Kirloskar Group Success Story: मशीनों के महारथी थे Laxmanrao, ऐसे बनाई अरबों की कंपनी | Jharokha 26 Sep

Updated : Sep 27, 2022 10:35
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Mukesh Kumar Tiwari

Kirloskar Group Success Story : किर्लोस्कर ग्रुप भारत में इंजीनियरिंग इंडस्ट्री के शुरुआती औद्योगिक समूहों में से एक है. इसका हेडक्वार्टर भारत में महाराष्ट्र के पुणे में है. कंपनी ज्यादातर अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया और यूरोप में 70 से ज्यादा देशों में अपने प्रोडक्ट एक्सपोर्ट करती है. 1888 में स्थापित फ्लैगशिप और होल्डिंग कंपनी, किर्लोस्कर ब्रदर्स लिमिटेड, भारत की सबसे बड़ी पंप और वाल्व मैन्युफैक्चरर है. किर्लोस्कर ग्रुप स्वदेशी अरिहंत परमाणु पनडुब्बी कार्यक्रम के लिए मेजर कॉम्पोनेंट सप्लायर में से एक है. आइए आज जानते हैं किर्लोस्कर ग्रुप के बनने की कहानी (Kirloskar Group Story), इसके इतिहास (Kirloskar Group History) और इसके अब तक के सफरनामे (Kirloskar Group Success Story) को.

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जब काइरो में किर्लोस्कर नाम सुन चौंक गई थी रीसेप्शनिस्ट

क्या सच में ये आपका नाम है? काइरो के एक होटल में रीसेप्शनिस्ट ने संजय किर्लोस्कर से यही सवाल किया था... मामला 1990 के दौर का है. संजय तब कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर थे और अब किर्लोस्कर ब्रदर्स के चेयरमैन हैं. वह जवाब सुनकर मुस्कुराती रही... संजय किर्लोस्कर ने फिर इसकी पुष्टि की.

संजय सोच में पड़ गए कि आखिर क्या मामला है जो रीसेप्शनिस्ट को हैरानी हो रही है... उसने बताया कि इजिप्ट में किर्लोस्कर का मतलब पंप होता है... जैसे भारत में जिरोक्स का मतलब फोटोकॉपी...  हर कारोबारी का यही तो सपना होता है जब उसका ब्रांड ही प्रॉडक्ट की पहचान बन जाए. किर्लोस्कर पंप को अफ्रीका में यही कामयाबी मिल गई थी, खासतौर से इजिप्ट में... जहां कंपनी 1960 के दशक से ही पंप को एक्सपोर्ट कर रही है.

26 सितंबर 1956... आज ही वह तारीख है जब कंपनी के संस्थापक लक्ष्मणराव किर्लोस्कर (Laxmanrao Kirloskar) ने 1956 में दुनिया को अलविदा कहा था... 

Victoria Jubilee Technical Institute में पढ़ाते थे लक्ष्मणराव

$2.1 billion की कमाई वाली कंपनी की कहानी शुरू होती है 1888 से... जब बेलगाम में किर्लोस्कर ब्रदर्स की शुरुआत की गई थी... शुरुआत में ये सिर्फ एक ट्रेडिंग कंपनी थी. बड़े भाई रामचंद्रराव इसे चलाते थे जबकि छोटे भाई लक्ष्मण राव बॉम्बे में रहते थे. बॉम्बे में वह पढ़ाया करते थे... विक्टोरिया जुबली टेक्निकल इंस्टिट्यूट (Victoria Jubilee Technical Institute), जहां लक्ष्मणराव पढ़ाते थे. 

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आगे चलकर इसका नाम Veermata Jijabai Technological Institute कर दिया गया. वहां उन्हें वाजिब प्रमोशन नहीं दिया गया... बस क्या था... लक्ष्मणराव को इससे धक्का लगता है... वे जॉब छोड़ देते हैं और बेलगाम के लिए निकल पड़ते हैं (इसके एक सदी से भी ज्यादा वक्त बाद नवंबर 2003 में, जब किर्लोस्कर ब्रदर्स ने एक ब्रिटिश कंपनी, एसपीपी पंप्स (SPP Pumps) का अधिग्रहण किया, तो यह एक तरह से पुराने हिसाब को चुकता करने जैसा था.)

