How ISKCON Temples Earns : हरे राम, हरे कृष्ण (Hare Ram-Hare Krishna) की धुन लेकर दुनिया भर में कृष्ण भक्ति का संदेश फैला रहे इस्कॉन (Iskcon Mandir) के पास पैसा आता कहां से है? आखिर धन के आने का वह क्या जरिया है जिससे इस्कॉन बड़े बड़े मंदिर बनाता है, करोड़ों लोगों को मुफ्त प्रसाद वितरित (Prasad Distribution in Iskcon) करता है और अपने सदस्यों के आने जाने रहने का खर्च उठाता है?
इस्कॉन के दुनिया भर में 600 से ज्यादा मंदिर और सेंटर्स हैं. जिन्हें चलाने के लिए हर महीने ही करोड़ों रुपयों की जरूरत होती है. इस्कॉन ये सब मैनेजमेंट की कौन सी प्रणाली से करता है, इसी को हम समझेंगे आज के झरोखा में..
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International Society for Krishna Consciousness (ISKCON), जिसे हम हरे कृष्ण मूवमेंट के नाम से भी जानते हैं, इसकी स्थापनी हुई थी 1966 में न्यू यॉर्क सिटी में... भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (A. C. Bhaktivedanta Swami Prabhupada) इसके फाउंडर हैं. आज हम इस्कॉन का जिक्र इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इसकी स्थापना करने वाले प्रभुपाद ने 14 November 1977 यानी आज ही के दिन Vrindavan में अपने देह को त्याग दिया था...
इस्कॉन अब तक करोड़ों को गीता का पाठ पढ़ा चुका है. एक अनुमान है कि दुनिया में 50 करोड़ से ज्यादा लोग भगवद्गीता पढ़ चुके हैं और इसका बड़ा श्रेय इस्कॉन को जाता है. इस्कॉन हर रोज लगभग 1 करोड़ लोगों को भोजन कराता है.
यूरोप में ऐसे देश जहां बीफ का कंजप्शन बहुत ज्यादा है, इस्कॉन ने वहां भक्ति और सात्विक भोजन की मुहिम चलाई और इसी का असर है न्यू यॉर्क में एक छोटी सी दुकान से शुरू हुआ इस्कॉन का सफर आज दुनिया भर में 600 से ज्यादा मंदिरों तक पहुंच चुका है.
10 लाख सामूहिक सदस्य, 11 हजार से ज्यादा सदस्य इस्कॉन के हैं. 50 हजार से ज्यादा Life Patron Members हैं.
इस्कॉन के मंदिर भी एक से बढ़कर एक भव्यता समेटे दिखाई देते हैं. भारत के बैंगलोर में इस्कॉन मंदिर (Iskcon Temple Bangalore) में 56 फीट ऊंचा गोल्ड प्लेटेड फ्लैग पोस्ट है. इस्कॉन का मुख्यालय भारत के पश्चिम बंगाल के मायापुर (Iskcon Headquarters in Mayapur, West Bengal) में है.
यहां श्री माया चंद्रोदय मंदिर (Sri Maya Chandrodaya Mandir) बन रहा है. एक बार मंदिर बन जाने पर यह इस्कॉन का सबसे बड़ा मंदिर होगा. इस्कॉन के दिल्ली मंदिर में सबसे विशाल भगवद्गीता (Largest Bhagavad Gita in world) है जिसका वजन 800 किलो है.
सूरज उगने से पहले हर रोज सुबह 4.30 बजे दुनिया भर के इस्कॉन मंदिरों में फूलों की सुगंध उठने लगती है, ढोल की ताल, हरे राम-हरे कृष्ण के गीत, हाथों से बजती तालियां सुनाई देने लगती है.
