहते थे कि गेस्ट लिस्ट में कुछ बदलाव किए जाएं और यह बातें उन्होंने आरके धवन (RK Dhawan) को बताईं. धवन ने एक एक बात को नोट किया.
पीली नारंगी साड़ी पहने इंदिरा काली सैंडल में और लाल कपड़े का थैला लिए अपने सरकारी आवास 1, सफदरजंग रोड से निकलकर 1, अकबर रोड के अपने दफ्तर की ओर बढ़ीं. उस्तीनोव टीवी इंटरव्यू के लिए वहां इंतजार कर रहे थे. इंदिरा के अटेंडेंट, हेड कांस्टेबल नारायण सिंह उनके ऊपर छाता लगाए चल रहे थे ताकि देश की पीएम का मेकअप बना रहे.
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जब वह लॉन से होकर गुजर रही थीं, उन्होंने देखा कि एक सर्वर चाय का सेट ले जा रहा है, जिसे इंटरव्यू के दौरान उस्तीनोव और इंदिरा के सामने रखा जाना था. इंदिरा ने यहां सर्वर को चाय का एक और शानदार सेट लाने को कहा. फिर वह नीम और ओक के पेड़ों से घिरे लगभग 20 मीटर के छोटे से सीमेंट वाले रास्ते पर चलकर आधिकारिक निवास और अपने कार्यालय को अलग करने वाले गेट की ओर चली गईं.
वहां तैनात गार्ड्स को उन्होंने नमस्ते कहने के लिए हाथ जोड़े और तभी उनपर रिवॉल्वर की गोली चली. वक्त था सुबह 9 बजकर 9 मिनट...
जमीन पर गिरी इंदिरा पर सतवंत सिंह ने स्टेनगन से फायरिंग शुरू कर दी. कुल 30 गोलियां चलाई गईं. कुछ ही सेकंड में सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) गोलियों की आवाज सुनकर सफदरजंग रोड हाउस (Safdarjung Road House) से भागकर बाहर आईं. प्रधानमंत्री आवास पर ड्यूटी में तैनात केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना के डॉक्टर डॉ. आर. ओपे वहां पहुंचे लेकिन वहां तैनात की गई एंबुलेंस का ड्राइवर नहीं था.
डॉक्टर ने इंदिरा को एक सरकारी कार में बिठाया और उन्हें एम्स ले गए. गाड़ी में इंदिरा का सिर गोद में लिए सोनिया भी सवार थीं. राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) इस वक्त पश्चिम बंगाल के चुनावी दौरे पर थे और कलकत्ता से लगभग 150 किमी दूर कोंटाई में मौजूद थे.
सफेद अंबेसडर कार मिनटों में एम्स पहुंच गई. एम्स से कुछ किलोमीटर दूर BBC संवाददाता सतीश जैकब (BBC Correspondent Satish Jacob) ने अपना घर बंद कर लिया था और वह काम पर जा रहे थे. लेकिन तभी फोन की घंटी उन्हें सुनाई दी. उन्होंने दरवाजा खोलकर अंदर जाने का फैसला किया. फोन करने वाले पत्रकार मित्र ने उन्हें बताया कि पीएम हाउस के पास कुछ गड़बड़ी की खबर है. एक एंबुलेंस सायरन बजाते वहां से निकली है.
जैकब ने राजीव गांधी के सहयोगी विंसेंट जॉर्ज को फोन किया. उन्हें बताया गया कि पीएम को गोली मार दी गई है.
जैकब सुबह 10 बजे एम्स पहुंच चुके थे. कुछ डॉक्टरों और धवन सहित कुछ लोगों से बात करने के बाद, उन्होंने लगभग 10.45 बजे लंदन में अपने कार्यालय में एक ट्रंक कॉल बुक किया (उनके वरिष्ठ, मार्क टुली, शहर से बाहर थे). जैकब ने बताया कि इंदिरा गांधी की हत्या की कोशिश की गई है और उन्हें अस्पताल ले जाया गया है.
तब तक आकाशवाणी या दूरदर्शन पर कोई खबर नहीं थी. लेकिन दिल्ली में पीएम को कुछ हो गया है, ये बातें होनी शुरू हो गई थी. तुगलक रोड पुलिस स्टेशन में सुबह 11.25 बजे FIR दर्ज की गई (एफआईआर संख्या 241/84) और आधार थे हेड कांस्टेबल नारायण सिंह.
दिल्ली के तत्कालीन जनरल कमांडिंग ऑफिसर, मेजर जनरल जे.एस. जामवाल को भी यह खबर मिली.
उधर, दोनों सुरक्षाकर्मियों को सरेंडर के तुरंत बाद प्रधानमंत्री के घर पर आईटीबीपी (भारत-तिब्बत सीमा पुलिस) बूथ के अंदर पूछताछ के दौरान रहस्यमय तरीके से गोली मार दी गई थी. बेअंत सिंह की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि सतवंत सिंह बच गया और उसे डॉ राम मनोहर लोहिया अस्पताल ले जाया गया था.
डॉ राम मनोहर लोहिया अस्पताल में तब यूरोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड डॉ. राजीव सूद ऑपरेशन थियेटर में थे. उन्हें एक नर्स ने बताया कि इंदिरा गांधी को गोली लगी है और उन्हें वहां लाया जा रहा है. डॉ. सूद ने बाद में याद किया कि उन्हें इंदिरा को बचाने के लिए निर्देश मिला, लेकिन हैरानी तब हुई जब ITBP जवान बेअंत सिंह और सतवंत सिंह को लेकर वहां आए.
सतवंत सिंह स्ट्रेचर पर था और पंजाबी में चिल्ला रहा था 'शेरावालां काम कर दित्ता, मैं उना नु मार दित्ता' (मैंने एक वीर काम किया है। मैंने उसे मार डाला है)। डॉक्टरों ने उसका ऑपरेशन किया और उसके पेट से दो गोलियां निकालीं.
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इस बीच, एम्स के डॉक्टर अभी भी गांधी को बचाने की हर संभव कोशिश कर रहे थे. वहां डॉक्टरों के पास करीब 60 बोतल खून था और वे करीब 40 बोतलों का इस्तेमाल कर चुके थे लेकिन इंदिरा के लीवर, फेफड़े और किडनी से काफी खून बह रहा था. वे बहते खून को रोक न सके.
कोलकाता के बाहरी इलाके में राजीव गांधी के साथ प्रणब भी थे. दोपहर 1 बजे राजीव गांधी ने बीबीसी पर इंदिरा के निधन की खबर सुनी.
चलते चलते 31 अक्टूबर को हुई दूसरी घटनाओं पर एक नजर डाल लेते हैं
1922 : बेनिटो मुसोलिनी (Benito Mussolini) इटली का प्रधानमंत्री बनी
1941 : 14 साल काम के बाद Mount Rushmore पूरा हुआ
1875 : वल्लभभाई पटेल (Vallabhbhai Patel) का जन्म हुआ