Kirloskar Group ने पहला लोहे का हल बनाया

लक्ष्मणराव की एंट्री ने किर्लोस्कर की सोच बदलकर रख दी. सेलिंग से मैन्युफैक्चरिंग तक हर जगह लक्ष्मणराव की छाप दिखाई देने लगी. वह टेक्नोलॉजी को समझते थे; बाजार की नब्ज और उस समय मुख्य रूप से कृषि प्रधान समाज में किसानों की जरूरतों को भी जानते थे. किर्लोस्कर का पहला प्रोडक्ट - एक हाथ से चलने वाला भूसा कटर था जो 1902 में बना. तीन साल बाद, भाइयों ने पहला लोहे का हल बनाया.

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लकड़ी का हल सालों से इस्तेमाल कर रहे किसान किर्लोस्कर ग्रुप के इस प्रोडक्ट को लेकर शुरू में फीके थे. किसानों को यह महसूस करने में लगभग दो साल लग गए कि लोहे के हल लकड़ी की तुलना में ज्यादा मजबूत थे. लेकिन जैसे ही किसानों को ये समझ में आया, प्रोडक्ट की बिक्री ने भी रफ्तार पकड़ ली. लेकिन कहानी में फिर यूटर्न आया.

1908 में बेलगाम नगरपालिका ने जमीन खाली करने को कहा

1908 में बेलगाम नगरपालिका ने किर्लोस्कर को जमीन खाली करने को कह दिया... नगरपालिका नया सबर्ब बनाने के लिए जगह चाहती थी और किर्लोस्कर ग्रुप की जमीन इसके रास्ते में आ रही थी. किस्मत से औंध के राजा बालासाहेब पंत प्रतिनिधि थे, जो तब एक प्रिंसली स्टेट था और आज महाराष्ट्री के सांगली और सतारा जिले में पड़ता है, उन्होंने किर्लोस्कर को लैंड और लोन दोनों का ऑफर किया.

दो महीने बाद लक्ष्मणराव किर्लोस्कर ने औंध में 32 एकड़ की बंजर भूमि पर पैर रखा... रेलवे स्टेशन के पास की ये जमीन कैक्टस और कोबरा से भरी हुई थी.

लक्ष्मणराव ने रखी Kirloskarwadi की नींव

लक्ष्मणराव ने बिना समय गंवाए, 25 मजदूरों को उनके परिवारों के साथ इकट्ठा किया... वे एक ऐसे गांव को बनाकर उसमें रहने जा रहे थे जहां बिजली तो दूर की बात, साफ पानी भी कड़ी मशक्कत से मिलने वाला था...  रामू अन्ना के नेतृत्व में बस्ती की योजना बनाई गई और उसका निर्माण किया गया. इस गांव को बाद में 'किर्लोस्करवाड़ी' के नाम से जाना जाने लगा. ये भारत के पहले 'फैक्ट्री विलेज' में से एक बन गया. बाकी दो वालचंदनगर (महाराष्ट्र) और टाटानगर, जमशेदपुर (बिहार) में थे. ये बात 100 साल पहले की है.

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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, गिरफ्तारी से बचने के लिए भूमिगत हुए कुछ क्रांतिकारियों ने भी किर्लोस्करवाड़ी में शरण ली. कारखाने के मजदूरों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध और सत्याग्रह में हिस्सा लिया. ऐसे ही एक विरोध प्रदर्शन पर पुलिस की गोलीबारी में फैक्ट्री के दो मजदूर उमाशंकर पांड्या और सदाशिव पेंढारकर मारे गए. यहीं पर एक स्तंभ और पार्क इनके बलिदान की आज भी याद दिलाता है.

1888: किर्लोस्कर की शुरुआत

1914: पहले विश्व युद्ध ने कंपनी पर असर डाला... प्रोडक्शन पर असर 

1940: भारत की पहली खराद मशीन बनाई

1958: किर्लोस्कर ने एक्सपोर्ट शुरू किया

1969: क्वालालम्पुर में फैक्ट्री ने ऑपरेशन शुरू किया. किर्लोस्करवाड़ी में हैंड पंप की असेंबलिंग शुरू हुई.

1973: यूरोप में बड़े पैमाने पर पंप का एक्सपोर्ट शुरू हुआ. 

2003: किर्लोस्कर ब्रदर्स ने लंदन के SPP पंप का अधिग्रहण किया. 

2007: सरदार सरोवर प्रोजेक्ट की पंपिंग स्कीम में किर्लोस्कर के पंप का इस्तेमाल किया गया.