इस्कॉन की पहचान उस सात्विक भोजन के लिए भी है जो खास अवसर पर वितरित की जाती है. यूं तो हर रोज ही इस्कॉन मंदिरों में खिचड़ी का वितरण होता है लेकिन खास मौकों पर इस प्रसाद को ग्रहण करने वालों की संख्या लाखों में पहुंच जाती है. मकर संक्रांति, मंदिर की वर्षगांठ, अन्न दान सेवा के मौके पर मंदिर में प्रसाद का वितरण होता है.
प्रसाद का वितरण डोनेशन की मदद से हो पाता है. हर मंदिर इसके अलावा धार्मिक पुस्तकों, रेस्टोरेंट, बेकरी शॉप, स्नैक्स और गिफ्ट शॉप से भी फंड जुटाता है.
इस्कॉन का जो मंदिर जिस भी देश में है, वह वहां के नियम कानून के हिसाब से चलता है. हर सेंटर को आत्मनिर्भर बनाना ही इस्कॉन की सफलता का मूलमंत्र है. न तो दान का कोई पैसा, न ही पुस्तक, रेस्टोरेंट की सामग्री, कलाकृतियों या गिफ्ट्स की बिक्री से हुई कोई आय किसी भी दूसरे मंदिर को ट्रांसफर होती है. यह उसी मंदिर के खर्च का हिस्सा बनती है जहां से इसे अर्जित किया गया होता है.
इस्कॉन की संरचना बेहद चुस्त दुरुस्त है. ये एक कॉर्पोरेट वर्ल्ड की तरह काम करती है और इसी वजह से मंदिरों में किसी तरह की वित्तीय अनियमितता नहीं हो पाती है. मंदिर के हर दिन के कार्य की जिम्मेदारी वहां के प्रेसिडेंट की होती है. वह लोकल गवर्निंग बोर्ड कमिशन (GBC) के प्रति जवाबदेह होता है.
प्रेसिडेंट के अंतर्गत ही मंदिर के सभी सदस्य कार्य करते हैं. गवर्निंग बोर्ड कमिशन मंदिर की डे टु टे ऐक्टिविटी में शामिल नहीं होता है. लोकल गवर्निंग बॉडी, सेंट्रल गवर्निंग बॉडी काउंसिल के प्रति जवाबदेह होती है.
दुनिया भर में 1 लाख से ज्यादा इनिशिएटर्स (वरिष्ठ गुरुओं/मेडिटेटर्स की दीक्षा लेने के बाद शामिल किए गए लोग) हैं और 10 लाख से ज्यादा लाइटाइम मेंबर्स हैं. दान करने वाले, कीर्तन और सत्संग सुनने की चाहत रखने वाले लोगों को लाइफटाइम मेंबरशिप दी जाती है.
एक लाइफ पेट्रॉन मेंबर की फीस 35 हजार रुपये से कुछ ज्यादा है. हालांकि ये एकमुश्त रकम है. इसे चुकाने के बाद कोई भी इस्कॉन का लाइफ पेट्रॉन मेंबर बन सकता है. इसके बाद वह दुनिया भर में इस्कॉन के किसी भी मंदिर में साल में एक बार 3 दिन तक रह सकता है, प्रसादम ले सकता है.
इस फीस को चुकाने से section 80G के अंतर्गत इनकम टैक्स में राहत भी मिलती है. हालांकि ये रकम ISKCON Gangasagar Fund में जाती है. इस्कॉन के 50 हजार से ज्यादा लाइफ पेट्रोल मेंबर्स भी हैं.
ये इस्कॉन से जुड़े वरिष्ठ लोगों का एक समूह है जो नीति से जुड़े मामलों पर फैसले लेता है. GBC में 35-40 सदस्य होते हैं. उनमें से ज्यादातर वरिष्ठ भक्त हैं जिन्हें उनकी लीडरशिप स्किल्स या फंडरेजिंग एबिलिटीज या दूसरी क्वालिटीज की वजह से इसमें शामिल किया जाता है. GBC का कोई भी सदस्य अकेले फैसला नहीं ले सकता है. कोई भी फैसला सर्वसम्मति से ही होता है. प्रभुपाद के बनाए सिद्धांतों के आधार पर ही फैसले होते हैं.