किर्लोस्करवाडी आज सांगली जिले में है

25 मजदूरों के साथ शुरू हुई नई जगह आज सांगली जिले में स्थित है. ये फैक्ट्री और टाउनशिप दोनों का रूप ले चुकी है. आज यहां कंपनी का डिजाइन, प्लानिंग और R&D डिपार्टमेंट है. मुंबई से दक्षिण पश्चिम में 270 किलोमीटर दूर ये स्थित है. किर्लोस्कर का कारोबार आज 70 देशों में फैल चुका है. कंपनी के पिटारे में आज प्रोडक्ट्स की भरमार है. इसमें ऑयल इंजन से लेकर इलेक्ट्रिक मोटर, पंप से लेकर टरबाइन तक और इंजन से लेकर जनरेटर सेट तक शामिल हैं.

पहले विश्वयुद्ध ने किर्लोस्कर ग्रुप पर असर डाला

कंपनी शुरू होते ही कामयाबी के रास्ते पर बढ़ी, ऐसा नहीं था. कंपनी के रास्ते में अड़चनें भी बहुत आईं. लोहे की आपूर्ति बंद होने से प्रथम विश्व युद्ध (1914 से 1918) ने किर्लोस्कर बंधुओं को बुरी तरह प्रभावित किया था. इस बार दक्षिण-पूर्व महाराष्ट्र के सोलापुर के महाराजा उनकी मदद के लिए आगे आए. राजा ने अपनी तोपें उन्हें बेच दीं ताकी वे उन्हें पिघलाकर लोहे के कच्चे माल के तौर पर उसका इस्तेमाल कर सकें.

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सेकेंड वर्ल्ड वार (1939 से 1945) के दौरान, अंग्रेजों ने किर्लोस्कर से कहा कि वे उनके लिए हथियार बनाएं. यहां कंपनी ने दूर की सोची और मशीन टूल्स बनाने की पेशकश की, जिसका इस्तेमाल हथियार बनाने के लिए हो सकता था. इस प्रकार मशीन टूल्स में उनका प्रवेश हुआ. संजय किर्लोस्कर ने बिजनेस टुडे को बताया था कि मेरे पूर्वज ऐसे बिजनेस में उतरना चाहते थे जो जंग खत्म होने के बाद भी कायम रहे.

संजय किर्लोस्कर ने बताई पूर्वजों की बात

जल्दी ही, किर्लोस्कर ने निर्यात शुरू करने का फैसला किया. संजय किर्लोस्कर कहते हैं, ''मेरे दादा शांतनुराव किर्लोस्कर कहते थे कि हर कारोबार साइकलिकल होता है.'' "उन्होंने कहा कि हमें ज्यादा बाजारों तक पहुंचकर अपने जोखिम को कम करना चाहिए." किर्लोस्करवाड़ी के संचालन प्रमुख एन.डी. वाघ कहते हैं- 122 साल पुरानी कंपनी के रूप में, किर्लोस्कर ब्रदर्स ने अपनी संस्कृति को बरकरार रखा है. हम योग्यता पर विचार करते हैं,  कहते हैं. हम उन लोगों को रोजगार देना चाहते हैं जिनके पिता भी यहां काम करते थे.

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किर्लोस्करवाड़ी रेलवे स्टेशन मध्य रेलवे, पुणे मंडल में मुंबई-बैंगलोर रेलवे लाइन पर है. सांगली, कोल्हापुर, पुणे, मुंबई और बैंगलोर जैसे प्रमुख शहरों से यहां के लिए ट्रेनें हैं. महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (MSRTC) की बस सर्विस भी यहां के लिए मिलती है. किर्लोस्करवाड़ी से सांगली, कोल्हापुर, पुणे और मुंबई के लिए निजी बसें भी अवेलेबल रहती हैं. बिजनेस जेट के लिए यहां एक प्राइवेट एयरपोर्ट और हेलीकॉप्टर के लिए हेलीपैड भी है.

लक्ष्मण राव किर्लोस्कर पर भारत सरकार ने एक डाक टिकट भी जारी किया.

चलते चलते 26 सितंबर की दूसरी घटनाओं पर एक नजर डाल लेते हैं

 1872 - न्यूयॉर्क सिटी में पहला मंदिर बना

1950- इंडोनेशिया ने संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता ग्रहण की

1820 - समाज सुधारक, स्वाधीनता सेनानी ईश्वर चन्द्र विद्यासागर (Ishwar Chandra Vidyasagar) का जन्म

1842 - सन 1798-1805 ई. तक भारत के गवर्नर-जनरल रहे लॉर्ड वेलेज़ली (Lord Velejali) का निधन

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