GBC नीति निर्धारित करता है और इसके सदस्य इस्कॉन की सभी गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखते हैं. इस्कॉन के सभी 600 केंद्रों या मंदिरों के लिए यही जिम्मेदार होते हैं. यही किसी भी मुद्दे जिन्हें क्लेरिफिकेशन या फैसले की जरूरत होती है उन मामलों में यही सदस्य अंतिम मध्यस्थ भी होते हैं.
वित्तीय अनियमितताओं से बचने के लिए ज्यादातर मंदिरों के अपने-अपने तरीके हैं. परिसर में कैश के लिए कोई जगह नहीं होती है. चेक से ही मंदिर की हर जरूरत को पूरा किया जाता है. मंदिर समिति की उपस्थिति में हुंडियों या दान पेटियों को खोला जाता है और सीसीटीवी से इस प्रोसेस को रिकॉर्ड भी किया जाता है. इसके बाद नकद राशि मंदिर के बैंक खाते में जमा कर दी जाती है.
अगर मंदिर को सोना या कोई भी आभूषण या उपहार दान में दिया जाता है, तो उनका वजन (सोने और चांदी की वस्तुओं के मामले में) किया जाता है और मूल्य को एक रजिस्टर में अंकित किया जाता है. जो सामान दान किया जाता है उसे तुरंत लॉकर में जमा कर दिया जाता है.
हर मंदिर के खाते की इंटरनल और एक्सटर्नल ऑडिटर से मॉनिटरिंग कराई जाती है.
GBS की कार्यकारी समिति के सदस्यों का खर्च फाउंडेशन के ऊपर होता है. जीबीसी की कार्यकारी समिति के लिए एक छोटा वार्षिक बजट है, लेकिन अलग-अलग जीबीसी सदस्यों को अपने खर्चों को वहन करना पड़ता है. अक्सर यह उन मंदिरों की मदद से पूरा किया जाता है जिनकी वे देखरेख करते हैं और ऐसे व्यक्तिगत सदस्यों की वजह से जो मदद करना चाहते हैं.
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हर मंदिर के सदस्यों को मंदिर द्वारा अपने खुद के धन से मेंटनेंस चार्ज दिया जाता है. एक सामान्य नियम के रूप में, अविवाहित सदस्यों को उनके भरण-पोषण का खर्च सीधे दिया जाता है जबकि विवाहित सदस्यों को सीधे स्टाइपंड के तौर पर एक रकम दी जाती है.
अगर कभी धन की कमी हो जाए तो क्या होता है. इस सिचुएशन में जो बात प्रघोष दास ने फर्स्टपोस्ट को बताई, वो ये कि अगर कोई सच्चे मन से भक्ति का संदेश बढ़ाने में जुट जाए तो धन कभी बाधा नहीं बनता है. हालांकि ऐसे मामले भी देखे गए हैं जब कुछ मंदिरों में धन की समस्या आ खड़ी हुई लेकिन तभी अचानक किसी दान करने वाले का नाम सामने आया और वह समस्या झट से दूर हो गई.
इस्कॉन को अतीत में अपने कुछ केंद्रों में धन के हेराफेरी के मामले झेलने पड़े. कृष्ण के भक्तों की मूल समझ यह है कि सब कुछ कृष्ण का है. इस्कॉन से जुड़े सभी लोगों की बुनियादी समझ ये है कि सबकुछ कृष्ण का है. और सदस्य इस धन का दुरुपयोग नहीं कर सकते हैं. साथ ही, इस्कॉन की प्रणाली ऐसी है कि सभी एक उच्च अधिकारी के प्रति हमेशा जवाबदेह रहते हैं.
चलते चलते 14 नवंबर को हुई दूसरी घटनाओं पर भी एक नजर डाल लेते हैं
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